केंद्र की पिछली यूपीए सरकार में और कुछ था या नहीं, किन्तु 'अतिथि देवो भव' का नारा सीने स्टार आमिर खान के मुंह से कहलवाकर इस सरकार ने ऐसा माहौल जरूर खड़ा किया था, जिससे लगा कि पर्यटन उद्योग काफी गति में है. इसके बाद आयी मोदी सरकार ने भी 'रामायण सर्किट' समेत अनेक परियोजनाओं को लेकर ज़ोर शोर दिखाया, किन्तु इससे सम्बंधित जो आंकड़े आये, उसने निश्चित रूप से केंद्रीय पर्यटन मंत्री महेश शर्मा के दांतों तले पसीना ला दिया होगा. डेढ़-दो साल पहले तक हर टीवी चैनल, हर अखबार और पत्र-पत्रिकाओं में 'अतिथि देवो भव स्लोगन लिखे विज्ञापन आते थे जिनमें यह बताने की कोशिश की जाती थी कि भारत घूमने आने वाला पर्यटक हमारा अतिथि है, इसके मान-सम्मान और सामान की सुरक्षा करना हमारा नैतिक दायित्व है. सरकार बदली, तो मीडिया से यह विज्ञापन गायब हो गया और इसकी कोई रिप्लेसमेंट भी नहीं आयी. शायद इसलिए भी, आमिर खान के बहुचर्चित बयान में असहिष्णुता नज़र आयी. खैर, इस सन्दर्भ में गौर करें तो, पिछले तीन सालों में विदेशी पर्यटकों के आने में काफी कमी आई है और इसका प्रभाव भारत की अर्थव्यवस्था पर भी कहीं न कहीं पड़ रहा है. भारत के लिए पर्यटन उद्योग एक बड़ा उद्योग रहा है, जिसका सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सा लगभग 6.5 फीसदी के करीब रहा है. देश के लगभग चार करोड़ लोगों को इसके जरिये सीधे रोजगार मिला हुआ है तो इससे कहीं ज्यादा लोग अप्रत्यक्ष रूप से पर्टयन उद्योग से जुड़े हुए हैं. पिछले तीन सालों के ही आंकड़े पर अगर गौर करें, तो वर्ष 2014 में 2013 के मुकाबले दस फीसदी पर्यटक ज्यादा आए थे. उम्मीद व्यक्त की जा रही थी कि इस बार भी विदेशी पर्यटकों की संख्या में 25 फीसदी का इजाफा होगा, लेकिन हुआ ठीक इसके विपरीत. सरकारी आंकड़े के अनुसार, पिछले साल के 7.68 लाख पर्यटकों के मुकाबले इस साल अक्टूबर तक 6.58 लाख पर्यटक भारत में आए हैं. यह भी दिलचस्प है कि अक्टूबर 2015 तक भारत आने वाले विदेशी पर्यटकों में सबसे ज्यादा हिस्सा 15.22 प्रतिशत के करीब बांग्लादेशी पर्यटकों का रहा है, 12.99 प्रतिशत के साथ अमेरिका दूसरे स्थान पर तो ब्रिटेन का 11.31 प्रतिशत, श्रीलंका का 3.69 प्रतिशत, जर्मनी का 3.62 प्रतिशत, कनाडा का 3.58 प्रतिशत, ऑस्ट्रेलिया का 3.37 प्रतिशत, मलेशिया का 3.03 प्रतिशत, फ्रांस का 3.01 प्रतिशत, नेपाल का 2.67 प्रतिशत, चीन का 2.55 प्रतिशत, जापान का 2.42 प्रतिशत, रूस का 2.03 प्रतिशत, सिंगापुर का 1.65 प्रतिशत और पाकिस्तान का 1.59 प्रतिशत हिस्सा रहा है.
इस क्रम में विदेशी मुद्रा की जो आमद हुई है, उसके अनुसार जनवरी से अक्टूबर 2015 के दौरान पर्यटन उद्योग से करीब 101,348 करोड़ रुपये की कमाई हुई है. इसकी तुलना अगर पिछले साल हुई कमाई से किया जाए, तो वर्ष 2015 में सिर्फ 2.5 फीसदी का ही इजाफा हुआ है. इतने कम इजाफे से पर्यटन उद्योग को निश्चित रूप से झटका लगा है, क्योंकि उम्मीद कहीं ज्यादे की थी. यह भी एक आश्चर्य ही है कि विश्व के सातवें अजूबे ताजमहल के पर्यटकों की संख्या में भी काफी कमी आई है. पिछले साल, यानी 2014 के जनवरी से सितंबर के दौरान अगर इस साल, यानी 2015 की इसी अवधि की तुलना की जाए, तो ताज महल देखने आने वाले विदेशी पर्यटकों की संख्या में नौ फीसदी की गिरावट आई है. हेरिटेज आर्क, गोल्डन ट्राइंगल के प्रचार के बाद भी बुनियादी सुविधाओं में कमी और बेहद महंगी टिकट को पर्यटकों की संख्या घटने के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है और इसलिए देश में आने वाले 49 लाख से ज्यादा विदेशी मेहमान ताजमहल का दीदार किए बिना ही लौट गए. एक बड़ी चिंता की बात यह भी रही कि सैलानियों को पसंद आने वाला राजस्थान सफाई मापदंडों के नजरिये से पिछड़ता चला जा रहा है. हाल ही में हुए स्वच्छ भारत सर्वे में राजस्थान के प्रमुख पर्यटन स्थलों को बहुत नीचे की रैंकिंग मिली. भारत आने वाले विदेशी पर्यटकों की संख्या में कमी आने के प्रमुख कारणों में यूरोप की मंदी और भारत में विदेशी पर्यटकों के अनुकूल माहौल का न होना भी बताया जा रहा है. हालाँकि, यह भी एक तथ्य है कि इस समय पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं तंगी के दौर से गुजर रही हैं, ऐसे में पर्यटन पर खर्चे में कटौती स्वाभाविक ही है. इसके अतिरिक्त, आतंकवादी घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि होने से भी यूरोप, अमेरिका और अफ्रीकी देशों के लोग पर्यटन पर निकलने से घबरा रहे हैं. चूँकि, भारत आतंकियों की हिट लिस्ट में हमेशा शुमार रहता है तो जाहिर है पर्यटन उद्योग पर भी इसका असर पड़ेगा ही. पर्यटकों की संख्या घटने में जो और कारण जिम्मेदार ठहराए जा रहे हैं, उनमें भारत में विदेशी पर्यटकों के साथ दुर्व्यवहार, सांप्रदायिक तनाव और हिंसक घटनाओं का नाम गिनाया जा सकता है, जिससे भारत की छवि को धक्का पहुंचा है. खासकर 'सहिष्णुता-असहिष्णुता' के नाम पर जो कृत्रिम या वास्तविक चर्चा चलाने की कोशिश की गयी है, उसने हमारे देश की साख को गहरा धक्का पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. सकारात्मक बात यह है कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूरोप, अमेरिका और एशियाई देशों में घूम-घूम कर लोगों को भारत आने और यहां पूंजी निवेश के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं. लेकिन, नकारात्मकता फैलाने वाले लोग भी अपने दांव चल रहे हैं.
इस कड़ी में, इंडस्ट्री चैंबर्स एसोचैम का भी यह मानना है कि विदेशी पर्यटक भारत में अपनी सुरक्षा को लेकर आश्वस्त नहीं हैं. गौर करने वाली बात यह भी है कि अगर किसी पर्यटक के साथ कोई हादसा होता है, तो पुलिस और प्रशासन टालू रवैया अपनाकर इस कोशिश में जुट जाता है कि ये किसी तरह अपने देश वापस लौट जाएं! हालाँकि, कई जगह इसके अपवाद भी दिखाई दिए हैं, किन्तु हकीकत यही है कि हमें अपनी छवि निर्माण और सुरक्षा के माहौल को लेकर एकीकृत आश्वासन देना ही होगा! एकीकृत से मतलब यही है कि प्रशासन से लेकर, जनता तक एक साथ बोले 'अतिथि देवो भव'! विशेषज्ञों के अनुसार चूँकि नरेंद्र मोदी सरकार को दक्षिणपंथियों के प्रभाव में माना जाता रहा है और दुर्भाग्यवश गाय और बीफ को लेकर जो विवाद सामने आये हैं, वह भी कहीं न कहीं नकारात्मकता फैलाने में अहम भूमिका का निर्वाह कर चुके हैं. हालाँकि, इस दरमियाँ पाकिस्तान से सम्बन्ध सुधारने की कवायद भी शुरू हुई है, जिसमें प्रगति से न केवल भारत में, बल्कि सम्पूर्ण दक्षिण एशिया में शांति स्थापित हो सकती है. हालाँकि, सुषमा स्वराज के हार्ट ऑफ़ एशिया सम्मेलन में नवाज शरीफ और पाकिस्तानी वार्ताकारों से मीटिंग के बाद हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट रूप से कहा कि पाकिस्तान के साथ सम्बन्ध आतंकवाद के प्रति उसकी नीतियों के लगातार आंकलन से ही किया जायेगा. जाहिर है, अब काफी कुछ पड़ोसी देश के ऊपर भी निर्भर करता है. इसके अतिरिक्त, मोदी सरकार को अपनी उस घोषणा को गंभीरता से लागू करने की आवश्यकता है, जिसमें उसके केंद्रीय पर्यटन मंत्री महेश शर्मा ने कहा था कि सरकार अयोध्या में राम म्यूजियम बनाने की योजना पर विचार कर रही है, जो 'रामायण सर्किट' का हिस्सा होगा. हालांकि, अयोध्या की विवादित राम जन्मभूमि इस प्रोजेक्ट का हिस्सा नहीं बनाया जायेगा. इसी कड़ी में जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे का वाराणसी में प्रधानमंत्री मोदी के साथ 'गंगा-आरती' में शामिल होना, पर्यटन के विकास के लिए एक अद्भुत कदम था, जिसे पूरे वैश्विक मीडिया में कवरेज भी मिली थी. इसी तरह के अन्य धार्मिक प्रोजेक्ट्स को अगर प्राथमिकता से विकसित किया जाता है तो कोई कारण नहीं है कि पर्यटन और उस पर आधारित रोजगार में लगातार बढ़ोतरी न हो. इस लेख के लिखने के समय, मतलब 2015 बीतते-बीतते मैंने जो अनुभव किया, वह इनक्रेडिबल इंडिया डॉट ओआरजी वेबसाइट का डिज़ाइन था, जिसे और ज्यादा इंटरैक्टिव बनाया जा सकता है. विशेषकर तब, जब मोदी सरकार के तमाम मंत्री और मंत्रालय जनता से इंटरैक्ट होने के लिए सोशल मीडिया और वेबसाइट का बखूबी उपयोग कर रहे हैं, ऐसे में पर्यटन के लिए भी माय जीओवी डॉट इन जैसे गंभीर प्रयास होते तो और बेहतर परिणाम आते! उम्मीद की जानी चाहिए कि छोटे-छोटे प्रयासों से यह उद्योग अपने बेहतर समय काल में जल्द ही प्रवेश करेगा.
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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