बिहार विधानसभा का चुनाव राजनीति के लिहाज से कितना महत्वपूर्ण है, इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि चुनाव आयोग ने सुरक्षा की दृष्टि से इसे पांच चरणों में कराने का निर्णय लिया. इतने ज्यादा चरणों में चुनाव जम्मू कश्मीर या नार्थ ईस्ट जैसे क्षेत्रों में कराया जाता रहा है. 12, 16 और 28 अक्टूबर के साथ 1 और 5 नवम्बर को इस राज्य में जनता अपना निर्णय सुनाएगी तो चुनाव आयोग किसी के जीतने और किसी के हारने की घोषणा 8 नवम्बर को कर देगा. चुनाव इस देश में होते रहे हैं और भविष्य में होंगे भी, लेकिन इस पिछड़े राज्य में चुनाव परिणामों की सुबह यह अहसास ज़रूर होगा कि इस चुनाव में बदबयानी ने कितनी गन्दगी छोड़ी है और चुनाव परिणाम से आने वाले भविष्य में राज्य की दिशा और दशा क्या होने वाली है? ज़हरीले बयान तो इस चुनाव में शुरू से ही दिए जा रहे हैं, लेकिन दादरी में हुए बीफ प्रकरण के बाद लालू यादव के दिए गए बयान 'हिन्दू भी बीफ़ खाता है' के बाद तो फ़िज़ा में जैसे और ज़्यादा ज़हर घुल गया लगता है. लालू ने यह बयान क्या दिया, भाजपा ने अपने प्रवक्ताओं को अर्जुन की तरह सिर्फ और सिर्फ लालू के इस बयान पर निशाना साधने को कह दिया. इस बयान की जनता में प्रतिक्रिया आने के बाद लालू यादव ने यू टर्न लेते हुए कहा भी कि उनके मुंह में शैतान घुस गया था और गलती से उनके मुंह से यह बात निकल गयी तो नीतीश ने भी लालू यादव को असली गोपालक कह कर बचाव किया. कांग्रेस से दिग्विजय सिंह ने उनके समर्थन में ट्वीट पर ट्वीट कर डाले, लेकिन लगता नहीं है कि लालू इस चक्र से बाहर निकल पाये. हाँ! उन्होंने अपने इस बयान से ध्यान भटकाने के लिए उन्होंने जबरदस्त ढंग से बदजुबानी की और नरभक्षी, ब्रह्मपिशाच जैसे शब्दों का भी प्रयोग जरूर कर डाला! इन शब्दों का प्रयोग करते हुए लालू यादव भूल गए कि यह हिन्दुओं की पौराणिक कथाओं से जुड़े शब्द हैं और चाहे अनचाहे यह चुनाव भाजपा के पक्ष में वह और पोलराइज करते जा रहे हैं. लालू यादव के बीफ़ बयान की लौ कुछ मद्धम हो ही रही थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने विशेष अंदाज में इसे जबरदस्त ढंग से कुरेदते हुए बिहार की जनता के दिमाग में इसे फिर से तरोताजा कर दिया. धुआंधार रैलियां तो वह करते ही हैं, और हर रैली में भाजपा की रणनीति को अमलीजामा पहनाने की वह जबरदस्त कोशिश में भी लग गए हैं. प्रधानमंत्री अपने भाषणों में हालाँकि चालाकी से चलते दिख रहे हैं, लेकिन उनके मंतव्यों ने नीतीश कुमार को हिला दिया और उन्होंने व्यथित होकर ट्वीट किया कि 'बिहार में साम्प्रदायिकता की राजनीति को बेशर्मी से अमलीजामा पहनाया जा रहा है, जबकि बिहार में बीफ़ का कोई मुद्दा ही नहीं है. नीतीश यहीं नहीं रुके, उन्होंने नरेंद्र मोदी को गुजरात दंगों से जुड़ा बाजपेयी जी का 'राजधर्म' का उपदेश याद दिला डाला और कहा कि अब मोदीजी के साम्प्रदायिक राजनीति पर टोकाटाकी करने वाला कोई नहीं है!
वैसे नीतीश कुमार के लिए अच्छा यह रहता कि वह अपने गठबंधन के बड़े भाई लालू यादव को समझा लेते कि यूपी के बीफ़ विवाद में आप फालतू में अपना पैर डाल रहे हैं... तो शायद महागठबंधन को अपनी कैम्पेनिंग में बैकफुट पर नहीं आना पड़ता. वैसे, नीतीश का दर्द इस वजह से भी जायज़ नहीं कहा जा सकता, क्योंकि उनका गठबंधन, विशेषकर लालू यादव बीफ़ विवाद के पहले खुलकर जातिवादी राजनीति कर रहे थे और नीतीश भी उनकी पीठ ही थपथपा रहे थे. जाहिर था कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण की समीक्षा वाले बयान के सहारे बिहार में जबरदस्त जातिगत ध्रुवीकरण करने की कोशिश जारी थी. इस क्रम में लालू ने अगड़ों को यादवों का दुश्मन बता दिया तो दूसरी दलित जातियों को जबरदस्त ढंग से डराया कि ये सब लोग तुम्हारे दुश्मन हैं और सत्ता में आ गए तो तुम्हारा आरक्षण गया ही समझो! बेचारा झोंपड़ी में रहने वाला गरीब टुकुर टुकर देखता और सोचता रहा कि उसे आरक्षण मिला ही कहाँ, लालू ने अपने बेटों की उमर में हेरफेर करके चुनाव में लड़ा लिया तो रामविलास जैसों ने अपने बेटों, दामादों, भाई भतीजों को सेट कर लिया. मलाई तो गयी ही, दलित को मट्ठा भी नसीब नहीं हुआ! वह तो भाजपा वालों की प्रार्थना 'कामधेनु' ने सुन ली और लालू के मुंह में वैसे ही बैठ गयीं जैसे कुम्भकर्ण के ब्रह्माजी से छः महीने जागने वाले बरदान के समय उसकी जिह्वा पर सरस्वती मइया बैठ गयी थीं. तब कुम्भकर्ण ने उलटा बरदान मांग लिया था और बेचारा पूरी ज़िन्दगी सोकर ही गुजार दी और बिहार में अपने लालू जी गोपालक से ... कुछ और बन गए! लालू जी 'शैतान' का नाम लेकर एक और गलती कर गए... उन जैसे मंडलीय धुरंधरों को पता होना चाहिए था कि ये देवता... वहीँ स्वर्ग वाले... भाजपाइयों की मदद कर रहे हैं. जानबूझकर सरस्वती मइया को भेजा ताकि ताकि 'ललुआ' चुनाव हार जाए... तब शायद, बिहार की जनता लालू यादव का मंतव्य समझ पाती और सरस्वती मइया का नाम लेने से उनका बचाव भी कुछ हद तक हो ही जाता! तब नरेंद्र मोदी अपना 56 इंची सीना ठोक कर यह नहीं कह पाते कि सरस्वती मइया को लालू यादव का पता कहाँ से मिला? ... का कहें! वह पहले ही कुम्भकर्ण से भी ज्यादा पंद्रह साल तक सोये रहे, कमसे कम अब तो जग जाते! खैर, देवताओं और वह भी मइया सरस्वती के आगे किसी की चली है जो आज चलती... सब साजिश में लगे रहते हैं!
लालू से आगे बढ़ें तो, बदजुबानी करने में भाजपा नेता भी पीछे नहीं रहे और लालू यादव को चाराचोर जैसे शब्द कहकर सम्बोधित किया, जिसे सभ्य समाज में तो स्वीकृत नहीं ही किया जा सकता. दोनों ओर के सीनियर नेता आरोप प्रत्यारोप कर रहे थे तो नयी पीढ़ी भला कैसे चुप रहती. रामविलास के चिराग ने लालू के बेटों की उमर की हेराफेरी को लालू के जंगलराज से जोड़ा तो लालू के तेजस्वियों ने चिराग की माँ पर ही आपत्तिजनक कॉमेंट कर डाला! ऐसे में जब हर एक राजनीतिक दल मर्यादाओं को तोड़ रहा हो तो चुनाव आयोग की बेबशी असहनीय सी दिखती है. उसने नेताओं को अडवाइजरी जारी की, एफआईआर कराये... लेकिन, मजाल जो किसी के कान पर जूं तक रेंगे! इस खेल में चाहे जिसकी भी जीत हो या हार हो, लेकिन यह तो तय है कि इस चुनाव में बिहारियों को इतने ज़ख्म मिल ही जायेंगे, जिसका घाव सालों तक नहीं भरेगा! नेताओं की तो कोई बात नहीं है, क्योंकि वह परिणाम के अगले ही दिन अपने समीकरणों को दुरुस्त करने में जुट जायेंगे और कर भी लेंगे, लेकिन जनता के दिलों में तो टीस रह ही जाएगी! उम्मीद है बिहार की जनता इन ज़ख्मों को सहते हुए ऐसा फैसला लेने का साहस दिखाएगी, जिससे आने वाले समय में उसे इस प्रकार की गलीच से न गुजरना पड़े और बिहार न केवल देश का बल्कि अपने विकास के लिए विश्व भर में जाना पहचाना नाम बन जायेगा! यही इस ज़ख्म का स्थायी मरहम होगा. दिलचस्प बात यह है कि इस चुनाव में न केवल बिहारी जनता और तमाम राजनीतिक पार्टियां दिलचस्पी ले रही हैं, बल्कि राष्ट्रीय मीडिया भी अपने सर्वे के ज़रिये लोगों के दिमागों को बदलने के खेल में शामिल दीखता है. अनेक न्यूज चैनल अपने प्रीपोल सर्वे पेश कर चुके हैं, जिसमें कोई किसी की तो कोई दुसरे की सरकार बनवा रहा है. इन सर्वे के नामों को और प्रस्तुत करने के तरीकों को देखें तो आप जान जायेंगे कि बिहार चुनाव में हर तरह के दांव हर पार्टी और प्रभावशाली संस्थानों की ओर से अपनाये जा रहे हैं. इस पिछड़ी हाल में भी बिहार में इतनी दिलचस्पी यह साबित करती है कि बिहार उस हाथी की तरह है, जो मरी (पिछड़ी) हालत में भी सवा लाख का है तो समझना दिलचस्प होगा कि अगर यह विकास की रफ़्तार में आगे दौड़ जाए तो इसकी कीमत कितनी ज़्यादा होगी! उम्मीद है, इसे विकास की रफ़्तार देने के लिए बिहार की जनता कमर कस चुकी है! आखिर ये बिहार है, यहाँ का बच्चा पैदा होते ही राजनीति सीख जाता है... अब देर बस 'बटन' दबाने भर की ही तो है!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
Bihar election analysis in hindi by Mithilesh,
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