प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह अंदाजा शायद ही लगाया हो कि बिहार में जबरदस्त हार के बाद ब्रिटेन की यात्रा में उन्हें उन सभी कड़वे प्रश्नों से भी गुजरना होगा, जिनसे पार पाना सहज नहीं. पिछले 18 महीने में दुनिया के कई देशों में एक के बाद दुसरे देश में भारतीय पीएम का शासकीय दौरा जिस प्रकार प्रभावी बनता गया, उसने बिहार से ब्रिटेन के सफर में यूनियन जैक टाइप की कड़वाहट तो घोली ही है! संयोग देखिये, प्रधानमंत्री ने कुछ ही महीने पहले कांग्रेस पार्टी के नेता शशि थरूर की इस बात के लिए भूरि-भूरि प्रशंसा की थी, जब थरूर का एक वीडियो यूट्यूब पर जबरदस्त ढंग से वायरल हुआ था, जिसमें उन्होंने ब्रितानी साम्राज्य से भारत को गुलाम करने और उसका शोषण करने के लिए हर्जाने की मांग की थी. बताते चलें कि इस साल मई के अंत में ऑक्सफ़ोर्ड यूनियन में एक वाद-विवाद का आयोजन किया गया था और विषय था ‘इस सदन का यह मानना है कि ब्रिटेन को अपने पूर्व की कॉलोनियों को हर्जाना देना चाहिए.’ बहस में कंज़रवेटिव पार्टी के पूर्व सांसद रिचर्ड ओट्टावे, भारतीय सांसद और लेखक शशि थरूर और ब्रितानी इतिहासकार जॉन मैकेंजी ने हिस्सा लिया. तब पिछली सदी में ब्रितानी साम्राज्यवाद के खिलाफ हर्जाने की बात कही जा रही थी और कहाँ अब खुद नरेंद्र मोदी से सवाल-दर-सवाल पूछे जाने लगे!
मतलब 'उल्टा चोर, कोतवाल को डांटे'! हालाँकि, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत में असहिष्णुता और 2002 में हुए गुजरात दंगों के बारे में कड़े और बदतमीजी से भरे सवालों का सामना करते हुए धैर्यपूर्वक यह आश्वासन दिया कि भारत के किसी भी हिस्से में असहिष्णुता को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, क्योंकि ''भारत बुद्ध की धरती है, गांधी की धरती है और हमारी संस्कृति समाज के मूलभूत मूल्यों के खिलाफ किसी भी बात को स्वीकार नहीं करती है.’’ उनकी इस सफाई पर खुर्शीद जैसे लोग पाकिस्तान में जाकर चटकारे ले रहे हैं कि 'विदेश में बुद्ध और गांधी, जबकि देश में संघ और शिवसेना' की बातें कही जाती हैं.
शायद खुर्शीद और उनकी राजनैतिक मम्मीजी को पता नहीं है कि आज़ादी के बाद उनकी पार्टी की सरकारें रही और वह कौन सी नीतियां रही, जिससे बुद्ध और गांधी छूट गए? खैर, प्रधानमंत्री ने गरिमामय तरीके से इस सवाल का जवाब दिया कि हिन्दुस्तान के किसी कोने में कोई घटना घटे, एक हो, दो हो या तीन हो.. सवा सौ करोड़ की आबादी में हमारे लिए हर घटना का गंभीर महत्व है, हम किसी दोषी को टालरेट नहीं करेंगे, कानून कड़ाई से कार्रवाई करता है और करेगा. प्रधानमंत्री की यह सफाई अपनी जगह है, लेकिन उनसे इस तरह से प्रश्न किये जाने पर उनको चुभन भी जरूर हुई होगी. वैसे, आश्चर्य इस बात पर भी किया जाना चाहिए कि वगैर ब्रितानी प्रशासन की सहमति के इस तरह की नौबत आयी होगी! वैसे, इस प्रकार के वाकये बिहार में चुनावी हार से कहीं न कहीं जुड़े हो सकते हैं, क्योंकि कहाँ तो प्रधानमंत्री से विदेश दौरों पर व्यापार, निवेश, स्किल की बातें की जाती थी और यह बिहार .. जिसको... 60, 70, 80 ... ... हज़ार करोड़ दे दिए, उन्होंने ज़ख्मों को खुरच ही दिया. खुरचन भी ऐसी कि राजनीति तो राजनीति, गृहनीति और विदेश नीति के 'शत्रु', मित्र, वरिष्ठ, कनिष्ठ सब ने अपनी-अपनी तोप का मुंह खोल दिया है. अब भैया, किसका-किसका मुंह बंद करें और किस किसको जवाब दे! हालाँकि, ब्रिटिश प्रधानमंत्री के आवास चेकर्स पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सम्मान में दिये गए भोज में उनके शाकाहारी होने का पूरा ख्याल रखा गया और उनके सामने मशरूम पुलाव और तड़का दाल जैसे व्यंजन पेश किये गए. मगर हाय रे तड़का! ऐसे में कैसे हज़म हो यह सब...! प्रधानमंत्री के ब्रिटेन दौरे से पहले कुछ लोग ज़ोर लगा-लगाकर कह रहे थे कि 'कोहिनूर' लाना, कोहिनूर लाना... अरे भई! यह यूनियन जैक वाले अपना नूर उतारने पर लगे हैं और आप को 'कोहिनूर' की पड़ी है! खैर, उस पत्रकार ने भी अति कर दी थी और मोदी महोदय की फटकार ने उसका रिकॉर्ड अवश्य ही दुरुस्त कर दिया होगा.
इस पत्रकार ने मोदी से सवाल किया था कि उनके लंदन आगमन पर यहां सड़कों पर ये कहते हुए विरोध प्रदर्शन हुए कि गुजरात के मुख्यमंत्री रहते उनके रिकार्ड को देखते हुए वह वैसे सम्मान के हकदार नहीं है जिसे सामान्य तौर पर विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता को दिया जाता है. मोदी ने अपने जवाब में कहा, ''अपना रिकार्ड दुरूस्त कर लीजिए. 2003 में मैं यहां आया था और मेरा बहुत स्वागत, सम्मान हुआ था. यूके ने मुझे कभी यहां आने से नहीं रोका, कोई प्रतिबंध नहीं लगाया, समायाभाव के कारण मैं यहां नहीं आ पाया, यह अलग बात है. कृपया अपना परसेप्शन (नजरिया) ठीक कर लें.’’ बिचारे, कैमरन ने बीच-बचाव की कोशिश की और कहा कि उनको मोदी का स्वागत करने में प्रसन्नता है, क्योंकि वह एक विशाल और ऐतिहासिक जनादेश के बाद यहां आए हैं. जहां तक अन्य मुद्दों का सवाल है, तो उसकी कानूनी प्रक्रियाएं हैं. हालाँकि, इन तमाम मुसीबतों के बावजूद प्रधानमंत्री 'बिहार एक्सप्रेस' से उतरकर अंग्रेज़ों की शाही बग्घी में सवार होने की कोशिश में लगे रहे. कैमरन और उनकी सामंथा के लिए पशमीना की साल और केरल का बना आईना लेकर गए तो बकिंघम पैलेस ने भी मोदी के स्वागत में लंच का आयोजन किया. इसके अलावा, प्रधानमंत्री वेम्बले स्टेडियम में भारतीय मूल के लोगों को संबोधित करने वाले हैं, जिसमें 60 हज़ार से ज्यादा लोगों के आने का अनुमान है और यह कार्यक्रम ओलिंपिक की ओपनिंग सेरेमनी की तरह होने वाला है. जहाँ तक व्यापार की बात है तो, पांच साल पहले कैमरन ने कहा था कि दोनों देशों के बीच 2015 तक आपसी व्यापार 14 अरब डॉलर से बढ़कर दोगुना हो जाना चाहिए. उनके बयान से प्रधानमंत्री मोदी के इस दौरे तक एक अरसा गुजर चुका है, लेकिन दोनों देशों के स्वाभाविक संबंधों में अब तक फीकापन ही देखने को मिला है. यदि निष्पक्षता से आंकलन किया जाय तो भारत में व्यापार बढ़ाने की राह में अब तक वही दुविधाएं हैं, जिनका गाना तमाम विकसित देश गाते रहे हैं, मसलन जीएसटी, पूर्वव्यापी कर मुद्दा जिसका वोडाफोन सबसे बड़ा उदाहरण है.
स्पेसिफिकली बात की जाय तो ब्रिटेन के साथ रक्षा-क्षेत्र, भारतीय इंडस्ट्रियल कॉरिडोर परियोजनाओं और अंतर्राष्ट्रीय नीतियों में भारत के करीब आने का बेहतरीन मौका है, लेकिन कई बार ऐसा लगता है कि उसकी नीतियां 'युनियन जैक' के ही ज़माने की आज भी हैं. उसके दूतावास और काउंसलेट के दरवाज़े क़िले की तरह हैं तो वीज़ा सुविधाएं हासिल करने वालों को यह लगता हैं कि उनपर कोई एहसान किया जा रहा है. आज भारतीय प्रधानमंत्री मोदी से सहिष्णुता पर प्रश्न पूछने वाले ब्रितानी पीएम को भी यह बताना चाहिए था कि ब्रिटेन में भारतीय समुदाय और भारतीय मूल के लोग सफल और निष्ठावान हैं और ऐसे में उनके साथ भेद-भाव हटाने की कोशिश आज तक क्यों नहीं परवान चढ़ी हैं. दुनिया में कहीं भी नस्ली बुनियाद पर हमले होते हैं तो ब्रिटेन के अख़बार उसे पेज भर-भर कर सुर्ख़ियों में जगह देते हैं, दुसरे देश के नेताओं के ऊपर छींटाकशी करते हैं, लेकिन अगर ब्रिटेन में किसी भारतीय के खिलाफ हमला होता है तो उसे मीडिया में जगह क्यों नहीं मिलती? हालाँकि, व्यापार बढ़ाने की कोशिशों में हमारे पीएम लगे हुए हैं और इसी सिलसिले में लंदन के 11 डाउनिंग स्ट्रीट में सीईओ फोरम की बैठक एक महत्वपूर्ण कदम हैं, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि यूके और भारत आसानी से एक-दूसरे से मेल खाते हैं जो अपने आप में बड़ी बात है. प्रधानमंत्री मोदी ब्रिटेन की बड़ी कंपनियों के सीईओ से भी मिले और कारोबार के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच सहयोग को लेकर बात हुई. पीएम मोदी ने इस अवसर पर कहा कि भारत अपने रेलवे स्टेशनों को पीपीपी मॉडल के मुताबिक विकसित करना चाहता है, तो डिफेंस मैन्यूफैक्चरिंग में उसके यहाँ अपार संभावनाएं हैं. जाहिर है, भारत के प्रधानमंत्री भारत और यूके को आर्थिक तौर पर एक-दूसरे के लिए बना देखते हैं, मगर इसके लिए प्राइवेट सेक्टर के सीईओ को प्रेरित करना ब्रितानी प्रशासन की इच्छा-अनिच्छा पर भी काफी कुछ निर्भर करता हैं. हालाँकि, बैठक में मौजूदा ब्रिटिश पीएम डेविड कैमरन ने भी उम्मीद जताई है कि दोनों देशों की राजनीतिक इच्छा शक्ति है कि आपसी आर्थिक संबंध आगे बढ़ाए जाएं. देखना दिलचस्प होगा कि ब्रिटेन और वहां का तथाकथित मीडिया यूनियन-जैक मानसिकता से किस हद तक बाहर निकल पाया है और यह आने वाले कुछ दशकों में और भी साफ़ हो जायेगा. वैसे भी, बदलती वैश्विक स्थितियों में भारत के लिए परमाणु शक्ति के दरवाजे प्रत्येक जगह से खुल रहे हैं और इसके साथ अगर व्यापार में पारस्परिक हित भी शामिल हो जाएँ तो यह सोने पर सुहागा जैसी बात होगी. इसके लिए निश्चित रूप से ब्रिटेन को यूनियन जैक टाइप की मानसिकता से बाहर निकलना होगा तो उसे दूसरों से प्रश्न पूछने से पहले अपने यहाँ नस्लीय भेदभाव को गंभीर दृष्टि से देखना होगा.
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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