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अपनों का दर्द

2 मार्च 2022

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आषाढ के महिने की तपती दोपहरी थी। चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था। देह झुलसाने वाली गर्मी के कारण सभी जीव जन्तु छांव में सुस्ता रहे थे। एक दम शांति छाई हुई थी। ठाकुर उदयभान अपनी हवेली में सुस्ता रहे थे। एक पुराना कूलर चल रहा था, जो शांत वातावरण में खड़ खड़ की आवाज पैदा कर रहा था। ठाकुर साहब के पास पुरखों की पुरानी हवेली थी। आजादी के बाद रियासत तो छिन गई, बचा तो एक हवेली और कुछ एकड़ जमीन, जिस पर उनके पुराने नौकर पांति से खेती करते थे। ठाकुर साहब समय के साथ चलने वाले आदमी थे। उन्होंने समय के चक्र को अच्छी तरह पहचान रखा था। अब वो सभी के साथ घुलते मिलते थे। अब पुरानी ठकुराई उन्होंने छोड़ दी थी।

ठाकुर साहब के दो संतान थी। एक पुत्र व एक पुत्री। पुत्री का विवाह उन्होंने पास ही के शहर में कर दिया था। वो भी ठाकुर थे। पुत्री का ससुर फौज से रिटायर्ड कर्नल था और पति फौज में अच्छे ओहदे पर नौकरी करता था। पुत्री की तरफ से ठाकुर साहब निश्चिंत थे लेकिन उनको लड़के की चिंता खाये जा रही थी। लड़के का नाम कुंवर तेजपाल था। इकलौता बेटा होने के कारण ठाकुर साहब ने उसे बड़े लाड़ प्यार से रखा था। लेकिन अब लड़का बड़ा होने के साथ ही उसको कुसंगतियों ने घेर लिया था। वह ठाकुर साहब की बात को भी कई बार तवज्जो नहीं देता था। शराब व सुंदरियों का शौकिन था। ठाकुर साहब के पास पुश्तैनी रूपया तो था लेकिन वो अपने बेटे की हरकतों की वजह से बचा के बैठे थे। कई बार वो ठकुराईन से कहते भी थे, आपकी बात कुंवर मानता है, उसे समझाइए। नहीं तो कभी वह अपनी हरकतों से बुरा फस जाएगा। रियासती काल में ब्याह शादी घराने देखकर करते थे लेकिन अब लड़के को देखकर रिश्ते तय होते है। उसकी हरकतों से तो लगता है कि वह कभी हमारा नाम डूबो देगा।

ठकुराईन ने ठाकुर साहब से कहा- मैं न कहती थी, मत चढाओ इतना उपर, अब पानी सर से उपर निकल रहा है तो आपको बात समझ में आई। फिर भी मैं समझाउंगी उसको, समझ में आए तो ठीक नहीं तो आप जानो और वो जाने।

सुबह का समय था। सूर्यदेव अपनी भृकुटियां ताने अंगार बरसाने की तैयारी में थे। ठाकुर साहब हवेली के आगे चौक पर नीम की छाया में बैठे हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे। इतने में कुंवर तेजपाल नाहधोकर घर से बाहर निकले। तो ठाकुर साहब ने उन्हें टोका- सुबह-सुबह कहां जा रहे हो। यह बात कुंवर को अच्छी नहीं लगी। फिर भी उन्होंने विनम्रता से कहा कि मैं तो ऐसे ही घूमने के लिए अपने मित्रों के पास जा रहा हूं। ठाकुर साहब को पता था कि उनके मित्र कौन-कौन है और कैसे है। उन्होंने कुंवर को अपने पास बुलाकर अपने पास बिठाया। कुंवर को जल्दी जाना था लेकिन वो पिता के आगे कुछ बोल नहीं पाया और चुपचाप उनके पास बैठ गया।

ठाकुर साहब ने कहा- बेटा, मेरी उम्र तो ढलती जा रही है। अब वो समय नहीं रहा जो रियासत काल में था। उस समय तो ठाकुरों और कुंवरों को कोई काम करने की जरूरत नहीं थी। सभी जगह के काम अपने आप हो जाते थे। नौकर चाकर थे, लेकिन अब समय बदल गया है। अब अपने हाथ से काम नहीं करेंगे तो खाने के भी लाले पड़ जाएंगे। अब ठाकुर साहब का मिजाज सख्त हो गया था। उन्होंने कहा- तुम्हारे जो ठाकुरों वाले शौक है, उन पर लगाम लगाओ, नहीं तो एक दिन बहुत पछताना पड़ेगा। तुम सोचते हो कि मुझे कुछ पता नहीं है। तुम से ज्यादा दुनिया देखी है मैने। अपने आप को सुधारने की कोशिश करो। कुंवर ने एक टुक जवाब दिया- मैने क्या किया?

ठाकुर साहब का रहा सहा गुस्सा भी उनकी जबान पर आने लगा। उनकी आंखे लाल हो गई और बोली सख्त। मुझे पूछ रहा है कि मैने क्या किया। तुझे पता नहीं कि तूं क्या कर रहा है। इस कस्बे में तेरी दोस्ती किससे है। उन लड़कों के साथ जो दिन भर शराब में डूबे रहते है। पढाई लिखाई में तुम्हारा मन नहीं लगता। काम करना तुम्हारी शान के खिलाफ है। पूरे दिन बेकार लोगों के साथ गंदगी में पड़े रहते हो। अरे जब मुसिबत आएगी तो सब भाग जाएंगे। कोई साथ नहीं देगा।

कुंवर बुत की तरह खड़े होकर ठाकुर साहब की बात चुपचाप सुन रहे थे। उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया और घर से निकल गए। गांव के चौराहे पर पहुंचे तो बेकारों का झुण्ड उन्हीं का इंतजार कर रहा था। उनमें से एक ने कहा- अरे कुंवर साहब, आज बड़ी देर लगा दी। कहां रह गए थे।

कुंवर, ठाकुर साहब से नसीहतें सुनकर तो आए ही था, उनका दिमाग गर्म हो गया। अरे यार, चुप रहो। आज सुबह-सुबह ठाकुर साहब ने हजार बातें सुना दी। जी तो किया कि पलट कर जवाब दे दूं लेकिन गुस्से को दबाए रखा। इतने में दूसरे ने चुटकी लेकर कहा- ऐसा क्या कह दिया ठाकुर साहब ने जो आप इतने गुस्से में हो। कुंवर ने उसकी तरफ देखकर कहा- तुम वहां होते तो सब सुन लेते, मुझे कह रहे थे कि तुम सब से मिलना छोड़ दूं। मौज-मस्ती करना छोड़ दूं। शराब पीना छोड़ दूं। कोई काम धंधा करना शुरू कर दूं।  मैं ठहरा ठाकुरों का खानदानी खूंन, यह बात वो हर वक्त भूल जाते है। हमारे खानदान में आज तक किसी ने अपना काम हाथ से नहीं किया, सब काम नौकर चाकर करते आए है लेकिन अब मुझे सब काम हाथ से करने को कह रहे है, ये कहां का न्याय है।

इतने में एक चमचा बोला- कुंवर साब, बात तो आपकी सोलह आने सच्च है। आप ठाकुर काम करेंगे तो बेचारे बाकी जनता क्या करेगी। माना कि समय बदल गया है लेकिन शेर का बच्चा तो शेर ही रहता है न। अब मान लो आप शराब नहीं पीयोगे, नाच नहीं नचाओगे तो क्या ब्राह्मण का बच्चा ये सब करेगा। पता नहीं ठाकुर साहब को भी कभी कभी क्या हो जाता है। चलो, गुस्सा छोड़ो। आज पास के गांव में मेला लगा है। वहीं चलते है। कुछ नया देखने को मिलेगा, आंखे हरी करके आते है।

सभी एक राय होकर पैदल ही निकल पड़े। घण्टे भर चलने के बाद पास ही के गांव में लगे मेले में सभी मित्र पहुंच गए। सभी एक से बढ़कर एक निकम्मे। किसी के पास फूटी कोड़ी भी नहीं लेकिन मेले में लगी रंग बिरंगी हाटों पर जाकर मोल भाव करने से कोई नहीं चूका। मेले में आस पास के गांवों से आने वाले लोगों में कई जानपहचान वाले भी मिल गए। इस तरह पूरा दिन भूखे मरकर भी सभी मित्रों ने मेले का आनंद लिया। शाम होने को आई तो सभी को घर की सुध आई। सभी वहां से रवाना हुए। गोधुली वेला को गांव में पहुंच गए। गांव की सरहद पर एक घर पड़ता था जो हथकढ़ी शराब बेचता था। गांव वालों के विरोध के कारण उसे गांव से बाहर किया हुआ था। जैसे ही सभी उसके घर के पास पहुंचे तो सभी के मुंह से लारे टपकने लगी लेकिन किसी के पास फूटी कौड़ी भी नहीं। 

तभी एक चमचे ने कुंवर तेजपाल को चढाना शुरू किया। कुंवरजी, आप तो गांव के राजा हो, पूरे दिन मेले में घूम घूम कर पूरा बदन दर्द कर रहा है। आपकी कृपा हो तो एक एक घूंट हो जाएगा। बदन में चुस्ती आ जाएगी। कुंवर ने पलट कर जवाब दिया- किसी के पास फूटी कौड़ी भी नहीं और शराब पीने के सपने देख रहा है। हालांकि कुंवर का भी पूरा मन था शराब पीने का। इतने में दूसरे ने कहा कुंवर साहब, शराब बेचने वाले की क्या मजाल जो आपको मना करे, आपकी रहमोकरम पर तो वो गांव में बैठा है। नहीं तो उसको कहां ठोर थी। अब कुंवर साहब में ठाकुरपन जागना शुरू हो गया। कुंवर साहब ने एक चमचे को आदेश दिया- तूं जा और उसको बोल, कुंवर साहब दो बोतल मंगा रहे है। चमचा लार टपकाते हुआ शराब बेचने वाले के घर के दरवाजे पर जा खड़ा हुआ। उसने जोर से आवाज लगाई- अरे घर में कोई है। तभी एक आदमी बाहर आया। क्या बात है भाई। चमचे ने रौब झाड़ते हुए कहा- कुंवर साहब ने दो बोतल मंगाई है। वह असमजस में पड़ गया। अगर इसको मना करूं तो ठाकुर लोगों का कोई भरोसा नहीं कलह पर उतारू हो जाए। फिर उसने सोच कर जवाब दिया- कुंवर साहब कहा हैं। इतने में दूर खड़े कुंवर तेजपाल ने आवाज दी। अरे, क्या रे? पहले तो तुम घर पहुंचाकर जाते थे। अब लेने भेजा तो भाव खा रहे हो। उसने  देखा तो दूर कुंवर और उसके चेले चपाटी खड़े थे। उसने तुरंत जवाब दिया- नहीं कुंवर साहब ऐसी बात नहीं है, मैने सोचा कहीं आपका नाम लेकर खुद ही न गटक जाए, अभी हाजिर करता हूं। शराब बेचने वाले को पता था कि अब इन भोमियों को जब तक शराब नहीं दूंगा, ये यहां से जाएंगे नहीं और हो सकता है झगड़े पर उतारू हो जाए। उसने दो बोतल लाकर चमचे को दी। वो लेकर कुंवर के पास चला गया।

अब तक अंधेरा हो चुका था। अब कुंवर को डर सता रहा था कि शराब पीकर घर गया और ठाकुर साहब ने देख लिया तो मेरी खेर नहीं। लेकिन शराब सामने पड़ी थी, कुंवर से रहा नहीं गया। सब ने छककर शराब पी। देशी शराब थी, सबको चढ़ गई। दोनो बोतलें खत्म होने के बाद सभी उठकर अपने घरों की तरफ रवाना हुए। दो-तीन के तो पांव भी सही तरह से जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। सभी का घर पास-पास ही था। एक हरिया नाम के चमचे का घर ठाकुर साहब की हवेली के पिछवाड़े था। उसका पिता ठाकुर साहब की हवेली में काम करता था।  तो सभी के चले जाने के बाद कुंवर व हरिया दो ही बचे। कुछ आगे चलने पर कुंवर को ज्यादा चढी हुई थी, उसने हरिया से कहा हरिया, तूं वापिस जाकर एक और बोतल लेकर आ लेकिन हरिया नहीं माना। इस बात को लेकर दोनो में जोरदार बहस हो गई। अब कुंवर साहब तो पूरे ठाकुर बने हुए थे, उनको हरिया का ना अपनी प्रतिश्ठा का प्रश्न बन गया। कुंवर ने नशे में पास ही पड़े पत्थर को उठाकर हरिया की तरफ फेंका, जो उसके सिर पर जा लगा। पत्थर लगते ही हरिया जमीन पर गिर पड़ा और बेहोश हो गया। कुंवर उसके पास आया और उसे खींच कर उठाने की कोशिश की लेकिन बेहोशी के कारण वह उठ नहीं पाया। कुंवर पर नशा पूरी तरह हावी हो गया। उसको लगा यह जानबुझकर नहीं उठ रहा है। उसने उसी पत्थर को उठाकर दो-तीन बार हरिया के सिर पर जोर से मार दिया। इससे हरिया की वहीं मौत हो गई। 

कुंवर नशे की हालत में आधी रात को घर पहुंच गया। ठाकुर साहब तब तक सो चुके थे। वो जानते थे कि उनका बेटा आधी रात से पहले कभी नहीं आता है। इसलिए उन्होंने चिंता नहीं की। कुंवर घर पहुंचकर चुपचाप अपने कमरे में जाकर सो गया। 

सुबह पूरे गांव में कोहराम मच गया। हरिया की मौत का समाचार सुनकर ठाकुर साहब को भी दुख हुआ। ठाकुर साहब हरिया के मृत्यु स्थल पर पहुंचे। वहां पर पूरा गांव जमा हो गया। इतने में किसी ने पुलिस को इतला कर दी। मौके पर थानेदार साहब दो चार सिपाहियों सहित आ गए। हरिया के पिता व मां का रो-रोकर बुरा हाल था। उनके सगे संबंधी उसे सात्वना दे रहे थे। 

गांव में ठाकुर साहब को सब मानते थे। थानेदार भी ठाकुर साहब के पास पहुंचे और स्थिति की जानकारी लेनी चाही। लेकिन ठाकुर साहब को कुछ पता नहीं था। सिपाहियों ने घटनास्थल का मुआयना करना शुरू किया। कुछ ही दूरी पर उन्हें दो खाली बोतले मिली तथा आस पास बहुत से लोगों के पैरों के निशान थे। पुलिस ने बोतले बरामद की तथा तप्तीश करना शुरू कर दिया। थानेदार ने गांव के लोगों को पूरा आश्वस्त किया कि वो पूरी कोशिश करके इस मामले का पर्दाफाश करेंगे। 

हरिया की लाश को शहर के मोर्चरी ले जाया गया। जहां चीरफाड़ के बाद डाक्टर ने पुलिस को रिपोर्ट दी कि इसकी हत्या पत्थर मार कर की गई है तथा मृतक के शरीर में शराब की मात्रा भी थी। इसके बाद थानेदार दुबारा ठाकुर साहब के गांव गए। इस बार वे सीधे ठाकुर साहब के पास पहुंचे। ठाकुर साहब ने उनकी आवभगत की। औपचारिकताएं पूरी होने के बाद ठाकुर साहब थानेदार को हरिया के घर ले गए। वहां पर काफी लोग जमा थे। थानेदार ने हरिया के माता पिता का बयान लिया। उन्होंने हरिया के मित्रों की जानकारी ली। उसके सब मित्रों को थाने में पूछताछ के लिए बुलाया लेकिन इनमें किसी ने कुंवर को नहीं बुलाया। पूछताछ के दौरान एक ने पूरी बात खोल दी। लेकिन उसने बताया कि शराब खत्म होने के बाद वो तो सभी अपने-अपने घर चले गए। आखिर में कुंवर साहब व हरिया दोनो साथ थे। अब थानेदार का पूरा शक कुंवर पर जा ठहरा। 

इधर, हरिया की हत्या के दूसरे दिन जब कुंवर को होश आया तो उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। उसने नहा धोकर ठकुराईन को ननिहाल जाने की बात कही और घर से निकल गया। हरिया की मौत को करीब चार-पांच दिन हो गए लेकिन कुंवर ननिहाल से वापिस नहीं आया।

थानेदार अपने सिपाहियों के साथ दुबारा ठाकुर साहब की हवेली पहुंचे। अब मामला पूरा कुंवर तेजपाल पर जाकर अटक गया। थानेदार को देखकर ठाकुर साहब ने उनकी अगुवानी की। इस बार थानेदार ने सीधा सवाल दागा कि कुंवर तेजपाल कहा हैं? इस पर ठाकुर साहब ने कहा - क्या बात है थानेदार साहब, वो तो तीन चार दिन से ननिहाल गया हुआ है। इस पर थानेदार ने ठाकुर साहब को पूरी बात बताई। पूरी सच्चाई सुनने के बाद ठाकुर साहब के आंखों के आगे अंधेरा छाने लग गया। वो मुर्च्छित हो रहे थे। उनकी आवाज में मजबूरी झलकने लगी। 

थानेदार ने बड़ी मुश्किल से ठाकुर साहब को संभाला। ठाकुर साहब ने भर्राई आवाज से कहा- साहब मेरे एक ही लड़का है। मैने इसके लालन पालन में कोई कमी नहीं छोड़ी। पता नहीं मैने पूर्व जन्म में क्या पाप किए होंगे जो बुढापे में मुझे यह दिन देखने पड़ रहे है। अब शरीर में ताकत नहीं रही, लोगों की आंखों में हमारी इज्जत नहीं रही, रही सही कसर अब पूरी हो गई। अब मैं आपको क्या कहूं, क्या जवाब दूं। मेरे पास कुछ नहीं है। 

थानेदार ने सिपाहियों को कुंवर तेजपाल को ढूंढने उसके ननिहाल भेजा। लेकिन वो वहां से भागकर वापिस गांव आ गया। गांव आते ही वो सभी ठाकुर साहब के पास गया और पैरों में गिरकर दहाड़े मारने लगा। पिताजी, मैने नशे में हरिया को मार डाला, अब आप मुझे बचा लो। ठाकुर साहब पूरी तरह टूट चुके थे लेकिन उस समय उनमें इतनी हिम्मत कहां से आई। उन्होंने पास में पड़ी बेंत से कुंवर की पिटाई करनी शुरू कर दी। निरलज्ज, बेशर्म, बेहया तुझे कितना समझाया मैने लेकिन मेरी बात तो तेरी समझ में नहीं आई। पूरे गांव में आतंक मचा रखा था। अब जब पुलिस के डंडे पड़ेंगे तो सारी ठकुराई निकल जाएगी। जब वो पीट सके उन्होंने कुंवर को जमकर पीटा और कुंवर उनके सामने गिड़गिड़ाता रहा। इतने में थानेदार ढूंढते हुए हवेली आ पहुंचे। पुलिस की गाड़ी देखकर कुंवर ने भागने का प्रयास किया लेकिन सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया। 

ठाकुर साहब का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उन्होंने रोबदार आवाज में कहा- थानेदार साहब, ले जाओ इस कम्बख्त को इसके साथ मेरी कोई हमदर्दी नहीं। यह गांव मेरे पुरखों का है, यहां पर जुल्म करने वाले राजा और रंक दोनो को एक जैसी सजा होनी चाहिए। यह मेरी बदनसीबी है कि यह मेरा बेटा है, यह मेरे खून का सबसे बदनाम कतरा है। ले जाओ इसे मेरी नजरों के सामने से। 

सिपाहियों ने कुंवर को गाड़ी में डाला। ठाकुर साहब प्रोल पर खड़े होकर गाड़ी को आंखों से ओझल होते देख रहे थे। गाड़ी दूर जा रही थी, ठाकुर साहब अंदर से टूट रहे थे। उस दिन से ठाकुर साहब ने खटिया पकड़ ली। अब ठाकुर साहब बीमार रहने लग गए। उनसे मिलने के लिए उनके रिश्तेदार आने लगे लेकिन गांव के लोगों ने हवेली से मूंह मोड़ लिया। कोई भी उनकी हवेली की तरफ नहीं जाता था। 

एक शाम ठाकुर साहब खाट पर लेटे हुए थे, उनकी बेटी उनसे मिलने के लिए आई। बेटी को देखकर ठाकुर साहब व ठकुराईन दहाड़े मारकर रोने लगे। बेटी के सामने ठाकुर साहब ने खुल कर अपने मन की बात की। उन्होंने कहा कि इससे तो अच्छा होता कि मेरे दोनो बेटियां होती तो आज मेरी यह हालत नहीं होती। अब यह खेत खलिहान, खेत, धन दौलत किस काम का। मैं अपनी औलाद को सुधार नहीं पाया। यह मेरे पूर्व जन्मों का ही फल है। उन्होंने देर रात तक बेटी से मन की बातें की। फिर सभी सोने को चले गए। इस समय ठाकुर साहब को लगा जैसे उनके मन का बोझ हलका हो गया है। कई दिनों के बाद उस रात ठाकुर साहब गहरी नींद में सोये। सुबह की पहली किरण के साथ ही ठकुराईन ठाकुर साहब को जगाने आई लेकिन अब ठाकुर साहब चिरनिंद्रा में सो गए थे।
 

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