सुबह-सुबह आकाश से धीरे धीरे अंधेरा छटने लगा। पूर्व दिशा में लालिमा छाई हुई थी। मौसी ने खेतू को उठने की आवाजा लगाई- ऐ खेतुडी उठ दिन निकलने आया है। ढोर बाड़े में बंधे हुए है। उठ कर चराने ले जा। खेतु दिन भर जानवरों को चराने के बाद थकी हारी रात को खाट पर पड़ती जो सुबह जब तक मौसी आवाज नहीं लगाती उसकी आंख भी नहीं खुलती थी। ऐसा होना लाजमि भी था, उसकी उम्र भी कितनी थी सात साल की तो थी। हंसने खेलने पढने की उम्र में उसके पास बीस गायें व चालीस बकरियों को चराने का जिम्मा था।
खेतु के जन्म के समय उसकी मां तो चल बसी तथा बाप चार साल की उम्र होने तक शराब के नशे में रहा और अंत में वो भी खेतु को संसार में अकेला छोड़ कर चल बसा। ले देकर रिश्तेदारों में एक मौसी थी जो खेतु को अपने साथ ले आई। उसने खेतु को अपने यहां रख लिया व जानवरों का सारा जिम्मा उस नन्हीं सी जान पर छोड़ दिया। मौसी ने खेतु को सख्त हिदायत दे रखी थी कि अगर जानवर किसी के खेत में घुस गये या किसी ने उसके जानवरों की शिकायत की तो शाम का खाना पीना बंद हो जाएगा।
सूरज निकलने से पहले मौसी ने उसे उठाकर गायों को दूहने के लिए उसे साथ बाड़े में ले गई। खेतू गायों को दुहाने में उसकी मदद करती थी, मौसी उसे रोजना उलाहना देती कि अब छोरी तूं बड़ी हो गई है। गायों बकरियों को दूहना सीख ले नही ंतो कल तेरो ब्याह होएगा तो ससुराल वाले मुझे ही ओलम्भा देंगे कि छोरी को मौसी ने कुछ नहीं सिखाया। अब तक घर का काम काज भी सीख ले। गाय-बकरियों को दूहने के बाद खेतू थेली में एक सूखी बाजरे की रोटी और प्याज लेकर सभी जानवरों को बाड़े से निकालकर जंगल की तरफ हांकने लगी। इतने सारे जानवर और अकेली नन्हीं जान से कैसे संभलते कभी कोई गाय दौड़कर किसी के खेत में घुस जाती तो कभी बकरी। बड़ी मुश्किल से हांककर वह उन्हें जंगल में ले गई। जहां कई ग्वाले गायें व बकरियां भेड़ें चराने आते थे जिनमेंं अधिकांश बड़ी उम्र के ही थे। कोई उसके हम उम्र का नहीं था फिर भी वह उनके साथ सारा दिन गुजारती। दोपहर को सूखी रोटी और प्याज का खाना उसे बहुत स्वादिश्ट लगता था क्योंकि दोपहर तक गायों और बकरियों को हांककर थक चुकी थी और भूख भी जोर की लगती थी। शाम को अंधेरा धिरने लगा तो उसने अपने सारे जानवर हांककर घर की तरफ रवाना किया। घर पहुंचते ही खेतू ने गायों बकरियों को दूहने व उन्हें बांधने में मौसी की मदद की और फिर मौसी के साथ घर गई। घर पहुंचते ही मौसी ने कहना शुरू कर दिया। अरे कौन बनाएगा अब रोटी मुझे तो भूख है नहीं। अब जीजी-जीजाजी तो चल बसे और यह आफत मेरे गले में डाल दी। अब कौन इसको खिलाए पिलाए। मौसी ने चिल्लाकर कहा अरे ओ खेतूड़ी आज मेरे से रोटी ना बने तूं खुद ही बना लेना। खेतू दिनभर की थकीहारी बोल पड़ी-मौसी मैं भी तो पूरे दिन ढोरों के पीछे दोड़ती रहती हूं अब मैं भी तो थकी हुई हूं। इतने सुनते ही मौसी बिफर पड़ी अरे नाजोगी छोरी तूं तो अभी बच्ची है सारी ताकत तो तेरे अंदर ही पड़ी है। मैं तो बूढी हो गई हूं। तेरी तो जबान बहुत लंबी हो गई है। तो खेतू ने कहा मौसी मेरे से रोटी ना बनेगी तेरे से बनती है तो बना न तो मुझे नहीं खाना। मौसी को जवाब मिलते ही मौसी गुस्से से आग बबूला हो गई, पास में रखी चप्पल उठाकर खेतू की और लपकी और उसको जानवरों की तरह मारना शुरू कर दिया। खेतू चिल्लाती रही लेकिन उसे दया नहीं आई। आखिर में मौसी के हाथ में दर्द होने पर उसने मारना छोड़ा।
यह मौसी और खेतू के रोजाना का मामला था कभी खेतू खाना खाती तो अधिकांश बार तो भूखी ही सो जाती थी। इतने जानवरों का दूध दूहने के बाद में भी खेतू को एक टिपरा दूध भी नहीं लेने देती थी। कई बार खेतू खुले आसमान के नीचे खाट पर पड़ी रात को तारों की तरफ देखकर अपनी किस्मत को कोसती और अंदर ही अंदर रोती रहती थी।
सुबह-सुबह जब खेतू जानवरों को जंगल की ओर लेकर जाती तो अपनी उम्र के बच्चों को स्कूल जाते देख सोचती कि काश मेरे मां-बापू जिंदा होते तो उसके भी नये घेर बुशर्ट दिलाते। लाल रेबिन से दो चोटी बनाकर स्कूल भेजते। सुबह जल्दी नहलाकर स्कूल के लिए तैयार करते लेकिन अब तो कभी कभार जंगल में ही नाडी पर सिर-पैर पानी से धो लेती थी। एक ही कमीज नेकर थी जो कभी धुली नहीं थी। यह अलग बात है कि कभी बरसात होने खेतू को भीगने पर उसके साथ ही भीगती थी और उसके तन पर ही सूखती थी।
समय का पहिया चलता रहा। खेतू बारह साल की हो गई। अब उसे कुछ समझ भी आने लगी। मौसी के दिन भी पड़ते आने लगे। बीते दिनों में स्कूल जाने वाले बच्चों में उसने एक लड़की को अपनी सहेली बना लिया। जिसका नाम रामू था। रामू भी स्कूल से वापिस आने के बाद अपनी बकरियों के साथ जंगल में आती थी। खेतू उत्सुकता से स्कूल के बारे में रामू से पूछती । खेतू ने रामू से बारहखड़ी व सौ तक गिनती सीखी। धीरे-धीरे वह अपना नाम लिखना भी सीख गई। जानवरों का नाम भी लिखना व पहचानना सीख गई। वह जंगल में रामू के साथ किताब मंगवाती और उसके पढने की कोशिश करती। रामू भी उसकी पढने में मदद करती थी। धीरे-धीरे खेतू को पढाई में मजा आने लगा। लेकिन मौसी के साथ रहने के कारण वह सारा दिन काम में उलझी रहती थी। उपर से मौसी सारा दिन चिकचिक करती रहती थी। एक दिन मौसी को भी पढने की बात का पता चल गया। मौसी और खेतू में जमकर झगड़ा हुआ लेकिन अब खेतू बड़ी हो गई तो उसने मौसी के हाथों पिटना गवारा नहीं लगा। उसने मौसी को साफ कह दिया कि तुम मेरी मौसी हो मां नहीं हो। अगर मुझे पीटने की कोशिश की तो दांव उलटा पड़ सकता है। मौसी उसकी बात सुनकर गुस्से से पागल हो गई और खेतू को बहुत खरी खोटी सुनाई।
अब खेतू ने मन में ठान लिया कि कैसे भी करके उसे पढ़ना है। उसने अपनी बात अपनी सहेली रामू को बताई लेकिन रामू ने कहा कि यह कैसे हो सकता है। मौसी तुझे कहीं जाने नहीं देगी। लेकिन खेतू ने कहा कि कुछ भी करके मुझे पढाई करनी है। कैसे करूं। रामू ने काफी देर सोचने के बाद उसे कहा कि कल में स्कूल में मास्टरनी से बात करके देखती हूं, कुछ हो सका तो।
दूसरे दिन रामू स्कूल में लंच टाईम में मास्टरनी जी को अकेला देखकर उससे मिलने गई। रामू को देखकर मास्टरनीजी ने पूछा-क्या बात है रामू। तो रामू ने उन्हें सारी बात बताई। सारी बात सुनने के बाद मास्टरनीजी को हैरानी हुई कि एक तरफ माता-पिता सारी सुविधाएं देकर बच्चों को स्कूल भेजते है फिर भी उनका पढाई में मन नहीं लगता और दूसरी और इस लड़की में पढ़ाई को लेकर इतनी लगन। उसने रामू को आश्वस्त किया कि मैं कोशिश करती हूं, उसकी मौसी से बात करके देखती हूं। शायद वह मान जाए। इधर खेतू दोपहर बाद रामू के लौटने की राह देख रही थी। रामू के घर लौटते ही खेतू उससे मिली और मास्टरनीजी से बात को लेकर पूछा। रामू ने सारी बात खेतू को बताई। खेतू मौसी से पूछने की बात सुनकर मायूस हो गई क्योंक उसे पता था कि मौसी कभी भी हां नहीं कहेगी।
अगले दिन दोपहर को रामू हांफते हुए जंगल में खेतू के पास गई। उसने बताया कि मास्टरनीजी मौसी के पास आ रही है। खेतू ने रामू से अपने जानवरों का ध्यान रखने को कहकर घर की तरफ दौड़ी। घर पहुंचने पर देखा कि एक खटली पर मास्टरनीजी बैठी मौसी से बातें कर रही है। जैसे ही खेतू घर में घुसी, मौसी गुस्से से लालपीली होकर बोली- ऐ छोरी घर क्यों आई, जानवरों को ध्यान कुण राखसी। मास्टरनीजी ने मौसी को समझाया कि इस तरह बच्ची को नहीं डाटना चाहिए। लेकिन मौसी ने मास्टरनीजी को भी नहीं बक्शा और बोलनी शुरू हो गई- सगी मौसी हूं इसकी सौतेली नहीं, मुझे पता है आप यहां क्यूं आई है। लेकिन मैं इसे कहीं नहीं जाने दूंगी। मोटयार छोरी है कल कोई आगो पाछो हो गयो तो कुण जवाब देसी। मास्टरनी ने कहा कि आप चिंता मत कीजिए मैं भी एक औरत हूं, एक मां हूं। इस लड़की की पढ़ने की इच्छा है तो आप इसे पढने क्यों नहीं देती है। मौसी बोली मेरे पास इसका पेट पालने के लाले पड़ रहे है, आपको इसके पढ़ाई की लागी है। अब ब्याह की उम्र हो गई है इसकी, पढने की नहीं। मास्टरनीजी के लाख समझाने के बाद भी मौसी नहीं मानी। खेतू सारी बातें सुनकर रोने लगी। इस पर मास्टरनीजी को दया आ गई। मास्टरनी ने मौसी से कहा कि मैं आपको महिने के आठ सौ रूपए दूंगी आप इस लड़की को मेरे घर पर काम करने के लिए भेज दो, इसका खाना खर्चा भी मैं उठाउंगी। मौसीजी को रूपयों का लालच दिखा तो सोचने लगी कि तीन सौ रूपए महिने में जानवरों का ग्वाला रख लूंगी और पांच सौ रूपए मेरे बचत हो जाएंगे। उपर से इस बला से छुटकारा भी मिल जाएगा। उसने तुरंत हां कर दी। इसके बाद मास्टरनीजी उठकर रवाना होते समय खेतू को पुचकारते हुए कहा कि अब तुझे पढने से कोई नहीं रोकेगा। कल से तुम रामू के साथ आ जाना।
दूसरे दिन खेतू रामू के साथ सुबह ही स्कूल की ओर चल पड़ी, जाते ही उसने मास्टरनीजी को प्रणाम किया। मास्टरनीजी उसे घर पर ले गई और उसे घर का सारा काम समझाया और कहा कि काम में मैं भी तेरा हाथ बटाउंगी, तूं सिर्फ पढाई पर ध्यान दे। खेतू अब तेरह साल की हो गई तो उसे स्कूल में एडमिशन तो मिलने से रहा। मास्टरनीजी ने उसका ओपन आठवीं का फार्म भरवाया व स्कूल से किताबों की व्यवस्था की। अब खेतू दिन में मास्टरनीजी के घर का काम करती और देर रात तक पढाई करती कुछ समझ में न आने पर मास्टरनीजी से पूछ लेती। मास्टरनीजी उसे अपनी बेटी की तरह रखती थी। प्यार की भूखी खेतू को मास्टरनीजी से मां जैसा प्यार मिलने लगा। आठवी की परीक्शा हुई। खेतू ने परीक्शा दी, परीक्शा का रिजल्ट आया तो मास्टरनीजी हैरान रह गई कि उसे जिले में दूसरा स्थान प्राप्त हुआ है। अब खेतू को पढाई में परेशानी नहीं होती थी क्योंकि उसकी सरकार की तरफ से छात्रवृति भी मिलना शुरू हो गई। लेकिन वह मास्टरनीजी के घर पर अभी भी पूरा घर का काम करती थी। अब छात्रवृति से मौसी का मूंह बंद रहता था। धीरे धीरे खेतू ने दसवीं पास की जिसमें वह जिले भर में अव्वल रही। इसके बाद में उसे सामाजिक स्तर पर भी सहायता मिलनी शुरू हो गई। इस तरह खेतू ने स्नातक कर के बीएड कर ली। अब खेतू बड़ी हो गई थी, उसे अपने भविश्य की चिंता भी लगी रहती थी। वह जानती थी कि कब तक में मास्टरनीजी पर बोझ बनी रहूंगा। उसने पढाई के साथ साथ प्राईवेट स्कूल में टीचर की नौकरी शुरू कर दी। अब वह मौसी को भी पैसे भेजती थी और मास्टरनीजी के घर में भी हाथ बटाती थी।
कालचक्र चलता रहा। सरकारी अध्यापकों की भर्ती आई जिसमें खेतू का सलेक्शन हो गया। अब वह पक्की मास्टरनी बन गई थी। उसने अपनी पोस्टिंग भी उसी गांव में करवाई। पहले ही दिन वह मौसी से मिलने घर गईं। जहां मौसी की हालत देखकर उसे दया आ गई। मौसी अब बीमार रहने लगी थी, उसके सारे जानवर बिक गये थे। अब उसका देखभाल करने वाला कोई नहीं था। खेतू से मिलने वाले पैसों से उसका गुजारा चलता था। खेतू मौसी को अपने साथ ले आई और शहर के बड़े अस्पताल में मौसी का इलाज करवाया। कभी कभी मास्टरनीजी के घर पर भी खेतू चली जाती थी, एक दिन मास्टरनीजी भी खेतू के घर गई, जहां मौसी से मिली तो मौसी फूटफूटकर रोने लगी, कि मैं इसकी सगी मौसी होते हुए भी इसे दुख ही दिया और आप तो देवी है जो इसे नरक से निकाल कर खुशहाल जिंदगी दी। मास्टरनीजी ने उसे धीरज बंधाते हुए कहा कि मौसीजी ये तो इसकी मेहनत और लगन का नतीजा है। इसमें हम तो सिर्फ इसका माध्यम बने है। अब सब ठीक है। अब मौसी को भी अपनी गलती का अहसास हुआ कि मेरा सगा बेटा होता तो भी मेरे लिए इतना नहीं करता। ये मेरी सगी बेटी न होते हुए भी मेरी इतनी सेवा कर रही है। अब मौसी को खेतू के विवाह की चिंता सताने लगी। एक दिन उसने मास्टरनीजी से इस बारे में बात की तो मास्टरनीजी ने अपने रिश्तेदारी में एक लड़का दिखाया। खेतू को भी इस बारे में मास्टरनीजी ने पूछा। तो उसने कहा कि आप मेरी मां है मेरे लिए जो करेगी वो अच्छा ही करेगी। इसमें मुझे पूछने की क्या जरूरत है। इसके बाद खेतू का मास्टरनीजी ने उस घर में रिश्ता तय कर दिया। कुछ समय बाद खेतू की शादी हो गई। वह मौसी को भी अपने साथ रखने लगी । अब खेतू के जीवन में वो सारी खुशियां मिल गई जिसकी वो हकदार थी।
एक दिन वह अपने पति के साथ बाजार में खरीददारी करने गई तो उसने एक औरत को देखा जिसकी गोद में एक दो साल का बच्चा था और जानी पहचानी सी लग रही थी। खेतू से रहा नहीं गया उसने उस औरत से पूछ लिया तो उसने अपना नाम बताया कि वह रामू है अब खेतू के आंखों में आंसू आ गए अपनी पुरानी सहेली से मिलकर उसने ढेर सारी बातें की। पूरानी बातों को याद करते हुए दोनों ने खूब बातें की। रामू ने भी अपनी खुशहाल जिंदगी के बारे में खेतू को बताया। दोनो मिलकर अपने पतियों के साथ बाजार में खरीददारी की और एक दूसरे के घर आने का वादा कर घर की तरफ चली।