रमेश अपने चार भाईयों में सबसे छोटा था। बाकी तीन भाई अपनी अपनी गृहस्थी के साथ गांव में ही खेती बाड़ी का काम करते थे। रमेश सबसे छोटा होने के कारण माता-पिता व भाईयों के लाडला था। उसे गांव की स्कूल में आठ जमात तक पढाया भी था लेकिन आगे नजदीक स्कूल नहीं होने व शहर भेजने की हैसियत नहीं होने के कारण रमेश को पढाई छोड़नी पड़ी। अब वह घर में ही रहकर भाईयों का खेती में हाथ बटाता था। इस तरह उसने पांच साल घर पर ही बिता दिए। भाई तो सगे थे लेकिन भाभियों को रमेश खटकने लगा। वे बात-बात पर उसे ताने देने लगी कि लाड़ प्यार से पेट नहीं भरता। सबसे छोटे हो इसलिए सब भाईयों ने व मां-बाप ने सिर पर बिठाकर रखा है। एक टका कमाई नहीं और घर बैठे बैठे अनाज खराब कर रहे हो। अरे कहीं जाकर काम धाम क्यों नहीं करते। रमेश को यह बात बहुत बुरी लगती थी लेकिन उसने इसके बारे में किसी को नहीं बताया।
उनके पड़ोस में रहने वाला राजू बाहर दिशावर मजदूरी करने के लिए जाता था। रमेश व राजू के खूब पटती थी। इस बार दिवाली को राजू घर आया तो रमेश ने मजदूरी पर साथ चलने की बात कही। घर पर माता पिता व भाईयों ने बाहर नहीं भेजने की बात कही पर रमेश अपनी बात पर अड़ा रहा। उसकी जिदद के आगे हारकर घरवालों ने उसे राजू के साथ कई हिदायतें देते हुए भेज दिया।
रमेश पढाई में व समझ में होशियार था। राजू मूंगफली की फैक्टी में मजदूरी का कार्य करता था। वह गाड़ियों में आने वाली मूंगफली की बोरियां गोदाम में उतारता था। रमेश को भी अपने साथ लगा लिया। रमेश का यह पहला अनुभव था, उसने अपने घर में कभी पानी का लोटा अपने हाथ से नहीं भरा था। दो दिन में ही रमेश के सिर से मजदूरी का भूत उतरता दिखाई देने लगा। उसने राजू से कहा कि मुझसे यह ढुलाई का काम नहीं होगा। राजू ने कहा-तो फिर क्या करेगा, मेरे पास तो दूसरा काम है नहीं। रमेश वापिस घर जाने को तैयार हुआ लेकिन राजू ने कहा कि इस तरह दो दिन में ही वापिस घर गया तो गांव वाले तुझ पर हंसेंगे वो तो ठीक है पर घर पर भाभियां सारी उम्र ताने मारेगी। तूं आज रूक जा, मैं तेरे लिए कोई दूसरा जुगाड़ करता हूं।
फैक्टी का मालिक रोज शाम को गोदाम में माल की जांच करने आता था। उस दिन शाम को जब सेठजी आए तो राजू ने उन्हें नमस्कार किया। सेठजी ने राजू से गांव के हालचाल पूछे। मौका देख राजू ने सेठजी से कहा- सेठजी, मेरे साथ गांव से लड़का आया है, दो दिन से बोरियां ढोने का काम कर रहा है लेकिन यह काम उसके बस का नहीं है। वह आठ जमात पढा हुआ भी है। कोई दूसरा काम हो तो उसका काम चल जाता। सेठजी ने राजू से कहा कि देख भई, मैं तो उस लड़के को पहचानता नहीं हूं। तूं मेरे यहां पिछले सात साल से काम करता है, अगर तूं उस लड़के की जिम्मेदारी ले तो सोचता हूं। राजू ने कहा- सेठजी, लड़का सीधा और हौशियार है। हाथ का साफ है। आप कुछ काम दिलाईए, बाकि जिम्मेदारी मैं लेता हूं। सेठजी ने हामी भरते हुए उसे अगले दिन ऑफिस में भिजवाने को कहा।
दूसरे दिन अलसुबह राजू, रमेश को लेकर सेठजी की ऑफिस पहुंचा। तभी सेठजी भी ऑफिस पहुंच गए। राजू व रमेश ने सेठजी को नमस्कार किए। सेठजी ने कहा- तुम लोग बाहर बैठो, मैं पूजा पाठ करके आपको बुलाता हूं। दोनो बाहर बैठ गए। रमेश के मन में कई विचार आने लगे, काम क्या होगा, मेरे से होगा कि नहीं।
तभी सेठजी ने उन्हें अंदर बुलाया। दोनो अंदर गए। सेठजी ने रमेश से पूछा-कितना पढा लिखा है। तो रमेश ने कहा-साब, आठवीं पास की है। सेठजी घूरते हुए कहा कि यहां पर मैं जो काम दूंगा वो सारा करना पड़ेगा। मुझे ना सुनने की आदत नहीं है। दूसरी बात किसी प्रकार का कोई नशा नहीं करेगा। ऑफिस में हजार तरह की चीज पड़ी रहती है, उसका पूरा ध्यान रखना पड़ेगा। रात को यहीं ऑफिस में ही सोना पड़ेगा। तेरे रहने खाने का इंतजाम सुपरवाईजर को कहकर करवा दिया है और हां, तुझे महिने के पंद्रह सौ रूपए व खाना मिलेगा। रमेश ने कहा-साब आप जो कहोगे मैं कर लूंगा।
सेठजी ने राजू की तरफ देखते हुए कहा-देख राजू तूं मेरा पुराना आदमी है, तेरी गारंटी पर मैं इसको काम पर रख रहा हूं। कल अगर कोई उंच नीच हो गई तो तेरी जिम्मेदारी रहेगी। राजू ने हामी भरते हुए वहां से जाने की इजाजत ली।
अब रमेश ऑफिस में ही रहने लगा, वहीं पर रात को सोता व सुबह जल्दी उठकर ऑफिस की साफ-सफाई करके मटकियों में पानी भरता। सेठजी की टेबल साफ करता। इस तरह रमेश ने दो महिने निकाल दिए। सारा दिन ऑफिस में रहने के कारण वहां सेठजी से मिलने कई मीलों के मालिक व ठेकेदार आते थे। धीरे-धीरे उनसे रमेश की पहचान बढने लगी।
एक दिन सेठजी हिसाब मिला रहे थे। काफी उलझे हुए लग रहे थे। उन्होंने रमेश को चाय लाने को कहा। रमेश चाय लेकर आया, कप में डालकर टेबल पर रखी। सेठजी चाय की चुस्कियां लेने लगे। तभी रमेश ने डरते हुए सेठजी से कहा-सेठजी आप कहे तो मैं कुछ आपकी मदद करूं। इस पर सेठजी ने रमेश की ओर घुरते हुए कहा- तुम मेरी क्या मदद करोगे। यहां हिसाब करना है, झाडू थोड़े ही निकालना है। रमेश हिम्मत करके बोला-सेठजी आप बस मुझे पास में बैठे बताते रहिए मैं सारा हिसाब कर दूंगा।
सेठजी को भी लगा, पूरे दिन से माथापच्ची कर रहा हूं, काम भी ज्यादा है। यह इतना कह रहा है तो थोड़ी देर के लिए इसे काम करवाके देख लेता हूं।
सेठजी ने रमेश को अपने पास बिठाया और बही आगे रखते हुए बोले- इस बही के पन्नों की कुल जोड़ लगानी है। रमेश ने फटाफट आधे घण्टे में सोलह पन्नो की जोड़ लगा दी। सेठजी ने तीन-चार पन्नो की जोड़ मिलाई तो उन्हें लगा कि लड़का है तो होशियार। यह मेरे काम में मदद कर सकता है। अब सेठजी ने उसे सभी मजदूरों की हाजरी जोड़ने, कुल कितना स्टॉक आया, कितना गया, इन सब की जानकारी रमेश को सिखानी शुरू की। सात दिन में रमेश को सारी हिसाब की बात समझ में आ गई। अब सेठजी ने रमेश से ऑफिस का बाकी काम छुड़वाकर अपने काम में साथ लगा लिया। अब रमेश पूरे दिन का हिसाब-किताब शाम को पूरा कर देता था। सेठजी को अब हिसाब की काफी परेशानियां से छुटकारा मिल गया था।
अब दिवाली आने वाली थी। सेठजी ने सभी मजदूरों व अन्य स्टाफ का हिसाब रमेश के जिम्मे सौंप दिया। उन्होंने रमेश से कहा कि इन्हें दिवाली तक का सारा हिसाब चुकता करना है, इसलिए इनकी पिछली दिवाली से लगाकर अब तक का सारा पाई-पाई का लेनदेन मिलाकर हिसाब निकालो। रमेश ने पिछली दिवाली से लगाकर अब तक सभी मजदूरों, सुपरवाईजरों व अन्य स्टाफ का हिसाब मिलाया तथा एक लिस्ट बनाकर सेठजी को दी। साथ ही पिछली दिवाली से अब तक का सारा माला का लेखा जोखा व नफा नुकसान का हिसाब भी मिलाकर तैयार किया। रमेश के हिसाब का काम संभालने के बाद सेठजी फैक्टी में ज्यादा ध्यान देने लगे थे तो जाहिर सी बात थी कि मुनाफे में बढोतरी हुई। दिवाली के दो दिन पहले सेठजी ने सबका हिसाब देना शुरू किया। सभी को हिसाब देने के बाद उन्होंने रमेश से पूछा- अरे, भई तुने सभी का हिसाब जोड़ा पर खुद का हिसाब नहीं जोड़ा। तो रमेश ने कहा सेठजी यह तो मुझे याद ही नहीं रहा। इसके बाद रमेश ने पंद्रह सौ के हिसाब से कुल एक साल का खुद का हिसाब भी जोड़ा व खुद पर खर्च हुए रूपयों का हिसाब दिया। सेठजी ने हिसाब देखकर उसे कहा मैं तेरा हिसाब कल करूंगा। अब रमेश को चिंता होने लगी कि मैनें कहीं मेरा हिसाब गलत तो नहीं जोड़ दिया। उसने अपने हिसाब को दुबारा तीन बार मिलाया लेकिन कोई फर्क नहीं मिला।
अगले दिन सेठजी ऑफिस देरी से आए। उन्होंने रमेश को बुलाया और कहा कि आज शाम को मेरे साथ घर चलना और रात वहीं रूक जाना। रमेश ने कहा ठीक है सेठजी। शाम को रमेश सेठजी की कार में बैठकर उनके साथ उनके घर गया। एक साल में पहली बार रमेश ने सेठजी का घर देखा था। आलीशान कोठी देखकर रमेश हक्का बक्का रह गया। इतना बड़ा घर। घर में प्रवेश करते ही सेठजी रमेश को बैठक रूम में बिठाकर खुद कपड़े बदलकर आए। उन्होंने नौकर को आवाज लगाई व चाय पानी लाने को कहा। थोड़ी देर में नौकर चाय लेकर आया। सेठजी व रमेश ने चाय पी। सेठजी ने नौकर से खाना तैयार करने को कहा। अब रमेश की उत्सुकता बढने लगी कि सेठजी आज उसे घर क्यों लेकर आए है।
सेठजी ने चाय पीने के बाद रमेश से कहा- रमेश तुझे मेरे साथ नौकरी करते हुए एक साल हुआ है। तेरे से पहले यहां पर कई लोग पंद्रह-पंद्रह साल से मेरे साथ नौकरी करते है। लेकिन तेरी काम सीखने की ललक, काम के प्रति ईमानदारी व समझदारी के कारण ही पंद्रह सालों में पहली बार मैने सबसे ज्यादा मुनाफा कमाया है। सीधी बात कहूं तो इस मुनाफे का असली हकदार तूं ही है। अब तूं बता तेरा हिसाब किस तरह से करूं, तनख्वाह लेगा या मुनाफे में हिस्सेदारी।
अपने पर इतना भरोसा देखकर रमेश का गला रूंध गया और वह सेठजी से बोला-सेठजी यह धन माया तो आपकी ही है। मैं तो मजदूर हूं। मैंने जहां तक संभव हो अपनी ईमानदारी से काम किया। मैं आपके मुनाफे की हिस्सेदारी के बारे में सोच भी नहीं सकता। मुझे आप ने पहचानकर तरासा है। नही ंतो में आज भी ऑफिस में झाडू लगा रहा होता। आप जो तनख्वाह देंगे मुझे स्वीकार होगी। रमेश की इस बात पर सेठजी ने उसकी पीठ थपथपाकर कहा कि इतना भावुक क्यों हो रहा है, चलो तेरी बात रख लेता हूं। तूं काबिल तो है, इसमें तो कोई शक नहीं है।
सेठजी ने एक साल का हिसाब दस हजार के हिसाब से जोड़कर रमेश को एक लाख बीस हजार रूपए दिए। रमेश ने इतने सारे रूपए देखकर सेठजी से कहा कि मेरे तो अठारह हजार ही होते है। तो सेठजी ने कहा कि तेरी तनख्वाह दस हजार महिना है। चल अब खाना खाते है।
नौकर ने खाना लगाया। सेठजी व रमेश ने खाना खाया। सेठजी ने कहा कि कल तूं घर चले जाना। दिवाली के दूसरे दिन वापिस आ जाना। रमेश ने हामी भर ली। उस रात रमेश सेठजी के घर पर सो गया। दूसरे दिन सुबह जल्दी रमेश अकेला ही ऑफिस पहुंचा। ऑफिस पहुंचते ही उसने घर जाने की तैयारी की। इतने में सेठजी भी ऑफिस आ गए। उन्होंने रमेश को बुलाकर कहा- रमेश परसों दिवाली है, सब लोग अपने-अपने घर जा रहे है। मैं भी यह चाहता हूं कि तूं दिवाली अपने घर में मनाए। लेकिन बेटा आज तेरे घर से निकलने के बाद मेरे पास फोन आया कि मेने एक करोड़ों का टेण्डर भरा था, जो पास हो गया है। अब हमें पहली खेप दिवाली के दिन ही रवाना करनी है। जिसमें एक लाख बोरी मूंगफली जहाज में लोड करवानी है। यह काम एक दिन के अंदर-अंदर करना होगा। मेरे पास तेरे अलावा कोई भरोसे का आदमी नहीं हैं, जो यह कर सकता है। अगर तूं रूक जाता तो मेरा करोड़ों का काम आसान हो जाता। सेठजी के मूंह से यह बात सुनते ही रमेश ने कहा कि सेठजी आपने मुझ पर इतना भरोसा किया है तो कोई बात नहीं मैं रूक जाता हूं। रूपए राजू के साथ घर भिजवा दूंगा। रमेश उसी समय तुरंत राजू के पास गया और उसे एक लाख बीस हजार रूपए थमाते हुए कहा यह रूपया पिताजी को दे देना और उनसे कहना कि कोई जरूरी काम होने की वजह से वह दिवाली पर घर नहीं आ सकता। राजू ने यह सुनते ही कहा, देख रमेश तुझे घर से मैं लेकर आया हूं, मेरी जिम्मेदारी है कि एक बार तुझे तेरे माता पिता के पास लेकर जाउं। तुझे दिवाली पर घर चलना ही होगा। फिर रमेश ने राजू को सारी बात समझाई। तो राजू भी मान गया।
उसी रात व अगले दिन राजू ने बोरियों की गिनती करके जहाज में लोड करवाई व जहाज को रवाना करवा दिया। जहाज के साथ सेठजी ने एक सुपरवाईजर को भेजा जो आगे बोरियों की गिनती करवाकर उतरवाए। इसके बाद रमेश ने दिवाली सेठजी के घर पर ही मनाई। पंद्रह दिन बाद जब जहाज विदेश पहुंचा तो वहां बोरियां उतारते समय एक बोरी गिनती में कम आंकी गई। जो वहां फोन करके सेठजी को अगले असाइंनमेंट में भेजने की बात कही। सेठजी को बात समझ में आ गई कि बोरी तो कम हो नहीं सकती। वहां पर भी भरोसे का आदमी रखना जरूरी है। अब सेठजी रात-दिन इसी सोच में लगे रहते थे कि वहां पर किसको रखूं जो पूरी तरह मेरे भरोसे का आदमी हो। आखिर में उन्हें रमेश का ही चेहरा दिखा जो उनकी नजरों में खरा था। उन्होंने रमेश से बाहर जाने की बात की तो रमेश ने कहा कि मैं चला तो जाउंगा लेकिन मुझे उनकी भाशा समझ में नहीं आती और वहां का रहन-सहन वगैरह कैसा होगा पता नहीं। सेठजी ने कहा कि इसकी तूं चिंता मत कर वहां पर एक दुभाशिया रखा हुआ है, इसके बावजूद भी तेरी हर चीज पर इतनी अच्छी पकड़ रहती है तो कुछ ही दिनों में तूं उनकी भाशा व लहजा समझ जाएगा। मैं तेरा पासपोर्ट बनवा देता हूं। रमेश ने सहमति दे दी। अब तक सेठजी की काफी चिंता दूर हो गई। रमेश ने सेठजी से कहा कि एक बार मैं घर जाना चाहता हूं। तो सेठजी ने कहा मैं तुझे मना नहीं करूंगा लेकिन यहां पर काम की स्थिति देख, तुझे लगता है कि तूं घर जा सकता है तो भले ही जा। अब रमेश को बात समझ में आ गई कि इन दिनों में घर तो किसी सूरत में नहीं जा पाउंगा।
उधर गांव में रमेश के घर पर राजू ने उसके पिताजी को रूपए जाकर दिए तो पिताजी का सीना गर्व से फूल गया। इतने सारे एक साथ रूपए उन्होंने पहली बार देखे थे। अब बेटा कमाने लगा था। भाभियों को अब ईर्श्या होने लगी। घर में आपस में फुसफुसाने लगी - कहीं चोरी करके तो नहीं भेजा है। कुछ दिन ठहरों सब पता चल जाएगा। लेकिन पिता को अपने बेटे पर पूरा भरोसा था। राजू ने रमेश के पिताजी को रमेश की तरक्की व कामयाबी की सारी बातें बताई। अब पिताजी के पास रूपए आ गए तो उन्होंने एक नया टेलीफोन घर पर लगवा दिया और राजू के साथ टेलीफोन नम्बर रमेश को भिजवाये।
इधर सेठजी ने रमेश का पासपोर्ट बनवाकर उसे जहाज के साथ विदेश भेजने का प्रबंध कर दिया। निश्चित समय पर जहाज भरने के बाद रमेश जहाज में विदेश रवाना हो गया। पंद्रह दिन के बाद जहाज विदेशी धरती पर पहुंचा। वहां पर सेठजी ने पहले ही फोन करके सारी व्यवस्थाएं करवा दी थी। वहां पर रमेश ने सारी बोरियों की गिनती करके सेठजी से टेलीफोन पर रिपोर्ट दी। वहां पर सेठजी के जानपहचान वालों ने रमेश की खूब मदद की। उधर राजू ने सेठजी को रमेश के घर के फोन नम्बर दिए। सेठजी व रमेश की पंद्रह दिन में बात होती रहती थी तो रमेश के पास घर के नम्बर पहुंच गए। अब रमेश खाली समय में घर पर फोन करके सब हालचाल पूछ लेता था।
समय बीतता गया। दो साल रमेश ने विदेशी धरती पर निकाल लिए। अब रमेश को वहां की भाशा, रहन-सहन आदि सब समझ में आ गया। या यूं कहे कि रमेश भी उनकी तरह रहने लगा। वहां के लोग मददगार होने के साथ अच्छे व्यवहार के थे। तो रमेश को ज्यादा परेशानी नहीं हुई। रमेश को वहां पर पंद्रह दिन में एक बार जहाज से बोरियों की गिनती करवानी होती थी बाकि समय उसके पास कोई काम नहीं होता था।
धीरे-धीरे वहां के लोगों व व्यवसाय में रमेश की समझ बढने लगी। जान पहचान बढी तो उसने अपने फ्री समय का सदुपयोग करने की सोची। उसने वहां के एक व्यवसायी से लदान का काम ठेके पर ले लिया। अब जो माल जहाजों में पोर्ट पर आता था उसे टकों में लोड करके निश्चित स्थान पर पहुंचाने का काम करना शुरू किया। दो-तीन महिनें काम करने के बाद रमेश को काफी मुनाफा हुआ। इधर सेठजी ने भी रमेश की तनख्वाह दस हजार से बढाकर तीस हजार कर दी। अब रमेश के पास रूपयों की कोई कमी नहीं थी। इस तरह रमेश ने विदेशी धरती पर दस वर्श गुजार लिए। अब सेठजी का भी कारोबार बढ गया था। उनकी अब चार फैक्टियां हो गई थी। उनके एक बेटी थी जिसकी शादी हो चुकी थी। उनका दामाद भी साथ ही काम करता था। अब रमेश की उम्र काफी हो गई थी। घर वाले उसे शादी पर दबाव डाल रहे थे। एक दिन रमेश के पिताजी ने सेठजी को फोन पर बताया कि अब उसकी अगले महिनें में शादी करनी है। उसे घर भिजवावों। सेठजी ने जब यह बात रमेश से कही तो उसने कहा कि मेरा यहां इतना बड़ा कारोबार है, इसे छोड़कर एकदम कैसे आउं। तो सेठजी ने उसे समझाते हुए कहा कि बेटा जिंदगी में पैसा तो हर कोई कमाता है। लेकिन आदमी कमाना सीख। आदमी कमाएगा तो तेरी जिंदगी सरल हो जाएगी। सेठजी की यह सलाह रमेश को बहुत अच्छी लगी। उसने निश्चय किया कि वह अब आदमी कमाएगा।
पिताजी व सेठजी के बार बार कहने पर रमेश ने घर जाने का मानस बनाया। उसने अपने साथ काम करने वाले लोगों को काम समझाकर गांव के लिए चल पड़ा। पंद्रह दिन से वह देश में पहुंचा और उसके दो दिन बाद गांव पहुंचा। गांव पहुंचते ही उसने देखा कि गांव का तो नक्शा ही बदल गया है। जहां गांव में एक ही परचून की दुकान हुआ करती थी, अब सात-आठ दुकानें थी। गांव से शहर जाने के लिए कच्चा रेतीला मार्ग था वहां डामर की सड़क बन गई। गांव में बिजली, पानी की सुविधा हो गई। शहर आने जाने के लिए जहां पांच किलोमीटर पैदल जाना पड़ता था, वहां अब चार बसें लग गई। गांव की स्कूल आठवीं से बाहरवीं हो गई। पिछले बारह सालों में गांव में खूब तरक्की हुई। घर पहुंचने पर माता-पिता, भाइयों ने उसका खूब आदर सत्कार किया। बारह साल से बेटा कमाउ पूत बनकर घर आया तो पिता की मूंछे बिच्छु के पूंछ की तरह हो गई। अब तो रमेश के पिता का गांव में आदर सत्कार होने लगा। चार पैसे आने पर गांव में मान मनुहार बढने लगी।
रमेश ने घर पर अपने व्यापार की सारी बात बताई। सभी घर वालों से उसने खूब प्यार पाया। अब भाभियों ने भी मौका परश्ति दिखाते हुए देवर की खूब तारीफ करने लगी। रमेश दिन में दो बार फोन करके अपने व्यवसाय की खेर खबर लेता था। रमेश के घर आते ही उसके पिताजी ने लड़की के पिता से मिलकर शादी की तैयारियां शुरू की। जल्द ही रमेश की शादी हो गई। रमेश की पत्नी भी कुछ पढ़ी लिखी थी। एक तो पैसे वाला बींद और उपर से खुद दो आखर समझने वाली। जिससे घर में सबसे छोटी बिनणी का मान ओर भी बढ़ गया। अब पिता ने शादी के बाद रमेश को समझाया- देख बेटा इतने दिन तो तूं अकेला ही था। तुझ पर कोई जिम्मेदारी नहीं थी लेकिन अब तेरी शादी कर दी है। यह बिंदणी भी तो आस रखे है तेरे साथ रहने की। तूं अपना काम धंधा अपने देश में ही ले आ। लेकिन रमेश कैसे समझाता कि जो काम वहां पर कर रहा है उसे यहां शुरू करने के लिए पुनः एक से शुरू करना पड़ेगा। फिर भी उसने सबके हां में हां मिलाकर वापस जाने की मंशा जाहिर की। रमेश को बड़ा आदमी बना देख गांव के कुछ बेरोजगार युवक उससे मिलने को आए तथा कहीं काम लगाने की गुजारिश की। रमेश को उस समय सेठजी के आदमी कमाने की बात याद आई। अब आदमी परखने की क्शमता तो रमेश को पूरी थी। उसने उन लड़कों का चाल चलन व पैठ गांव में व उनके घरसे पता कर के उसमें से दो लड़कों को अपने साथ शहर चलने को कहा।
शादी के बाद पहला सावन होने के कारण पत्नी को तो रमेश के ससुरजी वापिस पीहर ले गए। रमेश भी एक बार ससुराल हो आया था। उसे भी पत्नी की बहुत याद सताती थी लेकिन काम पर भी जाना था। अब रमेश घर से वापिस शहर की ओर चल दिया। दो दिन बाद वह सेठजी के पास पहुंचा। उसने सेठजी को दो लड़कों को रखने की बात कही। सेठजी ने बिना कुछ कहे उन लड़कों को काम पर रख लिया। अब रमेश वापिस विदेश के लिए रवाना हुआ। पंद्रह दिन बाद वहां पहुंचकर सारा काम संभाला। उसने काम शुरू करने के बाद पहली बार किसी दूसरे के हवाले सारा काम किया था। लेकिन उसने पाया कि जिन लोगों के हाथ में वो काम छोड़कर गया था, उन्होंने बखूबी काम को अंजाम दिया। इससे रमेश को यह तो संतुश्टि हो गई कि मेरी गैर उपस्थिति में ये लोग काम संभाल सकते है। इसके बाद रमेश ने सभी लोगों की जिम्मेदारियां तय कर दी तथा सभी को वेतन व बोनस में बढोतरी कर दी। इससे उसके साथ काम करने वाले सभी कर्मचारी रमेश के काम को अपना काम समझ कर करने लगे।
रमेश की शादी होने के बाद काम के प्रति उसका लगाव कम हो रहा था। अब उसे भी महसूस होने लगा कि शादी करने के बाद जिम्मेदारियां बढ़ गई है। दिन में एक-दो बार पत्नी उसे फोन लगा ही देती थी। अब रमेश ने भी अपना कारोबार धीरे धीरे अपने देश में सेटल करने की सोचने लगा। उसने देश में बैठे सेठजी से इस बारे में चर्चा की तो सेठजी ने उसे मदद करने का पूरा आश्वासन दिया। इसके बाद सेठजी ने रमेश के पास एक लड़के को भेज दिया, जो काफी पढा लिखा और होशियार था। रमेश ने उस लड़के को सेठजी को सारा काम समझाया और उसे हिदायत दी कि अगर ईमानदारी और मेहनत से काम करोगे तो खूब रूपया कमाओगे। लड़के ने भी रमेश की तरह ही मेहनत और लगन से काम सीखा। कुछ समय बाद उसने सेठजी का टांसपोर्टेशन का सारा काम संभाल लिया। अब रमेश सेठजी की तरफ से फ्री हो गया। वह विदेश से अपने देश सेठजी के पास गया और सेठजी से बात करके अपने शहर में ही कारोबार शुरू करने की योजना बनाई। रमेश के पास धन की कोई कमी नहीं थी, उसने सेठजी के मार्गदर्शन में अपने शहर में काम शुरू किया। अब रमेश का घर पर भी आना जाना हो जाता था। कुछ महिनों बाद रमेश का कारोबार पैर जमाने लगा। उसने विदेश में चल रहे अपने कारोबार को वहां के कर्मचारियों की भागीदारी में जारी रखा। भागीदारी होने से कर्मचारी पूरी जिम्मेदारी से काम करते थे, इसके बावजूद सेठजी के विदेश में रखे लड़के को भी उस कारोबार में हिस्सेदार बना दिया। इस तरह विदेशी कारोबार से रमेश एक तरह से पूरी तरह मुक्त हो गया। इधर शहर में उसका कारोबार अच्छा चलने लगा। अब सेठजी के भी चार पांच फैक्टियां हो गई।
एक दिन सेठजी ने रमेश से कहा-बेटा तेरी वजह से आज मेरा इतना कारोबार बढ़ा है। मेरे तो एक लड़की है, उसके लिए तो मेरा कमाया जिंदगी भर खूब होगा। जमाई में इतना दम नहीं है कि वो इतना बड़ा कारोबार संभाल सके। आज से मैं एक फैक्टी तेरे नाम कर रहा हूं, बाकि चारों फैक्टियों पर भी तेरी देख रेख होगी तो इनका गुजार चलता जाएगा। मैं तो अब बूढा हो गया हूं, आज हूं, कल नहीं हूं। समय का कुछ पता नहीं है। इसलिए तुझे इतनी बड़ी जिम्मेदारी सौंप रहा हूं। उसने सेठजी की बात मान ली।
अब रमेश इतना परिपक्व हो गया था ि कवह सारा व्यवसाय संभाल सकता था। अब उसने इतने बड़े व्यापार को संभालने के लिए आदमी परखने शुरू किए। उसने अपने गांव व आसपास के गांवों से कई युवकों को तरास कर व्यवसाय में लगाया। इससे कई परिवारों में रमेश की वजह से चूल्हे जलते थे। अब रमेश ने अच्छे खासे आदमी कमा लिए।
समय बीतता गया। रमेश का व्यापार बढ़ता गया। उसने अपने सगे संबंधियों, पड़ोसियों, गांव वालों को अपने व्यवसाय से जोड़ा। अब रमेश गांव में सबका चहेता बन गया। शहर में व्यापार सेटल होने के बाद रमेश का गांव में आना जाना बढ गया। इस वजह से गांव वालों ने मिलकर रमेश को निर्विरोध सरपंच बना दिया। रमेश के सरपंच बनते ही गांव में विकास का पहिया चलने लगा। स्कूल में नए भवन स्वीकृत हुए, गांव में रोडवेज बस आने लगी। लोग अपनी फसलों का उचित मूल्य लेना सीख गए। अब हर कोई गांव में अपने बच्चे को रमेश की तरह बनाने का ख्वाब देखने लगा।