प्रणाम!
कैसे हैं आप सब?
आशा करते हैं कि सब कुशल से होंगे,,।
आज नवरात्र का सातवां दिन हैं और इस दिन में माता दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की पूजा की जाती हैं। माता का यह रूप थोड़ा भयावह तो हैं, लेकिन दुष्टों का संहार करने के लिए माता को यहीं रूप लेना पड़ा।
माता का यह रूप भक्तों के लिए बहुत फलदाई हैं। इनकी पूजा करने से हमारे आसपास की सभी नकारात्मक शक्तियां हमसे दूर चलीं जाती हैं। उपासक इनकी आराधना करके मन की सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति करते हैं।
क्योंकि आज हमें मन की सकारात्मक ऊर्जा की नितांत आवश्यकता हैं। अगर हम पूरी तरह से सकारात्मक होना चाहते हैं, तो हमें सबसे पहले अपने मन को सकारात्मक करना होगा। क्योंकि जीवन भी मन से हैं और इस जीवन में हमारा मन हैं।
हमारे विचारो की श्रेष्ठता हीं, हमारे मन को सकारात्मक बनातीं हैं। हमारे शब्दों का स्थायी स्थान केवल मन में होता हैं। तभी तो हम अपने जीवन के प्रेम भरें शब्दों को भी नहीं भूलते और ना हीं कभी कड़वे वाक्यों को भूल पाते हैं।
हमारे शब्दों में तो ऐसी धार हैं, जो बाण बनकर किसी को घायल भी कर सकते हैं और वीणा बनकर किसी मृत को भी जीवन प्रदान कर सकतें हैं। जब मीराबाई के समय में उनके देवरसा ने ज़हर देने वाले वैध को हीं ज़हर पिला दिया था और वह मृत अवस्था में जा चुके थें, तो मीराबाई के प्रार्थना भरें शब्दों ने हीं, वैध जी को वापिस जीवन दिया था। इसलिए कोशिश करें कि हम भी अपनी वाणी को वीणा बना सकें।
आज के दिन की महत्वपूर्ण सीख यही हैं कि "आज वाणी रूपी बाण तो यहां सबके पास हैं, एक दूसरे को घायल करने के लिए। लेकिन वाणी रूपी वीणा बस किसी के पास हीं हैं"।
अब हमारे पास इनमें से क्या हैं, यह बात हम स्वयं जानते हैं। लेकिन इस बात को किसी को बताने की आवश्यकता नहीं हैं, बस स्वयं समझने की जरूरत हैं। आज़ के लिए बस इतना हीं फिर मिलते हैं कुछ और नयी बातों के साथ,,।
🌻वासुदेवाय नमः🌻
दिव्यांशी त्रिगुणा
लेखिका, शब्द इन
28/03/2023