प्रणाम!
कैसे हैं आप सब?
आशा करते हैं कि सब कुशल से होंगे,,।
आज नवरात्र का दूसरा दिन हैं, जिसमें माता के ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा की जाती हैं। हम सभी अपने व्रत को संपूर्ण करने के लिए मंदिर या तीर्थ स्थल का आश्रय लेते हैं। लेकिन जो कहीं बाहर नहीं जा सकते, वह सब अपने घर में ही इस व्रत को करते हैं।
क्योंकि भगवान को याद करने के लिए कोई स्थान निश्चित नहीं हैं। हम जहां उन्हें स्मरण करेंगे, उनकी उपस्थिति वहीं होंगी। हमारे विचार से घर या तीर्थ स्थल कोई इतना मायने नहीं रखता, जितना कि यह मायने रखता हैं कि वह व्यक्ति कितनी श्रद्धा भाव से इस व्रत को करता हैं।
अगर भक्त के मन में भगवान बसते हैं, तो वह जहां भी रहे, चाहें वो झोपड़ी हीं क्यों ना हों, वही मंदिर बन जाता हैं। क्योंकि भगवान तो सच्चे प्रेम के भूखें होती हैं। इसलिए हीं तो कहा गया हैं, "भक्त के वश में हैं भगवान"। अगर मन की भक्ति सच्ची हो, तो जरूर मिलते हैं। वैसे तो प्रभु को दुनिया की कोई ताकत नहीं बांध सकती, लेकिन एक प्रेम हीं हैं, जिसमें वो बिना बांधे हीं स्वयं बंध जाते हैं।
आज मातारानी ब्रह्मचारिणी स्वरूप में भक्तों की सुनने के लिए आईं हैं। माता की घोर तपस्या और त्याग के कारण ही, उनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा। माता का हर रूप हमें जीवन का कोई न कोई अमूल्य संदेश अवश्य देता हैं।
माता का ब्रह्मचारिणी स्वरूप हमें यह संदेश देता हैं कि "आधुनिक युग में भी मनुष्य को अपना संत व्यवहार नहीं भूलना चाहिए। मनुष्य को सदैव अपना जीवन पूरी सादगी और सरलता के साथ बिताना चाहिए"।
आज भी व्रत बहुत ही अच्छे से संपन्न हुआ और पूरा दिन मंगलमय रहा। आज हमें इस दिन से यह सीख मिली हैं कि "सादगी हीं परम सौंदर्य हैं और विनम्रता ही सबसे सुंदर आभूषण"। आज़ के लिए बस इतना हीं फिर मिलते हैं कुछ और नयी बातों के साथ,,।
🌻वासुदेवाय नमः🌻
दिव्यांशी त्रिगुणा
लेखिका, शब्द इन
23/03/2023