प्रणाम!
कैसे हैं आप सब?
आशा करते हैं कि सब कुशल से होंगे,,।
आज चतुर्थ नवरात्र हैं, जिसमें माता दुर्गा के कुष्मांडा स्वरूप की पूजा की जाती हैं। माता भिन्न भिन्न रूपों में अपने भक्तों के कष्ट हरने आती हैं। अद्भुत महिमा हैं उस परमपिता परमेश्वर के, दिखाई भी कहीं नहीं देता और देखा भी हर जगह जाता हैं। हमारे साथ होता नहीं, लेकिन अपना साथ हमेशा बनाएं रखता हैं।
सखी, ये दिन भी यूं ही बीत जाते हैं ना, कभी हंसते मुस्कुराते और कभी गम की बातें गाते। बस इसी उम्मीद से कि शायद कल का दिन अच्छा होगा। कल के दिन की इसी उम्मीद से, हम आज के दिन को भी भूल जाते हैं। कल के दिन की चिंता से, हम आज के दिन के सुख को भी भूल जाते हैं।
अगर भगवान हमसे पूछें कि ऐ भक्तिन, तुम क्या चाहतीं हो, तो हम तो बस यही कहेंगे कि "भगवान जी, आप सब जन को ऐसी सद्बुद्धि दो कि वह सदैव अपने वर्तमान में जीता रहें। क्योंकि भूतकाल के दुख से वह बहुत परेशान हैं और भविष्य की चिंता से भी, उसकी परेशानी में जान हैं। अब जो समय बचा हैं, वह तो केवल वर्तमान हैं। इसलिए हे कृपा निधान, ऐसी दया करो भगवान, ऐसी दया करो भगवान"।
सारे शब्दों का सार बस यही हैं, कि भगवान तो हमेशा ही हमारे लिए कुछ ना कुछ करते रहते हैं, लेकिन हमें कभी कभी खुद के लिए भी कुछ करना चाहिए। क्योंकि विश्वास होना अच्छी बात हैं, लेकिन अंधविश्वास बिल्कुल भी अच्छा नहीं हैं। वर्तमान में रहकर अपने कर्म को निरंतर करते रहें और निश्चित रूप से आपको सुंदर फल की प्राप्ति होंगी।
आज के दिन की महत्वपूर्ण सीख यह हैं, कि "मनुष्य को सदैव अपने वर्तमान पर ध्यान देना चाहिए। क्योंकि भूतकाल में जो हुआ उसे हम सुधार नहीं सकते, लेकिन वर्तमान पर ध्यान देकर हम अपने भविष्य को बेहतर ज़रूर बना सकते हैं"। आज़ के लिए बस इतना हीं फिर मिलते हैं कुछ और नयी बातों के साथ,,।
🌻वासुदेवाय नमः🌻
दिव्यांशी त्रिगुणा
लेखिका, शब्द इन
25/03/2023