अधीत्य चतुरो वेदान् सर्वशास्त्राण्यनेकश: ।
ब्रम्ह्मतत्वं न जानाति दर्वी सूपरसं यथा ॥
केवल वेद तथा शास्त्रों का बार- बार अध्ययन करने से किसी को ब्रह्मतत्व का अर्थ नही होता ।
जैसे जिस चम्मच से खाद्य पदार्थ परोसा जाता है उसे उस खाद्य पदार्थ का गुण तथा सुगंध प्राप्त नही होता ।