अथ श्री किंगफिशर लोन कथा
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अगर एक आम आदमी को एक एयर लाइंस शुरू करने को कहा जाए तो वो घबरा जाएगा। इतना पैसा कहाँ से आएगा। लाइसेंस कैसे मिलेगा। एक हवाई जहाज ही 7-800 करोड़ का आता है।
लेकिन बड़े बिजनेसमेन के लिए ये दिक्कतें मायने नहीं रखती। किंगफिशर की स्थापना 2003 में हुई थी और विजय माल्या की कंपनी की पहली उड़ान 2005 में हुई।
लेकिन कंपनी बना लेने से तो काम नहीं पूरा होता। दसियों हवाई जहाज चाहिए, लाइसेंस तो खैर मिल ही गया था। लेकिन स्टाफ चाहिए, आफिस चाहिए, पायलट चाहिए, इंधन के लिए पैसा, मेंटेनेंस का पैसा चाहिए।
किंगफिशर ने हवाई जहाज खरीदने पर हजारो करोड़ रूपये नहीं लगाये। बल्कि वो किराए पर अपने हवाई जहाज ले आई। बाकी कामों के लिए भी पैसा चाहिए था। कुछ कंपनी के प्रमोटर विजय माल्या ने लगाया। बाकी के लिए वो बैंको के पास पहुंचे लोन लेने के लिए।
यूँ बैंक लोन नहीं देते। लोन के लिए सिक्योरिटी तो देनी होती है। माल्या साहब को भी लोन ऐसे ही नहीं मिल गया उन्होंने भी सिक्योरिटी दी। हम और आप सिक्योरिटी के नाम पर अपनी FD देते, घर, जमीन बैंक की पास गिरवी रखते।
विजय माल्या साहब ने लीज पर लिए हवाई जहाज रखे, लाइसेंस रखा। जो परमिट मिले थे उड़ान के लिए उनको बैंक को सिक्योरिटी के रूप में दिखाया। बैंको ने फट से लोन सेंक्शन कर दिया।
उस समय करीब 6 एयर लाइंस थीं। माल्या साहब तो राजा बनने आये थे। कुछ ही समय में एयर डेक्कन जो कैप्टन गोपीनाथ की थी, वो बिक गयी। माल्या साहब ने उसे खरीद लिया। एक लाभ में चलती किंगफिशर से बड़ी कंपनी को एक लास मेकिंग कंपनी ने खरीद लिया। सुना था गोपीनाथ जी को नए प्राफिटेबल रूट मिलने बंद हो गए थे , हवाई जहाज पार्क करने के लिए हैंगर फेसिलिटी मिलने में भी दिक्कत थी।
माल्या साहब ने सहारा श्री की सहारा के लिए भी बोली लगे, लेकिन जेट ने उसे खरीद लिया, क्योंकि सबसे बड़ी एयर लाइन जेट ही थी। सहारा हाथ से निकल जाती तो जेट की पोजीशन कमजोर हो जाती। एक बड़े अमाउंटअमाउंट पर जेट ने अपने गले में रस्सी डाली।
तीसरी एयर लाइन एयर इंडिया थी। जब किंगफिशर शुरू हुई तब उसका घाटा २८० करोड़ का था। अचानक एयर इंडिया को आधुनिक होने की जरूरत महसूस हुई। उसने 32,000 करोड़ का लोन लिया और 110 नए आधुनिक हवाई जहाज का ऑर्डर कर दिया। इसके बाद अगले ही साल वो 40,000 करोड़ के घाटे में आ गयी। घाटे से उबरने के लिए उसने बहुत से रूट बंद कर दिए और फिर उन रुटो पर किंगफिशर की उड़ान शुरू होती गयी।
लेकिन सब कुछ किंगफिशर के साथ भी सही नहीं चल रहा था। अपने 8 सालों के इतिहास में किंगफिशर एक बार भी प्राफिट में नहीं आई थी। 2009 तक उसका लास 16,000 करोड़ पहुँच चूका था।
किंगफिशर बड़ी मुसीबत में थी। लोन की क़िस्त देने का पैसा नहीं , ईंधन का पैसा नहीं, सैलरी का पैसा नहीं। वो फिर बैंको के पास पहुंची।
यूँ तो बैंक कहते हैं की हमने 2009 में लोन इसलिए दुबारा दिया क्योंकि नहीं देते तो जो पुराना लोन का पैसा था वो डूब जाता। बैंको के मुताबिक उन्होंने गुड मनी अपनी बैड मनी बचाने के लिए फिर किंगफिशर को दी।
लेकिन हकीकत कुछ और थी। इस बीच किंगफिशर अपने शेयर लाकर आम जनता से भी पैसा वसूल चुकी थी।
जब विजय माल्या 2009 में बैंको के पास फिर से लोन के लिए पहुंची तो सबसे पहले बैंको ने खासतौर पर सभी सरकारी बैंको ने अपने लोन को किंगफिशर के शेयरों में बदल दिया। मतलब अपने लोन को किंगफिशर में लगी अपनी पूँजी मान लिया।
अगर आपने किसी को लोन दिया हो कम्पनी में वो वापस न कर रहा हो और आप कहें की ठीक है कोई बात नहीं मैं समझ लेता हूँ की मैंने तुम्हारी डूबती कंपनी में पैसा लगा दिया है। अगर तुम डूब गए तो मेरा पैसा भी डूब गया। बच गए तो मुझे प्राफिट में हिस्सा देते रहना।
ऐसी कंपनी जिसने एक साल क्या एक महीने भी कभी प्राफिट नहीं कमाया था उसमे बैंको ने अपने 1400 करोड़ रूपये शेयर में बदल दिए।
उस समय किंगफिशर के शेयर की कीमत 39 रूपये थी , लेकिन बैंको ने एक शेयर की कीमत 64 रूपये अदा की। प्रीमियम दिया। मालिक विजय माल्या जो था।
अब बैंको ने पूँजी लगा दी तो फिर किंगफिशर को लोन मिलना ही था। सरकारी बैंको ने इस नयी पूँजी के आधार पर फिर से लोन दे दिया।
एक साल फिर ठीक चला। लेकिन 2010 तक किंगफिशर की हालात फिर बिगड़ रही थी। लायसेंस सस्पेंड हो गए। इंडियन आयल और BPCL ने अपने ईंधन के बकाये 250 करोड़ और 1000 करोड़ के लिए किंगफिशर पर मुकद्दमा दायर किया।
तमाम एअरपोर्ट को भी किंगफिशर से लैंडिंग फीस के रूप में करोडो रूपये लेने थे उन्होंने किंगफिशर की फ्लाईट उड़ाने से इंकार कर दिया कहा पहले पैसा फिर फ्लाईट उड़ेगी।
पैसे नहीं थे तो तमाम हवाई जहाज की लीज के पैसे भी भरने मुश्किल थे मालिक अपने हवाई जहाज वापस ले जाने लगे.
पैसो की कमी से त्रस्त किंगफिशर ने एडवांस टिकट के पैसे जनता से ले लिए। लेकिन वो फ्लाईट नहीं उड़ा सकी। बहुत से यात्रियों का पैसा डूबा उन्हें पैसा नहीं मिला। लेकिन किंगफिशर सिर्फ किराया ही तो नहीं ले रही थी। वो यात्रियों से सर्विस टैक्स भी लेती थी , और भी तमाम सरकारी टैक्स उस किराये में शामिल होते हैं।
किंगफिशर के ऊपर इसीलिए सर्विस टैक्स न देने का भी एक मुकद्दमा चल रहा है।
इसी बीच किंगफिशर ने IDBI बैंक से भी 900 करोड़ का लोन लिया। सिक्योरिटी के बगैर लोन मिलता नहीं। इस बार किंगफिशर ने अपनी ब्रांड वैल्यू को सिक्योरिटी के नाम पर रखा। जी जो कंपनी बर्बाद हो चुकी थी , उसने अपने बड़े नाम को सिक्योरिटी के नाम पर रखा और 900 करोड़ का लोन लिया।
इसीलिए idbi बैंक के अधिकारी गिरफ्तार किये गए हैं।
लेकिन इसके पहले 2009 में जो नए लोन सरकारी बैंको ने किंगफिशर को दिए थे , उसमे उन्होंने सिक्योरिटी के नाम पर लाइसेंस, हवाई जहाज नहीं रखे। उन्होंने इस बार होशियारी की, विजय माल्या की पर्सनल गारंटी ली। किंगफिशर का बम्बई का आफिस रखा, गोवा में माल्या की विला को रखा।
इसीलिए आज विजय माल्या फंसे भी हैं। उनके घर आफिस नीलाम हुए हैं। और वो लन्दन भागने को मजबूर हुए हैं।
हो सकता है ये तमाम कहानी पढ़कर आपको लगता हो की माल्या जादूगर थे, लोगों को बैंको को अपनी उंगली पर नचाना उन्हें आता था। अगर ऐसा आपको लगता है तो आप बच्चो की निप्पल चूसिये। लालीपाप चूसिये जैसे आज वो वामपंथी चूस रहे हैं जो मोदी सरकार को विजय माल्या के भागने पर जिम्मेदार मान रहे हैं।
जो लोग मोदी सरकार की खिल्ली उड़ा रहे हैं उन्हें मालूम भी नहीं है की इसके पहले जो सरकार थी उसने करप्शन का कैसा भयानक रूप इस देश में खेला है। किंगफिशर तो एक छोटी सी कहानी है। अभी स्पाइस जेट की बाकी है, ऐसी दसियों कहानी बाकी हैं।
सिस्टम में लूपहोल का बहुत फायदा उठाया गया। अब आपको हो सकता है मेरी पिछली पोस्ट की रेलिवेंस समझ आये क्यों मैंने कहा था की मोदी सरकार सिस्टम दुरुस्त करने पर काम कर रही है। समस्या विजय माल्या नहीं, सिस्टम है जिसका मिसयूज होता है। जरूरत माल्या को पकड़ने से ज्यादा सिस्टम को सही करने की है।