गुणी गुणं वेत्ति न वेत्ति निर्गुणो
बली बलं वेत्ति न वेत्ति निर्बल: ।
पिको वसन्तस्य गुणं न वायस:
करी च सिंहस्य बलं न मूषक: ॥
गुणी पुरुष ही दुसरे के गुण पहचानता है, गुणहीन पुरुष नही।
बलवान पुरुष ही दुसरे का बल जानता है, बलहीन नही।
वसन्त ऋतु आए तो उसे कोयल पहचानती है, कौआ नही।
शेर के बल को हाथी पहचानता है, चूहा नही।