भारतवर्ष का इतिहास रहा है यहाँ हिन्दुओं पर अत्याचार करने वाले कभी बच नहीं पाए, चाहे वो यवन होंया फिर मुल्ले मुगल l धरती के सबसे क्रूर शासकों में से गिने जाने वाले औरंगजेब को भी ऐसी मौत दी गयी थी जैसे पहले सनातनी वीरों ने किसी के साथ नही किया था l
14वीं और 15वीं शताब्दी में गद्दारों के कारण कई युद्धों में हार के बाद गुरुओं एवं पुरोहितों द्वारा निर्णय लिया गया कि अब व्यक्ति निर्माण का कार्य अपने हाथों में ही लिया जाए l
इस पुनीत कार्य हेतु बहुत से गुरुओं ने अपना अपना राष्ट्रीय एवं धार्मिक कर्तव्य निभाते हुए समय समय पर शूरवीरों का निर्माण किया l
समर्थ गुरु रामदास जी भी इसी श्रेणी में आते हैं जिन्होंने शिवाजी का निर्माण किया l प्राण नाथ महाप्रभु जी ने बुन्देलखण्ड से छत्रसाल का निर्माण किया l ओहम नरेश को श्री राम महाप्रभु द्वारा तैयार किया गया l
शिवाजी का स्वर्गवास हो चूका था l सम्भाजी के अंग अंग काट कर उसकी नृशंस हत्या औरंगजेब के सामने ही कर दी गई थी l
उसके बाद छापामार युद्ध प्रणाली से ही समस्त भारत में चारों और से औरंगजेब के विरुद्ध एक सामूहिक प्रयास सनातनी योद्धाओं द्वारा आरम्भ किया गया जिसमे की बहुत से धर्म-गुरुओं और पुरोहितों द्वारा समय समय पर नीतियाँ और परामर्श भी दिए जाते रहे l
यह भी एक इतिहास ही है की औरंगजेब की सेना इतिहास में सबसे बड़ी सेना मानी जाती है, धन से भी और व्यक्तियों से भी l
छोटे छोटे प्रयास हमेशा ही किये जाते थे औरंगजेब को मारने के परन्तु वो किस्मत का भी धनी था… और भारत के गद्दारों की निष्ठा का भी l
मराठा नेता संताजी और धनाजी द्वारा एक बार औरंगजेब के तम्बू की सारी रस्सियाँ ही काट कर तम्बू ही गिरा दिया गया था, परन्तु औरंगजेब उस रात अपनी बेटी के तम्बू में था जिस कारण वो तो बच गया पर बाकी सभी मर गए l
इस अचानक हमले के बाद संता जी और धनाजी की ख्याति भी बहुत बढ़ गयी थी, हालत यह हो गयी थी की यदि कोई घोड़ा पानी नहीं पीता था तो उसे मुसलमान कहते थे की .. तूने क्या संता जी और धना जी को देख लिया है …. ??
बुन्देलखण्ड के वीर छत्रसाल ने सौगंध की हुई थी की औरंगजेब को व्यक्तिगत युद्ध में अपनी तलवार से हराएगा ….. छत्रसाल द्वारा ऐसे कई प्रयास भी किये गए परन्तु अथक प्रयासों के बावजूद वीर छत्रसाल सफल न हो पाए l
अंतत: प्राण नाथ महाप्रभु जी ने कहा की एक एक दिन भारी पड़ रहा है हिन्दुओं पर, क्योंकि औरंगजेब रोज ढाई मन जनेऊ न जला लेता था तब तक उसे नींद नहीं आती थी l
आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं की ढाई मन जनेऊ एक दिन में जलाने से कितने हिन्दुओं को मारा सताया जाता होगा और कितने बड़े स्तर पर धर्म परिवर्तन किया जाता होगा, कितनी ही औरतों का शारीरिक मान मर्दन किया जाता होगा और कितने ही मन्दिरों तथा प्रतिमाओं का विध्वंस किया जाता होगा l
प्राण नाथ महाप्रभु जी की यह बातें सुन कर छत्रसाल जी ने अपनी सौगंध वापिस लेकर कहा की आप जो कहेंगे मैं वो करूँगा आप दुखी न हों…आदेश दें l
प्राणनाथ महाप्रभु जी ने एक ख़ास प्रकार के जहर से युक्त एक खंजर दिया बुन्देलखण्ड को और सारी योजना समझाते हुए कहा की यह खंजर पूरा नहीं मारना है, नहीं तो वो तत्काल प्रभाव से मर जायेगा ….. अतः ये खंजर केवल उसको एक इंच से भी कम गहराई का घाव देते हुए लम्बा सा एक चीर ही मारना था l
जिससे की धीरे धीरे उस जहर का असर फैलेगा और औरंगजेब तडप तडप कर मरेगा l
बुन्देला वीर छत्रसाल ने इस कार्य को सफलता पूर्वक अंजाम दिया और जैसा प्राण नाथ महाप्रभु जी ने कहा था उसी प्रकार उसके शरीर पर एक चीरा लगा दिया…. औरंगजेब 3 महीने तक तडप तडप कर मरा और एक दिन उसके पापों का अंत हुआ l
औरंगशाही में औरंगजेब ने स्वयम लिखा है की मुझे प्राण नाथ महाप्रभु ने और छत्रसाल ने धोखे और छल से मारा है l
आप सबसे विनम्र अनुरोध है की अपने इतिहास को जानें, जो की आवश्यक है की अपने पूर्वजों के इतिहास जो जानें और समझने का प्रयास करें…. उनके द्वारा स्थापित किये गए सिद्धांतों को जीवित रखें l
जिस सनातन संस्कृति को जीवित रखने के लिए और अखंड भारत की सीमाओं की सीमाओं की रक्षा हेतु हमारे असंख्य पूर्वजों ने अपने शौर्य और पराक्रम से अनेकों बार अपने प्राणों तक की आहुति दी गयी हो, उसे हम किस प्रकार आसानी से भुलाते जा रहे हैं l
सीमाएं उसी राष्ट्र की विकसित और सुरक्षित रहेंगी ….. जो सदैव संघर्षरत रहेंगे l
जो लड़ना ही भूल जाएँ वो न स्वयं सुरक्षित रहेंगे न ही अपने राष्ट्र को सुरक्षित बना पाएंगे l