● अत्यारूढिर्भवति महतामप्यपभ्रंशनिष्ठा ।
अत्युन्नति के बाद बड़ों का भी पतन होता है ।
● संपद: साधुवृत्तानपि विक्षिपन्ति ।
सम्पत्तियां सदाचारियों को भी विचलित कर देती हैं ।
● एकचित्ते द्वयोरेव किमसाध्यं भवेदिह ।
दो चित्तों के एक होने पर संसार में क्या असाध्य है ?
● भवन्ति ते सभ्यतमा विपश्चितां मनोगतं वाचि निवेशयन्ति ये ।
वे विद्वानों में सभ्यतम गिने जाते हैं जो मन की बात को वाणी से प्रकट कर सकते हैं ।
● सुखमुपदिश्यते परस्य ।
अन्यों को उपदेश देना सरल है ।
● न हि परगुणानां विज्ञातारो बहवो भवन्ति ।
दूसरे के गुणों को जानने वाले बहुत नहीं होते ।
● मनुष्या: स्खलनशीला: ।
भूल होना मनुष्य का स्वभाव है ।
● अत्युत्कटै: पापपुण्यैरिहैव फलमश्नुते ।
अत्यधिक पाप-पुण्यों का यहीं फल मिलता है ।
● पापशंकी अतिस्नेह:।
अति स्नेह में अनिष्ट की शंका रहती है ।
● मितं च सारं च वचो हि वाग्मिता ।
थोड़े शब्दों में तत्त्व की बात कहना ही वाक् कला है ।