अज्ञेभ्यो ग्रन्थिन: श्रेष्ठा:, ग्रन्थिभ्यो धारिणो वरा:।
धारिभ्यो ज्ञानिन: श्रेष्ठा:, ज्ञानिभ्यो व्यसायिन:।।
अर्थात- निरक्षर लोगों से ग्रंथ पढ़ने वाले श्रेष्ठ होते हैं।
उनसे भी अधिक ग्रंथ समझने वाले श्रेष्ठ होते हैं।
ग्रंथ समझने वालों से भी अधिक आत्मज्ञानी श्रेष्ठ होते हैं,
तथा उनसे भी अधिक ग्रंथ से प्राप्त ज्ञान को उपयोग में लानेवाले श्रेष्ठ होते हैं।