अहन्यहनि भूतानि गच्छन्तहि यमालयम ।
शेषा:स्थावरमिच्छ्न्ति,किमाश्चर्यमत:परम् ।।
- हम देख रहे हैं कि प्रतिदिन प्राणी मृत्यु के मुख में समा रहे है जो उत्पन्न हुए हैं वे मर रहे हैं फिर भी जो शेष हैं ।वे सोचते हैं कि हम सदा जीवित रहेंगे,इससे बढ़कर और क्या आश्चर्य की बात हो सकती है।