अनेक शास्त्रं बहु वेदितव्यम् अल्पश्च कालो बहवश्च विघ्ना: यत् सारभूतं तदुपासितव्यं हंसो यथा क्षीरमिवाम्भुमध्यात् ||
पढने के लिए बहुत शास्त्र हैं और ज्ञान अपरिमित है | अपने पास समय की कमी है और बाधाए बहुत है। जैसे हंस पानी मे से दूध निकाल लेता है उसी तरह उन शास्त्रों का सार समझ लेना चाहिए ।