"यस्य चाप्रियमिच्छेत् तस्य ब्रूयात् सदा प्रियम् ।
व्याधो मृगवधं कर्तुम् गीतं गायति सुस्वरम् ।।"
(चाणक्य-नीतिः--14.10)
अर्थः---शत्रु को सदैव भ्रम में रखना चाहिए । जो उसका अप्रिय करना चाहते हो तो उसके साथ सदा मधुर व्यवहार करो, उसके साथ मीठा बोलो । शिकारी जब हिरण का शिकार करता है तो मधुर गीत गाकर उसे रिझाता है, और जब वह निकट आ जाता है, तब वह उसे पकड लेता है ।
विमर्शः----जिसका अप्रिय करना हो, उसके साथ मधुर व्यवहार, मधुर आलाप आदि करके उसे अपने वश में कर लेना चाहिए और समय पाकर उसका नाश कर देना चाहिएः----
"वहेदमित्रं स्कन्धेन यावत् कालस्य पर्ययः।
ततः प्रत्यागते काले भिन्द्याद् घटमिवाश्मनि ।।"
(महाभारतः--आदिपर्व--139.21)
अर्थःः---जब तक समय अनुकूल न हो, तब तक शत्रु को अपने कन्धे पर ढोना चाहिए, उसका आदर सत्कार करना चाहिए, परन्तु जब समय अपने अनुकूल आ जाए, तब उसे उसी प्रकार नष्ट कर दे, जैसे घडे को पत्थर पर पटक कर फोड डालते हैं ।