पापान्निवारति योजयते हिताय, गुह्यं निगूहति गुणान्प्रकटिकरोति।
आपद्गतं च न जहाति ददाति काले, सन्मित्रलक्षमिदं प्रवदन्ति सन्तः।।
मित्र को पाप से हटाता है, पुण्यकर्म में युक्त करता है।
मित्र की गुप्त रखने योग्य बातों को तो छिपाता है परन्तु उसके गुणों को अन्यों के सामने प्रकट करता है।
संकटकाल में साथ नहीं छोड़ता और समय आने पर सहयोग करता है, वहीं सच्चा मित्र कहाता है।