जिस ब्रह्म को वाणी से नहीं कहा जा सकता पर जिससे यह वाणी प्रकाशित हो रही है। उस वाणी के प्रकाशक को ही तू ब्रह्म जान और उसी की उपासना कर, और उससे जो भिन्न है, वह उपासनीय नहीं।
जिसे मन का सामर्थ्य नहीं जान सकता पर जो मन को जानता है, उसी को तू ब्रह्म जान और उसी की उपासना कर, और उससे जो भिन्न है, वह उपासनीय नहीं।
जिसे नेत्रों से नहीं देख सकते पर जिस ब्रह्म के सामर्थ्य से नेत्र देखते हैं, उस नेत्रों के नेत्र को तू ब्रह्म जान और उसी की उपासना कर, और उन नेत्रों से दिखने योग्य जो यह जगत है वह उपासनीय नहीं।
जिस ब्रह्म को श्रोत्र सुन नहीं सकते पर जिसके सामर्थ्य से श्रोत्र(कान) सुनते हैं, उस श्रवण शक्ति के देने वाले को तू ब्रह्म जान और उसी की उपासना कर, और उससे जो भिन्न है, वह उपासनीय नहीं।
जो प्राणों से नहीं चलता पर जिसके सामर्थ्य से ये प्राण चलते हैं, उस प्राणों के प्राण को तू ब्रह्म जान और उसी की उपासना कर, और उससे जो भिन्न है, वह उपासनीय नहीं।