बीजापुर का सुलतान महाराज शिवाजी को फूटी आँखों से भी नहीं देखना चाहता था। इस काँटे को निकालने के लिए उसने अपने प्रधान सेनापति अफजल खाँ को पाँच हजार अश्वारोही सेना के साथ भेज दिया। अफजल रास्ते के गाँवों को लूटता खसोटता मंदिरों को गिरा-गिरा कर मस्जिदें बनाता हुआ शिवाजी के किले की तरफ बढ़ा।
सुल्तान ने हुक्म दिया था कि अगर शिवाजी को जिन्दा ही पकड़ कर मेरे सामने हाजिर किया जायगा तो मैं बहुत बड़ा इनाम दूँगा। इनाम के लालच से अफजल के मुँह में पानी भरआया था। वह किसी भी षड़यंत्र से शिवाजी को जिन्दा पकड़ना चाहता था। उसके लिये उसने एक युक्ति यह की कि अपने दल के एक ब्राह्मण दूत को शिवाजी के पास भेजा कि सेनापति तुम से सन्धि करना चाहते हैं, इसके लिये बुला रहे हैं।
दूत की बातें सुन कर शिवाजी सारा मर्म समझ गये और जैसे के साथ तैसा व्यवहार करने की व्यवस्था कर डाली। बीच बगल में एक शिविर खड़ा किया गया, जहाँ से दोनों दलों की सेनाएँ दूर थीं। मिलन के लिये यही स्थान नियत किया गया। अफजल ने अपने सिपाही छिपा रखे थे कि जैसे ही शिवाजी पास आवे उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाय।
शिवाजी ने हाथ में लोहे का गुप्त हथियार ‘बाघनख’ हाथ में छिपाया और मिलने के लिये चल दिये। खाली हाथ अकेले शिवाजी को आते हुए देख कर अफजल बहुत प्रसन्न हुआ और उनका स्वागत करने लगा। स्वागत पूरा भी न होने पाया था कि शिवाजी लपकते हुए उसके पास पहुँचे और पेट में बाघनख घुसेड़ कर अफजल खाँ की आंतें निकाल ली। छिपे हुए सिपाही जब पकड़ने के लिए दौड़े, तो उनको भी यमपुर पहुँचा दिया गया।
शिवाजी का सिद्धान्त था कि पापी को किसी भी नीति से उसके कर्मों का फल चखा दिया जाय, तो वह धर्म है। जैसे के साथ तैसा व्यवहार करने को वे अधर्म नहीं मानते थे।