बिना ज्ञान के ही धमंड में चूर रहने वाले, दरिद्र होकर भी बड़े-बड़े मंसूबे बांधने वाले, और बिना परिश्रम के ही धनवान बनने की इच्छा रखने वालों को, बुद्धिमान लोग मूर्ख समझते हैं।
जो अपना काम छोड़ कर, दूसरों के कर्त्तव्य पालन में लगा रहता हैं तथा मित्रों के साथ गलत कार्यों में संलग्न रहता है; वह मूर्ख कहलाता है।
जो न चाहनेवाली चीजों की इच्छा करता है, और चाहने वाली चीजों से मुह फेर लेता है, और अपने से शक्तिशाली लोगों से दुश्मनी मोल लेता है ; वह मूर्ख आत्मा कहलाता है।
जो शत्रु को मित्र बनाता है, और मित्र से ईर्ष्या - द्वेष करते हुए उसे दुःख पहुंचाता है तथा हमेशा बुरे कर्मों को ही आरम्भ करता है वह मूर्ख विचार वाला कहलाता है।
हे भरत कुल श्रेष्ट (ध्रितराष्ट्र), जो अपने कार्यों के भेद खोल देता है, और हर चीज में शक करता है, और जिन कार्यों को करने में कम समय लेना चाहिए उन्हें करने में अत्यधिक समय लगाता है; मूर्ख कहलाता है।
जो पितरों का श्राद्ध नहीं करता है और न ही देवताओं की पूजा- अर्चना करता है, और न ही सज्जनों से मित्रता करता है, वह मूर्ख विचारों वाला कहलाता है।
जो बिन बुलाये ही किसी सभा / स्थान पर पहुँच जाता है और बिना पूछे ही बोलता रहता है तथा अविश्वसनीय लोगों पर भी विश्वास कर लेता है, मूर्ख है।
जो स्वयं गलती करके भी आरोप दूसरों पर मढ़ देता है, और असमर्थ होते हुए भी क्रोधित हो जाता है, मूर्ख कहलाता है।
जो अपनी ताकतों और क्षमताओं को न पहचानते हुए भी धर्म और लाभ के विपरीत जाकर न पा सकने वाली वस्तु की कामना करता है, वह व्यक्ति इस संसार में मूर्ख कहलाता है।
हे राजन, जो किसी को अकारण ही दंड देता है और अज्ञानियों के प्रति भी श्रद्धा से भरा रहता है तथा कंजूसों और कृपणों का आश्रय लेता है, उसे मूढ़चित्त वाला कहा जाता है।