मदन मोहन मालवीय किसी अंग्रेजी अफसर से मिलने जा रहे थे। अभी थोड़ी ही दूर पहुँचे थे कि रास्ते में पड़ी हुई एक निर्धन स्त्री दिखाई दी। उसके पाँव में घाव हो गये थे। मक्खियाँ काट रही थीं इससे उसे असहाय वेदना हो रही थी।
मालवीय जी ने अपनी घोड़ा गाड़ी रुकवाई। स्वयं उतरे और उस स्त्री का उठाकर गाड़ी में बैठा कर अस्पताल की ओर चल पड़े। एक युवक ने यह देखा तो दौड़ा-दौड़ा आया और बोला पण्डित जी इस स्त्री को लाइये मैं अस्पताल पहुँचा देता हूँ आप किसी आवश्यक कार्य में जा रहे है वहाँ जाइये। आपका समय ज्यादा मूल्यवान हैं।
“मालवीय जी ने कहाँ यह कार्य ज्यादा आवश्यक है मैं उसी के लिये जिन्दा हूँ” यह कहकर उन्होंने गाड़ी आगे बढ़वाई और उस स्त्री को स्वयं अस्पताल पहुँचा कर आये।