'योगदर्शन' के तीसरे पाद में ऐसी कितनी ही सिद्धियों का वर्णन आता है जिन्हें योगी अपने शरीर के भीतर या शरीर से बाहर विभिन्न स्थानों पर ध्यान जमाने से प्राप्त अर सकता है।महर्षि पतञ्जलि कहते हैं कि धारणा,ध्यान और समाधि,तीनों के एक स्थान पर मिल जाने का नाम संयम है।तब वे कहते हैं कि धर्म,लक्षण,अवस्था और रुप में संयम करने से योगी को भूत और भविष्यत् की सब बातें ज्ञात हो जाती हैं।शब्द और अर्थ में संयम करने से पशु,पक्षी,कीट,पतंग-हर किसी की भाषा उसे समझ आने लगती है।संस्कारों का साक्षात्कार करने से पिछले जन्म का ज्ञान हो जाता है।दूसरों के बाहर से ज्ञात होने वाले ज्ञान में संयम करने से उसके मन की छुपी हुई बातें ज्ञात होने लगती हैं।शरीर के रुप में संयम करने से योगी अपने सामने बैठे या खड़े हुए लोगों के लिए भी अदृश्य हो जाता है।वे उसे देख नहीं सकते।कर्म में संयम करने से मृत्यु का ज्ञान हो जाता है।मित्रता में संयम करने से जिसके साथ मित्रता की भावना हो ,उसके जैसी शक्ति मिल जाती है।शक्ति में संयम करने से उसकी शक्ति मिल जाती है जिसकी शक्ति में संयम किया जाये,अर्थात् योगी यदि चाहे तो हाथी की शक्ति प्राप्त कर सकता है,अजगर की शक्ति प्राप्त कर सकता है।ज्योतिवाली प्रवृत्ति में संयम करने से लाखों-करोड़ों मील दूर की वस्तुएँ दिखाई देने लगती हैं।सूर्य में संयम करने से सारे संसार का ज्ञान हो जाता है।चन्द्रमा में संयम करने से सारे संसार का ज्ञान हो जाता है।कण्ठ में संयम करने से भूख और प्यास मिट जाती है।मूर्धा की ज्योति में संयम करने से सिद्ध पुरुषों के दर्शन होने लगते हैं।चित्त और शरीर दोनों के बन्धन का कारण कर्म है।उसे ढीला करने से,उसके ढीलेपन में संयम करने से योगी सूक्ष्म शरीर से दूसरों के शरीर में प्रविष्ट हो जाता है।
उदान वायु में संयम करने से योगी पानी के ऊपर चलने लगता है,दलदल में डूबता नहीं,काँटे उसे चुभते नहीं।समान वायु में संयम करने से उसके भीतर प्रकाश जागता है और उसके चारों और फैलने लगता है।शरीर और आकाश का जो सम्बन्ध है उसमें संयम करने से वह आकाश में उड़ने लगता है।
इस प्रकार उन आठ सिद्धियों को भी योगी प्राप्त करता है,जिनको आप कई बार सुनते हैं।
ये सिद्धियाँ हैं:-
(1) अणिमा-इतना छोटा हो जाना कि कोई देख न सके।
(2) लघिमा-इतना हल्का हो जाना कि वायु में उड़ता फिरे।
(3) महिमा-इतना बड़ा हो जाना कि अँगुली से चाँद को छू ले।
(4) गरिमा-इतना भारी हो जाना कि कोई हिला न सके।
(5) प्राप्ति-प्रत्येक वस्तु का प्राप्त हो जाना।
(6) प्राकाम्य-प्रत्येक इच्छा का बिना प्रयत्न पूरा हो जाना।
(7) ईशित्व-आकाश,अग्नि,वायु,जल और पृथिवी आदि को अपनी इच्छानुसार चलाने की शक्ति मिल जाना।
ये और इसी प्रकार की कितनी ही अन्य सिद्धियाँ योगी उन साधनों से प्राप्त कर सकता है जिनका महर्षि पतञ्जलि ने वर्णन किया है।
इन सबका वर्णन सुनकर आपके मुख में पानी आने लगा होगा ।परन्तु सुनो ! इन। सब सिद्धियों का वर्णन करते हुए भी महर्षि पतञ्जलि कहते हैं -
ते समाधावपसर्गा व्युत्थाने सिद्धयः।
"ये सब -की-सब सिद्धियाँ समाधि का,ईश्वर-प्राप्ति का विघ्न हैं।प्रदर्शन के मार्ग में रुकावटें हैं।केवल सांसारिक सफलता है यह,ईश्वर-प्राप्ति का मार्ग नहीं।"
योग का मुख्य उद्देश्य ईश्वर प्राप्ति है।