पुनरेहि वाचस्पते देवेन मनसा सह ।
वसोष्पते नि रमय मय्येवास्तु मयि श्रुतम् ॥
भावार्थ -- हे वाचस्पते ! धनपते ! आप हम सब पर कृपा करो , जो-जो हमें वाञ्छित फल हैं दान करो , हमारे हृदय में सदा अभिव्यक्त होकर हमें आनन्द में मग्न करो । जैसे कृपालु पिता अपने प्यारे बालक को वाञ्छित फल-फूल देकर क्रीड़ा कराता हुआ प्रसन्न रखता है । ऐसे ही आप हमें अभिलषित फल देकर , हमारी यह प्रार्थना अवश्य स्वीकार करें कि , जो वेद , शास्त्र और महात्माओं के सदुपदेशों को हम सुनें , वे कभी विस्मरण न हों