बचपन में अख़बार बेचने से लेकर समूचे विश्व में वैज्ञानिक और राष्ट्रपति के रूप में देश का नाम रौशन करने वाले कलाम साहब ने हमेशा सभीको प्रेरणा दी। राष्ट्रपति भवन में पहुंचने वाले एकमात्र वैज्ञानिक डॉक्टर कलाम साहब असल जिंदगी के हीरो थे। मैं जब भी उनके बारे में सोचता हूँ तो भावविभोर हो जाता हूँ।
भारतीय संस्कृति एवं आध्यात्म से तो उनका अगाध प्रेम सर्वविदित ही है। इसीलिए उन्होंने अपनी आत्मकथा, 'अग्नि के पंख' का प्रारम्भ अथर्ववेद के इस मन्त्र से किया था। वेदों के प्रति वे कितनी श्रद्धा एवं भक्ति से भरे थे यह पता चलता है।
"उतेयं भूमिर्वरुणस्य राज्ञ उतासौ द्यौर्बृहती दूरेअन्ता।
उतो समुद्रौ वरुणस्य कुक्षी उतास्मिन्नल्प उदके निलीनः। "
-अथर्ववेद 4.16.3
" सबका अधिष्ठान बनी हुई यह पृथ्वी उस पाप निवारक प्रभु वरुण के वश में है। और वह दूर से दूर व समीप से समीप स्थित विशाल आकाश भी उस प्रभु के ही वश में है। और यह पूर्व और पश्चिम का जलसमुद्र और अकाशरूपी समुद्र उस राजा वरुण की दो कुक्षियों के समान है। पर फिर भी आश्चर्य यह कि वही वरुण छोटे छोटे तालाबों के पानी की छोटी बूंदों में भी अंतर्निहितरूपेण होकर गुप्त रूप से रह रहे हैं। "
कृतज्ञ राष्ट्र माँ भारती के प्यारे बेटे को उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर श्रद्धासुमन अर्पित करता है।
यह वेदमन्त्र उनको अत्यधिक प्रिय रहा होगा, इसलिए इसी मन्त्रपुष्प से उनको विनम्र श्रद्धांजलि....