अतः हर जगह उसे यही जवाब मिलता था कि आपकी फाइल फलॉ अधिकारी के पास है । इसी बीच अर्जुन किसी दलाल के संपर्क में आया तो उसने बताया कि आपको अनापत्ति प्रमाण पत्र देने सारे अधिकारी तैय्यार बैठे है पर जब तक आप उनकी सेवा नहीं करेंगें प्रमाण पत्र आपको इस जन्म में तो नहीं मिल सकता । सरकारी दफ्तरों में " पचास लाख " दान दक्षिणा देने के बाद लगभग तीन साल में अर्जुन को निर्माण हेतु प्रमाण पत्र मिल पाया । इसके साथ ही अर्जुन ने इस नये टेक्नोलॉजी को " पेटेन्ट " कराने हेतु भी आवेदन दिया था जो अभी तक पेंडिंग था । ‘ ‘ अनापत्ति प्रमाण पत्र " हासिल करके अर्जुन ने " फैक्ट्री कमीशन " का कार्य प्रारंभ करवाया । बहुत सारी बड़ी - बड़ी महंगी मशीनों का आर्डर दिया और सिविल निर्माण की गति भी तेज़ हो गई । अर्जुन को उम्मीद थी कि अगले छः महीनों में सका प्रोडक्शन प्रारंभ हो जायेगा और उसका " प्राडक्ट " हाथों - हाथ बिकेगा । दो साल में उसकी कंपनी सबमर्सिबल पम्प निर्माण के क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी हो जायेगी । अर्जन की सारी जमा पूँजी समाप्त हो चुकी थी । उसने विभिन्न बैंकों से बीस करोड़ रूपयों का लोन भी लिया था ।
एक दिन अचानक अर्जुन की नज़र एक विज्ञापन पर पड़ी । "एग्रीकल्चरल पम्प " के क्षेत्र में क्रांति । पानी की कमी में ऑटोमेटिक कट - अप होने वाला पम्प अब आपके शहर में भी उपलब्ध । नीचे लिखा था हरियाणा के एग्रो - पॉवर कंपनी ने ऐसा पम्प ईजाद किया है , जो वेल में पानी कम होने से अपने आप बंद हो जायेगा । ऐसी स्थिति में पम्प जलने का नुकसान अब किसी को भी नहीं उठाना पड़ेगा । साथ ही ये भी लिखा था उपरोक्त टेक्नोलॉजी हरियाणा एग्रो कंपनी द्वारा ईजाद की गयी हौ और ये टैक्नोलॉजी उनके नाम से अन्तराष्ट्रीय स्तर पर पेटेन्ट है । कोई भी शख्स या कंपनी बिना हमसे अनुमति लिये ऐसे पम्प का निर्माण नहीं कर सकता वरना उन पर पेटेन्ट एक्ट के अनुसार कानूनी कार्यवाही किया जाएगा।
इस विज्ञापन को पढ़ कर अर्जुन के पैरों तले जमीन खिसक गई । तीस करोड़ की लागत से बनी फैक्ट्री शून्य में तबदील हो चुकी थी । बैंकों की जिम्मेदारी तो सर पर थी ही । अर्जुन को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था ये कैसी स्थिति आ गई है । अब सब कुछ छोड़ छाड़ यहाँ से भाग जाने या फिर आत्महत्या कर लेने से ही इस कठिनाई से मुक्ति पाई जा सकती है । कहीं से मदद का मिलने की उम्मीद कोई गुंजाइश तो थी नहीं । कुछ दिनों तक इधर - उधर भटकने के बाद अर्जुन हताश होकर खुद को घर में कैद कर लिया । चौबीस घंटे वो बिस्तर में लेटे - लेटे या कुर्सी पर बैठे -बैठे सोचता था कि उसको यहाँ रहने पर जेल की हवा खानी पड़ सकती है । अचानक एक दिन • आस्ट्रेलिया से उसके एक दोस्त राडरिक्स का फोन आया कि यहाँ एक मल्टीनेशनल कंपनी का विज्ञापन आया है । उन्हें आस्ट्रेलिया में प्रारंभ होने वाली फैक्ट्री के लिये एक जनरल मैनेजर चाहिए । इस पद हेतु वे ही संपर्क करें जो कम्प्यूटर साईन्स में इन्जीनियर हो और जिन्हें " साफ्टवेयर निर्माण क्षेत्र में कार्य का कम से कम बीस साल का अनुभव हो । सैलरी अच्छी खासी है । मैंने सोचा इस पद के लिये तुम सबसे उचित हो । । मेरी मानों तो तुरन्त आस्ट्रेलिया चले आओ ।
अर्जुन को अपनी इस कठिनाईयों से भरी जिंदगी से निकलने के लिये ये सबसे सही रास्ता लगा । उसने तत्काल अपनी सारी जानकारी कंपनी द्वारा दिये " इमेल एड्रेस " में सेंड कर दिया । पन्द्रह दिनों बाद ही कंपनी से इंटरव्यूह कॉल आ गया कि आप पच्चीस सितम्बर को प्रातः ग्यारह बजे हमारे कार्पोरेट ऑफिस मेलबोर्न में ज़रूर पहुँच जाये । अर्जुन तय तारीख से एक सप्ताह पूर्व ही आस्ट्रेलिया पहुँच गया और वहाँ राडरिक्स के घर में ठहर गया । पच्चीस सितम्बर को अर्जुन प्रातः दस बजे कंपनी के कारपोरेट ऑफिस पहुँच गये । एक सप्ताह के अंदर अर्जुन को ज्वाइन करने का आदेश मिला । अर्जुन को कंपनी में काम करते चार महीने कब गुजर गये पता ही नहीं चला । आजकल वो बेहद खुश रहता और बड़ी ही लगन से ऑफिस में काम करता । जिसका परिणाम भी कंपनी के एकाउन्ट्स में झलकने लगा । अपनी सारी परेशानियों को वह भूल चुका था । अब सारी जिंदगी आस्ट्रेलिया में ही रहने का उसने मन बना लिया था ।
एक दिन कंपनी के भारत स्थित मुख्यालय से उसे एक ई मेल प्राप्त हुआ कि कंपनी के वाइस प्रेसीडेन्ट मि.सोनी दिनांक 25 मार्च को वहाँ पहुँच रहे हैं । उन्हें एयर पोर्ट से रिसिव करना होगा व फैक्ट्री के चार महीनों का लेखा जोखा जरूरी कागजात के साथ प्रस्तुत करना होगा । तैयारी करके रखो । वहाँ का काम देखकर उन्हें पाँचवें दिन जर्मनी फैक्टी का हिसाब देखने बर्लिन जाना है । अर्जुन तय समय पर एयर पोर्ट पहुँच गया। प्लेन को आने में अभी एक घंटा था ।
क्रमश: