रेट रेस ( कहानी अंतिम क़िश्त )
अर्जुन आज तनाव में था पता नहीं साहब का नेचर कैसा है । उन्हें किस तरह से टेकल किया जाय कि यहाँ से खुशी - खुशी वापस जायें । यह सब सोचते - सोचते कब सात बज गये पता भी नहीं चला । ध्यान तो तब टूटा जब माईक से प्लेन के आ जाने की घोषणा हुई । अर्जुन कंपनी का पोस्टर लेकर एक्जिट पर खड़े हो गया । बोर्ड पर लिखा था " We Welcome our Vise President Omega corporation " फ़्लाइट को आये आधा घंटा से ज्यादा हो गया था । अधिकांश यात्री बाहर जा चुके थे । सबसे अन्त में आने वाला यात्री सफ़ारी सूट पहने हुआ था , हाथों में एक ब्रीफकेस था । वो उसके पास आकर रूक गया और अर्जुन की ओर हाथ बढ़ाकर कहा आई एम सोनी फ्राम ओमेगा । उनकी आवाज सुनकर अर्जुन एक बारगी चौंक गया ।
ये आवाज़ जानी पहचानी लगी । लेकिन दूसरे पल ही लगा ये शायद मेरा भ्रम है। अर्जुन ने कहा आइये सर होटल चलें वहाँ आप कुछ देर आराम कर लिजिए पर वाइस प्रेसीडेन्ट सोनी साहब ने कहा । पहले मैं आफिस जाउँगा । वहाँ से कुछ जरूरी जानकारी लेने के बाद ही होटल जाऊँगा ।
दोनों पन्द्रह मिनटों में ही ओमेगा कार्पोरेशन के ऑफिस पहुँच गये । वहाँ स्वागत की औपचारिकता पूरी होते ही सोनी साहब अर्जुन के ही चेम्बर में बैठ गये और कंपनी की हाई टेक - कारों के निर्माण की गति , उनकी बिक्री , कारों में ऑटोमेटिक ड्राईव हेतु बनाये गये साफ़्टवेयर के इन्सटॉलेशन तथा उसके रिजल्ट पर गहन चर्चा करने लगे । साथ ही साथ आवश्यक फाइलों पर दस्तखत भी करते गये ।
छः घंटे लगातार काम करने के बाद वाइस प्रेसीडेन्ट साहब ने अर्जुन से कहा शुरूवात के लिये इतना काफ़ी है चलो अब होटल चलें । "अर्जुन ने तुरन्त उनके ब्रीफ़केस को उठाने के लिये हाथ बढ़ाया तो वाइस प्रेसीडेन्ट ने अर्जुन को मना करते हुए कहा कि अपना सामान मैं खुद उठाऊंगा , चलो चलें । होटल रेसिडेन्सी " एक सेवन स्टार होटल था जिसके सोलवें माले पर सोनी साहब का सूयट् बुक था । लिफ्ट द्वारा वेटर की अगवानी में वाइस प्रेसीडेन्ट साहब और अर्जुन सुयट् में पहुॅचे और जब साहब ने अपना सामान कमरे में व्यस्थित रख लिया तो अर्जुन ने कहा - " सर " अब आप आराम करें । मैं बाहर लाऊंज में बैठा हूँ ।
अर्जुन जैसे ही वापस जाने के लिये मुड़ा पीछे से आवाज़ आयी " अर्जुन साहब " क्या आपने मुझे पहचाना नहीं । अर्जुन के पैर ठिठक गये तुरंत पलट कर कहा " सर आप कहीं दुर्ग वाले नकुल सोनी तो नहीं हैं । " जवाब मिला - " अब तो मुझे साहब मत कहो " हां , मैं तुम्हारे बचपन का दोस्त नकुल हूँ । फिर तो दोनों एक - दूसरे के गले लगकर लगभग आधे घंटे तक खुशी के आँसू बहाते रहे ।
नकुल ने पूछा मेरी जानकारी के तहत् अर्जुन तुम तो अमेरिका में थे । आस्ट्रेलिया कब से आ गये । अर्जुन ने अपनी पूरी राम कहानी सुनाते हुए कहा मेरी जिन्दगी तो एक दरवेश की ज़िन्दगी हो चुकी है ।अब तक मुझे चैन से कहीं ठहराव नहीं मिल पाया ।
" तुम अपनी सुनाओ । नकुल तुम कैसे इतने ऊँचे मुकाम तक पहुँचे ? क्या - क्या किया तुमने इन बीस सालों में ? क्या बी.ई . के बाद , एम.ई . और पी.एच.डी. भी कर लिया तुमने ? "
नकुल ने कहा ऐसी कोई बात नहीं है । मैंने तो बी.ई. के बाद चार महीने के अंदर ही ओमेगा कार्पोरेशन में जूनियर इन्जीनियर का पद ज्वाइन कर लिया था । धीरे - धीरे बीस सालों में इस पद पर पहुँचा हूँ । अर्जुन ने कहा- तम्हारी सफलता देख मुझे बेहद खुशी हो रही है , साथ जलन भी हो रही है कि मैं आईआईटियन होकर भी कभी एक लेवल से ऊपर नहीं पहुँच पाया और तुम साधारण कॉलेज से पढ़ाई करने के बावजूद इतनी बड़ी कंपनी के कर्ता - धर्ता बन गये । मेरे लिये तो ये एक गहन विशलेषण की बात है ।
नकुल ने कहा - मेरे हिसाब से इसमें गहन विशलेषण वाली कोई बात नहीं है । तुम तो जानते हो मुझे स्कूटर से खेलने का बचपन से शौक था । बचपन से ही मैं स्कूटर के इंजन को उतार लेता था । शहर के हर कार के मॉडल का नाम और बनाने वाली कंपनी का नाम मुझे याद रहता था । मुझको बैंगलुरु के नंबर वन कॉलेज़ में सिविल ब्राँच में एडमिशन मिल रहा था पर चूँकि मेरी रूचि ऑटोमोबाइल में थी ,अतः मैंने वहाँ एडमिशन लेना उचित नहीं समझा और दुर्ग के ही बी.आई.टी. कॉलेज में आटोमोबाइल का कोर्स ज्वाइन कर लिया । पढ़ाई खत्म करने के तुरंत बाद ओमेगा कार्पोरेशन में आटोमोबाइल इन्जीनियर का पद ज्वाइन कर लिया । हालाँकि उस समय सैलरी बहुत कम थी पर काम मेरे मन मुताबिक था । साथ ही ज्यादा पैसों के आफर से प्रभावित होकर कभी दूसरी कंपनी में शिफ्ट नहीं हुआ । प्रारंभ से आज तक इस कंपनी को अपनी सेवायें दे रहा हूँ । रेट रेस में मैंने कभी भाग नहीं लिया । रेट - रेस से मैं नफरत करता हूँ और डरता भी हूँ ।
आओ अर्जुन बैठो , दो पैग पीकर खाना खाते हैं फिर शाम कोई पिक्चर देखकर रात को आराम से सोयेंगे ।
होटल से विदा होते वक़्त नकुल ने अर्जुन से कहा " अर्जुन , मेरी बर्लिन की टिकिट को कल के लिये प्रि - पोन्ड करवा लो । कल ही सुबह ही मैं निकल जाऊँगा । जब तुम यहाँ कंपनी के मुखिया हो तो मुझे किसी बात की चिन्ता नहीं । तुम हर निर्णय लेने में सक्षम हो और स्वतंत्र भी । तुम्हारे हाथों *ओमेगा कार्पोरेशन * आस्ट्रेलिया में भी अपना झंडा गाड़ेगा ऐसा मुझे विश्वास है।
गुँडबाय , खुदा हाफ़िज ,अर्जुन ।
( समाप्त)