कभी बचपन में बोला था तूने
कब शादी करोगी मेरी
हंसकर बोला मैंने
बड़े शौक से
बड़े धूमधाम से
जब करनी होगी तब होगी
बचपना था तुम्हारा हंसी थी मेरी
आज खुशी है तेरी और मजबूरी मेरी
तू अब बच्ची न थी और न ही जिद्दी
पर शायद जिद्दी मैं हो गयी थी
एक और नवजीवन था
एक और माँ का अपनापन था
प्यार तो अब भी उतना ही था
पर एकाधिकार नही था
अनायास ही सारा जीवन
और
तेरा प्यारा बचपन
आँखों के सामने
मानो दौड़ने सा लगता है
तेरी वो प्यारी हँसी चेहरे पर
मुस्कान
आँखों में पानी ले आती है
जब भी लाड़ली मेरी मुझसे पूछती है
माँ याद मेरी आती है
याद बेटी हर दफा हर पल सताती है
ये हरयाली न अब मुझको ही भाती है
तू जो तोड़ लाती थी
फूलों को कहीं चुनके
की
अब फूलों से न वो खुसबू ही आती है
क्या कर खुसी मिली तुझको विदा करके
की मेरी हर सांस बस तुझको बुलाती है
पर है ये जो नियम सृस्टि का
उसको है वहन करना
पर इस दिल के कण-कण में
होता तेरा होना/