प्रेम की परिभाषा
इतनी आसान कहाँ
उपमाएं कम पर जाएं
जो माँ की बात हो
अकूत,विस्तृत,अपरिसीम
ये शब्द कम पड़ जाएँ
जो ममता की बात हो
प्रेम कभी महसूस कर आता है
प्रेम कभी साथ जीकर आता है
उस प्रेम की क्या बात करूँ
जो जीवन देकर आता है
एक प्रतिबिम्ब सा बनता है
माँ की उन आँखों में
जो है भी और नहीं भी
पर जीता उसकी साँसों में
वेदना परस्पर प्रेम
दृश्य मनोहर वो होता है
जब उस रोती माँ के हाँथों में
एक नवजीवन जब रोता है
दृश्य वो विशाल
पर
अब उसकी छोटी दुनिया होती है
उस नन्हे बालक के खुशियों में
वो खुशियां ढूंढा करती है
झंकृत करती जीवन उसका
अपने मन-वीणा के तारों से
जो और न समझे ,वो गुत्थी सुलझी
माँ पढ़ती उसके आँखों से
चित्र उकेरती है जो वो
छोटा सा उसका साम्रज्य है
वो रानी है आभास नहीं
पर नन्हा उसका राजकुमार है/