लाल बहादुर शास्त्री ने कहा था"आज़ादी की रक्षा करना केवल सैनिकों का काम नहीं है,पुरे देश को मज़बूत होना होगा/"कितनी तथ्यता है इस विचार में/पर सोचने की बात है सैनिकों को इतनी मज़बूती कहाँ से मिलती है/देश प्रेम तो है और वो आत्मबल जो वो वीरांगनाएं प्रदान करती हैं जो उन्हें और भी मज़बूत करता है/उनका जीवन भी तपस्या होता है/पर जो सैनिक के आने का सन्देश होता है तो मानो तपस्या का फल मिल गया/उनका प्रेम और भी निष्छल और भी आत्मीय हो जाता है........
सजल हुई जो आँखें तेरी
भागी दौड़ी भरी दुपहरी
खबर हुई सालों पर पिया आये थे
सालों का विनोद संग लाये थे।
धड़क रहा था दिल व मन
अहा!कितना स्वछन्द यौवन
घर में जो किलकारी खेल रही
खत्म हुई इंतज़ार की वो घड़ी।
शर्माना उसने भुला था
माना लोगों का रेला था
वो बस दौड़ी आगे जायेगी
जो पिया मिले ठहर जायेगी।
पर मन में थोडा असमंजस था
क्या बोलेगी संकोच हुआ
फिर सोचा थोडा रुठ वो जायेगी
प्रेम रूप फिर जी पायेगी।
पिया जरूर मनाएंगे
हाँ-हाँ कितना तड़पायेंगे
पर तीव्र गति क्यों ठहर गयी
क्या हुआ घटा घनघोर हुई।
प्रण लिया था न कुछ बोलेगी
पर क्रंदन ही वो बोली थी
हाँ पिया लौट वापस आये थे
पर पोशाक तिरंगे की लाये थे।
वो लिपट गयी और सिसक पड़ी
कहें क्या उससे वे सोच रहे
पर भूल गए की वो पत्नी वीर की
कीमत कितनी आँखों के नीर की।
हाँ,थोड़ी बेहोशी थी
पर जाग उठी वीरांगना वो ऐसी थी
फिर पिया को किया सलाम आखरी
धन्य तू भारत की नारी।
-युगेश कुमार
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