ठहर जाने दो पानी की इन छींटों को चेहरे पर
कि ये मुझे ऐसे ही अच्छे लगते हैं
इनका गिरना,फिसलना,भटकना
मेरी तेरी आँख मिचौली से लगते हैं
ये बूँदें जो तुम्हारे लाली को समेटते हुए
उसके भार से गिरने को आमद हों
बता देना मुझे,मैं हथेली पर रख लूँगा उन्हें
क्योंकि एहसास होगा उनमें तुम्हारा
एक ठंडक सी होगी जो तुम महसूस न कर सको
पर मुझे इल्म है उसका,उस सुकून का
जो ज़िद पर आ जाए वो बूँदें
और ठहर जाना चाहें रुकसार पर तुम्हारे
थोड़ी सी रहमत करना उन पर
मैंने सुना है सीपियों में मोती बनते हैं
आज देखना चाहता हुँ
सुना है बारिश के बाद हल्की सी धूप होती है
डर है मुझे कहीं चुरा न ले जाये ये सूरज
इन मोतियों को फिर से कोई नई माला गूँथने
सो उठा लिया मैंने उन मोतियों को अपने होंठों से
कि अब वो मेरा हिस्सा थी जिनमें तेरा हिस्सा था
और मुस्कुरा उठी तुम मेरी नासमझी पर
अचानक फिर से तुम्हारे चेहरे पर एक बूँद आ टिकी
और लगा दिए तुमने अपने गाल मेरे गालों पर
और ठहर गयी वो बूँद
अब मुझे धूप का इंतज़ार था
मोती के माले जो गूँथवाने थे सूरज से
जिसमे तेरा हिस्सा था,जिसमे मेरा हिस्सा था/
© युगेश
बातें कुछ अनकही सी...........: ठहर जाने दो पानी की इन छींटों को