धीमे-धीमे जो उजले-काले बादलों में
पड़ती है
सूरज की लालिमा
वैसे धीरे-धीरे मेरे दिल मे उतरता है रंग तेरा
जिसके बहुतेरे रूप हैं
हर एक खास और हर एक बाकियों से जुदा
और बरस पड़ते हैं
उस साल की पहली बारिश की तरह
फर्क बस ये है वो बारिश धरती को भिंगोती है
तो दूसरी मेरे रूह को
जो झर-झर कर आती हैं आसमाँ के रास्ते वो बूंदें
और इंतज़ार होता है धरा को
वैसे ही तुम्हारे टोह में तो मैं भी रहता हूँ
तुम्हारे कदमों की दस्तक वो बूंदें ही तो हैं
वो पायल की आवाज़ बूंदों की झर-झर ही तो हैं
जो बूंदें पड़ती हैं मिट्टी में
उसकी महक कितनी सौंधी होती है ना
आज मैंने तुम्हारी खुशबू चुराने की कोशिश की
पता है महक उतनी ही सौंधी थी/
बातें कुछ अनकही सी...........: धीमे-धीमे जो उजले-काले बादलों में