कुछ बात होंठ पर टीके रहे
कुछ घबराहट थी सो सिले रहे
होंठो पे रखे ये धीर-अधीर
बस स्वर-सुधा को तरस रहे/
भ्रमजाल-जाल ये यौवन का
ये कू-कू कोयल सी बोली
अगर यही मुहूर्त है मिलने का
तो क्यूँ ना हर दिन आए होली/
ये तेरे चेहरे की लालिमा
क्या कोई रंग भा पाएगा
पर बस एक स्पर्श के मोह मे
ये हस्त स्वयं बढ़ जाएगा/
धरती का ऐश्वर्य सना
तेरे इस कोमल तन मे
निहार सकूँ मई तुझको जिभर
चाह उठी बस इस दिल मे/
हंसते है वो लोग मुझपर
कहते जाने किससे बातें करता
बस बैठ अकेला कहीं भी मैं
दूर तलक तुझको तकता/
हौले-हौले ये जो बयार
मेरे सामने से गुजर जाती है
वैसी चंचलता तो मानो
केवल तुझ पर भाती है/
आभास होता है मुझको की
तूने आँचल लहराया होगा
ये हवा का झोंका बस
तुझको छू कर आया होगा/
आगे को मैं बढ़ा चला
पतवार संभाले जाने कोई
बिन मांझी ये नौका मेरी
ढूंढे तुझको या मंज़िल कोई/
जो पड़े कदम प्रेम-तट पर
भावों के कंकर संजोए
एहसास वो प्यारा गहरा होगा
जो दिल धड़के और आँखें रोए/
और लब से लब सील जाएँगे
आँखें ही सब कह जाएँगी
बातों की भाषा का औचित्य बस
वहीं ख़त्म हो जाएगा/
और बस एक स्पर्श के मोह में
ये हस्त स्वयं बढ़ जाएगा
और बस एक स्पर्श के मोह में
ये हस्त स्वयं बढ़ जाएगा/
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