इश्क़ ऐसा हुआ कि मैं खो गया
लोगों ने ढूँढा पर मिला नहीं
इश्क़ की चाशनी को तेरे लबों से उठाया
मिठास ऐसी की अब तक घुला नहीं
तूने नाक पर नथुनी को सजा ऐसे दिया
चाँद को खुले आसमान में जैसे देखा नहीं
ये जो आँखों के तले जो काजल तूने लगाया
अँधेरे में ऐसा डूबा की उठा नहीं
तेरी चूड़ियों की खनक से एहसास यूँ हो आया
कि इस शहर को शोर चाइए खामोशी नहीं
छोड़ दो कुछ माँगना खुदा से,न करो वक़्त जाया
हम तो इसी में लगे हैं,क्या इस से वाकिफ नहीं
ये जो सुगबुगाहट है शहर में,ये कौन आया
चर्चे तेरे ही होंगे,ये कोई और नहीं
©युगेश
बातें कुछ अनकही सी...........: चर्चे तेरे ही होंगे,ये कोई और नहीं