गुस्ताख़ रही मेरी नज़रें
तो शिकायत आपको रही /
भला आपके हुस्न के फिदरत कि
शिकायत हमने की है कभी/
कि बड़ी तल्क है आपकी नज़रें
गिरती हैं शोले बनकर
और दिल कहता है शिकायत नहीं होती /
कि इस छरहरी काया के फाँस
से छुटना आसन नही होता /
पर फिर भी देखो तो हमारा धैर्य
कि शिकायत नहीं होती/ इ
तना होता तो शायद झेल भी जाता
पर तेरी मीठी बोली रातों को
सोने नहीं देती/
पर फिर भी दिल कहता है
शिकायत नहीं होती/
तेरा हौले-हौले चलना
साँसों को रोक सा देता है/
और कमबख्त दिल कहता है
काश! साँसों की ज़रूरत न होती/
पर फिर भी मुझे शिकायत न होती/
और माफ़ करना अगर
गुस्ताख रही मेरी नज़रें
पर क्या करूँ तुम्हे देख कर
ये भी जवान हो उठती हैं/
दुरुस्त कर देना चाहता हूँ एक बात
की खुदा को मानने वाला हूँ
और उसकी कारीगिरी की इनायत
न करने की हिमाकत न होती/
बस इस कारण ही तू लाख शिकायत कर ले
पर इस दिल को तुझसे शिकायत न होती /