1 दिसम्बर 2021
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<div>अपने आप को लड़की सोचती हो कि नहीं? इस तरह लड़कों की तरह भागा-दौड़ी करना अच्छी बात नहीं है बेटा।
<div>पंचायती चुनाव आने वाले थे। उससे पहले स्कूल का भवन-निर्माण पूरे जोर-शोर से करवाया जा रहा था। हाल
<div align="left"><p dir="ltr"> दीदी के घर जा कर आती हूॅं। पता है मां! दीदी सिर्फ हमें पढ
श्रेष्ठा आज स्कूल क्यों नहीं आई? प्रज्ञा दीदी तेरे लिए पूछ रही थी, मोहिनी ने कहा।<div><br></div><div
<div>प्रज्ञा! मैंने तुमसे जो-जो कागजात लाने को कहा था तुम लेकर आई हो ना?</div><div><br></div><div>ज़
क्या बात है श्रेष्ठा, तुम बुझी-बुझी सी क्यों दिखाई दे रही हो? तबीयत खराब है क्या तुम्हारी प्रज्ञा नह
<div>श्रेष्ठा अपने आप को कमजोर महसूस करने लगी, तन से नहीं मन से। जिस मां पर उसे इतना विश्वास था उसका
जिस बात का प्रज्ञा को डर था वही हुआ। आज 3 दिन हो गए श्रेष्ठा स्कूल नहीं आई।<div>प्रज्ञा ने मोहनी से
<div>प्रज्ञा दीदी कल मुझे स्कूल से छुट्टी चाहिए।</div><div><br></div><div>क्यों क्या हुआ? कोई जरूरी
मां बेटी में पनपने वाली गलतफहमी दूर हो चुकी थी। रिश्ते पुनः पहले की तरह सरल और साफ प्रतीत हो रहे थे।
<div>श्रेष्ठा के घर से शहनाई की आवाज गूंजने लगी। मां-बाप ने अपने हैसियत के हिसाब से शादी की व्यवस्था
<div>यकायक बाहर की तरफ से आने वाले बाजे और शोर की आवाज ने, प्रज्ञा को यह एहसास करवा दिया कि बारात द्
प्रज्ञा का दिल बैठ गया। कैसे देख पाएगी प्रज्ञा, श्रेष्ठा को अपने से दूर जाते हुए। नहीं नहीं, वह उसकी
<p>अपनी नियत स्वभाव के अनुसार श्रेष्ठा ने विवाह के दूसरे दिन से ही ससुराल की पूरी जिम्मेदारी संभाल ल
<p>श्रेष्ठा बहुत अधिक पशोपेश में थी। क्या करें, क्या ना करें? यह सब उसके समझ से परे था, प्रज्ञा दीदी
श्रेष्ठा ससुराल में बड़े ही कुशलता से हर काम को निपटा लेती।<div>एक दिन उसने देखा रविवारीय पत्रिका मे
श्रेष्ठा ने, ना चाहते हुए भी प्रज्ञा की जबरदस्ती के कारण उसे, वह सब कुछ कहना पड़ा जो वह नहीं चाहती थ
श्रेष्ठा ने तय किया कि वह अपने साथ, इतना बड़ा अत्याचार हरगिज बर्दाश्त नहीं करेगी।<div><br></div><div
<div>इतने वर्षों बाद भी संजीव की पूरी तरह अपने परिवार के प्रति बेरुखी, श्रेष्ठा को पसंद नहीं आती। कई
संजीव, अर्पिता ढाई साल की हो चुकी है। नजदीकी क्रिश्चियन स्कूल में उसका दाखिला करवा दो। फीस वगैरह भरन
<div>श्रेष्ठा ने तय कर रखा था अब चाहे जो भी हो, वह उस घर में अब नहीं रह सकती। वह अर्पिता को लेकर घर
<div>बिंदिया की मदद से बैंक का काम भी आसानी से निपट गया। किश्त भी बहुत आसान थी, जिसे देने में श्रेष्
<div><br></div><div><br></div><div>इतने वर्षों से गर्म हवाओं की धार झेलने के बाद, श्रेष्ठा को लगने ल
प्रज्ञा से मिले हुए आदेश की वजह से, श्रेष्ठा थोड़ी परेशान थी। लेकिन फिर उसने सोचा- दीदी ने आदेश दिया
श्रेष्ठा की उधेड़बुन को ऐसा नहीं था कि प्रज्ञा जानती नहीं थी। जिसका इलाज सदा ही उसके पास रहता था। जा
तृतीय श्रेणी की परीक्षा के लिए श्रेष्ठा ने पूरी मेहनत की थी। साथ ही उसे आशा थी कि वह इसमें सफलता प्र
इन सारी पारिवारिक परिस्थितियों से, आंधियों से, मैं तुम्हें जितना दूर रखने की कोशिश कर रही थी शायद तु
आज संजीव बिल्कुल अकेला और बेसहारा अनजान पथ पर शायद वह अपने आप को तलाश करता हुआ, श्रेष्ठा के बारे में
श्रेष्ठा के मन में चल रही हलचल, प्रज्ञा के मन में भी पुष्पित हो चुका था। विचारों की छोटी-छोटी नदियां
पूरा विद्यालय रोशनी से जगमगा रहा था। विद्यार्थियों के स्वागत के लिए शानदार व्यवस्थाएं की गई थी। दूर