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भाग 3: मेरी तेरी उसकी बातें

6 सितम्बर 2023

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छोटे मालिक का हुक्म पाकर गुन्ने ने घुँघरू अमचूर के घोल में डाल दिये। सुबह इक्के को धोया पहियों, राम साज पर तेल-पानी का हाथ लगाकर चमकाया। गद्दी तकिये के गिलाफ बदल दिये। अमर संध्या पाँच के लगभग पहुँचा। इक्का बिकुल तैयार टिचना अमर मोटर साइकल तबेले में छोड़कर इसे पर कांग्रेस नगर की ओर चल दिया। गुने ने पुराना कुर्ता उत्तार गुलाबी छींट का कलीदार कुर्ता पहन लिया था। सिर पर धुली हुई दुपलिया टोपी घुटनों तक कसी धोती।

कांग्रेस नगर में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के दफ्तर में नौजवानों की भीड़ और कोलाहल था। मुंशी अहमददीन और सरदेसाई मजाक कर रहे थे : कांग्रेस कैम्प में सिगरेट और नानवेजीटेरियन भोजन पर रोक क्यों? यह क्या साबरमती आश्रम है। मौली दुर्गा सितोले के समीप बैठी थी। बाहर जाने के लिए तैयार अमर को देख दुर्गा के कंधे पर हाथ रख उठ खड़ी हुई। अमर को बताया: दुर्गा बेन बहुत व्यस्त है चल न सकेगी।

अमर इक्का मोतीनगर कैम्प के बाहर सड़क पर रोक आया था। मौली ऊँची सवारी को देखकर हैरान इथे का पाँवदान भी बहुत ऊँचा।

उसने साड़ी का आँचल पेटी की तरह कमर पर कसा। पर्स इक्के पर रखकर एक हाथ से इसे की छतरी का डण्डा पकड़ा, दूसरे हाथ से अमर के कंधे का सहारा लिया। पाँवदान पर पाँव टिका कर उचकी और इक्के पर चढ़ गयी। इक्के के बीचोंबीच घुटने मोड़कर इक्के की पीठ के साथ तकिये के सहारे बैठ गयी। अमर उसके दाहिने घुटने मोड़कर बैठ गया।

गुन्ने के को स्टेशन की ओर से छावनी की सड़क पर ले गया। बाज़ार से शंकार से शोर न करने के लिये गुन्ने ने घुँघरू समेट कर बाँध लिये थे। उसने खुली सड़क पर इक्का रोककर घुँघरू ढील दिये। घुंघरूओं की ललकार से घोड़े की चाल बढ़ने लगी। इक्के की गति बढ़ती जा रही थी, उसी अनुपात में सामने से हवा का फर्राटा। अमर और मौली दोनों पीछे गद्दी से पीठ सटाये, बीच में बालिश्त भर का अन्तर मौली के गर्दन तक घंटे केश हवा के वेग से उड़-उड़कर अमर के कान और गर्दन गुदगुदा रहे थे।

गुन्ने ने अपना करतब दिखाने का अवसर पाकर रास के इशारे से घोड़े को और तेज़ किया। सड़क अच्छी समतल परन्तु चाल की तेज़ी से इक्का हिचकोले लेने लगा। अमर ने बाँह बढ़ाकर छतरी का डण्डा पकड़ लिया। मौली को चाल की तेजी और हिचकोलों से उछल कर गिर जाने का आतंका दोनों हाथों से नीचे की गद्दी को पकड़ लिया। मौली का आतंक भांपकर अमर मुस्कराया, “और तेज?"

आतंक की सिरहन के बावजूद मौली ने कौतुक के लिये गर्दन से अनुमति दी, “हाँ। " गुने से संकेत पाकर घोड़ा सरपट जोर के हिचकोलों और हवा के जबर झोंकों से मौली की उंगलियों की पकड़ से गद्दी छूट गयी। उसने सिहर कर दोनों हाथों से अमर की बाँह पकड़ ली, आँखों में सहायता की याचना ।

अमर का शरीर कंटकित होकर झनझना गया।

अमर की झेंप भॉप मौली के हाथ अमर की बाँह से हट गये, "आई एम सॉरी । " अमर ने अपनी झिझक से कुंठित होकर तुरन्त बाँह सहायता के लिये उसकी पीठ पर रख दी, "घबराओ नहीं कामरेड।"

मौली ने आश्वासन पाकर अमर की बाँह का सहारा ले लिया, "ओह डियर, कितना तेज़ घोड़ा!"

दस-पन्द्रह मिनट दौड़ के बाद घोड़े की गति धीमी हो गयी। इक्का रायबरेली रोड पर दूर चला गया था। अमर के आदेश से गुने ने घोड़ा लखनऊ की ओर फेर लिया।

मौली कई पल क्षितिज पर तिरोहित सूर्य की ओर टकटकी लगाये मौन रहकर बोली, इस संध्या की स्मृति अमिट रहेगी। यू आर सो नाइस। हम लोग कल दोपहर जा रहे हैं। कुछ दिन और ठहर सकते।"

"ज़रूर ठहरो" अमर का अनुरोधा "क्या कठिनाईट

"प्रोग्राम तो बन चुका । " मौली ने विवशता प्रकट की, “तुम बम्बई जरूर आना। यहाँ मेरे अतिथि होंगे।"

"हम लोगों को जून-जुलाई में केवल पन्द्रह दिन का अवकाश मिलता है।" "पन्द्रह दिन के लिये हो आओ। फिर देखेंगे।"

अमर मोतीनगर पहुँच कर मौली को कैम्प तक पहुँचाने गया। साथी पंडाल में थे। अमर और मौली कैम्प के सामने कुछ देर टहलते बात करते रहे "पिछले दोपहर की बातें- मजदूर श्रेणी ही क्रान्ति की हरावल हमें अपनी शक्ति औद्योगिक नगरों में केन्द्रित करना आवश्यक फिर अनुरोधः फाइनल परीक्षा के बाद बम्बई आ जाओ। बम्बई की मज़दूर बस्तियों में डाक्टर चमत्कार कार्य कर सकता है।

मौली अमर के साथ सड़क तक आयी। विदाई के नमस्कार में आत्मीयता से हाथ मिलाया।

अमर कांग्रेस नगर के फाटक से निकल इक्के की ओर बढ़ रहा था। मौली की संगति की स्फूर्ति और भविष्य में उससे सम्पर्क की आशा से कदमों में चुस्ती, गर्दन तनी हुई। "सेठ! "अमर!"

अमर ने आवाज पहचानी घूमकर देखा, रजा ठहरने के संकेत में बाँह उठाये तेज़ कदमों से आ रहा था, "सुन नहीं रहे यार, तीन बार पुकारा। किस रंग में हो? हमें भी ले चलो।"

"हम इक्के पर आये हैं।"

"क्यों? मोटर बाइक खराब है?"

"नहीं, शौकिया बाइक घर पर है। रास्ते में ले लेंगे।"

"इका अपने शौक के लिये या यंग लेडी के शौक के लिये?" रजा ने कटाक्ष किया।

"तुम कहाँ थे, कब आये?" अमर ने टाला।

"हम छः बजे आ गये थे। तुम्हें सब जगह खोजा पार्टी आफिस में भी न मिले। यंग लेडी के साथ लौट रहे थे तो तुम पर नज़र पड़ी। यार, छिपे रुस्तम हो! इसे कहाँ से पटा लिया? मिस साहवा कहाँ से आयी हैं?"

"मौली बाँजा, बम्बई से शायद गोआनी कम्युनिस्ट फैलो ट्रेवलर। सिन्हा साहब ने कहा—इसे नगर दिखा लाओ। इक्के की सवारी चाहती थी इसलिये इक्के पर आ गये।" ""तो उसे क्या दिखाया था? रजा ने अमर की पीठ पर धौल दिया, "उसने तुम्हें क्या दिखाया?"

"ऊटपटाँग मत बको! श्री इज़ सीरियस टाइप कामरेड।"

रज़ा की भाँबे उठ गयीं, “अरे, इतना जान गये? तुम्हें कुछ शिक्षा-दीक्षा दी उसने?" "डॉट टॉक नॉनसेन्स" अमर ने खीझ दिखायी।

“दोस्त, तुम्हारी तो आवाज़ में फरक। दो शाम की बातचीत में उतना घुट-घुटकर हाथ मिलाना यार हमसे पर्दा! "

"पर्दे की क्या बात और क्या जरूरत?" अमर फिर झल्लाया, "उसने इस साल एम० ए० किया है। अपने पार्टी वीकली में काम करेगी। सीरियस और सिंसीयर वर्कर है।"" "हूँ! इतना असर! जरा नब्ज़ देखें!"

अमर ने उसका हाथ झटक दिया, "तुम्हें हर वक्त मज़ाक

अमर ने राजाबाजार से मोटर बाइक ले ली। रजा को पीछे बैठाकर उसके होस्टल के फाटक पर पहुँचा दिया। दोनों के होस्टल पृथक थे। रज़ा ने विदाई के समय फिर चुटकी ली "ब्रह्मचारी को नया तजुर्बा मुबारिक।"

"फिजूल बकवास!" अमर ने मुँह फेर लिया।

रजा के सामने झिझक के लिये अमर को संकोच उसे रज़ा और नरेन्द्र से पर्दा न था, खासकर रजा से रज़ा उससे अपनी नितांत निजी बातें, कठिनाइयाँ, उलझनें कुछ न छिपाता था। पत्नी गेती के रूप-रंग और उससे प्रथम संगति की बातें और बाद में झगड़े भी बता दिये थे। रजा से कुछ छिपाने का इरादा अमर को न था परन्तु मौली के सम्बन्ध में

ओछा मजाक नापंसद उस रात मौली का चेहरा बार-बार अमर की कल्पना में साकार और उसकी बातें कानों में अमर ने स्वयं को सावधान किया है। किसी लड़की युवती की इतनी चिन्ता भटकाव है। चार बरस पूर्व मीरा की बात याद आयी वह रास्ता फिसलने का मन ने तर्क किया: यह मामला लड़की युवती का नहीं, लक्ष्य के मार्ग पर सहयोग का है। दूसरे दिन दोपहर अमर नगर के दूसरे साथियों के साथ बम्बई लौटने वाले साथियों को बिदा देने स्टेशन पर गया। मौली ने विदाई में बहुत आत्मीयता से हाथ मिलाकर बम्बई आने का अपना निमंत्रण दोहराया। पहुंचते ही पत्र लिखने का वचन, उत्तर का अनुरोध ।

मौली के प्रति अमर की चिन्ता साधारण सम्बन्ध से न थी। उसकी कल्पना में चिन्ता थी, कर्तव्य पथ पर सहधर्मी से सहयोग की इच्छा। खयाल आता मौली कम्युनिस्ट प्रभाव में है, परन्तु उसे समझाया जा सकेगा ऐसे प्रयोजन से बम्बई जाना भी सार्थक। गरमी के अवकाश में बम्बई यात्रा की कल्पना ।

अमर अधिवेशन समाप्त होने पर चार दिन बाद संध्या सेवाश्रम जा सका। साँझ का अंधेरा उतर आया था। गौरी आंगन में चटाई पर बैठी परीक्षा की तैयारी में व्यस्त "आओ लाला, " रसोई से भाभी की आवाज।

उस साल मार्च आरम्भ से जाहा समाप्त आधे मार्च में ही सूर्यास्त के बाद खुले आकाश के नीचे सुहावना लग रहा था।

गौरी उठ गयी। मोहा लाकर रसोई के दरवाज़े के सामने रख दिया।

अमर मोड़े पर बैठा तो गौरी ने समीप बैठ उत्सुकता से पूछ लिया, “भैया, वह बम्बई से थी? 

"कौन?"

"वह जो पहले दिन तुम्हारे साथ गयी तो नीली बुंदकी की साड़ी पहिने थी। बाल गर्दन तक।" 

"हों, बम्बई से क्यों?"

"उन्हें पहले से जानते थे?"

"कैम्प में सिन्हा साहब ने परिचय कराया था। क्यों क्या बात है?"

"कुछ नहीं सोचा, शायद पहले से जानते हो। वह हम लोगों की बोली न जानती थी. अंग्रेजी ही बोलती थी। बहुत पढ़ी-लिखी होगी? बोल-चाल मीठी और निधडक!" "कैसे मालूम, क्या तुमसे कुछ बातचीत हुई?"

गौरी के प्रश्न से स्पष्ट था कि अमर को मौली के साथ कई बार जाते-जाते देखा है। विशिष्ट अतिथियों के लिये चाय-पानी का प्रबन्ध सोशलिस्ट पार्टी के दफ्तर के सामने ही था। गौरी की ड्यूटी वहीं थी।

गौरी ने अपनी बात सम्भाली, "शनिवार सुबह हम चाय का पानी उबलवा रहे थे। एक थीं न गोरी-गोरी, अच्छा भरा-भरा बदन, पूर्णिमा बनर्जी। दोनों साथ आयीं। वे बोलीं, हमें चाय दिला दो। वहाँ चाय का प्रबंध केवल नेताओं के लिये था। उन्हें तुम्हारे साथ देखा था, इसलिये हमने चाय दिलवा दी।"

गौरी ने रज़ा की तरह ऊटपटाँग बात न की अमर को अच्छा लगा। गौरी को मौली की बोल-चाल मीठी लगी। बताया, "एम० ए० पास है। अंग्रेजी के अखबार में काम करेगी।" "उसे देखने से ही लगा, बहुत लायक पढ़ी-लिखी होगी।" गौरी के स्वर में सराहना । कांग्रेस पंडाल में मौली को अमर के साथ आते-जाते देखकर गौरी को विस्मय और हैरानी हुई थी। जवान लड़की भैया के साथ कैसे निधड़क चली गयी। गौरी का अमर से चार बरस का परिचय, मुँह बोले भाई-बहन लेकिन ऐसे साथ घूमने की कल्पना नहीं की जा सकती। फिर सोचा: बम्बई का अपना तरीका। दुर्गा, बनर्जी, कमला जी सभी मर्दों से बोल- चाल रही थीं। मन में कुछ खुदक भी भैया उससे इतनी बातें कर रहे थे, हमारी तरफ झाँका भी नहीं।

 सोमवार प्रातः से गौरी की हाईस्कूल परीक्षा आरम्भ पहला परचा गणित का गौरी की सफलता के लिये शुभकामना कहने अमर सेवाश्रम पहुँचा तो भाभी का चेहरा और स्वर भारी जान पड़े।

भाभी ने बताया: कल गौरी की परीक्षा है। तुम्हारे भैया प्रदर्शनी से चार साड़ियाँ लाये थे तो कह दिया था तुम दोनों के लिये हैं। सब धोतियाँ बीज गयी हैं। इन्हें जिद है कि नगी नाही नहीं पहनेगी। तुम्हीं बताओ, घिसी साड़ी पहनकर जायेगी तो लोग हमारी बदनामी नहीं करेंगे कि बहिन के लिये इनके पास कपड़ा नहीं है। इन्हें साड़ी पर किनारी से एतराज है। लाला, कोई लाल-हरी किनारी हो तो एक बात सफेद खद्दर की साड़ी, पर भूरी लाल डोरी, इसमें क्या हर्ज

साड़ी पर किनारी होने से गौरी के एतराज का कारण अमर समझता था। विधवाओं के रंगीन या किनारेदार साड़ी से परहेज का पुराना रिवाज अमर के विचार में निरर्थक रूड़ि गौरी के व्यवहार में वैधव्य की चेतना सदा उग्र रहती थी— आराम, सौन्दर्य, मनोरंजन उसके लिये वर्जित। अधिक से अधिक कष्ट सहना सप्रयोजन या निष्प्रयोजन- विधवा का धर्म। अमर का मन विरोध करता-विधवा हो जाना अपराध नहीं। विधवा को दण्ड क्यों? बरस-डेढ़ बरस पति की संगति के अपराध का दण्ड शेष जीवन कष्ट में बिताना! सिद्धान्ततः अमर विधवा को पुनः विवाह का अवसर देने का समर्थक।

गौरी बोल पड़ी, "हमारी पहले की धोती अच्छी भली है। हम कितनी साड़ियों पहन लें। हमें किनारी वाली साड़ी अच्छी नहीं लगती तो क्या मजबूरी है?"

" अच्छी नहीं लगती।" अमर ने डांटा, “जीजी, गलत बात क्यों कहती हो। अच्छी लगती है इसी खयाल से तुम पहनना नहीं चाहती। हर अच्छी लगने वाली चीज से तुम्हें परहेज। हर समय विधवा होने का डिंडोरा।"

"लाला, ठीक कहते हो।" भाभी ने अमर का समर्थन किया, "हम कहती हैं, तुम क्या निराली हो। जा-वेजा का खयाल हमें भी है। जो हो गया सो हो गया। हमारी बिरादरी में इनकी उम्र की और इनसे बड़ी भी सभी कुछ पहन लेती हैं, बस नाक में कील, बिछिया और काँच की चूड़ी नहीं पहरी जाती पर बीबी की जिद्द यह नहीं सोचतीं, तुम्हारे भैया और हम बेजा बात के लिये कहेंगे।"

अमर की नजर गौरी की ओर थी। गौरी ने आँखों पर साड़ी का पल्ला दबा लिया था। अमर की ऐसी बातों से गौरी की आँखें डबडबा आती थीं। असर की भावना के आदर से उसकी बात न टालती थी। बात तो बड़े भाई की भी न टालती थी। बड़े भाई क्या उसकी चिन्ता कम करते थे! पिता स्थान थे। अमर की चिन्ता से खास संतोष होता। तीन वर्षों में गौरी के प्रति सद्भाव और आत्मीयता के ऐसे कई अवसर आ चुके थे। ग्यारह मास पूर्व अच्छा-खासा काण्ड हो गया था।

गौरी वैधव्य के नियमों के बारे में अति करती थी। हिन्दुओं में निर्जला एकादशी का व्रत बरस में एक बार होता है। अनेक स्त्री-पुरुष, खासकर विधवा हर एकादशी व्रत रखती है, परन्तु निर्जल व्रत नहीं । साधारण एकादशी पर जल और फलाहार ले लिया जाता है। गौरी सदा एकादशी के दिन निर्जल व्रत रखती थी। भैया ने समझायाः निष्प्रयोजन कष्ट झेलने से कोई लाभ नहीं, परन्तु गौरी अनसुना कर प्रति एकादशी निर्जल व्रत करती रही।

पिछले साल मई के महीने में आभा का गला कई दिनों से खराब था। भाभी और गौरी घरेलू उपचार कर रही थीं। गला ठीक न हुआ। अमर ने देखा : टांसल बहुत बड़े हुए थे। अमर ने बच्ची के प्रति बेपरवाही के लिये झुंझलाहट से कहा, "कल सुबह आभा को कालिज ले आयें। सर्जन मिश्रा को दिखा दिया जाये।"

दूसरे दिन सुबह हरि भैया, गौरी और आभा को लेकर मेडिकल कालेज पहुँच गये। उस समय सर्जन मिश्रा क्लास में चले गये थे। अमर ने हरि भैया को घर लौट जाने और आभा का गला जल्दी दिखाकर दवाई दिलाने का आश्वासन दिया।

उस साल असाधारण गरमी लू और गरमी से बचने के लिये अमर हस्पताल के बरामदे में गौरी के लिये कुर्सी रखवा कर क्लास में चला गया। डाक्टर मिश्रा की व्यस्तता के कारण आभा का गला बारह बजे से पहले न दिखाया जा सका। अमर ने आभा के गले में दवाई लगाकर खाने की दवाई दिला दी। घर लौटने से पहले लू से बचाव के लिये चपरासी से लोटा भर जल और इक्का ला देने को कह गौरी को समझायाः चलने से पहले थोड़ा जल पी लेना और आभा को भी जरूर पिला देना।

उसी दिन रात साढ़े आठ बजे अमर आभा के गले में दवाई लगाने के लिए पहुंचा तो देखा: गौरी आँगन के बीच खाट पर लेटी थी। हरि भैया और भाभी चिंतित।

हरि भैया ने बताया: गौरी को हस्पताल से लौटते समय लू लग गयी थी। लक्षण देख तुरन्त ही उपचार में जुट गये। गौरी के पेट पर गीली मिट्टी का पलस्तर रखा। माथे पर पानी की पट्टियाँ भाभी ने कच्चा आम भून गुड़ डालकर पना तैयार कर गौरी को पिलाया। हाथ-पाँव गीले तीलिये से पोंछते रहने से बुखार कम हुआ।

भाभी ने बताया: लू लगने का भान हुआ तो पाँव तले की धरती निकल गयी। तीन दिन पहले आगामीर की ड्यौली के पहलवान चिरागी को लू लग गई। सूरज डूबने से पहले ही खत्म! क्या भैंसे का सा डील था! इनका दो मुट्ठी का तो बदन नहीं।

गौरी को लू लगने से अमर को बहुत दुख और खेद जैसे लू लगने का उत्तरदायित्व उसी पर हो। अमर ने बताया आज लू बहुत भयंकर थी। लू के अंदेशे से गौरी और आभा को हस्पताल से रवाना करते समय एक लोटा जल मँगा दिया था। खयाल था, जल पी लेंगी तो लू का अंदेशा कम रहेगा।

"लाला तुमने तो मॅगा दिया पर पिया किसने? जल पिया होता तब न!" भाभी ने क्षोभ प्रकट किया, "कल मरी एकादशी जो थी।"

"हमने इनके लौटने पर तुरन्त पना बनाकर दिया। उस हालत में भी बरत तोड़ने से इन्कारी। तुम्हारे भैया ने धमकाया, क्या मूर्खता कर रही हो, तब कहीं दवाई ली।"

"अच्छा भाभी रहने दो।" अमर से नजर मिली तो गौरी की आँखें शुक गयी। परन्तु अमर की नजर में अपनी अवस्था के प्रति वेदना समझ ली। अपने प्रति अमर की चिन्ता से मन उमड़ आया। उसके खोभ-क्रोध से कितनी सांत्वना संतोष

अगले दिन अमर गौरी का हाल पूछने सेवाधम गया तो डाक्टर के अधिकार से मोड़ा खींच गौरी की खाट के समीप बैठ गया। भाभी को सुनाकर अमर ने गौरी से खिन्न स्वर में पूछा, "कालेज में आपसे कह दिया था कि चलने से पहले जल पी लें। आपने क्यों नहीं बताया कि व्रत के कारण जल नहीं पियेंगी। भाभी बताती हैं, हरि भैया ने निर्जल व्रत न करने के लिये कई बार समझाया। न आप भैया की बात मानें न हमारी।"

गौरी के आँसू वह आये थे। गर्दन झुकाये मौना

अमर गम्भीर बना रहा। स्वर वैसे ही इछ।

भाभी, तुम इनसे पूछ लो हमारी बात न मानती हो तो आइन्दा कुछ न कहेंगे।" "मानेगी क्यों नहीं! क्या यह नहीं जानती कि तुम इनके हमारे भले के लिये कहते हो।" "नहीं, यह खुद कहें।"

"हम सब मानेंगे।" रुंधे गले से गौरी ने कहा।

अमर का स्वर नरम हो गया, "देखो जीजी, पूजा-पाठ, नेम व्रत किसलिये किया जाता है? भगवान ऐसी तपस्या का फल परलोक में क्या देंगे वह तो नहीं मालूम, इस लोक में तुम्हें निरर्थक कष्ट सहने का दान जरूर दिया।"

गौरी अमर की युक्ति और तर्क का क्या उत्तर देती? उसकी तपस्या प्रत्यक्ष फल दे रही थी। उसने हार मान ली हम सब मानेंगे।

अमर वैसा धर्म-विश्वासी न था परन्तु उसके विश्वास में निष्ठा और दृढ़ता का बहुत महत्त्व हानि-लाभ, कष्ट की चिन्ता न कर निष्ठा पर दूर रह सकना उसकी दृष्टि में विश्वास योग्य व्यक्ति की कसौटी।

अमर शनि संध्या खा-पीकर नरेन्द्र के यहाँ गया था। नरेन्द्र से बातचीत में तलखी आ गयी। नरेन्द्र और रजा कम्युनिस्ट समर्थक हो गये थे। अधिवेशन के बाद कांग्रेस- समाजवादियों और कम्युनिस्टों में संयुक्त मोर्चा बनने के बजाय मतभेद बढ़ गया। अमर सोच रहा था सिद्धान्त और कार्यक्रम की दृष्टि से हरि भैया से भी उसका मतभेद है परन्तु झगड़े की नौबत नहीं आती। नरेन्द्र और रजा से झगड़ा हुए बिना नहीं रहता। विलम्ब हो गया था फिर भी सोचा: सेवाश्रम होता जाये।

अमर के सॉकल खटखटाने पर किवाड़ हरि भैया ने खोले अमर को खाट पर बैठने का संकेत किया।

खाट की ओर बढ़ते हुए अमर ने रसोई में झोंका, कहो जीजी, कल कौन पेपर था, कैसा रहा? अभी कितने पर्चे बाकी

परसों लास्ट पेपर है हिन्दी का।" गौरी प्रसन्नः

हरि भैया बाट के समीप मोठे पर बैठ गये थे। अमर ने अपने लिये दूसरा मोड़ा ले लिया था। भाभी का चेहरा देख कुछ आशंका। सोचा: शायद आपस में कुछ मतभेद है। ऐसे समय आना ठीक नहीं हुआ।

चेहरे पर गम्भीरता के बावजूद भाभी बोली, "लाला, आज यहाँ खाकर जाना। तुम्हें बीवी की बनायी पूरी पसन्द है।""

"घर से खाकर आ रहा हूँ अगले शनि सही जीजी को छुट्टी रहेगी। " "अच्छा हुआ भैया तुम आ गये। तुमसे बात करना चाहते थे। गोविन्द जी को जानते हो?" हरि भैया का स्वर रहस्य वार्ता के लिये धीमा हो गया। भाभी नजर बचाये रही। ""जी हाँ, उस पिछले बृहस्पत यहाँ भी आये थे। कहिये, क्या बात है?"

अमर ने गोविन्द जी को मोतीनगर कांग्रेस कैम्प में भी देखा था। कैम्प के खास प्रबन्धकों में थे। उससे पूर्व उन्हें श्री गांधी आश्रम खादी भंडार में देखा था। सदा स्वच्छ शुभ खद्दर में स्वस्थ, गम्भीर बोल चाल, मुद्रा अभिजात्य सौम्य अमर का अनुमान भी गांधी ग्रामोद्योग में जिम्मेवार कार्यकर्ता हैं।

हरि भैया ने बताया गोविन्द जी ग्रामोद्योग योजना में अवैतनिक सहयोग दे रहे हैं। पसरेरी के राव साहब के छोटे भाई हैं, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से एम० ए० । गोविन्द जी का ग्रामोद्योग विकास का कार्यक्रम विचित्र समन्वय था। ग्रामों में दस्तकारी और हस्त- उद्योगों को प्रश्रय देते और कृषि में आधुनिक यंत्रों का उपयोग। डेन दो सौ एकड़ का फार्म चला रहे थे, उसमें ट्रैक्टर थे और सिंचाई के लिये डीजल इंजन लगे नलकूप विवाह उनका विद्यार्थी अवस्था में हो गया था। पत्नी के आने के दो बरस बाद बालक हुआ था, परन्तु बहुत क्षीणकाय पत्नी क्षय रोग से पीड़ित बालक बरस भर का होकर जाता रहा। बालक के शोक में पत्नी भी आठ बरस से विधुर हैं। आयु लगभग चौतीस पैंतीस इतनी उम्र के लगते नहीं।

"खुद बताया, चौंतीस के हैं। बोमर ठाकुर, सिंसीयर गांधीवादी जात-पात का भ्रम नहीं है।" हरि भैया का स्वर और धीमा, "गौरी के लिये कह रहे थे।"

अमर धक से रह गया। 

सम्भलने के लिये पूछा, “क्या?" "गौरी को स्वीकार हो तो यह सम्बन्ध तय हो जाय।"

"लाला, ऐसी बात ये खुद ही कहें।" भाभी ने गहरी साँस छोड़ी, "ये हमसे कह रहे हैं, बीबी को समझाओ। लाला, हम पाप पुण्य नहीं जानतीं पर ऐसी बात के लिये हम नहीं कह सकतीं। हम रोकेंगी भी नहीं। बीबी का जो मन हो । बीबी ये ही समझ ले कि हम उन्हें बोझ मान रही हैं। सोच लो, हमारी भी दो बेटियाँ।"

हरि भैया ने पत्नी को मौन का संकेत किया, "इस समय प्रश्न गौरी का है, बेटियों का नहीं। इस समय उसके प्रति हमारा क्या कर्तव्य? समय आयेगा तो बेटियों के लिये सोचेंगे।" अमर की ओर देखा, "गौरी चौबीस की है। हमें सन्देह कि मानेगी पर अवसर है तो उसे मालूम हो जाना चाहिये। हमारे समाज में विधवा के लिये ऐसा अवसर कहाँ।" स्वर में वेदना, “ब्याह तो सामान्य प्राकृतिक आवश्यकता हमारे समाज में लड़की स्वयं कुछ नहीं बोल सकती।"

"बीबी का मन हो तो बेशक करें हम चाहती हैं, सुखी रहें पर हम ऐसी बात न कहेंगे।" भाभी का स्वर कुछ हल्का हो गया, "हमें गोविन्द जी आदमी भले लगते हैं।"

हरि भैया ने फिर हाथ से पत्नी को सुनने का संकेत किया, "गोविन्द जी कहते हैं, गौरी को स्वीकार हो तो कार्य चाहे आर्य समाज में वैदिक रीति से हो जाये चाहे सिविल मैरेज से। वे अपना फार्म और इलाहाबाद की कोठी, सत्तर-अस्सी हजार की सम्पत्ति गौरी के नाम रजिस्ट्री करा देंगे। हम महीने भर से सोच रहे हैं. गौरी की परीक्षा समाप्त हो तो प्रस्ताव उसे बता दिया जाये। परीक्षा से पहले गौरी का मन विक्षिप्त नहीं होना चाहिये।" अमर की ओर देखा, "काका के संस्कार-विचार जानते हो, उनसे यह चर्चा व्यर्थ कोहली साहब की राय है, यह काम हो जाये तो बहुत अच्छा देखो भैये, गौरी की अभी उम्र ही क्या है, पहाड़ सी जिन्दगी सामने है। "

जीजी मान जाये सही, विचार तो बहुत उचित है।"

परसों उसकी परीक्षा निवट जाये तो बात की जाये। गोविन्द जी इस विषय में निर्णय के लिये मंगल या बुध सुबह इलाहाबाद से आयेंगे।"

हरि भैया गम्भीर हो गये, "भैये, हमने बार-बार सोचा है, स्वाभाविक जीवन का अवसर सबको होना चाहिये। कोई त्याग करे तो स्वेच्छा से गोविन्द जी के जैसे विचार और साधन हैं, चाहेगी तो जनसेवा के अवसर की कमी न रहेगी। अभी तक जो उसके सामने आया, सहती रही है। उसे स्वयं निर्णय चुनाव का अवसर मिलना चाहिये।"

"आपका विचार बहुत उचित है। आप उन्हें समझाइये।" अमर ने समर्थन किया। मन की दुविधा के कारण कहा, "अब चलू जरूरी काम है।"

होस्टल लौटकर अमर का मन पड़ने या किसी साथी से बात करने को न हुआ। सोचा: गौरी के पुनर्विवाह का प्रस्ताव सुनकर मुझे धड़ा क्यों लगा? विधवा बहिन के विवाह से लोकापवाद का संस्कार। उस अभागी के लिये वैधव्य के अभिशाप से उबर सकने के अवसर से मुझे संतोष नहीं! मेरी तो मुँहबोली बहिन, हरि भैया की सगी बहिन। वे बहिन को संकट से उबारने के लिये लोकापवाद सहने के त्याग के लिए प्रस्तुता मेरी अपेक्षा तो हरि भैया उदार और प्रगतिशील।

सोमवार अमर को बहुत उत्सुकता। हरि भैया के प्रस्ताव का गौरी ने क्या उत्तर दिया होगा? मन को समझाने का यत्र भैया का प्रस्ताव गौरी के हित में, उचित और तर्कसंगत। नारी का दमन करने वाली पुरानी रूड़ियों को तोड़ना कर्तव्य

दोपहर बाद सिन्हा साहब का सन्देश मिला संध्या पार्टी सेल की आवश्यक बैठक है। संध्या अमर सेवाश्रम न जा सका था। मंगलवार संध्या सूर्यास्त से कुछ पूर्व सेवाश्रम पहुँचा। आँगन के किवाड़ खुले थे। दया और आभा अपने दो समवयस्क बच्चों के साथ खेल रही थीं। आँगन से धूप जा चुकी थी, परन्तु खूब उजाला था। भाभी आँगन में एक और खाट पर बैठी सून अटेर रही थी।

"क्यों भाभी, चुप कैसे? जीजी कहाँ, क्या कर रही हैं?" “भीतर है, उस कोठरी में।"

"इतनी गरमी कोठरी में जीजी से वह बात हुई

लाला, हमने तुम्हारे सामने इनसे कह दिया था, ऐसी बात हम नहीं कहेंगे। इन्होंने हमें बार-बार कहा तुम हमारी तरफ से कह दो कि तुम्हारे भैया और अमर का ऐसा विचार है. सब लोग तुम्हें सुखी देखना चाहते हैं। फिर हम समझ लेंगे।" भाभी की आँखें नम हो गयीं।

“लाला, उसने तो सिर पीट लिया। बोली: सब लोग मुझे ऐसी समझते हैं मुझे इसीलिये रायबरेली से लाये थे। ''मैं सबको दुख दे रही हूँ तो मुझे अफीम ला दो, नहीं मैं रायबरेली चली जाऊँगी। मेरा घर रायबरेली में है।"

"तुम्हारे भैया ने कल साँझ, आज सुबह भी बहुत समझाया: बेटी तुम्हें कोई मजबूर नहीं कर रहा। यह भी नहीं कहा कि ऐसा कर लो। केवल तुम्हें बताया कि गोविन्द जी बहुत सज्जन पुरुष हैं। उनकी ऐसी इच्छा है। हमारे विचार में इसमें कोई दोष बुराई नहीं। तुम पर कोई दबाव या मजबूरी नहीं। तुम अपने भजन-भाव से संतुष्ट तो तुम्हारी इच्छा। यह घर तुम्हारा है। कहीं जाने वाले का ख्याल गलत। बस रोये जा रही है मुझ करमफुटी के कारण सब दुखी। मुझे रायबरेली में क्यों नहीं मरने दिया। मुझे इस बात के लिये लाये थे! न रात खाया, न आज सुबह दोपहर में इन्होंने डॉटा तुम फिजूल बावेला कर रही हो। तुम नहीं चाहती तो बात आयी गयी। हमने इतना जरूर कहा कि इसमें दोष-पाप नहीं है, तुम्हें सुखी देखना चाहते हैं। इतनी बात सुन सकने का भी धीरज नहीं तो क्या फायदा तुम्हारे पढ़ने-लिखने का! तुम नहीं खाओगी तो हम लोग भी नहीं खायेंगे। तब जाकर दो कौर खाया।"

भाभी ने और बताया, "इनके सामने तो सूंक मार बैठ गयी। ये बाहर गये तो हमसे बहुत लड़ी: तुम नहीं कह रही थी, अमर भैया ने भी कहा ये काम हो जाये तो बहुत अच्छा। अमर भैया मुझे ऐसी मानते हैं? अमर भैया आयें तो कह देना, मैं उनके लिये मर गयी। " यह सब सुन अमर के रोयें खड़े हो गये।

भाभी बोली, “लाला तुम्हीं समझाओ, खामुखा राई का पहाड़ बनाये जा रही है। " "भाभी उन्हें बाहर बुला लो।" अमर ने अनुरोध किया।

"लाला, तुम्हीं पुकारो। इन्होंने भी हमें ही आगे करके बात कहलवायी। सबसे ज्यादा हमीं पर गुस्सा जैसे हम ने बात चलायी हो! तुम खुद बात करो। "

"जीजी बाहर आइये।"

कोई उत्तर नहीं। अमर के दूसरी बार पुकारने पर भी न उत्तर मिला न गौरी बाहर निकली।

मलाला, वहीं चले जाओ।" भाभी ने सलाह दी, “रायबरेली जाने की रट लगाये है। समझाना, ये जिद्ध नहीं चलेगी । सुनो, जरा करें बोलना। तुम लोग जोर से कह देते हो तो मान जाती है।"

अमर कोठरी में चला गया। गौरी चटाई पर उकहूँ बैठी थी। अमर के दो बार पुकारने से उठने की तैयारी में। गौरी को रुलाई आ गयी। सिमिट कर सिर घुटनों पर रख दोनों बाँहों में दबा लिया।

"जीजी, तुम खामुखा नाराज।" अमर घुटने तोड़कर चटाई के एक कोने पर बैठ गया, "नाराजगी की बात क्या? हमने कहा था, यह काम हो जाये तो अच्छा। हमारा और भैया का मतलब कि इसमें दोष या अनुचित कुछ नहीं है। गोविन्द जी का विचार तुम्हें मालूम हो जाये। यह तो नहीं कहा कि तुम ऐसा जरूर करो। निर्णय तुम्हारी इच्छा से सिवाय हिन्दुओं कुछ बिरादरियों के बाकी दुनिया में ऐसा होता ही है। हम तुम्हें मुँहबोली बहिन नहीं सगी बहिन मानते हैं। हरि भैया और हम अपनी बहिन को बुरा रास्ता बतलायेंगे ! "जीजी, तुम हम सबको पापी समझती हो; तुम ही पुण्यात्मा हो! तुम्हारे सुख की इच्छा से एक बात कहीं कोई दबाव नहीं डाला। ये नाराजगी किस बात की?" गौरी का फफकना सहसा बन्द सन्नाटा मार गयी। सिर घुटनों पर दबा रहा। इस वक्त जरूरी काम है। जीजी नमस्ते। फिर आयेंगे।"

अमर सेवाश्रम से निकल कर समीप छोटी गली में न अपने घर गया न नरेन्द्र के यहाँ । वापस होस्टल लौट गया। मन में गौरी से कहा बोलने की मजबूरी के लिये खेद रजा, नवीन या किसी दूसरे साथी की संगति के लिये भी अनिच्छा। बार-बार गौरी का ध्यान बाधा न होने बल्कि अवसर दिये जाने और उत्साहित किये जाने पर भी पुनर्विवाह से अनिच्छा। सुख-विलास की ललक न होना, स्वेच्छा से संयम, निग्रह और दृढ निश्चय ही चरित्र दला

हाईस्कूल की परीक्षा के बाद गौरी को लम्बा अवकाशा हरि भैया बहिन को समय के सदुपयोग और शान्ति के लिये गांधी साहित्य पढ़ने और सूत कातने की प्रेरणा देते रहते। अमर उसे नाथ शास्त्री से लेकर छोटी-मोटी पुस्तकें देता रहता। उन पुस्तकों में गौरी की रुचि उत्पन्न करने, उसे समझाने के लिये पूर्वीपेक्षा सेवाश्रम अधिक जाता।

हरि भैया का विचार था : गौरी मैट्रिक के बाद नार्मल पास करके आत्म-निर्भर हो सके परन्तु जुलाई में अमर की राय से गौरी का फिर महिला कालेज, ग्यारहवीं कक्षा में दाखिला करा दिया गया।

गौरी अमर की दी हुई पुस्तकें पढ़ लेती, परन्तु उन पुस्तकों के विचारों के प्रति उसे कोई उत्साह न हुआ। गौरी को समाजवादी सहधर्मी बनाने का अमर का उत्साह क्षीण हो गया। मेडिकल कॉलेज में चौथे वर्ष विशेष परिश्रम की जरूरत। अमर व्यस्त हो गया।

* लाला लाजपतराय की हत्या का बदला लेने के लिये क्रान्तिकारियों द्वारा साण्डर्स के वध की रात लाहौर में चिपकाये गये ऐतिहासिक नोटिस का अनुवाद।

* ८ अप्रैल, १९२९, दिल्ली असेम्बली में बम विस्फोट की घटना ऐतिहासिक तथ्य है। 

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रचनाएँ
मेरी,तेरी, उसकी बातें
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गद्रष्टा, क्रांतिकारी और सक्रिय सामाजिक चेतना से संपन्न कथाकार यशपाल की कृतियाँ राजनितिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य में आज भी प्रासंगिक हैं | स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान और स्वातंत्रयोत्तर भारत की दशा-दिशा पर उन्होंने अपनी कथा-रचनाओं में जो लिखा, उसकी महत्ता दस्तावेज के रूप में भी है और मार्गदर्शक वैचारिक के रूप में भी | 'मेरी तेरी उसकी बात' की पृष्ठभूमि में 1942 का भारत छोडो आन्दोलन है, लेकिन सिर्फ घटनाओं का वर्णन नहीं | एक दृष्टिसंपन्न रचनाकार की हैसियत से यशपाल ने उसमे खासतौर पर यह रेखांकित किया है कि क्रांति का अभिप्राय सिर्फ शासकों का बदल जाना नहीं, समाज और उसके दृष्टिकोण का आमूल परिवर्तन है | स्त्री के प्रति प्रगतिशील और आधुनिक नजरिया उनके अन्य उपन्यासों की तरह इस उपन्यास के भी प्रमुख स्वरों में एक है |
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भाग 1 : मेरी तेरी उसकी बात

1 सितम्बर 2023
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बात पिछली पीढ़ी की है। डाक्टर अमरनाथ सेठ की फाइनल परीक्षा थी। रतनलाल सेठ को पुत्र के परामर्श और सहायता की जरूरत पड़ गयी। पिता ने झिझकते सकुचाते अनुरोध किया, "बेटे, जानते हैं, तुम्हारा इम्तहान है। पर ज

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भाग 3: मेरी तेरी उसकी बातें

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भाग 4 : मेरी तेरी उसकी बातें

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भाग 5: मेरी तेरी उसकी बातें

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रजा की भौवें उठ गयीं, "जब देखो कंधारीबाग गली! मिस पंडित से लग गयी?" "जब देखो तब क्या मौका होने पर सिर्फ इतवार शाम जाता हूँ। उसकी समझ-बूझ अच्छी हैं। समाजवाद में बहुत इंटरेस्ट ले रही है। शी कैन बी ग्रेट

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भाग 6: मेरी तेरी उसकी बातें

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पिता ने उपा को चेतावनी दी थी: तुम घृणा और तिरस्कार की खाई में कूदकर आत्महनन कर रही हो। डाक्टर सेठ कितना ही ईमानदार, उदार हो परन्तु हिन्दू हिन्दू सम्प्रदाय का मूल ही शेष सब समाजों सम्प्रदायों से घृणा औ

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बार रूम के बरामदे में वकील कोहली कुर्सी पर बैठे समीप खड़े महेन्द्र को मुकदमे के बारे में समझा रहे थे। बजरी पर कार के पहियों की सरसराहट से नजर उठी। कचहरी में नरेन्द्र का आना अप्रत्याशित! बेटे का चेहरा

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भाग 7: मेरी तेरी उसकी बातें

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 गांधी जी और नेताओं की गिरफ्तारियों के विरोध में जनता का आक्रोश और क्षोभ काली आँधी की तरह उठा। सरकारी सत्ता के पूर्ण ध्वंस का प्रयत्न उसके बाद सरकार की ओर से प्रतिहिंसा में निरंकुश दमन के दावानल क

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