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भाग 7: मेरी तेरी उसकी बातें

8 सितम्बर 2023

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गांधी जी और नेताओं की गिरफ्तारियों के विरोध में जनता का आक्रोश और क्षोभ काली आँधी की तरह उठा। सरकारी सत्ता के पूर्ण ध्वंस का प्रयत्न उसके बाद सरकार की ओर से प्रतिहिंसा में निरंकुश दमन के दावानल का संत्रास। अधिकांश राजनीतिक कर्मी गिरफ्तार हो गये थे। शेष में से गिने-चुने साथियों को छोड़कर, सिर दबा कर दुबक गये। पुलिस की संख्या दूनी-तिगुनी सब ओर निरंकुशता, आशंका का वातावरण जनता स्वतंत्रता संग्राम से कतराने लगी। आन्दोलन के सहायक मुँह चुराने लगे।

पाठक गिरफ्तारी की आशंका के बावजूद दौड़-भाग के लिये मज़बूरा इतनी तैयारी और योजना बिखर जाने और असफलता का अवसाद, निरन्तर तनाव। तन-मन जर्जर इस पर भी संघर्ष जारी रखने का निश्चया फरवरी के दूसरे सप्ताह के आरम्भ में संध्या मिश्र भवन में लौटा।

चन्द्रभूषण निगम उस संध्या लौटा तो श्यामा ने समाचार दिया, "ज्योतिषी भैया आ गये।" निगम के पते पर पाठक के लिये तीन पत्र आये थे। पत्रों पर संकेतों से स्पष्ट–पत्र पाठक के लिये थे। दो सप्ताह पूर्व एक पत्र बम्बई से आया था। निगम स्थानीय समाचार और पत्र देकर लौट गया।

बरामदे में प्रकाश कम था। पाठक पत्र पर संकेत पहचान कर पत्र के प्रति उत्सुकता से कमरे में चला गया। पत्र पढ़कर बहुत चिन्तित। यह उषा का दूसरा पत्र था। विस्मय, यह पत्र अंग्रेजी में टाइप किया हुआ था। उत्साह संतोष पहले पत्र में भी न था। इस पत्र में गहरी निराशा और व्याकुलता। लखनऊ में अपनी गिरफ्तारी की आशंका, सिर पर दस हज़ार का इनाम जानते हुए भी परामर्श के लिये लखनऊ आने की बेचनी ।

पाठक ने सितम्बर के अन्त में उषा को जलाल के साथ बम्बई भेज दिया था। डाक्टर लोहिया और मालवीय जी की राय थी, उषा ब्रॉडकास्टिंग के लिये सर्वाधिक उपयुक्त। ब्रॉडकास्टिंग के क्षेत्र में उषा की ख्याति का एक और कारण बम्बई में स्वतंत्र ब्रॉडकास्ट आरम्भ किया था, उषा मेहता ने अधिकांश लोग उपा मेहता और सेठ में अन्तर न कर पाते। मेहता का क्षेत्र सेठ को मिलता और सेठ का श्रेय मेहता को उपा बम्बई से ट्रांसमीटर के काम का तकनीकी प्रशिक्षण ले ले तो क्रान्ति के दूसरे दौर में, उत्तर भारत में ब्रॉडकास्टिंग का अपना स्वतंत्र प्रबन्ध हो सकेगा और दल या कांग्रेस के लिये अपना स्वतंत्र सम्पर्क साधन भी बम्बई में मेहता और फजली ने उषा के लिये उचित प्रबन्ध कर देने का आश्वासन दिया था।

बम्बई से पत्र था - "प्यारे भाई, आशा है घर पर सब कुशल-मंगल है। पहले लिख चुका हूँ, यहाँ काम सीख सकने और नौकरी पाने की बात नहीं बनी। विशू भाई ने दूसरी फर्म में बेहतर अवसर का आश्वासन दिया था। उन लोगों ने अपना कारोबार समाप्त कर देने का निश्चय कर लिया। मोहता के यहाँ ट्रेनिंग उपयोगी हो सकती थी, परन्तु उनके यहाँ सहायकों की जरूरत नहीं। शायद पुराने कर्मियों को आशंका, नये जाने वाले उनका स्थान न ले बैठे। भैया जी ने फिलहाल अन्यत्र अवसर की प्रतीक्षा के लिये कुछ समय टिकने का

प्रबन्ध कर दिया है। बिना पूर्व निश्चय के उतावली में आ जाना ठीक न हुआ। कुछ निय नहीं, कब तक कुछ बन सकेगा। निष्क्रियता में समय काटना कठिन, निर्वाह की भी समस्या । सुबह-शाम टाइप सीखना शुरू कर दिया है। शायद निर्वाह के लिये सहायक हो सके। घबरा नहीं गया हूँ, परन्तु विचार जरूर आता है-यदि यहाँ अपना पेट पाल सकने से अधिक अवसर नहीं तो इतनी दूर आकर रहने का क्या लाभ? पूरी बात लिखना कठिन है। ब्योरे से बात कर सकने से ही ठीक होगा। खयाल जाता है, दो-चार दिन के लिये उच्चर हो जाऊँ। आपके इधर आने की सम्भावना हो तो बेहतर पत्र की पावती दीजियेगा। घर के समाचार से संतोष होता है। शुभेच्छ इन्दुभूषण निगमः"

पाठक को केन्द्रीय साथियों ने नीति सम्बन्धी परामर्श के लिये भी बम्बई जाना ज़रूरी था। पिछले पाँच मास में अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति बदल चुकी थी। अब सभी मोर्चों पर मित्रराष्ट्र सबला पश्चिम में जर्मनी इटली और पूर्व में जापान पीछे हट रहे थे। रूस में चमत्कार, स्टॅलिनग्राद के मोर्चे पर पॉलस की दो लाख जर्मन सेना ने सोवियत सेना से पराजित होकर हथियार डाल दिये थे। अजेय नाज़ियों की पहली विराट पराजया

क्रान्ति के कार्यक्रम पर दूड रहने वाले युवकों के लिये सबसे विकट आपात जेल से गांधी जी और नेताओं के विचित्र वक्तव्य नेताओं ने अगस्त आन्दोलन की घटनाओं के लिये खेद प्रकट किया था और उन घटनाओं के लिये सरकारी नीति को ज़िम्मेदार बता दिया था। सरकार ने नेताओं को गिरफ्तार करके आन्दोलन को अनुशासन में रखने का अवसर नेताओं से छीन लिया था। ऐसी स्थिति में जनता को क्रान्ति के लिये पुकारने का क्या फल होता! इन युवकों के विचार में क्रान्ति के लिये अनुकूल अवसर आ रहा था। जापानी मणिपुर, इम्फाल की ओर बढ़ रहे थे। अन्ततः पत्रों में समाचार, गांधी जी ने वायसराय को सूचना देकर आत्मशुद्धि के लिये अनशन आरम्भ कर दिया। जनता विस्मयाहत

पाठक छः मास बाद बम्बई गया था। उस बीच अनेक गिरफ्तारियों और पुलिस की चौकसी बड़ जाने के कारण पुराने अड्डे और जगहें बदल चुकी थीं। बम्बई में ठहरने के लिये पाठक की अपनी स्वतंत्र सुरक्षित जगह थी। साथियों से सम्पर्क बनाने में तीन दिन लग गये। इधर-उधर से जो कुछ सुना, स्थिति जानने के लिये व्याकुल। चौथे दिन संध्या वीरू भाई के बताये पते पर कमल बेन के लिये पूछने बांद्रा के जीवनलाल झवेरी के वहाँ गया। झवेरी की पत्नी से कहा, "कमल बेन से कहिये कि उनके गाँव से ज्योति पट्टू आया है।"

पाठक को पहचानने में कठिनाई न हुई। सबसे बड़ी पहचान, उपा की नाक में श्यामा की दो छोटे लाल नग की कील थी। उपा बहुत दुबली हो गयी थी। चेहरा मुर्झाया हुआ। अप्रत्याशित जगह सामना होने पर उस पर नज़र न भी टिकती। केश सामने झुकाकर बाँधने से माथा संकुचित और छोटा। उपा के चेहरे से उसकी परेशानी के अनुमान से पाठक के मन में कचोट

पाठक को देखकर कमल बेन (उषा) पुलकिता चार मास से भेंट की उम्र इच्छा, प्रतीक्षा। "भद्रलोक लग रहे हैं।" अंग्रेजी में फुसफुसाई।

बम्बई में पाठक ने वेश मुद्रा बदल लिये थे— सिर पर बाल, दाढी-मूँछ तत्कालीन फैशन से, कुछ पारसी ढंग से छँटवा लिये थे। बम्बैया आधुनिक व्यावसायिक समाज के परिष्कृत लोगों जैसा ढंगा

कमल को अनेक उत्सुकताएँ, “कब आये? पप्पू को कब देखा? कैसा लगता है? उसकी फोटो लाये? वहाँ क्या हो रहा है?"

पाठक को बच्चे के लिये उषा की आतुरता छू गयी। बताया: पप्पू खूब चुस्त-स्वस्थ था। नाना-नानी के यहाँ रमा हुआ है। फोटो लाने का विचार था, समय पर बन न सका।

कमल जिस मकान में थी, वहाँ बातचीत के लिये बैठने की सुविधा न थी। वहाँ से समुद्र तट पर पहाड़ी माता का गिरजा' समीप पाठक के साथ उस और चली गयी।

बांद्रा में पहाड़ी माता के गिरजा के नीचे सड़क के साथ समुद्र के आंचल में बहुत-सी चट्टानें दूर तक फैली हुई हैं। संध्या लोग ताज़ी हवा के लिये वहाँ आ बैठते हैं। पाठक के साथ एक चट्टान पर बैठकर कमल ने पूछा, "गांधी का यह कैसा अनशन? आत्मशुद्धि कैसी, किसकी? आत्मशुद्धि पश्चात्ताप को अर्थ अपनी भूल मानना । आन्दोलन की घटनाओं के लिये जिम्मेवारी सरकार पर और आत्मशुद्धि स्वयं! क्या जनता से प्रायश्चित्त करवाना चाहते हैं? लोगों को डिमोरेलाइज़ करना।" स्वर में भारी क्षोभ

" आन्दोलन दब जाने पर विरोधी का हृदय परिवर्तन करने की नीति उपाय आत्मशुद्धि के लिये अनशन जैसे हिमालियन ब्लंडर के लिये सन् इक्कीस और इकतीस में अनशन किया था. अब भी कर रहे हैं। हम लोग डाक्टर, मोहता, फजली, चट्टो, मित्रा, कर्वे, मेहरअली तीन दिन से उसी पर सिर मार रहे हैं! गांधी इसे ईश्वरीय प्रेरणा कह दें तो कोई क्या कह सकता है!

"हम रेडियो पर जनता को बापू और कांग्रेस के कमान्डमेन्ट के नाम पर सिर पर कफन बाँधकर बढ़ने के लिये ललकारते रहे। इन लोगों ने आन्दोलन के उत्तरदायित्व से ही इनकार कर दिया। गांधी हमारे अपराधों के लिये प्रायश्चित्त कर रहे हैं, हमारी अनुमति के बिना! उषा का स्वर अधिक क्षुब्ध, "अब प्रायश्चित्त और आत्मशुद्धि का कार्यक्रम चलाना है तो हम यहाँ क्यों सड़े!"

"गांधी और नेता जो कहें, हमारा संघर्ष समाप्त नहीं हो गया।" पाठक ने आश्वासन दिया, "लेकिन तुम्हें ऐसी स्थिति में डालने के लिये बहुत खेद। "

"वॉटनॉनसेन्स!" उषा ने टोका, "मैंने आपके कहने से नहीं किया, यह मेरा विवेक था; मेरी ज़िम्मेदारी और राजे की बात ।"

पाठक ने वेदप्रकाश और निगम से पायी सूचना के आधार पर बताया यूनिवर्सिटी में तुम्हारे भाषण के समय अमित मौजूद था। उसे भाषण के परिणाम का अनुमान सूर्यास्त के समय तुम्हारा पता लेने छोटी गली गया।

बेबे ने बताया- सुबह कचहरी गयी थी। कह गयी है, कागज़ो के लिये शायद इलाहाबाद जाना पड़े। देर में आयेगी या कल सुबह ।

अमित स्थिति भाँप गया कि तुम घर से तैयार होकर निकली हो। बेबे घबड़ा न जाये, उसे कुछ न बताया। पुलिस चौथे पहर से गली पर नज़र रख रही थी। बेबे को आशा थी, तुम साँझ आठ-नौ तक लौट आओगी। फिर रात मकान पर रह गयी कि तुम सुबह-सुबह लौटो तो परेशान न हो। सुबह पुलिस गिरफ्तारी के लिये आ गयी। पूछताछ से बेबे घबरायी। उनके आँसू बह गये। पुलिस पर बिगड़ी - हमारी लड़की क्या चोर डाकू है! तुम्हें

मतलब?

पुलिस ने पूरे मकान की तलाशी ली। कुछ पुस्तकें, तुम्हारे विवाह के समय के और बच्चे के फोटो ले गयी।

बेबे ने दस ग्यारह तक प्रतीक्षा की। पप्पू पुलिस के आने से और माँ के बिना घबरा रहा था। बेबे ने बाबू के यहाँ जाकर राय ली। उन्होंने परामर्श दिया: तुम बच्चे को उसके नाना के यहाँ ले जाओ। मकान पर ताला डलवा दो। परसू हमारे यहाँ रहे। बहु आयेगी तो परसू तुम्हें बुला लायेगा।

पुलिस वेबे के पीछे वालाकदर पहुँच गयी। पंडित के मकान की भी तलाशी ली गयी। पुलिस तहकीकात के लिये बेबे, पंडित और अमित को कोतवाली ले गयी। पूछताछ के बाद उन्हें लौटा दिया गया। पुलिस छोटी गली पर और पंडित के मकान पर भी सतर्क निगाह रखे थी कि उषा बच्चे की ममता में मिलने आ सकती है। पंडित, मिसेज़ पंडित, अमित जहाँ जायें, पुलिस उनके पीछे-पीछे।

सरकार ने फरार बागियों की जायदाद जब्ती का हुक्म दे दिया था। उषा के मकान के दरवाज़े पर भी नोटिस चिपका दिया गया: पन्द्रह दिन के भीतर पुलिस को आत्मसमर्पण वर्ना मकान-जायदाद ज़ब्त करके नीलाम कर दिये जायेंगे। कई लोगों की जायदादें जब्त कर ली गयी थीं।

तुम्हारा मामला अटक गया है। तुम्हारे मकान पर नोटिस देखकर सरीकों ने दर्खास्त दे दी: यह जायदाद अदालत में विवादास्पद है। असल उत्तराधिकारी हम हैं। उत्तराधिकार के सम्बन्ध में अदालत के निर्णय तक जायदाद ज़ब्त और नीलाम नहीं होनी चाहिए। बाबू ने उषा के वकील से दर्खास्त दिलवा दी असली वारिस नाबालिग लड़का है। माँ पर आरोप के कारण अबोध नाबालिग बेटे की जायदाद ज़ब्त और नीलाम नहीं की जानी चाहिए। उपा की जायदाद ज़ब्ती से रिसीवर को भी नुकसान। उसने भी जब्ती स्थगित रहने के लिये दर्खास्त दे दी।

तुम्हारा नाम काफी प्रसिद्ध हो चुका है। सुना है, जज भला आदमी है, आखिर तो हिन्दुस्तानी। उसने मामले की तहकीकात के लिये दो महीने की तारीख दे दी। तारीख पर हुक्म दिया— कोई अन्य वारिस है तो उसे अदालत में पेश किया जाये। फिर डेढ़ मास की तारीख वारिस तो पप्पू है ही। जब्ती नहीं हो सकेगी।

"ऐसी स्थिति में पप्पू को बुला लेने का प्रश्न ही नहीं। " कई पल मौन रह उपा ने निराशा

प्रकट की।

"खेद है पर स्थिति ऐसी ही है।"

उपा ने कुछ पल मौन रहकर संक्षेप में चार मास की बीती बतायी।

लखनऊ से बम्बई की लम्बी यात्रा उषा ने एक तरह अकेले जनाना डिब्बे में की। एक तरह इसलिये कि बम्बई में उसका सूत्रों से सम्पर्क कराने के लिये पाठक ने उपा के साथ जलालुद्दीन को सहायक रूप में कर दिया था।

उपा के साथ के लिये जलालुद्दीन उपयुक्त व्यक्ति था। जलाल क्रान्ति आन्दोलन से सम्पर्क होने पर भी मुस्लिम पोशाक में था। मुस्लिम लीग की नीति के कारण मुसलमानों

पर पुलिस सन्देह न करती थी।

उपा ने बम्बई के बहुत बड़े होने के विषय में सुना था, परन्तु उसके विस्तार और घनत्व की कल्पना न थी। बम्बई के उपनगर बांद्रा लाँघने के पहले से नये स्थान के विस्तार से चकित बिना इंजन या धुये बिना इंजन की, तीर की तेजी से सह सह उड़ती जाती गाड़ियाँ उसकी ट्रेन के दोनों ओर आगे-पीछे लाँघती जा रही थीं। जहाँ तक नजर जाती, वस्ती- बस्ती' ऊँचे से ऊँचे मकान। तरह-तरह की पोशाकें विक्टोरिया टर्मिनस पर जलाल ने उसे गाड़ी से उतरने में सहायता दी। स्टेशन पर भीड़ भीड़ क्या मुसाफिरों का उस जमाव, जिसमें केवल अवसर पाकर धक्के से कदम बढ़ा सकना सम्भव

उस जमाने में अभी बम्बई में टैक्सी का इतना चलन न था। तब साधारण सवारी थी, एक घोड़ा जुती चार पहिये की बग्घी स्टेशन से उन्हें बहुत दूर न जाना पड़ा। जलाल ने एक रात उषा को अपने यहाँ मुहम्मदअली रोड पर टिकाया और दूसरे दिन पाठक के आदेशानुसार हरि मोहता से सम्पर्क करा दिया।

उषा ने बताया- हरि मोहता ने डाक्टर साहब का सुझाव वीरेन्द्र देसाई उर्फ बीरू को बताकर उषा का परिचय दे दिया। वीरू नगर में गुप्त कार्य के प्रबन्ध और सम्पर्क का सूत्रधार बीरू ने उषा को डाक्टर सुमति लांगटे के यहाँ ठहरा दिया। डाक्टर लांगटे ब्रॉडकास्टिंग व्यवस्था में बहुत सहायता दे रही थी। लांगटे की गाइनाकालोजी की जमी हुई प्रैक्टिस, सामाजिक स्थिति मजबूत, व्यापक सम्पर्क पति का जमा हुआ स्टार्च का कारोबार। उपा को स्थानीय नाम दिया गया कमल शाह लांगटे ने सहानुभूति में कमल को कुछ दिन के लिये स्थान दे दिया था।

बापट का इलाहाबाद में उषा से परिचय हो गया था। उसे बम्बई में देखकर बहुत प्रसन्न । उसने बीरू को बताया इसका इंगलिश उच्चारण, लहजा फर्स्ट क्लास इलाहाबाद में इसके नाम से ब्रॉडकास्ट कराया गया था। उसका बहुत प्रभाव हुआ।

बम्बई में गुप्त रेडियो का काम उषा मेहता के दल के प्रयत्न से आरम्भ हुआ था। झवेरी और दूसरे साथी उसे सहयोग दे रहे थे। डाक्टर लांगटे को उषा मेहता के प्रति आदर और विश्वास। लांगटे मेहता के सूत्र से ही सहायता दे रही थी। बापट का प्रस्ताव, दोनों उपा एक नाम से ब्रॉडकास्ट करें तो बेहतर।

बीरू को उपा सेठ जैच गयी थी। उसने कहा, “इंगलिश सेक्शन में उपा का ब्रॉडकास्ट हर दूसरे दिन होना चाहिये। यहाँ के अखबारों में भी उपा सेठ का चर्चा हुआ है। उषा सेठ अपना पूरा परिचय देकर बोले तो अधिक प्रभाव पड़ेगा। पर्सनेलिटी मैटर्स। "

पुरुष नारी की ओर ध्यान दे और नारी अनुभव न करे, ऐसा प्रायः नहीं होता। कमल वीरेन्द्र देसाई का ध्यान अपनी ओर जानकर भी सशंक न हुई। कामरेडों में शंका, संकोच क्या कमल को विश्वास और आदर का सन्तोष बम्बई की भीड़ में, जहाँ अपार जमघट में उन्मुक्त श्वास के लिये पर्याप्त वातावरण का अभाव लगे, कमल को बीते सात मास में स्वयं सहेड़ी कैद और मन-मस्तिष्क पर लादी हुई उदासी के बोझ से मुक्ति से स्वच्छन्द श्वास की इच्छा। भिन्न वातावरण और नये ढंग के जीवन का रोमांच और उपयोगी काम कर सकने का अवसर और उत्साह। शरीर में पुनः स्फूर्ति जैसे बहुत देर तक ईंटों के नीचे दबी रहकर पीली पड़ गयी घास, • बोझ और आवरण से मुक्त होकर खुली वायु, धूप और ओस पाकर

हरियाने लगे।

कमल को नारीत्व की स्वाभाविक उमंग महीनों बाद सिर के बाल, यद्यपि अभी छोटे ही थे, ढंग से बाँधने का यत्र श्यामा की सलाह से अपना ऊँचा माथा ठेका रखने के लिये बाल माथे पर झुकाकर ही बाँधती थी। नाक में श्यामा की दी हुई छोटे लाल नग की कील से ग्लानि, परन्तु नाक बिंध गयी थी तो खाली छिद्र की अपेक्षा कील पहने रहना बेहतर। बाहर जाते समय आईना देखकर चेहरे पर पफ फेर लेने की भी चाह

बीरेन्द्र देसाई का घरेलू कारोबार तिलहन निर्यात का था। बम्बई के स्तर से मझले स्तर का कारोबार वीरू वकालत पास करके सी० बी० ए० एटर्नी फर्म में काम करने लगा था, परन्तु १९४१ के अन्त में सब छोड़-छाड़ कर उग्र समाजवादी कांग्रेसी होलटाइमर बन गया था। खद्दर पहले भी न पहनता था। औसत कद इकहरा शरीर खूब खुला गेहुँआ रंग, अनुमानतः पचीस-छब्बीस का बया चेहरे पर सदा मुस्कान। आकर्षक व्यवहार। फिल्मों से सीखे आक्सफोर्ड उच्चारण से अंग्रेजी बोलने का यह आधुनिक ढंग की पोशाक। मध्य वर्ग और सम्पन्न वर्ग में व्यापक परिचय। घर-दफ्तर में भी वाक्सहॉल गाड़ी थी. परन्तु सम्पर्को के कारण उसे सवारी के लिये परेशानी न होती।

बीरू ने डाक्टर लांगटे और उषा मेहता से कहा था, कमल को जहाँ वहाँ जाने के लिये सदा पथदर्शक सहायक की ज़रूरत क्यों रहे। पाँच-सात दिन में बम्बई में घूम-फिरकर नगर का कुछ परिचय पा ले और आवश्यकतानुसार आ-जा सके। बीरू कभी दोपहर में, कभी चौथे पहर कमल को नगर दिखाने के लिये साथ ले जाने लगा।

कमल को नये स्थान परिस्थितियों में, वातावरण में उन्मुक्त श्वास और व्यवहार से उत्साह। अपार जन प्रवाह में पहचानी जाने की शंका से निडर घूम-फिर सकने की उमंग। समृद्ध नगर का अपूर्व वैभव, मैरीन ड्राइव की समतल, चिकनी, सुधरी सड़क पर कार में तीर की गति से फिसलते चले जाने का रोमांच बाँध के साथ चलते या मालाबार हिल पर समुद्र किनारे की चट्टानों पर लहरों के टकराव से उठता फेन और गज़ों उड़ती फुहारें। कभी जुह की चमकती रेत पर सैर कभी गेटवे ऑफ इंडिया के सामने समुद्र का नील अपार विस्तार निष्प्रयोजन ही चर्च गेट या विक्टोरिया टर्मिनस से नॉन-स्टॉप डबल फर्स्ट क्लास में सुविधा से बैठे, कुछ मिनट में बीस-पच्चीस मील तीर की तरह निकल जाने और लौट आने में गति के रोमांच का विनोद, जैसे नगर बिजली की गति से उसके सामने से काँध जाये! कभी फोर्ट के इलाके में आधुनिक दुकानों या रेस्तोरों में जाकर यूरोप पहुँच जाने की कल्पना, परन्तु बीरू का यह सदाशय आठ-दस दिन में दूसरे साथियों की नज़रों में, खासकर कुसुम पोद्दार को खटकने लगा।

उषा मेहता द्वारा संगठित ब्रॉडकास्ट में मोहता, लेले, विक्रम, शान्ता, कुसुम भी सहयोग सहायता देते थे। नयी आयी कमल शाह को विशेष महत्त्व दिया जाना उन्हें अच्छा न लगा। कुसुम पोद्दार बहुत खिन्न। कुसुम को ब्रॉडकास्ट से अपनी आवाज़ सुनवाने का थिल। आपदा से बचे रहने का विश्वास हो तो जोखिम में बहुत रस, जैसे मचान पर बैठकर शिकार में कुसुम का पैतृक परिवार और ससुराल दोनों बहुत समृद्ध वह आर्थिक सहायता भी देती थी। ज़रूरत के समय कार के लिये बीरू को उसका बहुत भरोसा ।

ब्रॉडकास्ट में 'स्वाधीन भारत रेडियो पर विद्यार्थी नेता उषा सेठ से संदेश सुनिये' कहे

जाने पर साथियों ने आपत्ति की।

बीरू ने कह दिया, यह डाक्टर लोहिया का निर्णय है। साथी गुस्सा कर रह गये पर बात दब न पायी । कुसुम पोद्दार को दूसरा सन्देह था। कमल शाह के आने के बाद से बीरू को बार-बार कुसुम के यहाँ से कार की जरूरत। बीरू ड्राइव खुद कर लेता।

बीरू के अनुरोध पर कार दे देना कुसुम के लिये कठिन न था। उसके पिता के यहाँ चार गाड़ियाँ और ससुराल में तीन बीरू गाड़ी माँगता तो कुसुम जैसे भी हो, कार ज़रूर भिजवा देती। घर के काम के लिये चाहे टैक्सी मँगवानी पड़े। बीरू के अनुरोध पर कुसुम ने अपनी गाड़ी दे दी। स्वयं कोलाबा टैक्सी पर चली गयी थी।

कुसुम सहेली के साथ गेटवे की तरफ से लौट रही थी। सहेली की बेटी 'गुलमोहर' में आइसक्रीम खाने की ज़िद्द कर बैठी कुसुम वहाँ अपनी गाड़ी खड़ी देखकर चकित भीतर गयी तो एक टेबुल पर बीरू और कमला कुसुम को सन्देह हुआ। उसने और टोह ली। मालूम हो गया, बीरू ने कई बार पहले भी गाड़ी कमल को घुमाने फिराने के लिये ही माँगी थी। उसका गुस्सा वाजिब हमारी जूती हमारी चाँद।

कुसुम ने सुमति लांगटे, मोहता और देसाई से शिकायत की, "यह नेशनल कॉज़ है या छिनरा हम किसी के रोमांस के लिये क्यों रिस्क लें! क्यों पैसा दें।" लांगटे समझ गयी, वीरू कमल की इतनी प्रशंसा और केंद्र क्यों करता है। नेशनल कॉज में यह बीमारी लगी तो काम समाप्त। वह कमल से चित्र गयी देसाई उससे भी अधिक नाराज़, "ये औरत साइंस का एबीसी नहीं जानती, इसे ट्रांसमिशन का तकनीक समझाना हमारे बस का नहीं।" अन्ततः शिकायत उषा मेहता के यहाँ पहुँची। उसे बहुत क्रोध, "हम इस काम में इतने लोगों की लाइफ रिस्क में डाल रहे हैं। यह लोग इसे तमाशबीनी का अड्डा बना रहे हैं। इस क्षण से वीरेन्द्र देसाई और कमल शाह का गुप्त रेडियो से कोई सम्पर्क नहीं रहेगा।"

कमल ने सुना तो जैसे खूब ऊँची चढ़ चुकी पेंग से एक झटके में धरती पर। यह भी समझ न पा रही थी कि उसकी भूल, अपराध या अनौचित्य क्या था? उससे कौन हेय काम हो गया जिससे वह अविश्वसनीय और त्याज्य हो गयी? क्या व्यक्ति का सदा उदासी में बिसूरते रहना ही सदाचार और निष्ठा? क्या इसी अपमान के लिये आठ सौ मील चलकर बम्बई आयी थी? कुछ समझ न पा रही थी, परन्तु वीरू पर बहुत क्रोध "वह क्या नहीं जानता था, इस सब का यह परिणाम होगा? आग लगे इस समाज के संस्कारों को। बीरू के प्रति खिन्नता में कमल को अब उसकी नज़रों और व्यवहार में अभद्र रसिकता की ललक खटकने लगी और उससे घृणा ।

बीरू कमल को पूरा अवसर देना चाहता था। उसकी संगति की भी चाहूँ परन्तु लाचार। गुप्त कार्य में अनुशासन धौंस-धमकी से नहीं, साथियों के स्वेच्छापूर्ण सहयोग से ही सम्भव। बीरू ने कमल को दूसरा काम सुझाकर राय दी, 'रेडियो ब्रॉडकास्ट की पहुँच केवल सम्पन्न लोगों तक ऐसे लोग क्या क्रान्ति करेंगे! बम्बई, कलकत्ता, अहमदाबाद, दिल्ली की एक बात। छोटे नगरों और देहातों में कितने लोगों के पास रेडियो ! रेडियो ब्रॉडकास्ट प्रदर्शन के तौर पर या सरकार को चिढ़ाने के लिये तो उपयोगी परन्तु वास्तविक जनता तक रेडियो की पहुँच कहीं।" तब आजकल की तरह मामूली कारीगर मजदूर, धोबी, रिक्शा वाले तक के यहाँ ट्रांजिस्टर की कल्पना न की जा सकती थी। क्रान्ति के नये दौर के

लिये हमें सबसे पहले सरकार की यातायात सम्पर्क व्यवस्था को पूर्णतः ध्वंस करने के लिये पर्याप्त उपाय तैयार करने चाहिये ताकि पुलिस फौज हिल ही न सके। विस्फोटक पदार्थ दूसरे लोगों से माँगकर काम नहीं चलेगा। उन्हें पर्याप्त में स्वयं बना सकने का प्रबन्ध जरूरी। एक विस्फोटक विशेषज्ञ पुराना क्रान्तिकारी सहायता देने के लिये तैयार है। काम शुरू हो रहा है। दो-तीन मास में काम सीख लो यू० पी० में भी ऐसी दो-चार फैक्ट्रियाँ बन जानी चाहिये ।" कमल को ब्रॉडकास्ट में सहयोग से वंचित हो जाने का खेद था, परन्तु कुछ तो करना था। मजबूरी में सुझाव स्वीकार कर लिया।

परेल में वीरेन्द्र देसाई के घनिष्ठ मित्र और गुप्त संगठन सहायक का आयुर्वेदिक औषध निर्माण का पैतृक जमा हुआ कारोबार था। इस रसशाला का नाम था मारुति। अनेक प्रकार के पुट और भस्में बनती रहती। पास-पड़ोस में गंधक और रासायनिक द्रवों की तीव्र गंध फैली रहती। उस पर्दे में विस्फोटक पदार्थों के निर्माण की योजना बना ली गयी।

सुमति लांगटे ने कमल को तुरन्त ले जाने के लिये बीरू से कह दिया था। बीरू ने सप्ताह भर के लिये कमल के लिये अन्य सहायक के यहाँ अस्थायी प्रबन्ध कर दिया था। कमल को बहुत असुविधा। कमल चाहती थी, अपना स्वतंत्र प्रबन्ध। वह व्ययसाध्य और कठिन अकेली जवान स्त्री स्वतंत्र मकान किराये पर चाहे तो लोगों को कौतूहल- सन्देह, अनेक तरह की पूछताछ। कमल का परेल के समीप रहना भी आवश्यक था।

वीरू देसाई ने अपने गाँव के परिचित और विश्वस्त जीवनलाल झवेरी के यहाँ कमल के लिये खर्चे पर मेहमानी रहने का प्रबन्ध कर दिया। उसका परिचय दिया: बहुत अंतरंग मित्र की पक्षी, व्यवसाय के लिये पति पूर्वी अफ्रीका गया है। मौका लगने पर आकर ले जायेगा या बुला लेगा। अच्छी पढ़ी-लिखी, स्वभाव की भली, जेठानी से बहुत परेशान किसी स्कूल- शाला में नौकरी से निर्वाह करने की इच्छुका कमल के गुजराती, मराठी न बोल सकने का कारण बताया वह लोग जबलपुर के हैं। बेचारी महीना भर पहले ही बम्बई आयी है। बीरू ने जीवनलाल की पत्नी अनुसूया से बात की थी। घर में अनुसूया की ही चलती थी।

कमल को स्थान देने में अनुसूया को सब तरह से फायदा चार-पाँच आदमी की रसोई में एक खाना निकल आना क्या मुश्किल कमल ने तीन रुपये मासिक देना स्वीकार किया। अनुसूया उसे रसोई चौके में सहयोग का तो पूरा अवसर देती, परन्तु प्रबन्ध में दखल या एतराज का कमल को कोई हक नहीं।

परेल से मारुति फार्मेसी के पार्श्व भाग में विस्फोटक पदार्थ निर्माण कार्य आरम्भ हुआ तो रसशाला का मालिक धनवटे दहल गया। उसे क्या अनुमान, इस प्रक्रिया में तेजाब की ऐसी असह्य गंध उठेगी कि पड़ोस के मकानों में लोग खाँस खाँसकर परेशान, गंध से सिरदर्द की शिकायतें करेंगे। सब ओर 'काय झाला? क्या है? ए कम छे?" का शोर मच गया। उसे आशंका, पुलिस के कान में कुछ पड़ गया तो वह कहीं का न रहेगा। उसने तुरन्त काम स्थगित करा दिया। सन्देहजनक पदार्थ और उपकरण हटा दिये या नष्ट कर दिये।

धनवटे ने बीरू भाई से क्षमा माँगी, ये लफड़ा अपने बस का नहीं। इस काम में हमारा दो-ढाई हजार बर्बाद हुआ, हमने उसका गम बाया। दूसरी कोई सहायता कहो तो उसके लिये तैयार पर ये सब नहीं।" उसने कान हुए।

कमल क्रान्ति के प्रयत्न में जूझ जाने के प्रण से बेटे और सम्पत्ति को न्योछावर करके हज़ार मील दूर आयी थी, हाथ पर हाथ धरे बैठी रहने के लिये या चौथे-पाँचवें बीरू भाई की संगति में घूम-फिर लेने के लिये नहीं। मन बहुत खिन्न, क्या करें?

कमल सप्ताह भर निष्क्रियता से परेशान होकर सुमति लांगटे से बात करना चाहती थी । उषा मेहता को भी सन्देश भिजवाया। कमल बिना नाम ब्रॉडकास्ट करने को तैयार थी या केवल ट्रांसमीटर बना सकने की ट्रेनिंग का ही अवसर दिया जाये। सुमति बहुत नाराज़: पर्दे में पली इन नार्थ इंडियन लड़कियों का कोई एतबार नहीं मर्द देखते ही पागल जिन लोगों ने इसे बम्बई बुलाया, उन्हीं से पूछे।

अवसर से बापट मिल गया। बापट से कुछ अधिक परिचय था। बापट ने भी गर्दन हिला दी, "बाई, हम खुद इन लोगों से परेशान हो गया। काम कुछ नहीं, आपस में झगड़ा हम ख़ुद अपने निर्वाह का जुगाड़ करने की फिक्र में! हमारा स्टॉम्प का सब काम बर्बाद हो

गया। " मारुति रसशाला में काम रुके दो सप्ताह बीते थे, परन्तु कमल के लिये वह बहुत लम्बी अवधि बम्बई आये डेढ़ मास हो रहा था जब कुछ कर नहीं सकते, गिरफ्तार हुए न हुए. क्या फर्क? सरकारी जेल से बचकर अज्ञातवास की जेल। इसके अतिरिक्त खर्च का प्रश्न वक्त ज़रूरत के लिये चार सौ रुपया साथ लायी थी। अनुसूया ने प्रति मास पेशगी लेना तय किया था। आरम्भ की उमंग में कुछ अधिक खर्च कर बैठी थी। धोने बदलने के लिये दो-चार धोती साड़ी ज़रूरी थीं ही। अब निर्वाह के लिये खर्च का भी प्रश्न कमल की तीन-चौथाई पूँजी समाप्त। आगे कैसे निभेगा? पाठक को बताये पते पर ढाई सौ भिजवा देने के लिये लिख दिया, परन्तु चिन्ता, ऐसे कब तक मंगायेगी? वह रुपया उसका नहीं, पप्पू का है। अज्ञातवास करना है तो अपने पाँव खड़े होना जरूरी।

कमल के प्रति उत्तरदायित्व अनुभव करने या उसकी संगति की इच्छा से बीरू पाँचवें- छठे कमल से मिलने आ जाता। कमल उससे चिढ़ और खीझ के बावजूद उसे झिड़क या डॉट न सकती। कारण कि बीरू लखनऊ के सिन्हा या गोपाल जी की तरह लिबलिब किस्म का रसिया न था। बदन और स्वभाव से कड़ियल जरूरत हो तो हाथ भी चला दे और सब परिचितों से हजार मील दूर उस महानगरी में अब वही एकमात्र व्यक्ति जो सहायता के लिये प्रस्तुत।

कमल ने वीरू से अनुरोध किया, जब तक काम का अवसर नहीं बनता, निठल्ले समय गुजारना भी यातना । बेहतर अपना खर्च निकालने के लिये किसी स्कूल पाठशाला में काम या कोई ट्यूशन ही मिल जाये।

"कामरेड, तुम अपनी ज़रूरत बताओ!" बीरू ने सान्तवना दी, “जॉब के लिये भी यत्र करेंगे। यह टाइम प्रतीक्षा का है। युद्ध में अवसर की प्रतीक्षा भी महत्त्वपूर्ण काम " अध्यापिका का काम मिलने में कठिनाई भी बताई-हाईस्कूल, कॉलेज, में परिचय- सिफारिश और प्रमाणपत्रों के बिना जगह मिलना कठिन । यहाँ छोटे-मोटे स्कूलों में प्रायः पढ़ाई जाती है गुजराती- मराठी वह कमल जानती न थी, परन्तु कमल को आत्म-निर्भर हो सकने की उत्कट चिन्ता ।

बांद्रा से आती हिल रोड पर समुद्र तट से कुछ इधर दो मंजिले मकानों की पाँत में एक

पर बड़ा बोर्ड थारुस्तम स्टैनो इन्स्टीट्यूट बोर्ड पर दायें किनारे टाइप करती नवयुवती का चित्र और बायें नवयुवक का बोर्ड पर नज़र जाने से कमल को कंधारीबाग लेन की हैरन सिस्टर्स की याद आ जाती। बड़ी बहिन नॉन मैट्रिक करके प्राइमरी स्कूल में अध्यापिका बन गयी थी। उसका वेतन बीस-बाईस लगा था। उससे छोटी डेज़ी ने मैट्रिक करके चार मास टाइपिंग की ट्रेनिंग ले ली थी। उसे मिशन पब्लिशिंग हाउस में पैतीस की जगह मिल गयी थी। कमल ने इस विषय में अनुसूया से भी राय ली। अनुसूया ने समर्थन किया, बहुत अच्छा काम है। उसकी पहचान की अंग्रेजी पड़ी एक लड़की स्टैनो का काम सीख कर बांद्रा में ही एक दफ्तर में महीने में सत्तर पगार पा रही थी। उस जमाने में सत्तर अस्सी रुपया मासिक बम्बई में भी अच्छी तनवाह

कमल ने नवम्बर के अन्त में निष्क्रियता से ऊबकर रूस्तम्म स्टैनो इन्स्टीट्यूट में नाम लिखा लिया। एक घंटे ट्रेनिंग की फीस पॉच रुपया। सप्ताह भर उसे टाइपराइटर पर वर्णमाला का क्रम याद करने के लिये इमी पर उँगलियाँ चलानी पड़ीं। फिर पुरानी खचद्रा मशीन पर वर्णमाला और दो-दो, तीन-तीन अक्षर के वाक्या तीसरे सप्ताह में 'द ब्राउन फॉक्स विकली जड ओवर ए स्लीपिंग लेजी डाग' टाइप करने लगी। कमल अपनी सफलता से उत्साहित। दिसम्बर के अन्त तक हाथ चालू होने लगा। स्पीड कम थी, परन्तु काम साफा गलती न करती थी। खास बात उसे हाथ का लिखा वा घसीट पड़ लेने में कठिनाई न होती। साधारणतः स्टैनो का काम सीखने आते थे, मैट्रिक इंटर पास युवक- युवतियाँ। उनके लिये घसीट में लिखे दस्तावेज पड़ सकना कठिन

रुस्तम का स्टैनो इन्स्टीट्यूट अच्छा चल रहा था। कोचिंग टाइम प्रातः सात से ग्यारह संध्या छः से दस तक आठ पुरानी खचड़ा मशीनें तीन अच्छी हालत में शार्टहैंड सिखाने की फीस पाँच रुपया मासिक अलग

कमल ने प्रवेश फार्म पर अपना नाम रोमन वर्णमाला में के. ए. एम. ए. एल शाह लिखा था। रुस्तम ने उसे पुकारा कमाल शाह उसकी शिफ्ट के तेरह शिक्षार्थियों में उसके

अतिरिक्त चार और लड़कियों या युवतियाँ थीं। ज्योत्स्रा बीस-इक्कीस की मराठा लड़की- उदास चुप-सी थेरेसा, ईवा वियट्रिस तीनों क्रिश्चियन नवयुवतियाँ। लड़के भी अधिकांश क्रिश्चियन बांद्रा की पुरानी बस्ती मुख्यतः रोमन कैथोलिक ईसाई सब उसे कमाल पुकारते।

इन्स्टीट्यूट में मास पूरा होते-होते कमाल वहाँ का वातावरण भाँप गयी। वह अंग्रेजी सुविधा से समझ-बोल लेती थी। क्रिश्चियन स्टूडेंट्स से उसकी बातचीत जल्दी ही शुरू हो गयी। क्रिश्चियन युवक-युवतियों में भावुकता के सम्बन्धों की खींचातानी चल रही थी। खास तौर पर ईवा बेट्टी (वियट्रिस) और अलवों में अलवटों ईवा और बेट्टी दोनों का हीरो ईवा, कोंकणी, दबा हुआ कद, गहरा साँवला रंग, फैला हुआ चेहरा, देवी हुई ठुड्डी । पतली, मछली जैसी लम्बी-लम्बी आँखें बेट्टी गोआनी, अधिक काली, कद ईवा से जरा उठता, लम्बी गर्दन, छोटे गोल चेहरे पर अच्छा माथा, फैली हुई नाक, मोटे ओठ, बड़ी-बड़ी आँखें। जलवटों का कद काठ चेहरा-मोहरा आकर्षक रंग काला, परन्तु चेहरे पर बुनाई की चमक, लम्बी उठी हुई यूनानी नाक, माया खूब ऊँचा, माथे के दोनों बाजू भीतर दूर तक निलम केश महीन- घुंघराले आँखें बड़ी-बड़ी चंचल, महीन लाल डोरे पड़ीं, लुचपन की

लहक। ओठ भरे-भरे कई नस्लों का मिश्रण चेहरे पर सदा विद्रूप भरी मुस्कान। उन दिनों झुकाव बेट्टी की ओर ठगी जाने से ईवा का चेहरा उदास

युवतियों की जिज्ञासा के उत्तर में कमाल ने वही परिचय दिया जो अनुसूया को बताया था- पति रोजगार की तलाश में नैरोबी गया है। साल-डेढ़ साल तक लौटेगा।

रुस्तम जी का इंस्टीट्यूट केवल कोचिंग पर निर्भर न था। रुस्तम जी नौ बरस पूर्व बम्बई हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार के दफ्तर से रिटायर हुआ था। अदालती दुनिया में उसका व्यापक परिचय। उसके यहाँ अदालती काम आता रहता उम्र से उसकी नजर कमजोर हो गयी थी, उँगलियों में उतना सामर्थ्य न रहा था, अब बाई का दर्द भी। उसके यहाँ काम सन्तोषजनक निकलता था। उसे रेट भी अच्छा मिलता-छः आना प्रति पृष्ठ, दो आना प्रति कार्बन कापी। अपने यहाँ काम सीखे बेकार युवकों को दोपहर में टाइप का अवसर दे देता। आवश्यकतानुसार कभी दो, कभी चार व्यक्ति आ जाते। स्टूडेंट्स को तीन आना प्रति पेज और कार्बन कॉपी का दो पैसा अतिरिक्त देता था।

फरवरी तक कमाल का हाथ साफ हो गया था, स्पीड भी पैंतीस चालीस प्रति मिनट। रुस्तम जी कमाल को भी काम देने लगा। कमाल को प्रायः हाथ के लिखे दस्तावेज टाइप के लिये देता। उसे पढ़ने में समय लगता। अलवों के अलावा दूसरे लोग, घसीट पढ़ न पाते थे। कमाल अंग्रेजी का ज्ञान बेहतर होने के कारण अलबर्टो से भी अधिक सुविधा से पढ़ लेती। हाथ के लिखे दस्तावेज टाइप करने के लिये रुस्तम चार आना पृष्ठ देता था। कमाल दो बजे फिर इन्स्टीट्यूट चली जाती। पाँच-छः तक काम करती। सवा-डेंट रुपया बन जाता, कभी अधिका निर्वाह के लिये आत्मनिर्भरता का भरोसा, परन्तु सन्तोष नहीं। वह इतनी सम्पत्ति, बेटा, पी-एच० डी० बन सकने की सम्भावना ऐसी आत्मनिर्भरता के लिये न्योछावर करके न आयी थी।

टाइपिंग में हाथ चालू हो जाने पर फरवरी से कमाल को सुबह कोई काम न था । अलबर्टो ने उसे नेक सलाह दी तुम अंग्रेजी अच्छी जानती हो, शार्ट हैण्ड सीख जाओ तो सौ-सवा सौ का स्टार्ट मुश्किल नहीं। कमाल फरवरी से सुबह शार्ट हैण्ड सीखने लगी। दोपहर में टाइप का काम।

पाठक लखनऊ में उपा को डाक्टर रजा की तरह "उषा भाभी' या नरेन्द्र की तरह 'अ' सम्बोधन न कर उषा जी पुकारता था। उपा भी उसे भाई साहब या पाठक भाई नहीं, पाठक जी कहती थी। आत्मीयता के बावजूद आदर भाव का अंतर इलाहाबाद और बलिया में पाठक उसे निस्संकोच उषा पुकारने लगा था। उसने पहली बार उषा, यू आर ग्रेट' कहा तो उघा गर्दन झुकाकर मौन रह गयी थी।

ग्रेटा"

कमल की चार मास की बीती सुनकर पाठक ने फिर सराहना में कहा, "उषा, यू आर

""रियली!" कमल की भौवें विस्मय में उठ गयीं, मुस्करायी, "मुझे मालूम न था, टाइपिस्ट और स्टैनो बन जाना भी बड़प्पन इस बडप्पन से मुक्ति चाहती है।"

उषा की नजर भाटे में उतरे समुद्र तट पर दूर तक दिखायी देती चट्टानों और उससे परे स्थिर समुद्र की ओर थी। उत्तर देकर पाठक की ओर देखा। पाठक की आँखें उसके चेहरे पर

थीं। उसकी दृष्टि उषा की आँखों में गहरी बिंध गयी कि उसके रोम-रोम तक में पुलक की सिहरन । महीनों से पीले चेहरे पर लाली झलक गयी। सम्भलने के लिये नजर बचा ली, जो मुँह में आया बोल गयी, "गांधी के अनशन का परिणाम क्या होगा? अब हमारे लिये कौन रास्ता?"

"अनशन का प्रभाव परिणाम जल्दी ही सामने आना चाहिए।" पाठक ने कहा, "वायसराय की काउन्सिल के सभी मेम्बर गांधी की मुक्ति के लिये आग्रह कर रहे हैं, सब त्यागपत्र देने को तैयार वायसराय इसकी उपेक्षा न कर सकेगा। गांधी की मुक्ति के बाद- जैसे होता आया है— दूसरे नेताओं की मुक्ति, कांग्रेस और सरकार में समझौता।"

"पर कब तक?"

“समय तो लगेगा। महीना, डेढ़-दो या तीन " पाठक ने कहा, "जहाँ इतना झेला थोड़ा धैर्य और " पाठक सहसा रुका, "हो सकता है, सरकार हिंसा-ध्वंस में भाग लेने वालों को रिहा न करे। गांधी-नेहरू कह दें, हिंसा-ध्वंस करने वालों से हमें मतलब नहीं।"

अंधेरा हो रहा था। पाक कमल को मकान तक पहुँचाने गया। चलते समय बोला. "कल-परसों समय न मिलेगा। शुक्र संध्या आऊंगा।”

"जरूर आइयेगा!" कमल का अनुरोध, “आज महीनों बाद मन कुछ हलका हुआ। यह तो बहुत घुटन की जगह "

पाठक सान्ताक्रूज लौटने के लिये बांद्रा स्टेशन लौटा। संध्या साढ़े सात भीड़ के रेले का समय, सब प्लेटफार्मों पर भागम भाग पाठक बुकस्टाल की बगल में बेंच पर बैठे, सिगरेट पीते जवान को देख ठिठक गया। जरा लुके कंधे, माथे पर तेवर चिन्ता से एक ओर गिरी गर्दन, चश्मा, तर्जनी और मध्यमा में पकड़े सिगरेट पीने का ढंग भी वही बायीं ओर रखे ब्रीफकेस का हैंडल हाथ में, उसके शरीर का अंग ब्रीफकेस छः बरस बाद देखा पर जैसे कल की बात बात करने की इच्छा, परन्तु कुछ झिझक ।

युवक की आँखें पाठक की ओर उठी। माथे पर ध्यान से देखने की सिकुड़न। पाठक मुस्कराकर उसकी ओर बढ़ गया, "हलो हाओ इ यू हू!"

.."हाओ टू यू हू!" युवक ने झटके से खड़े होकर पाठक से पंजा मिलाया, "तुम झिझके क्यों?"

“नहीं, मैंने ही तो बुलाया।" पाठक ने संकोच छिपाया।

युवक पाठक का हाथ पकड़े स्टाल से आठ-दस कदम हट गया, "तुमने पहले देखा और झिझके। मैं तुम्हारी तरह भेस बदले नहीं हूँ कि पहचानने में संदेह होता!" पाठक की आँखों में देखा, "तुम्हें सन्देह, कम्युनिस्ट हूँ इसलिये तुम्हें गिरफ्तार करवा सकता हूँ! मैं अण्डरग्राउण्ड था तो तुम्हारा विश्वास करता था या नहीं?"

“तुमसे ऐसी शंका! तुम्हारा ही खेला हूँ तुम्हारे लिये अब भी वही आदर विश्वास। " पाठक ने कहा, "कुछ सोच रहा था। पहचानते ही खयाल आया, उस बारे में तुमसे बात

"क्यों नहीं! ऐसी कौन बात?"

"आज की समस्या। हम लोग तीन दिन से बहस कर रहे हैं, कुछ तय नहीं कर सके। बहुत उलझन में है, ब्यौरे से बात के लिये अवसर दे सको तो।"

“इस समय तो किसी की प्रतीक्षा में हैं। शुक्र दो के बाद से फुर्सत। शुक्र संध्या- रात के लिये एक दोस्त के यहाँ पाली हिल पर ताजी खुली हवा में चला जाता हूँ। उसके बजाय जहाँ तुम कहो, रात भर बात कर सकेंगे।"

पाठक ने सान्ताक्रूज में अपना पता-ठिकाना बता दिया।

पाठक बम्बई में अपने गाँव के पड़ोसी और लंगोटिया हलधर यादव के यहाँ ठहरता था। हलधर का पिता बाईस वर्ष पूर्व नौकरी के लिये बम्बई आया था। उसने दो भैंसें रखकर दूध का कारोबार शुरू कर दिया। अब चौदह भैंसें थीं। खार और सान्ताक्रूज में दो-दो मकान बनवा लिये थे। अपने रहने का मकान अलग एक सैकंड हैंड फोर्ड गाड़ी हलधर सेठ बन गया था।

पाठक को शुक्र संध्या सान्ताक्रूज जल्दी लौटना था। कमल को भी आने का आश्वासन दिया था। फैजी, मोहता, मेहर से तीन बजे से पहले ही बात हो गयी। पाठक पाँच से पहले ही कमल को साथ लेने के लिये झवेरी के यहाँ पहुँच गया। वीरेन्द्र देसाई ने कमल ने भी उसे बता दिया था, झवेरी के यहाँ अनुसूया को कमल का उससे क्या परिचय रिश्ता बताया गया है।

अनुसूया ने बताया, कमल टाइप स्कूल से अभी लोटी नहीं छः तक लौटती है। तीन दिन पूर्व समुद्र तट की ओर जाते और लौटते कमल ने पाठक को रुस्तम्स स्टैनो इन्स्टीट्यूट दिखा दिया था। पाठक उसी ओर चला गया। पाठक को इन्स्टीट्यूट में आया देख कमल को उत्साह की पुलका उठकर उसकी ओर बढ़ गयी। "चल सकती हो तो हमारे साथ अभी चली चलो! कमल ने अपने तुरन्त कागज फाइल में समेट कर रुस्तम जी को सौंप दिये।

कमल के साथ पाठक सान्ताक्रूज पहुँचा। कमल को जुहू की सैर के बजाय राजनैतिक स्थिति के सम्बन्ध में जिज्ञासा। खासतौर पर इसलिये कि पाठक ने बता दिया था, प्रसिद्ध कम्युनिस्ट इंटेलेक्चुयल भारद्वाज से मिलायेगा। सामयिक स्थिति पर उसी से बातचीत । ऐसा कौन समाजवादी जिसने भारद्वाज के बारे में न सुना हो। जुहू बीरू के साथ देख चुकी थी। सूर्यास्त हो ही रहा था। पाठक कमल को हलधर के यहाँ ले गया। अवसर से हलधर स्वयं मौजूद था। उसने अनुमान कर लिया, कोई राजनैतिक लेडी है। स्वयं जीना दिखाकर तिमंजिले पर ले गया। पाठक का मेहमान कुछ ही मिनट पहले आया था। उनकी प्रतीक्षा में

था।

पाठक के साथ आयी युवती को देखकर मेहमान युवक को कुछ विस्मय वह कमरे में पड़े तख्त पर लगी मसनद पर बैठा हाथ में थमी पत्रिका पढ़ रहा था। युवती के आदर में खड़ा हो गया।

पाठक ने निस्संकोच परिचय करा दिया "कामरेड भारद्वाज ! " कमल की ओर संकेत, "लखनऊ की विद्यार्थी नेता उषा सेठा" अप्रत्याशित परिचय से दोनों विस्मित परन्तु

प्रसन्न ।

पाठक ने तुरन्त बात आरम्भ कर दी। भारद्वाज की ओर देखा, "क्या अनुमान है. गांधी के जेल से रिहा हो जाने की आशा है या नहीं? कौंसिल के सभी मेम्बरों ने इस्तीफे दे दिये

हैं।"

"अनुमान की जरूरत नहीं विश्वस्त सूचना है, वायसराय गांधी को रिहा नहीं करेगा।" भारद्वाज ने बताया, "लिनलिथगो चर्चिल ग्रुप का डाइहार्ड टोरी। इसके अलावा होम सेक्रेटरी, सभी गवर्नरों और पूरी ब्रिटिश ब्यूरोक्रेसी का निश्चय-युद्ध चलते गांधी को छोड़कर जोखिम लेना गलती। इससे गांधी और कांग्रेस का प्रभाव बड़ेगा। इस समय सरकार की दमन नीति पूर्णतः सफल है। सरकार समझौते से अपनी प्रेस्टीज क्यों गिराये!" "गांधी की सेहत नाजुक है। अनशन से मृत्यु हो जाये। सरकार को जनता की उत्तेजना से अशांति या स्वयं आन्दोलन भड़क उठने की आशंका नहीं?"

“गांधी की हालत नाजुक जरूर है। डाक्टर खरे ने इस्तीफा नहीं दिया। उसका खयाल है, गांधी पानी में नींबू- ग्लूकोज ले रहा है। अनशन के दस दिन बीत चुके हैं। दस-पन्द्रह दिन और कोई आशंका नहीं। तुमने वायसराय का वक्तव्य नहीं पढ़ा- गांधी आत्मशुद्धि के लिये अनशन कर रहा है। यह उसका निजी, धर्म या नैतिक विश्वास का मामला है, राजनीतिक प्रश्न नहीं है। सरकार ने अपने ऊपर जिम्मेदारी न लेने के लिये गांधी के निजी डाक्टर विधानचन्द्र राय और गांधी की पत्नी को अनशन के समय साथ रहने की इजाजत दे दी है।" भारद्वाज का स्वर और धीमा हो गया, “गुप्त सूचना है कि सरकार ने मृत्यु की आशंका का भी प्रबन्ध कर लिया है। आगा खाँ के महल (गांधी जी के लिये खास जेल) में चिता के लिये कई मन चन्दन पहुँचा दिया गया है। मृत्यु हो जाने पर वहीं अंत्येष्टि संस्कार शव महल से बाहर न जाने देने का निश्चयः ताकि शव के जुलूस और प्रदर्शन से जनता में उत्तेजना फैलने की सम्भावना न हो सके। सरकार के पास पूरी रिपोर्ट है कि इस आन्दोलन के निरंकुश दमन से जनता जितनी अस्त और हतोत्साह है, पहले कभी नहीं हुई। गांधी और कांग्रेस नेताओं ने स्वयं हिंसा-ध्वंस की निन्दा करके दमन को सफल बनाने में सहायता दी है। सरकार को किसी विरोध की आशंका नहीं है, लेकिन सरकार ने सभी नगरों में उपद्रव की आशंका से सैनिक प्रबन्ध कर लिये हैं। ब्रिटिश नौकरशाही का विश्वास है, इस समय उनकी ओर से तनिक-सा शैथिल्य उनके लिये घातक हो सकता है। पिछले अगस्त की अपेक्षा आज उनकी स्थिति कहीं मजबूत। पिछले सात महीने में जापानी एक कदम आगे नहीं बढ़ सके। पश्चिम एशिया में जर्मन पीछे हट गये। रूस में तो जानते हो, तख्ता ही पलट गया। युद्ध के दौरान ब्रिटिश नीति में परिवर्तन की आशा नहीं।"

कुछ पल सोचकर पाठक ने पूछा, "गांधी-नेहरू जो कहें, तुम लोग जानते हो, आन्दोलन मैं जो कुछ हुआ, विट इंडिया प्रस्ताव, आंध्र-कांग्रेस के बुलेटिन और गांधी के सेक्रेटरी मधुवाला के लिखित निर्देशों के अनुसार हुआ। "

"जानते हैं।" भारद्वाज ने स्वीकृति का संकेत किया !

"फिर भी तुमने पीपल्स वार' और 'जनयुद्ध' में लिखा कि आन्दोलन की जिम्मेदारी गांधी और कांग्रेस नेताओं पर नहीं, सरकारी दमन नीति पर है। "

“सच बात यह है" भारद्वाज ने सिगरेट सुलगा लिया, “गलती गांधी और कांग्रेस की है, लेकिन हम जनता में उनका प्रेस्टीज नहीं गिराना चाहते। हमारे पत्र ने तुम्हारी पार्टी का नाम नहीं लिया, लेकिन जो तत्व फासिस्ट विरोधी युद्ध का विरोध करते हैं, फासिस्टों को अपना सहायक समझते हैं, वह फासिस्ट समर्थक हैं या नहीं?"

"तुम कांग्रेसी नेताओं की गिरफ्तारी का विरोध करके नेशनलिस्ट बन गये और उसके आन्दोलन का विरोध करके सरकार के भले बन गये! इस दोमुँही नीति को राजनीतिक ईमानदारी कहा जायेगा?"

"सुनो!" भारद्वाज ने तर्जनी उठायी, "हमने कांग्रेस का विरोध कभी नहीं किया, कांग्रेस की भूल का विरोध किया है। हम जानते थे और तुम जानते थे, विट-इंडिया प्रस्ताव के आन्दोलन का क्या रूप होगा! गांधी ने तो कह दिया- देश ने बाईस वर्ष में अहिंसा और सत्याग्रह की जो शक्ति संचय की है, उससे यह आन्दोलन चलेगा। हम जानते हैं और तुम जानते हो, देश ने अहिंसा और सत्याग्रह की क्या शक्ति संचय की है। वैयक्तिक सत्याग्रह की लीला छोड़ो आन्दोलन में जनता जब भी सहयोग देगी, आन्दोलन अहिंसात्मक या निष्क्रिय नहीं रह सका, न रह सकेगा। गांधी सरकार को शैतान कहकर उसके प्रति जनता में घृणा क्रोध उत्पन्न करे- -जो कि ठीक है; खून की नदियों, लाशों के ढेरों की परवाह न कर बढ़ने के लिये ललकारे, बुद्ध के समय इस शासन के बजाय अनाक को बेहतर बताये और जनता से आशा करे वह हिंसा से दूर रहे। इस धोखे में कौन आयेगा !"

भारद्वाज जीने पर कदमों की आहट सुनकर रुक गया।

साठ-आठ बरस का एक लड़का जीने पर दौड़ता च आया था। उसने हाँफते हाँफते पाठक को सम्बोधन किया, "आई पूछती, खाने को यहाँ ही ले आयें?" "हाँ हाँ, शाबाश! यहाँ ही भिजवा दो।"

भोजन के बाद भारद्वाज ने दूसरा सिगरेट सुलगा लिया तो पाठक ने पूछा, "हम लोगों की स्थिति में तुम्हारा क्या परामर्श है?"

भारद्वाज ने सोचकर कहा, "वेट एण्ड सी शत्रु की स्थिति, शक्ति और योजना जानकर चलना ठीक है। युद्धकाल में किसी उग्र कार्यक्रम का अवसर नहीं। सरकार अभी निरंकुश नीति पर तुली है। तुम्हें पकड़ पाने पर थानों स्टेशनों को जलाने, अफसरों की हत्या के षड्यंत्र या प्रोत्साहन का आरोप लगाकर फाँसी दे दें या बारह चौदह बरस की सजा । नाजियों और जापानियों का अवसर झपाटे में बाजी जीत लेने में ही था। अब उनके साधन समाप्त हो रहे हैं। युद्ध डेढ़ नहीं, दो बरस से अधिक न चल सकेगा। युद्ध समाप्ति पर स्थिति बदलेगी। कम से कम राज्यों में तो कांग्रेस सरकारें फिर बन जायेंगी। तब तक के लिये जेल में बन्द हो जाने से अज्ञातवास बेहतर निर्वाह के लिये कुछ भी कर सकते हो। उसके लिये यू० पी० से यहाँ बेहतर सम्भावना और अवसर यदि सहायता की जरूरत हो, बताना।" उषा को नौ तक झवेरी के यहाँ पहुंचा देना जरूरी था।

उससे अगली भेंट में पाठक ने कहा, "तुमने आत्मनिर्भरता का उपाय सोचकर उचित किया। डेढ़-दो बरस यहाँ ही काटना है। मैं भी कोई जुगाड़ खोज रहा हूँ।"

दो-तीन दिन के अन्तर पर पाठक से बातचीत हो जाने से कमल को मन हलका हो जाता। चौथी बार आया तो गांधी जी का अनशन समाप्त हो चुका था। गांधी जी और नेताओं की रिहाई के लिये सिर्फ एक जुलूस कम्युनिस्टों ने निकाला। इसके अतिरिक्त कोई आवाज न उठी थी। सब ओर निराशा, उदासी। पाठक और कमल राजनीतिक कार्यक्रम की क्या बात करते?

पाठक पाँचवीं बार आया तो अनुसूया ने कमल से कहा, "तुम्हारा गाम-भाई अब इधर ही रहेगा तो तुमको अच्छा है।"

कमल ने गुस्सा निगल कर सरलता से जवाब दिया, "गाम-भाई नहीं, नन्दोई है।" पाठक से बात हो गयी थी. क्या सम्बन्ध बतायेगी। कहा, "पहले बम्बई में ही काम करता था। घर पर परेशानी के कारण लौट गया था। फिर उसी काम के लिये आया है।"

अनुसूया को टोक का अवसर न देने के लिये कमल पाठक को सीधे इंस्टीट्यूट आ जाने के लिये कह दिया था। अलवों को नौकरी मिल गयी थी। उसके चले जाने से कमल को अधिक काम मिल रहा था। अप्रैल में सूर्यास्त और विलम्ब से होने लगा। कमल इंस्टीट्यूट में साढ़े छः-सात तक काम करती रहती। डेढ़-दो ढाई रुपये तक बना लेती।

समुद्र

अप्रैल के अन्त में पाठक और कमल समुद्र तट की ओर गये तो उस साँझ भी में खूब उतरा हुआ. दूर तक खुली सूखी चट्टानें। सूर्यास्त हुआ ही था, अभी खूब उजाला। दोनों समुद्र तट की सड़क छोड़ चट्टानों की ओर बढ़ रहे थे। पाठक ने सहसा टोक दिया, "कमल, तुम अजीब बदली हुई लगती हो। बाल बनाने का ढंग ही बदल गया है।"

भाटे

कमल झनझना गयी। उसके व्यक्तित्व, शरीर के बारे में ऐसे लगाव चिन्ता की बात पाठक ने कभी न कही थी। सम्भल कर बोली, "उसी प्रयोजन से पहचानी न जाने के लिये ही श्यामा ने ऐसे बाल बनाने का सुझाव दिया था।"

"उस प्रयोजन से नाक में कील काफी नहीं? तुम्हारी नाक विधवाने की मजबूरी की बात जानकर भी दुख हुआ था। मकान से बाहर जाने पर चश्मा लगा लेना काफी। माथा डक जाने से तुम्हारा बौद्धिक व्यक्तित्व ही छिप जाता है।"

“क्या फरक पड़ता है।" कमल ने नजर बचा ली।

"फरक क्यों नहीं पड़ता।" पाठक ने आग्रह किया, "तुम्हारा सुन्दर माया ढक जाना अच्छा नहीं लगता। तुम्हारा नाम अच्छी, तुम्हें अच्छी लगना ही चाहिये।"

कमल और उद्वेलिता अपने प्रति पाठक के लगाव और सराहना के उल्लास से मन उमग

आया, गर्दन झुक गयी।

"हमारी बात गलत है?"

"एकदम से बदलने में खटकेगा। आहिस्ता आहिस्ता पहले जैसा कर लेंगे।" नजर सामने जैसे समुद्र की लहरें गिन रही हो।

"हम तुम्हें अच्छी पुकारे

कमल को गहरे पुलक से कुछ श्वास अवरोधा अच्छी उसे बहुत लोग पुकारते थे। वह कोई खास बात न थी। यह प्रश्न अमर ने भी पूछा था। तब भी संकोच अनुभव हुआ था, परन्तु ऐसा नहीं। तब हँस दी थी, सुभी पुकारते हैं। अब उत्तर न दे पा रही थी। “जवाब नहीं दिया! पाठक का तकाजा

लगती हैं तो गर्दन और झुक गयी। पूरा खून चेहरे पर कान गरमा गये। “तब तो बहुत अच्छा कहना होगा।"

कमल क्या जवाब देती। संभली रहने के लिये उठे घुटने कौली में और कस लिये। नजर दूर लहरों पर कुछ सूझ न पड़ा तो कह दिया, "अंधेरा हो रहा है "चलें।"

कमल को चुप देख अनु ने टोका, "आज देर से लौटी ! बहुत चुप, खोई-खोई।"

"बक गयी। बहुत काम था, खत्म ही न कर पायी।"

“काम ज्यादा किया तो पगार भी जास्ती मिलेगा। काम के हिसाब से मिलता है न?" अनु ने बात पकड़ ली, "कहते अच्छा नहीं लगता, तुम खुद देखती हो, तब से सब महंगा हो गया। हम लोग तो बहुत कड़की में गुजर कर रहा, जनवरी से मकान भाड़ा भी दो आना रुपया बढ़ा दिया!"

अनु बेन, दो महीने से हम पाँच ज्यादा दिया है। रोज इतना काम नहीं होता। किसी केस का अर्जेंट काम था ।" मन में कुड़ी, ये सदा ज्यादा पैसा निचोड़ने की फिक्र में!

मई समाप्ति पर था। पाठक दो-तीन दिन के अन्तर से न आ पाता तो चौथे जरूर आ जाता। उसकी प्रतीक्षा में कमल इंस्टीट्यूट में सात तक रुक जाती। उस रविवार पाठक को आये नौवाँ दिन। कमल बहुत चिन्तित, क्या कारण हो गया? कभी अनिष्ट की आशंका: क्या अकस्मात लौट गये? सूचना भी न दे सके कैसे पता लगे?

रविवार रुस्तम के इंस्टीट्यूट में कोचिंग की छुट्टी रहती थी। पगार पर टाइप करने वाले दोपहर एक से सात तक काम कर सकते थे। कमल पृष्ठ पूरा कर मशीन पर दूसरा पृष्ठ लगाने के लिये कागज से कार्बन सटा रही थी। जीने की ओर आहट से नजर उठी, हाथ रुक गये।

कमल ने नया पृष्ठ मशीन पर चढ़ाने के बजाय स्क्रिप्ट फाइल में बाँधकर रुस्तम की मेज पर रख दी, “घर से आदमी जरूरी काम से बुलाने आया है। "

सूर्य अभी नेजे भर ऊँचा। ऐसी धूप में समुद्र तट पर कैसे बैठा जाये। इंस्टीट्यूट से आगे हिल रोड और गिरजा की सड़क के मोड़ से सौ कदम इधर ही था ऑर्डर (लता मण्डप) बार एण्ड काफे । वास्तव में लता मण्डप, सदाबहार रंगून क्लाइम्बर की छत। दोनों उसी में चले गये। रेस्तोरों में अभी सन्नाटा, केवल कोने में टेबुल पर एक अधेड़, बियर का मंग सामने रखे, सिगार से धुआँ छोड़ता अपने खयालों में खोया बैठा था। इतने दिन के बाद भेंट का पुलक छिपाकर कमल ने शिकायत की, कह तो जाते, नहीं आ सकेंगे। सच, बड़े निर्मोही "

कहाँ चले गये थे?

"निर्मोही!" पाठक ने टोका, "बम्बई में रह सकने के मोह में ही उलझा था, तुमसे जिक्र भी किया था। "पाठक ने बतायाः गांधी जी के अनशन के बाद पाठक ने फजली (फजल इलाही) से बात की थी। फजली स्वभाव का गहरा, बौद्धिक रुझान वकील क्रान्ति प्रयत्न से उसकी सहानुभूति, परन्तु अप्रत्यक्ष सहयोग फजली ने अपने सहपाठी विश्वस्त मित्र सदुद्दीन से अनुरोध किया: अपना एक बहुत अन्तरंग भरोसे का मित्र है। एम० ए० पास, ऑर्गेनाइजिंग कैपेसिटी और मेहनती तुम्हारे लिये उपयोगी हो सकता है। उसके लिये कोई जगह निकालो।

सदुद्दीन का खूब जमा और फैला हुआ मशीनों के आयात और बिक्री का पुश्तैनी कारोबार। बम्बई का समृद्ध पुराना परिवार। सदुद्दीन स्वयं बौद्धिक प्रकृति। कालेज में वह और फजली मार्क्सवादी ग्रुप में थे। सद्रुद्दीन बी० ए० के बाद बैरिस्टरी के लिये इंगलैण्ड में चला गया था। बैरिस्टरी का डिप्लोमा तो लिया, परन्तु विचारों से और गहरा क्रान्तिकारी

और प्रगतिवादी बनकर लौटा। दोस्त उसे रेवोल्यूशनरी प्रिंस कहते थे। इंगलैण्ड में रहते समय घूमने के लिये जर्मनी गया था। वहाँ भारतीयों की मार्फत एम० एन० राय के सम्पर्क में आ गया। राय से बहुत प्रभावित।

सङ्गृद्दीन के स्वदेश लौटने पर बरस भर बाद पिता नसीरुद्दीन अल्ला को प्यारे हो गये। वह अपने व्यवसाय की सम्भाल में इतना उलझा कि बैरिस्टरी के लिये समय नहीं। बैरिस्टरी का उतना चाव भी नहीं, न जरूरता एम० एन० राय १९३८ में छद्मनाम और जाली पासपोर्ट से भारत लौटा तो बम्बई में सदुद्दीन उसके मुख्य सहायकों में था। फजली उसके सब रहस्यों से परिचिता

सदुद्दीन के यहाँ दफ्तर गोदाम मिलाकर पचपन-साठ कर्मचारी। भरोसे का एक और योग्य व्यक्ति निञ्चय उपयोगी हो सकता था, परन्तु संदिग्ध व्यक्ति को रखने के लिये भरोसे लायक आड या टट्टी की जरूरत

फ़जली को उपाय करने में सवा मास लग गया। मुहम्मद इस्माइल जौहर की बी० ए० की सनद मिल गयी। अलवर रियासत के मुहम्मद इस्माइल जौहर ने १९३४ में आगरा यूनिवर्सिटी से बी० ए० किया था। बी० बी० एण्ड सी० आई० रेलवे के डी० टी० एस० के दफ्तर में क्लर्क था। १९३९ में रतलाम के समीप भयंकर रेलवे दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गयी थी।

सहद्दीन ने विक्री विभाग में मुहम्मद इस्माइल जौहर को सौ मासिक पर अप्रेंटिसी में छः मास के लिये जगह दे दी। आश्वासन, आगे तुम्हारी उपयोगिता अनुसार ।

पाठक ने कमल से कहा, "अब मैं मुहम्मद इस्माइल जौहर हूँ। पूरा बन करूँगा, सद्द्दीन के यहाँ उपयोगी हो सकूँ। बम्बई में निर्वाह का सहारा हो जाये। "

"अब मशीनें बेचा करेंगे!" कमल का स्वर खिन्न।

"पी-एच० डी० की तैयारी में लगा व्यक्ति जरूरत से स्टैनो का काम सीखने के लिये तैयार हो सकता है, हम मशीनें बेचने लायक भी नहीं! साधारण देसी व्यवसायियों की तरह उसके यहाँ भी दस से संध्या छः-सात तक काम चलता है। अलबत्ता विलायती फर्मों की तरह रविवार उसके यहाँ भी छुट्टी।

"बस रविवार ही आ सकेंगे

"दूसरे दिन भी आ सकता हूँ पर संध्या आठ के बाद आने से तुम्हारी मेजबान और

पड़ोसी ऊटपटांग बकेंगे।"

रविवार ही सही, लेकिन बिना बताये इतना लम्बा नागा नहीं।"

"अब तो निर्मोही नहीं कहोगी?

"निर्मोही तो हैं ही।" कमल मुस्करायी, "वह हमें पहले भी मालूम।"

"क्यों माया बेचारी समाचार पाकर चिन्ता की तड़प से आपको देखने इलाहाबाद से दौड़ी आयी और आप उनकी चिन्ता के विचार से उन्हें एक पोस्टकार्ड न लिख सकते थे ।" पाठक का चेहरा देख कमल की मुस्कान उड़ गयी. "कुछ अनुचित कह गयी तो खेद है।"

माया के प्रसंग से पाठक का चेहरा उदास हो गया था। कुछ देर चुप रहा। चारों तरफ

देखकर बोला, "यहाँ से उठा जाये। बात जरा लम्बी है।"

सूर्य क्षितिज से उतर रहा था। सड़क और समुद्र तट पर भी खूब उजाला उस साँझ समुद्र में ज्वार आ रहा था। दूर की चट्टानें अदृश्य बाँध की तरह साथ जुड़ी, ऊँची चट्टानों का सिलसिला समुद्र में पच्चीस-तीस कदम भीतर चला गया था। वहीं जगह प्राय: ही पहले आये लोग घेर लेते थे। रविवार संध्या लोगों को मैटिनी शो का आकर्षण होने के कारण वह स्थान रीता पाठक और कमल वहीं जा बैठे।

कमल को प्रसंग के लिये व्याकुल उत्सुकता। पाठक कई पल लहरों की हलचल की ओर देखता प्रसंग का सूत्र बाँधकर बोला, "अच्छी, कुछ तो माया तुम्हें बता चुकी । घोष और मेरे प्रति झुकाव में द्वन्द्व की बात! कुछ तुमने देखा भी, तुम हस्पताल उसके साथ आयी थी। उसका सहलाना दुलराना कई बार बहुत दूर तक बढ़ जाता। उसकी बात नहीं जानता पर मेरी स्थिति कठिन हो जाती." उसने कमल की ओर देखा, "कह रहा है तो सब कह लेने दो। उसे कई बार टोका, तुमसे भेंट की इच्छा नहीं दबा सकता, इसलिये आये बिना नहीं रह पाता परन्तु हमारा व्यवहार एक सीमा में रहना आवश्यक तुम आखिर घोष की पत्नी हो। समाज-संसार के नियम, बंधनों की मजबूरियों। वह न मानती। कहती, पत्नी हूँ। पर क्या मुझे किसी और को प्यार करने का हक नहीं। समाज और संसार की अस्वाभाविक दमन की मान्यतायें मुझे नामंजूर समाज के दूसरे अन्यायों का विरोध करेंगे तो इसका भी विरोध करेंगे। ''ऐसे क्षण मेरे लिये यंत्रणा बने जाते। दमन की मजबूरी में रक्त-मांस उबल कर"। लखनऊ आ जाने का एक कारण यह भी था।" पाठक ने कमल की ओर देखा, वह अभ्रमुदी आँखों, तन्मयता से सुन रही थी।

"मार्च सन् चालीस में हावड़ा-पेशावर मेल से इलाहाबाद स्टेशन पर उत्तरा था। मन में धुक धुक जरूर थी, माया के यहाँ जाऊँ, न जाऊँ? संयोग की बात, स्टेशन पर माया और घोष दोनों मौजूद घोष उसी गाड़ी से लाहौर जा रहा था। माया ने घोष के सामने ही मेरा हाथ पकड़ लिया मेरे साथ चलोगे। मेरी एक न सुनी। हम घर पहुँचे थे संध्या साढ़े आठ खाने के बाद बैठक में सोफा पर बैठा था तो मेरे साथ बैठ गयी। उसका वहीं उन्मुक्त उद्वेग गले में बाँह डाल चूम कर बोली, कितने दिन बाद आये हो! कोई बात करो जल्दी नहीं उठने दूँगी।"

पाठक की बात में कमल उसी प्रकार तन्मय, एकाग्र प्रसंग नाजुक होने लगा तो गर्दन कुछ झुक गयी। उसका पूरा शरीर पाठक के स्वर के कम्पन को अनुभव कर रहा था, कह चुका है ऐसी स्थिति में आत्मदमन मेरे लिये असह्य हो जाता था। माया की बाँह झटक कर उठ खड़ा हुआ, मैं जा रहा हूँ। नहीं बैठ सकूँगा। उसने लपक कर दरवाजे में जा बाँहें फैलाकर चौखट पर हाथ टिका कर रास्ता रोक लिया, मुझे धक्का देकर जाओगे! आखिर बात क्या?

"आवेश में कह दिया, तुम्हारे व्यवहार की कोई सीमा नहीं। तुमसे कह चुका हूँ तुम्हें क्या पता तुम्हारा खिलवाड़ मेरे लिये कितनी कठिन यातना बन जाता है। तुम अपनी उत्तेजना का शमन पति से कर सकती हो पर मेरा शरीर भी रक्त-मांस का है जाने दो

मुझे।

"माया ने रास्ता रोके स्वर में कहा, इस तरह नहीं जाने दूँगी, नहीं जाने दूंगी। उसने चौखट से आगे बढ़कर सिर मेरे कंधे पर रख दिया और सिसक उठी, आज तुम नहीं जाओगे।

"और मैं नहीं गया।

"दूसरी सुबह उसने मुझे बाँहों में लेकर पूछा, अब तो कोई शिकायत नहीं ?"

"मेरे मन में दूसरी चिन्ता इस सीमा को लांघ जाने के बाद अन्ततः हम कहाँ जायेंगे! उसे समझाना चाहा, तुम्हें स्वार्थी, संकीर्ण या भीर कभी न समझा था पर तुम्हारा जीवन मेरी संगति का अवसर मात्र नहीं, बहुत कुछ है। कल्पना करो, इस विषय में घोष की क्या प्रतिक्रिया हो सकती है। आज मुझे अपना समझकर सदा-सदा के लिये विदा दे दो।

घोष की प्रतिक्रिया से तुम्हारा अभिप्राय? क्या मैं घोष की सम्पत्ति हूँ, मेरा संतोष कुछ नहीं! माया फट पड़ी। उसे एक बाँह में कसकर दूसरे हाथ से उसका मुँह बन्द किया। मेरा अभिप्राय था, मेरी वैयक्तिक राय, समझ या सिद्धान्त से तुम्हारा काम अनैतिक नहीं

है।

"मावा फफक उठी, तो फिर क्या उपदेश देना चाहते हो?"

पाठक दो-तीन पल सोचकर बोला, "ऐसी स्थिति में माया के प्रति दायित्व, उसके भविष्य के विचार से क्या करता? उससे दूर रहने के प्रयत्न को निर्मोही कहोगी?

कमल की नजर सामने कुछ न देखकर भी झीनी चाँदनी में पूर्वापेक्षा अधिक ऊँची उठती लहरों की ओर उसका उत्तर दीर्घ निश्वास।

उनके बात करते-करते समुद्र ऊपर उठ आया था। चट्टानों से टकराती लहरों की फुहारों ने दोनों को काफी छींट दिया था। समुद्र अब चट्टानों की पीठ से केवल दो अढाई हाथ नीचे। "चलो उठो! कुछ मिनट में यहाँ से निकल पाना असम्भव हो जायेगा।" कमल के मकान की ओर लौटते पाठक बोला, "आज बातों में विलम्ब भी बहुत हो गया। तुम्हें 'होस्टेस' के कटाक्ष सुनने पड़ेंगे।"

अनुसूया ने विलम्ब के लिये कुछ न कहा। बहुत व्यस्त थी।

कमल को जीना चढ़ते ही जीवनलाल झवेरी के दौरे से लौटने का संकेत मिल गया; बीड़ी की अप्रिय गंध वह झवेरी से परोक्ष रहने का यत्न करती। अनु देखने में गदबदे बदन की खूब जवान सुदर्शन खी थी झवेरी सँगड़ाते छोटे कद के ऊँट जैसा घिनौना आदमी। कुछ लम्बी गर्दन, मोटे होंठ, लम्बी नाक, छोटी ठुड्डी, भैंसे हुए गाल, ऊँचा माथा सब बेजोड । अनु साँझ के लिये रोध चुकी थी। पति के आ जाने पर स्वागत में स्टोव पर हलवा तैयार कर रही थी।

पति रात में घर में रहता तो अनु छः बरस के बड़े बेटे मगनलाल के लिये, रसोई में कमल की चटाई के समानान्तर चटाई डालकर दरी-तकिया लगा देती। कमल के पंखे से लड़के को भी हवा मिलती रहती।

मकान का दूसरा मराठा किरायेदार देवे 'क्रानिकल' लेता था। दवे की पत्नी शकुन्तला दोपहर में अखबार कमल को दे देती थी। दोनों में अच्छी बोलचाल कमल नींद से पहले रसोई के मद्धिम प्रकाश में कुछ देर अखबार पढ़ लेती। उस रात अखबार पर नजर डालते समय और बाद में रोशनी बुझा देने पर भी खयाल आ रहा था पति-पत्नी सम्बन्ध, विशेषकर पत्नी पर पति का एकाधिकार समाज की कितनी बड़ी समस्या। उसी मान्यता के प्रभाव में गलतफहमी में ही सही, उसने कितना भोगा! माया के लिये वह मान्यता

निरर्थक पाठक सिद्धान्त से जो कहे, व्यवहार से उसी मान्यता का समर्थन किया। याद आया नरेन्द्र कोहली ने चाहे सदाशय से ही-अन्ततः कहा था, तुम अमर की पत्नी, पति को छोड़ जाने में सहायता नहीं दे सकता। चित्रा की भी बात याद आयी ।

मगन की नींद में बड़बड़ाने से ध्यान टूट गया। अनु को दो बार कह चुकी थी, लड़के को डाक्टर को दिखाओ। शायद उसके पेट में कृमि हैं इसीलिये लड़का पनप नहीं रहा। अनु ने कह दिया, इसका बाप आयेगा तो कहूंगी। मैं तो कुछ जानती नहीं। बात शकुन ताई (बड़ी बहिन) के सामने हुई थी। ताई ने बाद में कहा था, बेहया अपनी मौज में कोलाबा से कल्याण तक घूमती है। लड़के को डाक्टर के यहाँ ले जाने के लिये भोली, अनजान।

अनुसूया के सम्बन्ध मे शकुन्तला ताई की राय अच्छी न थी। कहती, खसम तो हिजड़ा- सा. खुद कैसे उस्से की। इसके कई बार दोस्त कमल की स्मृति मे प्रसंग बदल गया। अनु मीठा बोलकर कमल से सहायता लेती रहती। सुबह नाश्ते की चाय और रोटली बनाना उसके ही जिम्मे कभी अपनी तबीयत खराब बताकर खाना पकाने का काम भी कमल पर डाल देती। इसी बात पर शकुन ताई ने कहा था, "अनुसूया बहुत भागवान, तुम्हारी जैसी नौकरानी मिली है। तुम उसे तनखा दो और उसकी सेवा भी करो। "

कमल को शकुन्तला का घर बेहतर लगा था। अनु के कमरों से अधिक हवादार और बच्चों के अभाव में अधिक साफ शकुन्तला की आयु पचास के लगभग उसका लड़का बंगलूर में इंजीनियर। दोनों बेटियाँ अपने- अपने ससुरालों में कभी किसी नाती नातिन को कुछ दिन के लिये अपने यहाँ ले आती।

कमल हँस दी थी, "ताई, हमें आप नौकर रख लो !"

“न बाबा!" शकुन्तला ने कान छुआ, “तुम्हें वही रखे तो बेहतर। हमारे आदमी को तुम नहीं जानती। पचास लाँघ चुका है। अब भी तुम्हारे जैसी जवान औरत की छाया से ही पागल तुम नहीं जानती सुबह दफ्तर जाने से पहले उसकी आँखें इधर ही लगी रहती हैं। कि तुम इधर-उधर आती-जाती नहाकर निकलती दिखायी दे जाओ। मुझे अपना बुढ़ापा खराब करना है!"

"ताई, औरत होना ही मिसफार्चून " कमल ने कहा। उन दोनों की बातचीत हिन्दी, अंग्रेजी, मराठी मिली भाषा में होती थी। शकुन्तला बचपन में कई बरस नागपुर में रही

थी। "तुमेरे की क्या बोलूँ। तुम मेरा बेटी का उमर" शकुन्तला ने टोका, "अरे ये ही तो औरत का फार्चून!" कमल को उस रात नींद बहुत विलम्ब से आयी।

उस रविवार संध्या पाठक आया तो सूर्य क्षितिज पर ऊँचा था। ज्वार दोपहर में आकर उत्तरा ही था। समुद्र तट पर चट्टानें अभी भीगीं और ज्वार के बाद की विसांधा बगुले गल और दूसरे जल-पंछी लहरों से किनारे फिकी छोटी मछलियाँ और दूसरे समुद्री कीड़े-मकोड़ों के लिये किनारे पर मंडरा और झपट रहे थे। पाठक और कमल पाली हिल के नीचे गोल्फ की डलवानों के साथ सड़क पर टहलने चले गये। कमल के दिमाग में सप्ताह भर से माया का प्रसंग ही मंडरा रहा था।

"मानती हूँ "कमल ने कहा "आपने एक तरह से माया के हित के विचार में आत्मदमन

किया । "लम्बी बात का अभिप्राय था सभी समाजवादी मानते हैं कि वर्तमान विवाह और परिवार व्यवस्था, सम्पत्ति पर निजी या पारिवारिक स्वामित्व की अर्थव्यवस्था का ही अनुषंग है आप लोग उस व्यवस्था को बदल चुकी परिस्थितियों में जीर्ण, अनेक शोषणों और दमन का कारण मानते हैं। व्यवस्था को बदलने की माँग ही कान्ति की माँगा वर्तमान विवाह का परिवार व्यवस्था भी, चाहे उसे एक समय स्वेच्छा से स्वीकार किया, उसी व्यवस्था का परिणाम बन्धन है। उस दमन को आपने भी अनुभव किया। माया उस बन्धन या दमन को क्यों माने? कभी तो इससे विद्रोह करना ही होगा।

पाठक ने भी विस्तार से उत्तर दिया अभिप्राय था, क्रान्ति वैयक्तिक प्रश्न नहीं, न केवल वैयक्तिक प्रयत्न से सम्भव। उस व्यवस्था की समर्थक मान्यताओं के विरोध में सामाजिक भावना जगाना आवश्यक शासक या स्वामी के प्रति शासित और सेवक की भक्ति और उन मान्यताओं के समर्थक धार्मिक विश्वानों की मान्यतायें भी उसमें शामिल हैं वर्ना जिनकी मुक्ति के लिये क्रान्ति की जरूरत है वे ही लोग क्रान्ति के विरोधी होंगे। जैसे प्रजा की स्वतंत्रता का विरोध स्वयं प्रजा द्वारा या स्त्री के दमन का सबसे बड़ा समर्थन स्वयं खियों द्वारा व्यापक मान्यताओं से वैयक्तिक विरोध सफल नहीं होगा, केवल व्यक्ति को तोड़ देगा। ""समाज को भी उसकी गलत मान्यताओं के कारण तोड़ना नहीं, उसे मोड़ना ही होगा। क्रान्ति की सफलता तोड़ देने के पक्ष में नहीं मोड़ सकने में है।

जून के पहले सप्ताह से मानसून आरम्भ। लखनऊ में कमल को वर्षा अच्छी लगती थी। चकाचौंध धूप की अपेक्षा बादल छाये दिन प्यारे लगते, परन्तु बम्बई की वर्षा से दो सप्ताह में अघा ही नहीं गयी, बहुत परेशान। ऐसी वर्षा कि सुबह शार्टहैंड सीखने और दोपहर में टाइप के लिये फर्लांग भर जाना मुश्किल। एक दिन नागा हो गया तो अनु से छतरी मांग कर गयी। इन्स्टीट्यूट में बेट्टी ने समझाया, वहाँ की वर्षा जनाना छतरी में नहीं झेली जायेगी। कमल ने बेट्टी और ईवा की तरह हल्का जनाना बरसाती कोट, टोपी सहित खरीद लिया, परन्तु हिल रोड पर इतना पानी भर जाता कि साड़ी पिण्डलियों तक उठा लेने पर भी नीचे किनारा भीग जाये नाही उससे अधिक ऊपर उठाते संकोच। फिर सड़क पर चलती दूसरी खियों की तरह पानी में से लाँघने के लिये साड़ी पिंडलियों से ऊपर तक उठा लेने लगी।

उस रविवार भी पानी बरस रहा था। कमल को आशा, पाठक वर्षा में भी आ सकता है। आयेगा तो 'आर्बर' में कुछ देर बैठ लेंगे। दोपहर बाद वर्षा रुक गयी। पाठक न आया तो कमल को बहुत निराशा। दूसरे रविवार से पहले पाठक को समय मिलने की आशा न थी। अगले रविवार दोपहर बाद वर्षा न थी। पाठक मा पाँच बजे इन्स्टीट्यूट में आ गया था कमल अपनी फाइल समेट कर उसके साथ 'आर्बर' में जा बैठी।

कमल ने पिछले रविवार न आने की शिकायत की तो पाठक ने बताया, "अपनी कोठरी जमा लेने में व्यस्त था। अन्य दिन समय नहीं मिलता। अब में पूरा 'मुहम्मद इस्माइल जौहर' बन गया।" सदुद्दीन के यहाँ दो मास काम करके भरोसा हो गया था, उस काम को संभाल सकेगा। सद्गुद्दीन से जल्दी ही सद्भाव और विश्वास का सम्बन्ध भी बन गया था। तीन मास हलधर के यहाँ रहने के बाद पाठक को खलने लगा था, मित्र पर कब तक बोश

बना रहेगा! अब सौ मासिक पा रहा था और जम जाने का भरोसा। अपने लिये स्वतंत्र जगह की तलाश में था।

हलधर की सहायता से ही जगह मिली। खार में हलधर की एक तीन मंजिल की छोटी चाल थी। प्रत्येक मंजिल में पाँच खोली. हर मंजिल में खोलियों के लिये साझे नल, गुसलखाने और संडास। बीच की मंजिल में एक खोली खाली हो गयी तो हलधर ने पाठक को दिला दी। हलधर को मित्र से किराया लेने में संकोच, परन्तु पाठक के समझाने से मान गया। खोली का किराया पन्द्रह रुपया मासिक था। खोली के किराये की रसीद यादव सेठ की चाल और खार वाले भूसा गोदाम के मुंशी से मुहम्मद इस्माइल जौहर के नाम से ली थी।

• पाठक के स्वतंत्र कोठरी लेने की बात सुनकर कमल ने कहा, "जौहर साहब, मुझे भी कहीं स्वतंत्र जगह दिलवा दीजिये। पैंतालीस-पचास तक बना लेती हैं। पन्द्रह किराया देकर एक समय ही खाकर रहना मंजूर। इस गुजरातन से दुखी हो गयी। पच्चीस मासिक पर निश्चय किया था, तीस किये। अब कहती है, बहुत कड़की हो गया, पैंतीस दो।"

जौहर (पाठक) ने बताया: जानी मानी स्थिति की अकेली स्त्री को शायद स्वतंत्र जगह मिल जाये। चालों या मामूली बस्ती में तो अकेले मर्द को भी कोठरी खोली मुश्किल। अकेले मर्द से गृहस्थों को अपनी स्त्रियों के लिये आशंका चाल मालिक ने पड़ोसियों को विश्वास दिलाया, जौहर भाई हमारा पुराना पहचाना, जोरु जोता वाला आदमी है। इसकी घरवाली फैमिली में जरूरत से गाँव गयी है। डेढ़-दो महीना में आ जायेगी वर्ना पड़ोसी अकेले आदमी को खोली दी जाने से आशंकित थे उस चाल के रहने वालों का आपस में एका है। बीच की मंजिल के लोग मियाँ बीवी और बच्चे से बड़े परिवार को नहीं आने देते, चाहे खोली खाली रह जाये। पंचायत करके खाली जगह का किराया भर देते हैं। नहीं तो बहुत आदमी हो जाने से पानी, गुगल, संडास की तकलीफ। और चालों में तो एक ही खोली में बीच में पर्दा लगाकर दो-दो परिवार गुजारा करते हैं। उतनी ही जगह में दो चूल्हों या स्टोव पर अलग-अलग खाना रांधना।

जौहर ने सांत्वना दी। यह खेल दो-चार दिन का तो है नहीं। आशा है सदुद्दीन से पट जायेगी ढंग की तनखाह हो जाये तो कम से कम दो कमरे की स्वतंत्र जगह का प्रबन्ध कर लें, साथ रह सकेंगे।

कमल मन मारकर रह गयी। जुलाई बीता और जगस्त बीत रहा था।

कमल पौने आठ के लगभग शार्टहैंड के लिये जाती थी। मगन साढ़े सात बजे शाला जाता। कमल सुबह आटे में नमक मिलाकर चार-पाँच छोटी रोटली और भगोना भर दूध मिली चाय बना लेती। नहा-धोकर रसोई में जा रही थी। जीने से पुकार, “मगन! झवेरी भाई!"

कमल ने आवाज़ पहचान कर विस्मय से जीने में झाँका पाठक के चेहरे पर चिन्ता देखकर समीप हो गयी, "क्यों, क्या बात?" दबी आवाज़ में पूछा।

"टैक्सी लेकर आया हूँ।" पाठक ने स्वर बहुत दबाकर कहा, "तुरन्त सब कुछ समेट कर चल दो। यहाँ नहीं लौटनी। कह दो जेठानी की तबीयत अकस्मात खराब हो गयी। हमें

लिवाने को भेजा है।

चिन्तिता

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कमल ने घबराहट से अनुसूया को तुरन्त जाने की मजबूरी बतायी अपना सामान समेटने लगी। उसे पंखा भी ले जाते देखकर अनु को विस्मय, "क्या लौटोगी नहीं?" पाठक सामान उठाने के लिये ऊपर आ गया था। बोला, "वहाँ पंखा बिगड़ गया है। इसकी जेठानी को कुछ आराम मिलेगा। साथ लौटा लायेगी।"

अनुसूया क्या आपत्ति करती। कमल से खर्चा मास के आरम्भ में पेशगी लेती थी। टैक्सी विवेकानन्द रास्ता — तब घोड बन्दर रोड पर आते ही कमल ने जिज्ञासा से पाठक की ओर देखा। पाठक ने ड्राइवर की ओर कटाक्ष से प्रतीक्षा का संकेत कर हाथ में बेटन की तरह गोल लिपटा अखबार दिखाया अर्थात् समाचार इसमें है। कमल और व्य

पाठक ने टैक्सी खार में चाल के सामने रुकवायी। कमल को ऊपर की मंजिल में ले गया। हाथ का बोझ एक बोली के सामने रखकर ताला खोला "तुम्हें मालूम जगह बहुत कम है। तुम्हें परेशानी तो होगी। इस समय दूसरा उपाय नहीं। जल्दी ही दूसरा प्रबन्ध करेंगे।"

कमल ने अखबार उठा लिया। समाचार के लिये मोटे शीर्षकों पर नज़र दोहा रही थी। पाठक ने पहले पृष्ठ के अंतिम कालम में छोटे अक्षरों में शीर्षक की ओर संकेत किया।

समाचार था: बहुत समय से फरार गिरोह की गिरफ्तारी में पुलिस को सफलता। पुलिस कई मास से खतरनाक अपराधियों की टोह में थी। पूर्व प्राप्त सूचना के आधार पर पुलिस ने कल रात नौ बजे वर्ली में बखोरा होते की एक चाल पर छापा मारकर पाँच अभियुक्त, तीन जवान और दो युवतियों को सामान सहित गिरफ्तार कर लिया। पुलिस अभी इस विषय में कुछ सूचना नहीं देना चाहती। अभियुक्त वेश और व्यवहार से आधुनिक शिक्षित वर्ग के जान पड़ते हैं।

जौहर ने चिन्ता का कारण बताया: पिछली साँझ वली में फर्म के बड़े गोदाम में गया था। वहाँ विलम्ब हो गया। सात के करीब बखोरा की ओर लौट रहा था। दाहिने हाथ गली के सिरे पर पान की दुकान के सामने बीरू दिखाई दिया। प्रतीक्षा में जान पड़ा। कुछ कदम आगे फुटपाथ पर देसाई और शान्ता उसी ओर आते दिखाई दिये। मालूम था, कभी-कभी बखोरा की एक चाल में ऊपर की मंज़िल से ब्रॉडकास्ट होता था। अनुमान कर लिया था वे लोग उसी प्रयोजन से ऊधर जा रहे होंगे। समाचार से स्पष्ट-रात ब्रॉडकास्ट करते घर

लिये गये।

था।

कमल की जगह वीरू जानता था। उस जगह से कमल को तुरन्त हटा देना आवश्यक

“यह जगह तुम्हारे लिये ठीक नहीं। तुम्हारे लिये किसी परिवार में जगह का यत्र करूँगा। आज न हो सका तो एक-दो दिन में हो जायेगा।" जौहर ने आश्वासन दिया, "मुझे काम पर जाना है। जल्दी लौटने की कोशिश करूँगा। ईरानी का होटल समीप है। वहाँ चाय-नाश्ता ले लें। यहाँ समीप सब कुछ मिल जायेगा।"

"पड़ोस में कौन लोग हैं?" कमल ने पूछा, "कोई पूछे तो क्या परिचय दू? आप तो यहाँ

मुहम्मद इस्माइल हैं।"

जौहर कुछ झिझका, "तुमने जिक्र किया था। हलधर ने पड़ोसियों से कहा था, अपना जाना-माना, जोरू जाता वाला भला आदमी है। दे दो ढाई महीने तक बीबी आ जायेगी।" मुस्करा दिया, "देखेंगे आ गयी।"

कमल हँस दी, जैसे आप इस्माइल, हम कमाल। वैसे और सब हमारा नाम पूछेंगे तो कमाल बता देंगे। कमल फिर कमाल बन गयी।

दोनों ईरानी के यहाँ जाकर चाय-नाश्ता ले आये। जौहर जा रहा था तो कमाल ने अनुरोध किया, "पता लीजियेगा, कौन-कौन से लोग गिरफ्तार हुए।"

जौहर ने आश्वासन दिया, "हमें स्वयं चिन्ता।" जौहर के जाने के बाद कमाल कुछ देर निश्चल बैठी रही। कैसे नाटकीय ढंग से कहाँ आ पहुँची। देखो आगे क्या देखना है। कमरे के मर्दाना अनाड़ी फूहड़पन पर नज़र डाली। प्यार की मुस्कान। कमरे में बसी सूक्ष्म गंध नौ मास से अधिकतर रसोई की गंध या जनाना बचकाना गंधा इंस्टीट्यूट में अलबर्टो हाल्डेन, केतले चार-पाँच जवान आते थे। उनके पसीने की गंध, मछली की उबकाई भरी गंध यह गंध संस्कारों के लिये परिचित ।

कमाल घर सम्भालने के लिये उठी। भीतर साँकल लगा ली। अपनी साड़ी उतार कर खूँटी पर लदे जोहर के कपड़ों पर रख दी। झवेरी के यहाँ अपना कपड़ा दूसरों के कपड़े से छूने पर खीझ आती थी। पहले उलझे कपड़े तहाये, आलमारियाँ झाड़ी, फिर पानी छिड़क कर झाड़ू से सफाई शुरू।

किवाड़ों पर दस्तक परेशानी में साड़ी लपेट कर क्रिवाड़ खोलकर देखा पड़ोसिन सिंधन थी, "तुम झाडू-बुहारी कर लो। फिर आयेगा।"

आधे घंटे में कमाल ने कोठरी साफ कर ली। अपने सामान से साफ चादर लेकर दीवार के साथ चटाई पर बैठने की जगह बना दी। दूसरी बार दस्तक पर बायीं ओर की पड़ोसिन । औरंगाबाद का मुस्लिम परिवार। वह बम्बैया हिन्दी से भी अनजान केवल मराठी बोलने वाली सिंधन दूसरी बार आयी। सिंधन को विस्मय तुम्हारा कपड़ा पहरावा तो इधर की हिन्दू औरत जैसा।

"हम पैले इदर रह गया दादर में हमारा मुल्क राजस्थान में, औरत का पोशाक ऐसा ही ।" शेष परिचय भी दिया, "बेटा है, साने तीन बरस का सास ने रख लिया. इधर का पानी बच्चा लोग को ठीक नहीं है। फिर जायेगा तो ज़रूर लायेगा ।" कमाल ने नौ मास में बम्बैया लहजा थोड़ा-बहुत जान लिया था।

पड़ोसिनें चली गयीं तो याद आया दो बजे टाइप के लिये जाती थी। अर्जेंट काम था परन्तु स्थिति जाने बिना, जौहर से राय लिये बिना कैसे जाये।

• कमाल पाँच बजे से ही बार बार घड़ी देख रही थी। जौहर ने जल्दी लौटने को कहा था। साढ़े छ: दस्तक पर किवाड़ खोले, जौहर के चेहरे पर मुस्कान। कमाल भी उल्लास से मुस्करायी।

जौहर की मुस्कान से ही कमाल को कुछ आश्वासन फिर भी पूछा, "क्या पता लगा?" " गिरफ्तारी दूसरे लोगों की हुई।" जौहर ने बताया, "अपने आदमियों की नहीं।" बम्बई के बड़े-बड़े पत्रों में सद्रुद्दीन का रसूख 'क्रानिकल' में फोन करने पर पता चला - गिरफ्तार

होने वाले लोग गोल्ड-स्मगलर गैंग के थे। उनका काफी स्टाक भी पकड़ा गया। कमाल मुस्कुरायी, “सचमुच धोखे में आ गये या मक्कारी की। "

"क्या कैसी मकारी?" जौहर ने उसकी आँखों में देखा।

"हमें यहाँ ले आने के लिये कह रहे थे न, साथ रहने का प्रबन्ध करेंगे!" "तुम्हें मुझ पर संदेह जौहर गम्भीर।

"बुरा मान गये!" कमाल की मुस्कान उड़ गयी, "हमने मजाक किया। हमें आप पर संदेह - आशंका! यों ही कह देते चलो' "तो हम क्या नहीं आ जाते!" नज़र झुका ली। जौहर ने उसे खींचकर बाँहों में कस लिया। साँस में अवरोध से कमाल की गर्दन पीछे शुककर चेहरा उठ गया। पलकें मुंदीं। जौहर का मुख उसके मुख पर दब गया। कमाल साँस रोके, निर्विरोध कई पल शिथिल ।

"अच्छी अच्छी!" जौहर ने कई बार पुकारा, "देखो न!" "ऐसे ही रहने दो। ऐसे ही मर जाने दो।"

जौहर ने फिर चुम्बन 'उसका मुख बन्द कर दिया।

संध्या जौहर और कमाल ईरानी होटल में खाने के बाद अन्य आवश्यक वस्तुओं के साथ बिस्तर के लिये एक और चटाई खरीद लाये। जौहर कपड़े बदलने के लिये बरामदे के साँझे गुसलखाने में चला गया था। तब तक कमाल ने साड़ी बदल ली थी। पंखे की हवा दोनों पा सकें इसलिये पंखा दरवाजे के समीप रखकर चटाइयाँ खोली की चौड़ाई में, एक फुट के अन्तर से समानान्तर बिछायी गयीं। कुछ मिनट बाद बातचीत में सुविधा के लिये जौहर ने अपनी चटाई कमाल की ओर सरका ली। बात करने को क्या थी, परन्तु बात करने की इच्छा अनन्त । सामीप्य से अधिक सामीप्य के लिये उद्वेग ।

कमाल को स्पर्श, आलिंगन, चुम्बन में आपत्ति न थी, परन्तु जौहर के चरम आवेग को रोकने के लिये घबड़ा कर उसके हाथ पकड़ लिये।

"अच्छी, तुम्हें परेशान कर रहा हूँ?"

"नहीं!" कमाल का विश्वास भी विहवल "हमें वश में रहने दो।"

जौहर उठकर बैठ गया था। उसकी व्याकुलता और आत्मनिग्रह की यातना के अनुमान से कमाल भी अपनी चटाई पर बैठ गयी। जाहर के प्रति सहानुभूति की वेदना और व्याकुलता वश करने में दाँत पीस लिये। दोनों मीना

जौहर ने मौन तोड़ा "अच्छी, गत छः मास में और सॉझ आपसी व्यवहार से मैंने समझ लिया था कि अपनी परिस्थितियों में हम दोनों ही परस्पर सहारा और सहायक हो सकते हैं। हमारी परस्पर मैत्री या आकर्षण इतना गहरा चुका कि हम पूर्णतः एक हो गये, पति- पत्री के सम्बन्ध तक, परन्तु अब समझा कि तुम यह नहीं चाहती। तुम्हें परेशान करने के लिये खेद है।"

"सव चाहती हूँ पर विवश हैं। माँ भी हूँ। अब भी आशा कि कभी मेरा पप्पू मुझे मिलेगा। अपने पप्पू को पाने में कोई आड़ नहीं बनने देना चाहती। तुम्हें पाकर भी न पा सकने की मज़बूरी, जिन्दा जलने की यातना।" कमाल ने अपना सिर दोनों हाथों में दबा लिया। "पप्पू और तुम्हारे बीच मैं कैसे आद्र बन सकता हूँ?" जौहर ने पूछा, "तुम पत्नी तो पप्पू

पहले बेटा।" "मेरा सर्वप्रथम उत्तरदायित्व पप्पू ।"

इस बार कमाल के हाथों ने जौहर को पाया। दूसरी सुबह से कमाल का दूसरा जीवन । पिछली साँझ कुछ सामान जुटा लिया था, कुछ पहले से था। घोड़ बन्दर रोड पर बस स्टाप देख लिया था। हिल रोड स्टॉप तक दस मिनट का रास्ता रुस्तम से बात की, जगह बदल ली है। अब शार्टहैण्ड दस से ग्यारह तक सीखेगी। बाद में टाइप का काम करेगी।

कमाल दो दिन न आयी थी. तीसरे दिन आयी तो बेट्टी, ईवा और दूसरे लोगों को कुछ बदली सी लगी। दो दिन में ही चेहरे पर रौनक, अधिक जीवन्त ईवा ने पूछा, "तुम ऐसी खुश! क्या लाटरी आ गयी?"

"मैं लाटरी नहीं खेलती।" कमाल ने कहा, “लाटरी से बड़ी चीज़।"

"हस्बैंड लौट आया ईस्ट अफ्रीका से?" ईवा ने अनुमान बताया। कमाल ने मान लिया। "तभी तुम दो ही दिन में क्या से क्या?" ईवा ने कहा, "माई डियर, अपने हस्बैंड से बड़ी चीज़ दुनिया में कुछ नहीं, लेकिन आदमी ढंग का हो तब न! नहीं तो जिन्दगी की सबसे बड़ी मुसीबत सब लोगों का अपना-अपना ढंग है। प्रोटेस्टेंट लोगों में पति-पत्नी में साथ दूभर हो जाये तो डाइवोर्स हो सकता है। हमारे कैथोलिक रिलीज़न में डाइवोर्स भी नहीं। पति जैसा भी दुराचारी हो। बहुत सी पत्नियों भी "पर क्या करें। अपना रिलीज़न

कमाल ने चाल में पड़ोसिनों से कह दिया, पहले बम्बई में थी तो मटुंगा में मुस्लिम लड़कियों के स्कूल में पढ़ाती थी। फिर वहीं काम करेगी। संध्या जौहर के आने से पहले आ जाती कि उसके आने तक खाने को तैयार रखे। वह खोली दोनों के लिये सुखद घोंसला तंगी और कठिनाई में जीवन की तृप्ति और उमंग का नशा

• कमाल याद न करती थी, परन्तु तीन बरस का पहला दाम्पत्य बिलकुल भूल भी न गयी थी। याद आने पर राजे (अमरनाथ सेठ) के प्रति अब भी आदर का भाव सच्चा, गम्भीर, आदर्शवादी गुरु-मित्र, जीवन साथी तब भी पाठक से परिचय था। उसे तीक्ष्ण बुद्धि, भरोसे का, आदर्शवादी, परन्तु व्यवहार कुशल समझती थी। हंसी-मजाक पसन्द, परन्तु प्रायः काम से काम बम्बई में उसे दूसरे रूप में जाना। जादू (यादव) सेठ की चाल की खोली में आकर अभिन्न संसर्ग की गहराई से जाना; बात-बात में व्यंजना, किल्लोल के लिये फड़कती नस-नस उसकी संगति में स्वयं अदम्य उद्वेलन की झनक उल्लास की मादकता; रसोद्रेक की नयी-नयी कल्पनायें, नयी विधायें, नये आयाम कुछ दिन उसे प्यार में मियाँ पुकारा और फिर 'इस्माइल' के बजाय केवल 'स्माइल' उल्लास उत्साह में धम के लिये दूनी जीवटा पहले से योड़ा काम निकालने लगी। अभ्यास से गति भी बढ़ गयी थी। रुस्तम कानूनी, महत्वपूर्ण दस्तावेज टाइप के लिये सिर्फ उसे ही देता। दिन में ढाई-तीन रुपये तक बना लेती।

कमाल के साथ खार में जादू सेठ की चाल में आने के पाँच सप्ताह बाद बम्बई में दूसरी बार अवैध स्वतंत्र रेडियो पाँच कार्यकर्ताओं सहित पकड़ा गया। गिरफ्तार हुए लोगों में से किसी को भी कमल का ठिकाना मालूम न था ।

छः मास में जौहर ने अपनी उपयोगिता प्रमाणित कर दी थी। सदुद्दीन से केवल

व्यवसाय के कर्मचारी का ही नहीं, मैत्री का नाता बन गया था। अप्रेन्टिसी के समय तीन मास के बाद ही उसने जौहर का वेतन डेढ़ सौ कर दिया था। दिवाली पर नये वर्ष के आरम्भ से और बड़ा देने का संकेत

अक्टूबर, १९४३ में जापानी रेडियो ने समाचार दिया कि सिंगापुर में जापान के संरक्षण में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने स्वतंत्र भारत सरकार की स्थापना कर दी। उस समय तक “भारत छोडो' आन्दोलन पूर्णतः बैठ गया था। पश्चिम में १९४३ आरम्भ से ही नाज़ी और फासिस्ट शक्तियों का पराजय आरम्भ हो गया था। जुलाई अंत में इटली में मुसोलिनी के प्रति विद्रोह के बाद बोदाग्लियो मित्र राष्ट्रों का सहयोगी बन गया। वर्मा से जापानी लगभग खदेड़ दिये जा चुके थे। जौहर और कमाल कांग्रेसी नेताओं के बयानों के बाद और राव समर्थक सदुद्दीन के प्रभाव से अब स्थिति को दूसरे दृष्टिकोण से देखने लगे थे। अक्टूबर में लार्ड लिनलिथगो की जगह लार्ड वेवेल वायसराय बन गया। राजनैतिक वातावरण में परिवर्तन की आशायें बनने लगी थीं।

सदुद्दीन जौहर की वास्तविकता से परिचित और फजली द्वारा बनायी कानूनी टट्टी से आश्वस्त था। जौहर के काम से बहुत संतुष्ट और मित्र रूप में भी उससे आकर्षित। जौहर ने उसे कमाल के साथ गृहस्थ बना लेने के बारे में भी बता दिया था।

बोहरा व्यवसायी बिरादरी, नववर्ष हिन्दू व्यवसायियों की तरह दिवाली से मानते हैं। नवम्बर के आरम्भ में दिवाली पर सदुद्दीन ने जौहर और कमाल को पर बुलाया था। नये वर्ष से जौहर का वेतन दो सौ कर दिया था। उसी सप्ताह कमाल ने रुस्तम से शार्टहैण्ड की ट्रेनिंग का सर्टिफिकेट ले लिया था।

अलबों के लिये नौकरी का अनुशासन नियम निबाहना कठिन। नौकरी खोज लेता, परन्तु तीन मास से अधिक न कर पाता। वह फिर रुस्तम के यहाँ टाइपिंग की पगार करने लगा था। दिसम्बर में उसने कमाल को 'टाइम्स आफ इण्डिया' में एक विज्ञापन दिखाकर कहा, "हियर्म ए जॉब फॉर यू" इन्टरकॉन्टीनेन्टल आयल कम्पनी के जनसम्पर्क विभागाध्यक्ष को लेडी स्टेनो सेक्रेटरी की आवश्यकता थी। विज्ञापन में पहले किये काम या शैक्षणिक योग्यता के प्रमाण पत्रों की माँग न थी। माँग थी, अंग्रेजी भाषा के सम्यक् ज्ञान और उम्मीदवार के फोटो की। उसके पश्चात् साक्षात्कार भेंट।

जौहर ने उत्साह बढ़ाया आज़माने में क्या ही कमाल को साक्षात्कार के लिये बुलावा आ गया। अमरीकन कम्पनी के जनसम्पर्क विभाग का अध्यक्ष भी अमरीकन कमाल आई० टी० में चार बरस अमरीकन अध्यापिकाओं से पड़ी थी। अमरीकन उच्चारण, लहजे से परिचय काम आया। तीन मास ट्रायल के लिये काम मिल गया। वेतन डेढ़ सौ और चर्चगेट स्टेशन तक लोकल का फर्स्ट क्लास का पास

कमाल से केवल विभाग के अध्यक्ष की स्टेनो-क्लर्क के कार्य की अपेक्षा ही न थी। उसका मुख्य काम था, विभाग के लिये सूचना संकलन। दफ्तर में सभी महत्वपूर्ण समाचार पत्र जहाँ-तहाँ से आते थे। भूमध्य और अतलांतक सागरों में नाजियों और फासिस्टों का आतंक कम हो जाने से कम्पनी का काम फिर चालू हो रहा था।

आधुनिक सामाजिक, औद्योगिक और राजनैतिक जीवन में खनिज तेल अनिवार्य वस्तु।

किसान की झोपड़ी या नगरों में गृहस्थ की रसोई से लेकर खेतों में ट्रैक्टर, युद्ध क्षेत्र में टैंक, भूमि, जल, आकाश में यातायात, सभी के लिये खनिज तेल अनिवार्य इसलिये कम्पनी को निकट और सुदूर पूर्व के सभी देशों में राष्ट्रीय, सामाजिक, औद्योगिक, सांस्कृतिक गतिविधि की जानकारी जरूरी कमाल का काम था सब पत्रों पर नज़र डालकर विभागाध्यक्ष के लिये प्रति सप्ताह एक संक्षेप तैयार कर देना; एक प्रकार से शीघ्र कार्य। स्टेनो-क्लर्क एक और भी थी। कमाल को दिन में दो-तीन खास पत्र ही टाइप करने होते। शेष समय सूचना संकलन का काम उसके लिये पृथक् केविन कमाल इस काम से बहुत सन्तुष्ट और कम्पनी उसके काम से। तीन मास पश्चात् उसे दो सौ मासिक पर आई० सी० ओ० सी० (इन्टरकॉन्टीनेन्टल आयल कम्पनी) में स्थायी काम मिल गया।

सदुद्दीन की पत्नी खालिदा दीवाली के बाद कमाल को ईद पर और दोनों बेटियों के जन्मदिन पर अपने यहाँ बुला चुकी थी। छोटी बेटी सुल्ताना सात की थी। उसे कमाल आंटी बहुत प्यारी लग गयी थी। एक बार पहले भी कमाल आंटी के यहाँ जाने के लिये कह चुकी थी। खालिदा ने अप्रैल अन्त में शबे बारात के अवसर पर भी जौहर कमाल को बुलाया था। सुल्ताना को इस बार फिर कमाल आंटी के यहाँ जाने की चाह ।

कमाल ने सहद्दीन को सुनाकर सुल्ताना से कहा, "डैडी से कहो, हमें रहने लायक जगह दिला दें। हर इतवार ले जाया करेंगे।" सदुद्दीन की बीबी पर्दा न करती थी कमाल की सदुद्दीन से तीन-चार बार बात हो चुकी थी, राजनैतिक स्थिति पर लम्बी बातें भी। अपने प्रति सदुद्दीन का सदभाव भाँप गयी थी।

फरवरी से जौहर और कमाल को खार की चाल की खोली असह्य हो गयी थी। दोनों मिलकर साढ़े चार सौ पा रहे थे। अच्छी जगह के लिये, सत्तर-अस्सी तक किराया देने के लिये तैयार। अखबारों में किराये के लिए खाली जगह की नोटिस देखते रहते। रविवार कोई जगह देख भी आते। ढंग की जगह सवा-क्षेत्र सौ से कम में मिल न रही थी।

अप्रैल अंत में जौहर कमाल को सद्रुद्दीन के अप्रत्यक्ष प्रभाव से पाली हिल पर मकान मिल गया।

आज बांद्रा में पाली हिल पर बीस वाईस मंजिल ऊंचे मकान भी हैं। तीस वर्ष पूर्व वहाँ तीन मंजिल के मकान भी न थे। बांद्रा की आम बस्ती और पाली हिल की संक्षिप्तसी बस्ती के बीच आम का बागान जैसा स्थान खाली था। जौहर को पाली हिल पर, ठीक समुद्र तट पर तो नहीं, टीलों के नगर की ओर ढलान पर जगह मिली। छोटा दो मंजिला मकान, चारों ओर से अलग-थलग मकान का नाम 'न्याज' मकान किरायेदारों की सुविधा के विचार से ऊपर-नीचे चार छोटे भागों में बाँटकर बनाया गया था। प्रत्येक भाग में दो कमरे, रसोई, गुसलखाना, सामने बालकनी अस्सी रुपया माहवार में मकान से समुद्र न दीखने पर भी हवा इतनी कि पंखे चालू न करने पर भी हवा के फरटि से रात दिन घूमते रहते।

मकान सुविधाजनक था और पड़ोस भी अनुकूल जीहर और कमाल सावधानी और यत्र के बावजूद इस्लामी धर्म, कर्मकांड और मज़हबी रीति-रिवाज़ से बहुत कम परिचित नमाज़ तक न सीख सके थे। खार की चाल में उनका पड़ोसी सिब्ते हसन बहुत निष्ठावान मुसलमान। कभी दिन में कोई नमाज़ बकाया रह जाती तो संध्या कज़ा की नमाज़े एक साथ

अदा कर देता। जौहर चाल में आया तो रमजान के आखिरी दिन थे। गनीमत कि दोनों में शिवा-सुश्री का फर्क सिब्ते उसे अपने साथ नमाज़ अदा करने के लिए न कह सकता था।

पाली हिल पर जौहर का पड़ोसी था, खुद न्याज का मालिक वली अहमद खाँ, किसी समय नामी अभिनेता। उसका परिवार छोटा, रहन-सहन आधुनिक। बली खुद पंजाबी सुन्नी मुसलमान, बीबी मंगलोरी कैथोलिक ईसाई की बेटी। वली बीवी को ज़िमी पुकारता या नाम था जेस्मिन जेस्मिन की माँ भी साथ रहती थी। वली के दो लड़के और एक बेटी अड़ाई बरस की।

वली ने विरादरे कौम को सद्भाव में लिया। कारण था कि वली सद्द्दीन जैसे पूँजी लगा सकने वाले मुसलमानों से सम्पर्क चाहता था। उसने जौहर को दो बार क्रिकेट क्लब में और दूसरे अवसर पर सदुद्दीन के साथ देखा था। सहद्दीन नये लोगों को जौहर का परिचय अपनी फर्म के प्रोडक्शन मैनेजर के रूप में देता था। बात भी ठीक थी। सदुद्दीन ने जौहर की देख-रेख में कुर्ला में और दूसरी औद्योगिक बस्तियों में बुद्ध के समय कठिनाई से आयात हो सकने वाले पैच-पुर्जे बनवाने शुरू कर दिये थे। वह काम खूब फल और फूल रहा था।

वली परिवार और जौहर परिवार में पटरी बैठ सकने का दूसरा भी कारण था। दली धर्माचार में कट्टर नहीं था। नमाज़ की भी पाबन्दी नहीं। अपनी बालकनी में बैठकर जब- तब एलानिया व्हिस्की लेता। कमाल को उनके यहाँ पोर्क, हेम सॉसेज के डिब्बे भी दिखाई दिये थे। अनुमान, जैस्मिन अपना चस्का छोड़ नहीं सकी थी। वली मज़हब और ईमान को ऐसी छोटी-मोटी बातों से ऊपर, एतकाद का सवाल मानता था। एकमात्र अल्लाह और उसके रसूल पर पूर्ण विश्वास ही इस्लाम और मजहवा

बली को विश्वास था, इस्लाम का रक्षक खुद अल्लाहा वह मुहम्मद अली जिना का अनुयायी था। जिन्ना हिदुस्तान के मुसलमानों को रूड़ियों की संकीर्णता से मुक्त कर टर्की की तरह एक आधुनिक, सबल, राजनैतिक शक्ति बना रहा था। वली को पूरा विधान कि मुसलमान शरीर, स्वास्थ्य, दिमाग और चरित्र में हिन्दुओं से बेहतर, लेकिन मुसलमान शिक्षा, नौकरियों, व्यवसाय रोजगार, राजनीति में हिन्दुओं से पिछडे हुए। इस स्थिति का कारण हिन्दुओं का व्यावहारिक चातुर्य, धूर्तता, पुश्त-दर- पुश्त व्यवसायों और रोजगारों पर कब्जा। इसी के बल पर हिन्दू छोटे-मोटे गाँवों से लेकर बड़े-बड़े शहरों तक सभी क्षेत्र में मुसलमानों का शोषण कर रहे हैं।

जौहर को 'न्याज़' में जाये सप्ताह ही हुआ था। एक संध्या काम से लौटा तो वली ने उसे अपनी बालकनी में पुकार लिया। उस दिन वली की एक रुकी हुई रकम मिल गयी थी। खुशी में ब्लैक लेवल का अद्धा ले आया था। वली ने जौहर को क्रिकेट क्लब में सद्द्दीन के साथ ही लेते देखा था। वली ने जौहर के लिये एक पेग बनाया और कैप्स्टन पेश कर अपना दिल उसके सामने खोल दिया इस इंडस्ट्री में क्या हालत है। बेहतरीन एक्टर, एक्ट्रेस अकसर मुसलमान उसने दस-बारह नाम गिना दिये। बेहतरीन स्टोरी, डायलाग और सॉग राइटर मुसलमान कुछ और नाम बताये। बेस्ट सिने फोटोग्राफर, टेक्रीशियन मुसलमान और फरेब देखो, गुटे और चंद्ररा दोनों की डाइरेक्शन की कितनी धूम गुंटे का तो नाम, काम मुख्तार का वही बात साले चक्रवर्ती की असल में डाइरेक्शन करे रहा है उसका असिस्टेंट नवीउल्ला और देखो, सिनेमा लाइन के मुस्लिम पब्लिक, निस्वतन हिन्दू

से कहीं ज्यादा पैसा देती है, लेकिन इंडस्ट्री पर कब्जा हिन्दुओं का और मुसलमानों की खून- पसीने की मेहनत से तमाम मुनाफा जाता है सिन्धी, गुजराती, मारवाड़ी, मरहठों की जेब में। "हम तीन बरस से कोशिश कर रहे हैं कि मुस्लिम कैपिटल से एक प्रोडक्शन शुरू हो। नाम- हिलाल फिल्म कार्पोरेशन फिल्म की एक शानदार स्टोरी हमदम बटालवी की हमारे पास है। सांग लिखेगा नसीम रुहेली डाइरेक्शन हम खुद मदद करेंगे। इन हरामियों की सब फिल्मों को कट कर दें। मुसलमान में जीनियस तो है, लेकिन बिज़नेस का दिमाग नहीं।

वली का स्वर उदास हो गया, "हमने कादिर सेठ को समझाया, इस इंडस्ट्री में रकम लगाने का फायदा बताया तो बोलता है भाई, मुसलमान को गाना-बजाना और इंसान की तस्वीर बनाना शरभ से मनुअ" क्षोभ से कादिर सेठ को गाली दी "हरामज़दगी फौज को सुअर का गोश्त और ब्रिसल सप्लाई करने वालों को अट्ठारह-बीस परसेंट सूद पर रकम देता है। समझता है, उसकी हरामज़दगी किसी को मालूम नहीं। ये दोनों काम शरअ से हरामा"

बली ने नया सिगरेट सुलगा कर जौहर से अनुरोध किया, "सदुद्दीन सेठ रौशन दिमाग । पार्टनर, उसे समझाओ; वो इसमें रकम लगाये। बड़ा प्राफिट और मिल्लत की खिदमत ! साले हिन्दू कराह का दिमाग ठिकाने लग जाये।"

जौहर ने कश लेकर सहानुभूति से समझाया, "पार्टनर, आइडिया आपका बहुत ब्राइट, लेकिन धन्धा शुरू करने के लिये यह वक्त मुनासिब नहीं। एवरेस्ट वाला सद् भाई से कहता था, बीस-पच्चीस हजार फुट फिल्म उसको कम पड़ गया। उसकी दो फिल्में शार्ट पड़ गयी। दो फिल्में एक साथ बनाता था। सिविल सप्लाई के सेक्रेटरी से सिफारिश करने को सद्दू से कहता है। विलायत से फिल्म आ नहीं पाता इसलिये मिलोलाइड पर स्ट्रिक्ट कन्ट्रोल। मद् भाई ने इधर तीन लाख से ज्यादा रकम मशीन के पाटर्स के बनाने के धन्धे में लगा दिया है। वह चाहता है लाम के दौरान अपने पाँव पक्के कर ले, जैसे किरलोस्कर का बिज़नेस है। फिल्म का काम करना है तो पहले फाइनेन्स मज़बूत करना ज़रूरी। फिर वे न्यू बियेटर्स और विजय टाकीज क्या हैं!"

वली ने आश्वासन अनुभव किया, "पार्टनर, तुम खयाल रखो। कोई मौका निकाल कर सेठ से हमारी बात करा दो।"

वली के बम्बई जीवन का इतिहास रोचक था। अपने भाग्य और चतुराई पर अधिक भरोसा कर लेने से कई ठोकरें खा गया था। वह बारह वर्ष पूर्व जब पंजाब से आया, चेहरा- मोहरा सुदर्शन, सुडौल कसीला बदन, सिनेमा की तकनीकी भाषा में फोटोजनिक फेस! कुदरतन हीरो के पार्ट के लिये साँचे में ढला तिस पर क्या गला सुभानअल्लाह लाखों में एक! उस ज़माने यानी बोलती फिल्मों के आरम्भ में हीरो के लिये गा सकना ज़रूरी। कारण, तब अभी फिल्म बनाने की कला में ऐसा विकास न हुआ था कि अभिनेता या अभिनेत्री के होंठ हिल रहे हैं, लेकिन संगीत किसी और ही के गले से आ रहा है।

वली अहमद का पिता नसीब खाँ तत्कालीन पंजाब में लाहौर के समीप शेखपुरा जिला का खाता-पिता ज़मींदार था। पंजाब में ज़मींदार का मतलब भूस्वामी किसान वली के

परिवार की अस्सी नब्बे बीघा जमीन, छः कुएँ। चार-पाँच हल की खेती खुद करवाते, शेष बँटाई पर दे देते। कपास में बहुत फायदा था।

नसीब खाँ का बड़ा लड़का नसीर अहमद खाँ वर्नाक्यूलर मिडल तक पढ़कर घर का काम-काज देखने लगा। नसीब खाँ को वली की शक्ल-सूरत से छोटे बेटे के ऊँचे मुकद्दर का विश्वास। लड़का जज, मजिस्ट्रेट नहीं तो लाहौर हाईकोर्ट का बड़ा वकील वैरिस्टर तो बनेगा ही । वली को शोखपुरा में मैट्रिक कराकर लाहौर इस्लामिया कालिज में भेज दिया। वली की कल्पना में तो उसका दूसरा ही मुकद्दर उसे सिनेमा के आकाश का तारा बनना था। लाहौर में कई सिनेमा हाल वली हर देशी-विदेशी फिल्म देखता और अभिनय कला की मानसिक साधना में तन्मय रहता। मार्गदर्शक भी मिल गया। उसके फूफा की लाहौर में फोटोग्राफी की दुकान थी और फुफेरा भाई इमत्याज अली बम्बई में दो बरस ठोकरें खाकर 'एवरशाइन' में असिस्टेंट कैमरामैन बन गया था।

बली इन्टर में भी कठिनाई से तीसरे दर्जे में पास हुआ था। बी० ए० में एक वर्ष और गुजारा, फिर आत्मदमन न कर सका। बम्बई चला गया।

आरम्भ में वली के सामने भी कठिनाइयाँ आयीं। वह सब सहने और करने को तैयार । इमत्याज़ की मदद से पहले 'एवरशाइन' की दो फिल्मों में साइड रोल मिल सके। सन् तीस के अन्त में उसे 'एवरशाइन' की फिल्म में मुख्य भूमिका मिल गयी। फिल्म का नाम था 'न्याज़' 'एवरशाइन' मामूली कम्पनी थी, परन्तु 'न्याज़' फिल्म हिट कर गयी। बड़े-बड़े शहरों में चार-चार सप्ताह तक चली। 'न्याज' के साथ वली का नाम हो गया।

• विजय टाकीज़ के प्रोड्यूसर ने अपनी नयी फिल्म के लिये ब्ली को बुक् कर लिया। उन् दिनों फिल्मी सितारों के कन्ट्रेक्ट लाखों की रकम में नहीं होते थे, न अभिनेता एक साथ दो- दो कम्पनियों की फिल्म में काम कर सकते थे। तब अभिनेता, अपनी योग्यता और ख्याति के अनुसार तनखाह पर काम करते थे। फिल्में भी तीन-चार मास में पूरी हो जाती थी।

वली का आत्मविश्वास बढ़ गया था। उसने दो हज़ार मासिक माँगा। उन दिनों सहगल, मोती और कानून भी ढाई-तीन हजार मासिक से अधिक की माँग न कर सकते थे। विजय टाकीज का प्रोग्राम पाँच-छः फिल्म बनाने का था। प्रोड्यूसर अत्रे ने अपनी शर्त बतायी, कम्पनी डेढ़ हजार मासिक देगी, लेकिन बली को इसी वेतन पर दो बरस काम का एग्रीमेंट करना होगा। वली दो बरस तक किसी दूसरे प्रोडक्शन में काम न कर सकेगा। अनुबंध भंग करने पर वली को हर्जाना देना होगा।

'न्याज़' में हीरो का रोल पाने से कुछ वर्ष पूर्व बली और जेस्मिन का परिचय हो गया था। परिचय होते ही वली उसकी ओर ऐसे खिंचा जैसे लोहा चुम्बक के समीप आ जाये। भविष्य बनाने के लिये सभी जोखिम लेने को तैयारा दूसरी नटियाँ भी बली पर न्योछावर हो रही थीं। जेस्मिन के लिये एक तरह अंतिम दाँव तीन साल में सब यत्र के बावजूद कुछ न बना था। अब इक्कीस लाँध रही थी। हीरो की कृपा किसी भी नदी के लिये तरक्की की सीढ़ी ही नहीं लिफ्ट ! 'न्याज' में जेस्मिन ने भी साइड रोल किया था। जेस्मिन मैट्रिक पास मंगलोरी लड़की, गरीब अध्यापिका की बेटी, परन्तु बला का हुआ। मुलोचना की तरह सिनेमा आकाश का नक्षत्र बनने आयी थी। फिल्मों का मौन टूटकर बोलने लगना सहगल, कानन, , वली जैसों के भाग्योदय का कारण बना तो बेचारी जैस्मिन और कुछ लोगों के लिये

भाग्य अस्त होने का कारण जेस्मिन कोंकणी बोल सकती थी या मिशन स्कूल में पड़ी इंगलिश बम्बैया हिन्दी या हिन्दुस्तानी समझ बोल लेती, परन्तु फिल्म के लायक उच्चारण उसके बस का न था। तिस पर देखने में रूप जितना आकर्षक, गला उतना ही कर्कश ।

जैस्मिन वली के आकर्षण से बहुत सतर्कता सावधानी से खेली। ऐसा व्यवहार, मानो वली को नाराज़गी या उसका दिल तोड़ देने से डरती हो वर्ना उसका सुलभ न होना वली की नज़रो में उसका अदम्य आकर्षण उसे प्रसन्न करने के लिये शर्तों, वायदों से बाँधती जाती।

विजय टाकीज़ से वली का अनुबंध होते ही जेस्मिन ने वली से शिकायत की, "तुमने हमारे गले में फाँसी डाल दिया। हम कहाँ डूब मरें! तुमने उत्तरदायित्व, पूरे जीवन के लिये शपथ ली थी।"

ऐसे मौकों पर कौन आश्वासन वचन दिये बिना रह सकता है! वली ने भी वचन दिये थे। जेस्मिन की मुसीबत में सहायता के लिये तैयार था। वह सब खर्चा देगा, दोस्ती निबाहेगा।

जैस्मिन की माँ सब जान गयी। उसका परिवार कट्टर कैथोलिक क्रिश्चियन। जेस्मिन ने बताया, माँ का आग्रह है कि तुम्हे हमसे विवाह करना पड़ेगा वर्ना केस पुलिस में दे देगी।

दगाबाज़ न था, जेस्मिन से उसे मुहब्बत थी। कहा, वह निकाह के लिये तैयार है, लेकिन उसके बाप ने उसकी शादी अठारह बरस की उम्र में कर दी थी। बम्बई आया तो बीवी की गोद में नौ महीने का एक बेटा छोड़ आया था। जेस्मिन को समझाया, कलमा पढ़कर मुसलमान हो जाये, निकाह करवा लेगा। मुसलमानों को मज़हब और कानून से चार बीबी की इजाजत पहली बीबी करीमा पंजाब के देहात में रहेगी, जेस्मिन उसके साथ बम्बई। सिविल मैरेज कानून में एक बीबी के रहते दूसरी शादी की इजाज़त नहीं। काफिर अंग्रेज ने कुदरत के खिलाफ वाहियात कानून बना दिया। बम्बई में मैजिस्ट्रेट के सामने झूठी हलफ उठा ले उसकी बीबी नहीं है। सिविल मैरेज में जोखिम थी। सिविल मैरेज तो हो जायेगी, लेकिन अगर कभी राज खुल गया, पर्क्युरी (हलफ लेकर झूठ बोलने) के जुर्म में जेल जाना होगा। ऐसी कौन औरत जो जान-बूझकर और बस चलते सीत झेलना स्वीकार कर ले! जेस्मिन हिन्दू या मुसलमान हो, औरत तो थी। उसका आग्रह, वली पहली बीवी को तलाक देकर उससे सिविल मैरेज करे।

एक दिन जेस्मिन की माँ ने वली को घेर आड़े हाथों लिया तुमने हमारी भोली लड़की को भटका कर धोखा दिया! धमकी दी, सात दिन के भीतर हमारी पहचान के वकील के सामने अपनी बीबी को अदालती कागज़ पर तलाक, फिर कोर्ट में जाकर जेस्मिन से निबिल मैरेज के लिये एप्लीकेशन दो वर्ना बेटी को धोखा देने के लिये पुलिस में रिपोर्ट लिखा देगी।

बली की हालत छछूंदर को पकड़े साँप जैसी छछूंदर को खा ले तो मर जाये, छोड़ दें तो छछूंदर उसकी आँखों में थूक कर उसे अंधा कर दे। जेस्मिन से उसे दरअसल मुहब्बत, उसके संकट की चिन्ता भी। जैस्मिन से झगड़ा करने से सिनेमा जगत में बनती रेपुटेशन बिगड़ने का जोखिम पंजाब के देहात में बीवी को तलाक लिख देने के लिये तैयार, लेकिन उसमें मेहर का सवाल शादी के वक्त सोलह हजार का मेहर लिखा गया था। वली के पिता

डेढ बरस पूर्व अल्लाह के प्यारे हो चुके थे। बड़े भाई पर भरोसा न था। वली की ससुराल के लोग मशहूर जालिम कोई ताज्जुब नहीं, बहिन की इज्ज़त या मेहर के सवाल पर छुरे लेकर बम्बई तक आ पहुँचे।

बली ने अपनी बीबी के नाम तलाक लिखकर जेस्मिन से सिविल मैरेज़ के लिये दर्खास्त दे दी।

बड़ा भाई नसीर अहमद खाँ वली से छः बरस बड़ा। नसीर दीनदार परहेज़ी आदमी। उसे नाच-गाने, स्वाँग, तसवीर बनाने बनवाने वगैरह शरअ से हराम कामों से नफरत वली के बम्बई जाने के बाद उसने तीन बरस में सात-आठ खत लिखे कि ऐसे गुनाहों से तौबा करके घर लौट आये। कालिज की पढ़ाई और वकालत उसके बस के नहीं तो अपने बीवी-बच्चे, किसानी के कारोबार की फिक्र करे। वली ऐसी नसीहत का क्या जवाब देता! नसीर नाराज़ हो गया। उसने खत लिखना भी छोड़ दिया। बली ने परवाह न की।

नसीर अहमद खाँ को बम्बई से छोटे भाई का पत्र और करीमा को तलाक का कागज़ मिला तो हैरान उपाय सोचकर सीधा बम्बई पहुँचा। बम्बई में छोटे भाई को ढूँढने में कुछ दिक्कत हुई पर वली मिल गया। बली को एकान्त में समझाया, "तुम करीमा को क्या तलाक दोगे करीमा तुम्हारे जुल्म और बेपरवाही से आजिज आकर हमारी नाक कटा रही है। वो खुद खला चाहती है। तुम तलाक दोगे तो उसके भाई एक तरफ उसके लिये मेहर का दावा करेंगे, दूसरी तरफ उसकी गोद में तुम्हारे पाँच बरस के बेटे के वारिस बनकर हमारी आधी ज़मीन-जायदाद पर दावा करेंगे। फाहो इस तलाक के कागज और फौरन खला की मंजूरी लिखकर दो। तुम जाओ जहन्नुम में हमें क्यों बर्बाद करते हो!"

समस्या का इससे अच्छा हल क्या हो सकता था। वली अहमद ने करीमा को खला की मंजूरी लिखकर दे दी और इसे अपने ऊपर अल्लाह का करम समझा। नसीर खाँ के लिये भी यह अल्लाह का मेहरा बरस भर से करमो के लच्छनों से स्वयं उसके पाँव डगमगा रहे थे। गाँव लौटकर उसने करमा से भी निकाह कर लिया।

•जेस्मिन की माँ द्वारा निश्चित अवधि समाप्त होने के सप्ताह बाद वली और जेस्मिन की सिविल मैरेज हो गयी। जेस्मिन से विवाह वली के भविष्य के लिये अच्छा ही हुआ। नर की अपेक्षा नारी को भविष्य और सुरक्षा की चिन्ता अधिका माँ बनते ही नारी का ध्यान संतान के भविष्य पर लग जाता है। जेस्मिन की माँ बेटी की सुरक्षा सहायता के लिये साथ आ गयी थी। माँ-बेटी की दूरदर्शिता थी कि "न्याज' फिल्म रिलीज़ होते ही वली ने वह मकान पैंतीस हज़ार में खरीद लिया। बीस हज़ार जहाँ-तहाँ से लेकर नकद, शेष किश्तों के वायदे पर। पाँच हजार रुपया जेस्मिन की माँ का था इसलिये मकान की रजिस्ट्री जेस्मिन के नाम पर हो गयी थी। मकान न्याज़' फिल्म का न्याज़ था। उस मकान के लिये 'न्याज' से बेहतर और क्या नाम होता!

विजय टाकीज में वली दो मास में ही जान गया कि दो बरस डेढ़ हज़ार माहवार के लोभ से रकीबों की चूहेदानी में फँस गया। अब वह स्वयं को डायरेक्टर या प्रोड्यूसर के हाथ कठपुतली या उनका बन्दर न मान सकता था। वह एक मन दो तन' फिल्म के निर्देशन में सुझाव देकर फिल्म को आग के फूल' और 'न्याज़' से ज्यादा जबर हिट बना देना चाहता था। गदहे को नमक हो, गदहा कहे मेरी आँख फोड़ दी वाली बात! पहले चक्रवर्ती ने उसके

सुझावों की उपेक्षा की फिर उसे हस्तक्षेप करने के लिये डॉट दिया। वली अब डॉट कैसे सह जाता। उसने दाँत पीसकर आस्तीने चढ़ा लीं।

चक्रवर्ती उस वक्त अपमान निगल गया पर अत्रे से शिकायत कर दी। अबे ने वली से सीधी बात की, "तुमेरे को डायरेक्शन सुनकर एक्ट करना है कि खुद डायरेक्ट करना है!" बली अत्रे से भी अकड़ गया अत्रे ने अगली फिल्मों में वली को साइड रोल देना शुरू किया। फिल्म जगत में वली का नम्बर गिर गया । अत्रे ने अगली फिल्मों में वली को और निकम्मे पार्ट दिये। बली ने 'न्याज़' में सफलता से जो ग्लैमर बनाया था, दो बरस में सब फीका होकर वली की गिनती खाज माल में हो गयी।

अत्रे प्रति मास डेढ़ हज़ार देता ज़रूर था, लेकिन तीन-चार माह तरसा कर जब वली का अदालती नोटिस आ जाये। वली ने 'न्याज़ में जो हासिल कर लिया था, उससे आगे न बढ़ सका। 'न्याज़' बनते ही उसने छोटी ओपल गाड़ी खरीद ली थी। नौ बरस से उसी को धकेल रहा था। हिन्दू प्रोड्यूसरों डायरेक्टरों की ऐसी हरकतों से आजिज आकर उसने एक मुस्लिम फिल्म प्रोडक्शन की योजना बनायी थी, लेकिन मुसलमान सरमायादार उसकी मदद के लिये आगे न बढ़ रहे थे। खयाल था, जौहर इस मामले में सद् को उत्साहित कर सके तो उम्मीद हो सकती है।

१९४४ मार्च-अप्रैल तक मित्र राष्ट्रों की स्थिति बहुत प्रबल । नाजी सेनायें सोवियत से वापस धकेली जाती पूर्वी यूरोप में लौट आयी थीं और पूर्वी यूरोप के देशों में भी मार खाकर पीछे हट रही थीं। जापान वर्मा के दक्षिण से खदेड़ दिया गया था। भारत-चीन सड़क बन जाने से उसकी स्थिति बहुत नाजुक इम्फाल और मणिपुर में कुछ जापानी पल्टनें घिरी रह गयी थीं। उनके हाथ से चिंदंबिन निकल जाने से उनके लौटने का मार्ग भी बन्द । गत अक्टूबर से लिनलिथगो की जगह लार्ड वेवेल वायसराय बन गया था। वेवेल भारत में कमांडर-इन-चीफ रह चुका था। इस देश की स्थिति से परिचित वेवेल का दृष्टिकोण नौकरशाही का नहीं, दूरदर्शी राजनीतिज्ञ का वह उदार राजनीति का समर्थक। जौहर- कमाल 'न्याज़' में अप्रैल में आ गये थे मई में वायसराय ने गांधी जी को बिना किसी शर्त जेल से मुक्त कर दिया। राजनैतिक लोगों में फिर वातावरण के परिवर्तन के अनुमान। गांधी जी की मुक्ति के बाद अन्य नेताओं की मुक्ति और सभी राजनैतिक बंदियों की सजाएँ और राजनैतिक फरारों के वारंट कैंसिल किये जाने की आशा जौहर और कमाल के मन में फिर आशा की उमंगें।

गांधी जी ने जेल से मुक्त होते ही देश की सबसे विकट राजनीतिक गुत्थी साम्प्रदायिक या हिंदू-मुस्लिम द्वन्द्व को सुलझाने का प्रयास आरम्भ किया। सुलझाव कांग्रेस और मुस्लिम लीग में समझौते द्वारा सुलझाव का यत्र गांधी जी ने किया मुस्लिम लीग के नेता मुहम्मद अली जिन्ना से पत्राचार द्वारा। गांधी जी जनता में एकता की भावना और मनोवृत्ति बढ़ाने के लिये इन पत्रों को प्रकाशित करा देते। इस उद्देश्य के लिये गांधी जी राजनैतिक दलीलों और सौदेबाज़ी के बजाय हृदय परिवर्तन पर भरोसा करना चाहते थे। जनता इन पत्रों के लिये बहुत उत्सुक रहती।

वली अखवार न खरीदता था। अखबार वाला सुबह साँझें जीने पर जौहर के लिये

अख़बार फेंक जाता। वली पंजाबी बेतकल्लुफी से अखवार उठा लेता। अखवार पड़ने ही न लगता, अपनी ओर बालकनी में खड़ा होकर ऊँचे स्वर में मुख्य शीर्षकों की घोषणा करता जाता। उदारता से महत्त्वपूर्ण समाचार पढ़कर सुना देता। कमाल को इससे बहुत खीझ नालायक न सिर्फ हमारा अखवार लेकर बैठ जाता है, अधूरी-अधूरी खबरें बताकर अखबार के प्रति कौतूहल मिट्टी कर देता है।"

गांधी- जिन्ना पत्राचार के सम्बन्ध में वली को भी बहुत रुचि न केवल गांधी जी के पत्र या जिला के उत्तर पड़कर सुना देता, उन पर अपने विचार भी आवाज उसकी ऊँची थी। साम्प्रदायिक राजनीति पर टिप्पणी स्वर दवाकर करता। कारण, अधिकांश पड़ोसी हिन्दू । खासकर व्यास से सनकता था। गजेन्द्र व्यास भी सिनेमा एक्टर उन दिनों व्यास की पतंग चड़ रही थी। व्यास भी उग्र स्वभाव, झगड़े में हाथ छोड़ देने वाला वली में पठानी ऐंठ तो ब्यास में राजस्थानी अकड़ा दोनों में पेशे की स्पर्धा के अतिरिक्त महरा वैचारिक भेदा व्यास कांग्रेसी हिन्दू राष्ट्रीयता की ओर झुकावा मुस्लिम लीग और जिन्ना को एलानिया अंग्रेजों के चमचे गद्दार कहता।

जौहर को वली समझाता, "बाशाओं (बादशाहो हमारा लीडर फरेब में नहीं आ सकता। गांधी का फरेब जाहिर कभी भाई बनाकर गुजराती में खत लिखता है, कभी फुसलाने के लिये उर्दू में कभी अंग्रेजी में कभी प्यारे भाई लिखेगा, कभी प्यारे दोस्त, कभी कायदे आजम हर बार गिरगिट की तरह नवा रंग। जिला के वही लफ्ज़, वही रवैया- मिस्टर गांधी और शेर खत लिखता है सरकारी कानूनी जुबान अंग्रेजी में कोई लारी- लप्पा नहीं। गांधी चार बत से खुशामद करे, हमारे लीडर का एक जवाब। बार देखो बनिये के फरेब की हद! कहता है- तुम्हारी सब शर्ते मंजूर ब्लैक चेक देता हूँ। अबे तू देने वाला कौन! तुझसे माँगता कौन है? मुसलमान के बाजू में ताकत है, जा लेना होगा खुद ले लेगा।

वाश्शाओ, हिन्दू-मुसलमान की यूनिटी का मतलब क्या? जिन्ना साहब ठोस, सही बात कहता है- हिन्दू, मुसलमान अलग-अलग दो कॉमें, दो अलग-अलग मजहब दोनों की जुदान अलग रहना-सहना, खाना-पीना, रस्म-रिवाज अलग, दोनों को एक-दूसरे को छूना-देखना नागवार। गांधी कह रहा है, दोनों भाई-भाई, एक कॉम मुसलमान अपनी कौमियत नहीं जानते, अपने दोस्त-दुश्मन नहीं पहचानते? हमें तुम बताओगे! इससे बड़ा फरेब क्या? और बनता है फकीर!"

"बाश्शाओ, दर हकीकत गांधी चाहता है, मुसलमान उसे अपना लीडर कबूल कर लें। मुसलमान का लीडर काफिर कैसे हो सकता है। जिस शख्स को रसूल पर एतकाद नहीं, मुसलमानों का लीडर कैसे हो सकता है

व्यास से भी जौहर की बोलवाला जौहर को मेव मुसलमान के नाते राजस्थानी भाई और उदार विचार समझता था। "जौहर भाई" संबोधन करता, या 'यार राव' कमाल सदा साड़ी में रहती इसलिये उसे कमाल बहिना अक्सर 'न्याज़' के नीचे मेहता के यहाँ भेंट हो जाती। व्यास सच्चरित्र माना जाता था। सिनेमा जगत् में शराब से परहेज करने वाले बिरले। व्यास पान-सिगरेट तक न छूता व्यास गांधी जी का आदर करता था, परन्तु गांधी जी की मुस्लिम लीग और जिला की खुशामद की नीति से बहुत क्षुब्धा जो मुसलमान हिन्दुस्तान को अपना वतन नहीं मानते, स्वयं को अलग कॉम समझते हैं, उनसे कैसी

यूनिटी? देश की आज़ादी या राजनीति के मोर्चे पर हिन्दू-मुसलमान मजहबों का क्या सवाल? झगड़ा हिन्दुस्तानी और गैर-हिंदुस्तानी में मज़हब की बात मन्दिर-मस्तिद में। हिन्दुओं में पचास मजहब कोई भैंसा खा जाये, कोई प्याज-लहसुन न हुए, लेकिन हिन्दुस्तानी होने के नाते सब हिन्दू । जो खुद को गैर-हिंदुस्तानी और अलग कौम कहता है उससे एकता समझौता कैसा?

अपने दिल की बात व्यास करता था नीचे मेहता से, लेकिन ऊँचे स्वर में, वली और जौहर को सुनाकर, "नब्बे परसेन्ट मुसलमान दगाबाज़! कोई नेशनलिस्ट बनकर कांग्रेस से फायदा उठा रहा है, कोई लीगी बनकर, कोई अंग्रेज का पिट्ठू बनकर सिनेमा इंडस्ट्री में देख लो ! यो कहेंगे हमारे मज़हब में नाचना-गाना, स्वाँग नकल करना हराम हमारी औरतें पर्दे में रहने वाली पार्सा, लेकिन पैसे के लिये अपनी बहन बेटी बहू का मुजरा तक कराने, उसे स्टेज पर नचाने में भी गुरेज नहीं अपने खयाल में ज़लील काम के लिये महीप कुमार, सोना कुमारी, बनमाला बन जायेंगे। घर लौटकर तौबा कर ली. फिर पक्के दीनदार मुसलमान याकूब, नसीमा और जेवन"।"

जोहर और कमाल विचित्र स्थिति में किसी से झगड़ा न चाहते थे। मुसलमान बने रहना भी जरूरी। जौहर कभी मुस्लिम लीग और जिन्ना का समर्थन करता— कभी लीग की नीति में अन्तर्विरोधों के कारण असहमति भी प्रकट करता।

फैज़ी, मेहरअली, घाटे, मेहता और सदुद्दीन भी कांग्रेस-मुस्लिम लीग में समझौते के लिये गांधी जी के तरीके से परेशान। लम्बी बहसें एकता हिन्दू-मुसलमानों में होनी चाहिये या कांग्रेस लीग की? साम्प्रदायिक एकता का तरीका, जनता का दृष्टिकोण परस्पर सहिष्णु और यथार्थवादी बना होना चाहिये या कांग्रेस-लीग में सौदेबाजी?

महीनों गांधी जिन्ना पत्राचार चलता रहा। गांधी जी ने जिन्ना से भेंट का अवसर माँगा। जिना ने उसे व्यर्थ बताकर अस्वीकार कर दिया। गांधी जी निराश हो गये या नहीं, चुप हो गये। राजनैतिक वातावरण में पूर्ण शैथिल्य जर्मन और जापानी सेनाएं जिस तेजी से आगे बढ़ी थीं, उससे अधिक तेजी से पीछे हटती जा रही थीं। जौहर और कमाल के मन में राजनैतिक स्थिति के सुलझाव से अज्ञातवास समाप्त होने की आशा और उमंग उठकर बैठ गयी।

१९४५ का आरम्भ सदुद्दीन के यहाँ जीहर बहुत मनोयोग से काम कर रहा था। सोच लिया था, अज्ञातवास के बाद जीविका के लिये ये ही काम जारी रखेगा। सद्गुद्दीन उसकी सूझ-बूझ और श्रम से बहुत संतुष्ट। पिछले वर्ष दीवाली से उसे अपने कारोबार के वितरण- बिक्री विभाग का सहायक मैनेजर नियुक्त कर दिया था। साढ़े तीन सौ मासिक वेतन और फ्लैट का किराया । दफ्तर के काम-काज के लिये फर्म की एक गाड़ी उसके पास रहती। खुद ड्राइव करता। उसे और कमाल को दफ्तर जाने की भी सुविधा। कमाल भी अपने काम मैं रुचि से संतुष्ट। १९४५ जनवरी से वेतन तीन सौ मासिक, दूसरी सुविधायें भी मध्यवर्गीय नागरिक आवश्यकताओं की दृष्टि से संतुष्ट जीवन। मन को समझा लिया, न जाने कब तक यह जीवन चलना है। छटपटाने और आशा-निराशा के झकझोलों में बौखलाने से क्या लाभ! जो है, उसे अपना वर्तमान स्वीकार संतुष्ट रहो।

अप्रैल के तीसरे सप्ताह में समाचार - सोवियत सेनायें बर्लिन पर चौबीसों घंटे गोले

बरमा रही हैं। किसी भी समय बर्लिन के पतन की आशा। जापानी सेनायें भारत और वर्मा की सीमाओं से बहुत दूर पीछे हट चुकी थीं। दो मई को मित्र राष्ट्रों की विजय और युद्ध की समाप्ति का जलसा मनाया गया। नगर में सरकारी इमारतों, बड़े-बड़े व्यवसायी दफ्तरों पर रोशनी कम्युनिस्ट पार्टी ने भी नाज़ी पराजय और समाजवादी प्रजातंत्र की विजय के उपलक्ष में जलसा मनाया। सर्वसाधारण जनता उससे उदासीन।

अप्रैल के अन्त से आई० सी० ओ० सी० के दफ्तर में स्थान बड़ा सकने और वातानुकूलन की व्यवस्था के लिये इमारत में कुछ परिवर्तन किये जा रहे थे। जन-सम्पर्क अधिकारी के बड़े कमरे में पार्टीशन के पीछे कमाल के बैठने की जगह में दीवार के साथ फर्श उखाड़ दिया गया था। वहाँ चलाऊ व्यवस्था के लिये तख्ते डाल दिये गये थे। कमाल आलमारी से एक फाइल लेने के लिये वहाँ गयी थी। एक तख्ता उसके कदम के बोझ से बिल गया।

कमाल को सुध आयी तो शरीर चीरती पीड़ा की कराहट आफिस की दो स्टैनो युवतियाँ उसे स्ट्रेचर पर लिटा रही थी। समीप एक डाक्टर गले से स्टैबिसकोप लटकाये हुए। उसकी साड़ी, खून से तर तख्ता बिल जाने से दो-ढाई फुट नीचे गिर गयी थी। नीचे कमरे में मरम्मत के लिये सामान और तकते भरे थे, उसी पर गिरी थी। डाक्टर और स्टैनो युवतियां कमाल को एम्बुलेन्स में अस्पताल ले गयीं। दफ्तर का मैनेजर अपनी कार में साथ

गया।

जौहर साढ़े पाँच के लगभग पुर्जो के कारखानों के निरीक्षण से दफ्तर में लौटा। आई० सी०ओ० सी० के दफ्तर से फोन पर आयी सूचना पाकर हस्पताल दौड़ा गया। प्राइवेट वार्ड की सिस्टर उसे वार्ड इंचार्ज डाक्टर के कमरे में ले गयी। डाक्टर ने सहानुभूति से स्थिति समझायी पाँच मास का गर्भ था। गिरने के झटके से गर्म च्युत हो गया था। प्रबल रक्तस्त्राव मरीज़ा के लिये आशंका का कारण उपचार के लिये च्युत गर्न को आपरेशन से शीघ्र निकाल देना जरूरी। आपरेशन के लिये पति की अनुमति आवश्यक थी। डाक्टर ने अनुमति का फार्म जौहर के सामने रख दिया। जौहर ने तुरन्त हस्ताक्षर कर दिये।

जौहर को नर्स प्राइवेट वार्ड के कमरे में ले गयी। कमाल सफेद चादरों में लिपटी, सफेद विस्तर पर लेटी थी। पीड़ा रोकने के लिये दिये गये इंजेक्शनों के कारण अर्थतन्द्रा में चेहरा बहुत उतरा हुआ, रक्तहीन, पीला जोहर को देखकर रुलाई का बेग, आँखें तरल जोहर ने हाथ सांत्वना के लिये उसके माथे पर रख दिया। कमाल ओठ दबाये पीड़ा से गहरे साँस ले रही थी। मरीज़ा को तुरन्त आपरेशन थियेटर में ले जाना जरूरी था।

कमाल आपरेशन थियेटर से पौन घंटे बाद लौटी। बेमुध, चेहरा सफेद, निस्पंद जैसे मोम की मूर्ति। गर्भ निकाल कर मरीजा का शरीर पट्टियों से जकड़ दिया गया था। नर्स ने बताया, मरीज़ा की नींद पाँच-छः घंटे से पहले न खुलेगी।

डाक्टर ने कमाल को उपचार के लिये सप्ताह भर हस्पताल में रखा। उसे चोट दफ्तर में कम्पनी का काम निवाहते समय लगी थी। कम्पनी जानती थी ऐसी घटना अमरीका में होती, कमाल कम्पनी से न जाने कितने हर्जाने का तकाज़ा करती। हस्पताल में सुचारु उपचार की व्यवस्था कम्पनी की ओर से उसके बाद भी उपचार का पूरा व्यय, विश्राम के लिये बताये समय का पूरा वेतना डाक्टर ने एक मान पूर्ण विश्राम का और एक मास

पश्चात् दिखा जाने का परामर्श दिया।

• कमाल के समुचित उपचार पूर्ण विश्राम, सुविधा और उसका मन उदास न होने के लिये जौहर बहुत सतर्क। सुबह -संध्या देर तक उसके समीप बैठकर उसे बहलाने का यत्र करता। उसके लिये बढ़िया फल-फूल, गमले, नयी पुस्तकें, पत्र-पत्रिकायें ले आता। सहद्दीन को भी मित्र की पत्नी और कमाल के प्रति सौजन्य से उसकी चिन्ता हस्पताल से घर आ गयी तो सद्द्दीन पत्नी, बेटी सुल्ताना के साथ हाल-चाल पूछने आया था। मरीज़ा के दिल- बहलाव के लिये रेडियो पहुंचा दिया था। सामान्य लोगों के लिये बहुत सुलभ न था।

उस घटना से कमाल के मन-मस्तिष्क पर ऐसी चोट कि उदासी किसी तरह दूर न हो रही थी। जौहर सभी बन करता पर कमाल की उदासी अटूट पुस्तक या पत्रिका पढ़ते, रेडियो से समाचार सुनते उदास विचार मस्तिष्क में मंडराते रहते।

कमाल के गहरे अवसाद की पृष्ठभूमि में कई बातें थीं— पीने दो बरस पूर्व जोहर के साथ खोली में गृहस्थ आरम्भ करने पर दो-तीन सप्ताह बाद कमाल ने जौहर के हाथ अपने हाथों में लेकर उसकी आँखों में आँखें गड़ाकर कहा था मियाँ, तुम्हारा जो हाल हमें बरस भर के लिये बैठा दोगे ।

वैसे हमें क्या आशंका पर अपनी स्थिति से बेखबर क्यों रहें। हम तुम चिड़िया- चिरौंटा। गुजरातन के यहाँ से फुर्र उड़ आये। यहाँ खटका हो, उड़कर कहीं दूसरी जगह जा बैठे। हम दोनों का क्या किसी डाल पर छत की धनी शहतीर पर कंधे से कंधा सटाये रात बिता दें। तुम एक चुनमुन चिपका दोगे तो उसे बंदरिया की तरह सीने पर लिये कहाँ कहाँ दौड़ती फिरूंगी फिर ऐसी तंगी और तंग जगह में आने वाले बेचारे के साथ भी जुल्म मेहरबानी करके आज ही किसी कैमिस्ट के यहाँ से'।

शादी के तीसरे बरस में ही गेती के पेट में दूसरा बच्चा आ गया तो डाक्टर रज़ा घबरा गया था "इस हिसाब से कैसे चलेगा। परहेज की बात फिजूल परहेज़ कर कौन पाता है? आखिर कितना परहेज? बरस भर में एक बार भी परहेज़ टूटा तो हर साल खुदा की बरकत इस विषय में अमर उपा की रजा से पूर्ण सहमति ।

कुमाल को बच्चे प्यारे लगते थे। पड़ोसिन पर खीझती जूली कितनी प्यारी बच्ची है, उसे कैसे बेपरवाही से रखती है। कमाल कभी छुट्टी के दिन शौक से जूली को कंघी करके बढ़िया रिवन बाँध देती। बांद्रा के बाज़ार में साथ ले जाती कमाल डेह बरस तक, 'न्याज' में सुविधा की जगह पा लेने के बाद भी उस सावधानी पर दृढ रही। फिर राजनैतिक निराशा से सावधानी के प्रति शैथिल्य आने लगा। जिन्ना और लीग का हृदय परिवर्तन करने के लिये गांधी जी के प्रयतों से कुछ न बना। सब तरफ उदासी कमाल पर भी उसका प्रभाव ।

मालूम होता है, जिन्दगी ऐसे ही कटेगी। ऐसे जीवन की क्या सार्थकता? इस क्रान्ति के परिणाम में हमारे जीवन की ये ही परिणति? क्या हम इस्माइल कमाल ही रहेंगे? इस्माइल सदा मशीनें बेचते रहें, में तेल बेचने में सहायक रहेंगे तो क्या। और जो बिरजू जैसे सैकड़ों खेत रह गये या पेड़ों से लटका दिये गये! जब मुल्क करवट लेगा, देखा जायेगा।

हस्पताल से छुट्टी देते समय डाक्टर ने कहा था, एक मास बाद मरीज़ा की हालत

देखकर परामर्श दिया जायेगा। एक मास बाद डाक्टर ने कमाल की परीक्षा कर बताया, इलाज से सब ठीक हो गया है। चोट गहरी थी। गर्भाशय का द्वार त्रुटिया गया है। भविष्य में गर्भ की सम्भावना नहीं जान पड़ती। डाक्टर ने पौष्टिक दवाएँ लिखकर एक मास और विश्राम के लिये कह दिया।

डाक्टर की बात से कमाल को दूसरी चोट पहली चोट से जितनी पीड़ा शरीर ने पायी ची. उससे अधिक पीड़ा मन-मस्तिष्क को नारीत्व, सृजन गुण-सामर्थ्य से वंचित हो गयी! डाक्टर के यहाँ से लौटकर कमाल जीना चढ़कर ऊपर पहुँची तो गला सूख रहा था। इतनी उदास कि घाटिन से पानी के गिलास के लिये भी न कह सकी। चुपचाप पलंग पर लेट आँखें मूंद लीं।

साँझ जौहर लौटा तो कमाल रेडियो के समीप आरामकुर्सी पर बैठी थी। जौहर के स्वागत में चेहरे पर मुस्कान तक नहीं।

क्यों अच्छी इतनी मुस्त क्यों? जौहर कुर्सी के बाजू पर बैठ गया, दोपहर में न्यूज सुनी?

उदासी में कमाल को रेडियो में समाचार सुनने का ध्यान न आया था। समाचार के प्रति उत्सुकता भी प्रकट न की। जौहर ने बाँह कमाल के गले में डालकर चेहरा ऊपर उठाकर पूछा, "अच्छी डियर, इतनी उदास क्यों? क्या लौटते समय कुछ परेशानी हुई?"

"तुम्हें नहीं मालूम ! तुम्हारे सामने तो डाक्टर ने कहा था हम बाँझ-बंजर हो गये। हमारी जिन्दगी ।"

क्या बकवास! यह शब्द फिर नहीं!" जौहर ने कमाल के होंठों पर हाथ रख दिया, “दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा। तुम केवल मादा हो, मनुष्य नहीं। तुम्हारी जिन्दगी का क्या ये ही उद्देश्य? सब भूल गयी?

"तुम्हारे ख्याल में हम बक रहे हैं? मर्द हो, हमारा दर्द क्या जानो।"

“ओ हो, अब जीवन की सार्थकता क्या इसी नजरिये से देखोगी!" जौहर बीज से बोला, "तुम मानव व्यक्ति नहीं, केवल मादा नारी रह गयी।"

इसमें नजरिये की क्या बात! मानव व्यक्ति हूँ तो क्या मादा नारी नहीं है?" क्या कह रही हो अच्छी ! चेतन मनुष्य इन्सटिंक्ट से चलते हैं या बुद्धि-विवेक से? बुद्धि-विवेक इन्सटिंक्ट में सहायक होने चाहिये। नर में वह इन्सर्टिक्ट क्षणिक आवेग, नारी में स्थायी।"

- पड़ोसिन की संगति से कुछ ज्यादा फीमेल हो गयी।" जौहर से विद्रुप किया। "गलत बात में सदा से फीमेल हूँ और रहूंगी।"

संघर्ष में भाग लेने के लिये बेटे तक की चिन्ता न की, आंदोलन में कूद पड़ी तब भी तो फीमेल ही थी।"

"बिल्कुल फीमेल कॉन्शस फीमेल सचेत प्रबुद्ध नारी अपने समाज के लिये अधिक चिन्ता करेगी। पैदा औरत करती है, रक्षा की चिन्ता भी उसी को रहेगी।" कमाल ने जौहर की ओर मान से पीठ फेर ली।

दूसरे दिन सुबह वली ने अखबार से घोषणा की कल दोपहर अहमदगड किले से कांग्रेस के प्रेसीडेंट आजाद, कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य नेहरू, पटेल रिहा कर दिये गये। कांग्रेस

और मुस्लिम लीग में देसाई-लियाकत अली फार्मूले पर बातचीत के लिये पन्द्रह दिन तक कान्फ्रेंस की सम्भावना ।

कमाल ने चौंककर जौहर की ओर देखा, "कल रात रेडियो से समाचार सुनने का ध्यान ही नहीं रहा।"

"हम तो तुम्हें खास खबर सुनाना चाहते थे। तुम मादा बनने पर तुली थी। रेडियो और अखबार में भीतरी बात नहीं आ सकती।"

बम्बई सरकार का चीफ सेक्रेटरी सर हातिमजी सदुद्दीन की पत्नी का ताऊ था। सदुद्दीन और खालिदा का उनके यहाँ आना जाना। हातिमजी अपनी योग्यता के कारण बम्बई के गवर्नर एमर्सन का बहुत विश्वस्त एक दिन साँझ सदुद्दीन और खालिदा किसी प्रसंग में ताऊ के यहाँ गये थे। हातिम जी अपने दामाद की समझ बूझ और विचारों से परिचित । जिक्र चल गया।

ब्रिटेन में युद्ध समाप्त होते ही नया चुनाव युद्ध में विजय का श्रेय लिये चर्चित की कंजरवेटिव पार्टी चुनाव में हार गयी। नयी सरकार मजदूर दल और उदार दल की। प्रधानमंत्री एटली। वायसराय वेवेल हिदुस्तान की स्थिति पर परामर्श के लिये लंदन गया था। वेवेल स्वयं भारत में कमांडर-इन-चीफ रह चुका था। भारतीय सेनाओं की भीतरी स्थिति और मनोवृत्ति से परिचित। उसका विश्वास, युद्ध के समय जैसे-तैसे निरंकुश दमन से निवाह लिया, भविष्य में भारत को अधीन रखना ब्रिटेन के लिये कठिन होगा। बम्बई का गवर्नर वायसराय से सहमत। शेष गवर्नर और ब्रिटिश आई० सी० एस० लोगों को भरोसा कि वे अपने शासन- कौशल और कूटनीति से भविष्य में भी भारत पर नियंत्रण कायम रख सकते हैं।

हातिमजी को मालूम था, वेवेल ने एटली को समझा दिया— ब्रिटेन की नमकहलाल भारतीय सेनाओं में राजनैतिक असंतोष और चेतना की कई घटनायें हो चुकी थीं। जापान के हाथ बंदी बने भारतीय सैनिकों ने आज़ाद हिन्द फौज बनाकर ब्रिटेन के विरुद्ध हथियार उठा लिये थे। अफ्रीका भेजी गयी भारतीय सेनाओं ने भी ब्रिटिश सिपाहियों को पक्षपातपूर्ण बेहतर व्यवहार दिये जाने का विरोध किया था। कुछ भारतीय प्लाट्स नेताओं की गिरफ्तारी के समाचार से भड़क गयी थीं। उन्हें विदेश में ही तोपदम केरा दिया गया। भारतीय पुलिस, नौसेना और वायुसेना में भी असंतोष के लक्षण दिखायी दे रहे थे। भारत को नियंत्रण में रखने के लिये लाखों गोरी फौजें और सिविल सर्वेंन्ट भेजना युद्ध से जर्जर ब्रिटेन के लिये असम्भव भारत को स्थायी सिरदर्द बनाये रखने के बजाय उसे स्वशासन देकर सहायक मित्र बना लेना उचित ।

नये समाचारों और नेताओं की जेल से मुक्ति से जौहर कमाल के मन में फिर आशा की झलक। भूलाभाई देसाई-लियाकत अली फार्मूले के सम्बन्ध में रेडियो और अखबारों में समाचार था: देसाई को गांधी जी का आशीर्वाद प्राप्त और लियाकत अली को जिन्ना का समर्थन। शिमला में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि शासन में सहयोग के लिये व्यावहारिक प्रस्तावों पर विचार कर रहे हैं। गांधीजी और जिन्ना विचार-विनिमय में प्रत्यक्ष भाग नहीं ले रहे, परन्तु अपने-अपने दलों को परामर्श और अनुमति देने के लिये शिमला में उपस्थित हैं। दोनों नेताओं की अनुमति से दोनों पक्षों में अस्थायी सहयोग की

योजना पर पूर्ण सहमति हो गयी है। दोनों पक्षों ने आज ग्यारह बजे योजना पर हस्ताक्षर कर देने का आश्वासन दिया है। वायसराय को आशा है, यह अस्थायी समझौता भविष्य में दोनों पक्षों के सहयोग से शासन विधान तैयार कर सकने का आधार बन सकेगा। फिलहाल दोनों पक्षों को जो कुछ आशंकाएं हैं वे व्यावहारिक अनुभव से सुलझ सकेंगी।

जौहर कमाल ने रात नौ बजे रेडियो से ये ही समाचार सुने थे। समाचारों से उमंग में लखनऊ लौटकर सामान्य जीवन आरम्भ कर सकने की कल्पनायें उभरने लगीं। कमाल ने चेतावनी दी, “मियाँ, यहाँ तो जबरन बीवी बनाये बैठे हो, लखनऊ चलकर क्या होगा? हम अकेले नहीं रहेंगे"।"

जौहर ने आश्वासन दिया, अज्ञातवास की केचुलियाँ झाड़कर लखनउ, पहुँचकर पहला काम कोर्ट में रुद्र उषा की सिविल मैरेज के लिये आवेदन उपारुद्र और उनका बेटा प्रतापा दोनों अनुमान करते रहते, लखनऊ जा सकने लायक स्थिति होने में अभी कितना समय लगेगा।

अगले दिन सुबह आठ बजे रेडियो ने फिर खबर दी : शिमला में वातावरण बहुत आशा और उत्साह का है। प्रस्ताव पर दोनों पक्षों के हस्ताक्षरों के लिये ग्यारह बजे का समय निश्चित है।

कमाल मुस्करायी, “तुम दफ्तर में रेडियो से खबर सुन लोगे। लौटते समय 'सनोवर' से मिठाई लेते आना। पार्टी करेंगे।"

जौहर डेढ़ बजे से दो मिनट पूर्व रेडियो समाचार के लिये सदुद्दीन के कमरे में आ गया। "समझौते की खबर के लिये आये हो। वह तो हो गया एलान शेष" सदुद्दीन ने कहा, “जिना हैज टेकन हिज पाउण्ड ऑफ फ्लेशा मुल्क और मुसलमान मरें या जिये, उसकी बला से। उसने गांधी को मात दे दी। चेंज ऑफ हार्ट हो गया, गांधी का जिन्ना का नहीं।"

समाचार सुनकर दोनों विस्मयाहतः मिस्टर जिन्ना ने मुस्लिम लीग के प्रतिनिधियों को सहयोग के समझौते पर हस्ताक्षर की अनुमति नहीं दी। संवाददाताओं के प्रश्न पर जिन्ना का उत्तर- सहयोग के प्रस्ताव व्यावहारिक नहीं हैं।

जौहर चिढ़ गया, जिन्ना की एक ही माँग या शर्त वायसराय की काउन्सिल में केवल जिन्ना द्वारा नियुक्त लीग के सदस्य और स्वयं जिन्ना वायसराय के पद पर "

"इसमें भी सन्देह ! " सदुद्दीन ने सिर हिलाया, “झगड़ा नहीं रहेगा तो जिना का महत्त्व क्या खैर गलत रास्ते पर समझौता न होना बेहतर ।"

छः बजे 'ईवनिंग टेलीग्राफ' में जिन्ना का वक्तव्य आ गयाः मुस्लिम लीग को ऐसा कोई भी सहयोग समझौता स्वीकार नहीं हो सकता जो हिंदू-मुसलमानों को दो पृथक कौमें मानने और पाकिस्तान की स्थापना में अड़चन बन जाये या उस माँग को एक दिन के लिये भी स्थगित कर दे।

जौहर ने समाचार सद्द्दीन को दिखाया, "यह तो सिविल बार की ललकार । जिन्ना की नीति है, स्थिति जितनी विकट हो सके, बनाओ। समझौता स्पष्ट ही कीमों की मान्यता के आधार पर था। उसमें पाकिस्तान की माँग की अस्वीकृति न थी। हातिम जी को पूरा विश्वास था, वेवेल निवाह ले जायेगा। ये हो क्या गया? जिन्ना जिद्दी आदमी उसने अपनी बात बदली और अपनी इतनी बड़ी जीत ठुकरा दी इसमें कुछ राज जरूर।"

'टाइम्स' के समाचार सम्पादक बेंजामिन नायर का सद्द्दीन के साथ उठना-बैठना। उसने बेंजामिन से फोन मिलाया, वे बिना बादल बिजली कैसी? हो क्या गया?" बेंजामिन ने पता लगाने का आश्वासन दिया।

दूसरे दिन बेंजामिन नायर ने स्वयं फोन किया, "सेठ, समाचार नहीं सूचना है, तुम्हारे लिये खास महत्त्व की करोड़ों का टिप। कुछ बैठका करो तो बतायें।" सदुद्दीन ने उसे सैध्या क्रिकेट क्लब में निमंत्रण दे दिया। सहद्दीन और जौहर समाचार सूचना के लिये बहुत व्यग्र । बेंजामिन से बातचीत के लिये सदुद्दीन ने अलग कमरे में टेबल ली थी। टेबल पर वैजामिन की खास पसन्द की व्हिस्की 'ब्लैक डाग की बोतल प्रतीक्षा में बेंजामिन की बाँछें खिल गयीं। उसने बताया, "बायसराय मात खा गया।"

"जिन्ना से सदुद्दीन ने विस्मय प्रकट किया।

"जिन्ना किस खेत की मूली! ब्रिटिश ब्यूरोक्रेसी के फरेब से दाँव-पेंच के चर्चिल के कंजरवेटिव ग्रुप के गवर्नरों हैली, हैलेट, जैनकिन्स और अंग्रेज आई० सी० एस० ग्रुप, दूसरी तरफ एटली के सहायक वेवेल के बीच ये तीनों गवर्नर रिटायर्ड आई० सी० एस० एटली और वेवेल युद्ध से जर्जर ब्रिटेन को किसी तरह बचाने की फिक्र में कंजरवेटिव अब भी सूर्य को घेर सकने में समर्थ ब्रिटिश साम्राज्य को न टूटने देने के स्वप्नों में अंग्रेज गवर्नर और आई० सी० एस० इस देश पर मनचाही हुकूमत की दाँतों में दबी हड्डी छोड़ने को तैयार नहीं। जिन्ना शुरू से लियाकत अली के प्रस्तावों से सहमत था। प्रस्तावों से उसकी पूरी स्वीकृति थी । लियाकत अंतिम बार बात के लिये साढ़े दस बजे जिन्ना के होटल गया। जिन्ना अपने कमरे से नीचे आने को था, उसे सेन्ट्रल सेक्रेटेरियेट के गजनफर अली की मार्फत एक संदेश पहुँच गया।

"जिन्ना ने नीचे आकर समझौते पर हस्ताक्षर न करने की सलाह दे दी। लियाकत चक्क वहाँ मौजूद सब संवाददाता हैरान। जिन्ना लिप्ट से अपने कमरे में लौट रहा था। एच० टी० का कारस्पाण्डेंट दुर्गा उनका बहुत मुँहलगा। दुर्गा एक हुनरमंद। जिन्ना के हाथ गांधी को बेच दे, बिड़ला के हाथ जिन्ना को बेच दे और आई० सी० एस० के हाथ तीनों को बेच दे | असली मर्सिनरी जर्नलिस्ट। जिन्ना की खास पब्लिसिटी करने वाला। जहाँ-तहाँ की ख़बर उसे ला दे। दुर्गा उसके साथ हो लिया। जिन्ना से पूछा- सर, ये जीती बाजी क्यों छोड़ दी?

"जिन्ना ने उसे जवाब दिया- बाजी तो बाजी, आखिर तक पलट जाये। उसमें उलझने की जरूरत! सहयोगी सरकार के झंझटों के बजाय पाकिस्तान का निश्चित वायदा बेहतर। दुर्गा को बता दिया, वायसराय की कौंसिल के चीफ सेक्रेटरी का वायदा है— लीग कांग्रेस से समझौता न करे तो पाकिस्तान निश्चित।

“समझे!" बेंजामिन ने कहा, "ब्रिटिश आई० सी० एस० को एटली की नीति असफल करने का संतोष। वे लोग कांग्रेस से बहुत जले-भुने। कम से कम फिलहाल ताकत कांग्रेस के हाथ जाने ट्रांसफर ऑफ पावर से बची। आई० सी० एस० का राज बरकरार जब पावर कांग्रेस और लीग में बैटेगी तो अंग्रेज को बंदर-बॉट का मौका। ब्रिटिश ब्यूरोक्रेसी हिंदुस्तान के टुकड़े कराने पर तुली है तो पाकिस्तान बनकर रहेगा। ये लोग जब चाहें साम्प्रदायिक दंगों का दावानल भड़का दें। इम्पीरियलिस्ट टोरियों की गहरी नीति आजाद

हिन्दुस्तान कभी भी ब्रिटेन के खिलाफ हो सकता है इसलिये इसके टुकड़े कर देना बेहतर- वर्मा, लंका, हिन्दुस्तान, पाकिस्तान ""

जीहर और कमाल की अज्ञातवास से शीघ्र मुक्ति की उमंगों पर फिर तुषारपात ।

एटली और बेबेल का निश्चय, युद्ध से जर्जर ब्रिटेन के लिये भारत पर काबिज रह सकना असम्भव जिन्ना और मुस्लिम लीग के असहयोग के बावजूद उसने कांग्रेस से बात की- कांग्रेस जनता के प्रतिनिधि शासन में सहयोग का उत्तरदायित्व लेने को तैयार है या नहीं? कांग्रेस को उसमें आपत्ति न थी। एटली ने घोषणा कर दी ब्रिटेन डेढ़-दो बरस से अधिक भारत के शासन का बोझ नहीं सम्भालेगा। भारत के राजनैतिक प्रतिनिधि अपनी जिम्मेदारी के लिये तैयार हो जायें। भारत में नये चुनाव कर दिये जायें। नयी चुनी विधान सभाओं से प्रतिनिधि लेकर केन्द्र में नया शासन विधान तैयार करन की व्यवस्था की जाये। कांग्रेस को चुनावों में भाग लेने का अवसर देने के लिये कांग्रेस कार्यकर्ताओं को जेल से रिहा कर दिया गया। हिंसा और ध्वंस के अभियुक्त, भयंकर राजद्रोह की आशंका से डी० आई० आर० में बन्द और फरार लोगों के अतिरिक्त अन्य लोग जेलों से रिहा हो गये।

दिसम्बर, १९४५ से देश भर में चुनावों की उत्तेजना। उस समय बालिग मताधिकार न था, वोट देने वालों की संख्या वर्तमान का दसवों भाग भी नहीं। इस बार चुनाव की तैयारियों में मुस्लिम लीग की तरफ से प्रतिद्वंद्विता की धमकी पहले से कहीं अधिक कांग्रेस का तिरंगा बीस फुट ऊँचे बॉस पर लगाया जाता तो लीग का हरा झंडा तीस फुट ऊँचा । कांग्रेस चुनौती स्वीकार करके चालीस फुट ऊंचा झंडा लगाती, लीग का झंडा पचास फुट कुछ मान से मुस्लिम लीग के अलावा मुसलमानों का एक और संगठन नजर आ रहा था। पुलिस या फौज के ढंग की खाकी वर्दी पहने, सैनिकों की फूहड़ नकल में मार्च करती टोलियाँ कंधों पर राइफल की जगह बेलचे। अधिकांश अशिक्षित लड़के या नौजवान, खासकर उत्तर भारत के। ये लोग नगर में कई जगहों पर अम्बेदकर रोड पर खाली जगह में भी या कभी पार्कों में कवायद करते या सड़क पर कदम मिलाकर मार्च या यत्न करते दिखायी दे जाते- चपरास्तः चपरास्त (बायाँ दायाँ)! यह लोग नारे लगातेः

तीके गुलामी तोड़ दो, हुक्म लीग को वोट दो!

सीने पे गोली खायेंगे, पाकिस्तान बनायेंगे!

मारेंगे मर जायेंगे, पाकिस्तान बनायेंगे!

जब कायदे आज़म अपना है, गांधी की परवा कौन करे!

इस जमात या संगठन का नाम 'खाकसार रजाकार' (अकिंचन स्वयंसेवक) । रूप- व्यवहार फूहड़, फटेहाल लोगों का, लेकिन तेवर आक्रामक सेना के कंधे पर बेलचा यों तो धम-सेवा का प्रतीक और उपकरण, परन्तु इरादा हो तो लाठी से कहीं अधिक घातक

वली को खाकसारों के प्रति सराहना सहानुभूति। उसके यहाँ इमदाद के लिये आये थे। उसने दस रुपये दिये। जौहर को कह सुनकर उससे भी पाँच दिलवा दिये। समझायाः मिल्लत के खादिम हैं। इन लोगों की मदद कौमी फर्ज बेचारे गरीबों के लड़के हैं, मेहनत करते हैं, कुछ खुराक भी जरूरी। इन्हें छटॉक छटाँक भर भीगा चना और पाद-पाव भर दूध दिया जाता है। हम तुम ही खर्चा देंगे। ये लोग मुस्लिम अवाम को नेक राह पर लाते हैं।

चौकसी रखते हैं, कौन लोग नमाज़ रोज़े का फर्ज अदा नहीं करते। अनपढ़-छोटे लोगों में मज़हबी फराईज़ की पाबन्दी जरूरी।

जौहर समीप खार में हिन्दू लड़कों या नवयुवकों के संगठन के बारे में भी जानता था, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ खाकसारों की अपेक्षा गुप-चुप संगठन। वे लोग भी पार्कों में कवायद ड्रिल करते, कबड्डी खेलते, लाठी-वनैटी घुमाते गोल बाँधकर प्रार्थना करते। कौतूहल से उनके अधिक समीप जाना या जिज्ञासा प्रकट करना जौहर के लिये उचित न था। उन नौजवानों के खाकी कमीज निकर, काली टोपी, चौड़ी पेटी, जूते-मोजे। धुले- चिकने चेहरों से प्रकट निम्न मध्य वित्त या मध्य वित्त भद्रलोक शिक्षितों की सन्तानें । उनमें मजदूर दस्तकारों के वेटों के लिये जगह नहीं। नारे न लगाते थे, दृढ़ निश्चय की चुप्पी वली ने बताया था, बहुत खतरनाक लोग रे, खंजर, तलवार की मश्क खुफिया करते हैं। इनके पास बन्दूकें पिस्तौलें बम मुसलमानों को नाबूद कर देने का अहद लिये । जौहर ने दो-तीन बार उन लोगों के केन्द्र के समीप से गुजरते समय ठिठक कर उनके सामूहिक प्रार्थना-गान के कुछ शब्द सुने थे:

नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोऽहम्। प्रभो शक्तिमन्! हिन्दुराष्ट्रोगभूताः

राष्ट्र के स्वयंसेवक हैं, परन्तु इनके लिये मातृभूमि और राष्ट्र का अर्थ हिन्दू राष्ट्र भारत माता को म्लेच्छों के बोझ से मुक्त करने का व्रत शिवाजी के सैनिक मुसलमानों से मुहम्मद गोरी और औरंगज़ेब का बदला चुकाने की प्रतिज्ञा । कांग्रेस की नीति को हिन्दू विरोधी मानने वाले, परन्तु कांग्रेस का खुला विरोध उनकी नीति न थी। जानते थे, कांग्रेस से प्रतिद्वंद्विता स्वयं उनके लिये घातक होगी। दाँत पीसे उचित अवसर की प्रतीक्षा में।

चुनाव फरवरी के पहले सप्ताह में होने वाले थे सभी प्रान्तों में चुनावों के लिये कांग्रेस के प्रत्याशियों की सूचियाँ बनायी जा रही थीं। बम्बई, अहमदाबाद और महाराष्ट्र में अनेक व्यवसायियों ने छोटी-मोटी मशीनें और मोटरों के स्पेयर बनवाने के धंधे चालू कर दिये थे। युद्ध समाप्त हो गया था। विदेश से शीघ्र आयात आरम्भ होने की आशा में व्यवसायियों को अपना बाजार जमा लेने की चिन्ता। इस प्रयोजन से जौहर कई बार दक्षिण और मध्य भारत के चक्कर लगा चुका था। दिसम्बर के अन्त में उसने उत्तर जाने का कार्यक्रम बना लिया। इस बार बनारस, कानपुर, दिल्ली, अमृतसर तक जाने का विचार मौके से लखनऊ भी हो आया।

दौरे से लौटकर जौहर ने कमाल से बात की, “लखनऊ में साथियों का विचार है, विधानसभा के प्रत्याशियों के लिये तुम्हारा नाम कांग्रेस की ओर से सुझाया जाना चाहिये। कांग्रेस कुछ सीटें महिलाओं को जरूर देगी। पिछले चुनाव में उस मूर्खा शिवरानी वांचू को कांग्रेस का टिकट दिया गया। अपने लिये दो प्लाट घेर लेने के अलावा उसने क्या किया? उसे राजनैतिक या आर्थिक समस्याओं की समझ क्या। असेम्बली में एक लफ्ज बोल सकने की तमीज नहीं। तुम वहाँ अधिक उपयोगी हो सकती हो। "

"नहीं नहीं, हमें कुछ नहीं माँगना।" कमाल ने संकोच से इनकार किया, “हमने किया क्या? लोगों को भड़का कर भाग आये। मुसीबतें तो दूसरों ने झेलीं। अब भी कई बार बिरजू की याद आ जाती है तो लगता है उसकी हत्या हमारे सिर पर ।"

"तुम्हें कुछ कहने की जरूरत नहीं।" जौहर ने समझाया, "वे लोग सिन्हा, हरी भैया, त्यागी से बात करने के लिये कह रहे थे। निगम से कह दिया उन्हें याद दिला दे।"

कमाल को बताया: लखनऊ-कानपुर में खूब राजनैतिक गहमा-गहमी थी। राजनैतिक फरारों के नाम वारंट अभी बरकरार थे। जौहर के लिये, खासकर उस रूप-भूषा में, अधिक लोगों से मिलना निरापद न था। वह निगम, शास्त्री, त्यागी और सिन्हा से मिला। मिश्रा परिवार में जाने की इच्छा थी, परन्तु उन्हें उस रूप से चौकाना उचित न समझा। विश्वस्त लोगों को बता दिया, लखनऊ लौटते ही सिविल मैरेज कर लेंगे।

फरवरी के आरम्भ में चुनावों के बाद नये मंत्रिमंडल बन गये। मुस्लिम अल्पमत प्रान्तों में मंत्रिमंडल तो कांग्रेस के बने, परन्तु मुसलमानों की लगभग सभी सीटें मुस्लिम लीग ने ली। यू० पी० में कांग्रेस केवल दो मुस्लिम सीटें ले पायी-रफी अहमद किदवई और मुहम्मद इब्राहीम विस्मय कि चारों मुस्लिम बहुमत प्रान्तों में मुस्लिम लीग को सफलता न मिली। पश्चिमोत्तर प्रान्त के सबसे अधिक मुस्लिम बहुमत प्रान्त में भी कांग्रेसी मंत्रिमंडल बना। बंगाल, पंजाब और सिन्ध में संयुक्त मंत्रिमंडल कांग्रेसी मंत्रिमंडलों ने सब राजनैतिक बन्दियों और राजनैतिक फरारों के वारंट कैंसिल किये जाने के आदेश दे दिये।

सहद्दीन और जौहर पहले ही निश्चय कर चुके थे, स्थिति बदलने पर जौहर कानपुर, इलाहाबाद या लखनऊ में उनकी फर्म की उत्तर भारत में एजेंसी साझेदारी में करेगा। कमाल के लिये भी अब लखनऊ लौटने में विलम्ब असा

पाठक ने बम्बई छोड़ने से पहले दाड़ी से छुट्टी लेकर मूँछें महीन कतर लीं। उपा को रूप- वेश में कुछ बदलना न था।

पाठक तीन मास पूर्व लखनऊ में सिन्हा, जैदी, शाखी, वेदप्रकाश और चन्द्रभूषण निगम से समाचार लेकर बातचीत कर आया था। उषा की फरारी के बाद मरीकों ने उसके मकान पर कब्जे की कोशिश की थी। बाबू और पड़ोसियों के विरोध के कारण सरीक सफल न हो सके, परन्तु रिसीवर ने उतना बड़ा मकान अपने एक आदमी को, उस महंगी के जमाने में केवल पच्चीस रुपया मासिक पर दे दिया था। अब उसमें दो परिवार थे। रेन्ट कन्ट्रोल लागू। मकान खाली करवा लेना आसान नहीं।

उषा साढ़े तीन वर्ष पूर्व क्रान्ति में सहयोग के लिये भेस बदले चुपचाप लखनऊ चारबाग स्टेशन से गयी थी, वैसे ही चुपचाप बिना किसी को समाचार दिये पाठक के साथ अप्रैल मध्य में लौटी। अब मेस न बदले थी, परन्तु स्टेशन पर उसकी अगवानी के लिये कोई नहीं। मेल ट्रेन स्टेशन में प्रवेश के समय चीख-चीखकर अपनी जगह के लिये चेतावनी दे रही थी। इंजन की उन चीखों में उषा के हृदय की किलकारियाँ कूदकर इंजन से पहले स्टेशन पहुँच जाये। मेल रुकने पर प्लेटफार्म पर उतरते शरीर में पुलक अपने घर की दहलीज पर कदम रख रही हो !

उषा और पाठक जानते थे, डी० एन० पंडित वालाकदर में रहते हैं, लेकिन स्थान अपरिचित। मकान निगम को मालूम था। पाठक फतेहगंज में फलियारी गली के मोड़ पर ताँगा रुकवा कर निगम को बुलाने चला गया।

पाठक कुछ विलम्ब से लौटा। विस्मय और चिन्ता से बोला, "निगम, श्यामा नहीं है।

मौसी के यहाँ भी अजीब सम्राटा। सिमरन ने दरवाजा नहीं खोला, कहता है, मालकिन का

हुक्म नहीं।" "क्या ?" उषा विस्मित।

पाठक फिर तोंगे पर उषा के साथ बैठ गया। ताँगेवाले को कैसरबाग चलने का आदेश देकर उपा ने बताया, "सिमरन ने दरवाज़ा नहीं खोला तो हमने पूछा, हमें नहीं पहचाना? बोला पहचाना। मालकिन का हुक्म है, कोई नहीं आयेगा। हमने कहा, मौसी से हमारा नाम बताओ। तो बताया माँ जी काशी चली गयीं। फिर पूछा, तो कौन मालकिन हैं, सित्तो? उन्हें हमारा नाम बताओ। सिमरन ने बताया, बिटिया पूजा पर बैठ गयीं, दो घंटे से पहले नहीं बोलेंगी।"

"सित्तो "पूजा!" उषा के होंठ खुले रह गये।

"हम स्वयं हैराना" सिमरन से कहा, "बताते क्यों नहीं?"

"हम कुछ नहीं जानते सरकार सिमरन ने गर्दन झटक दी, हमें हुक्म कि कोई भीतर नहीं आयेगा। बहुत अपमान लगा पर मज़बूरी। सिमरन भी बहुत झटक गया। उदास बीमार-सा, चेहरे पर कई दिन की हजामत । निगम, श्यामा, जिया भी वहाँ से चले गये।

पड़ोसी चौबे से पूछा, यह सब सन्नाटा कैसा, मामला क्या है? उसने पूछा, आप कौन हैं, बताया, मिश्रा जी के रिश्तेदार हैं। बीसियों बार आते ठहरते रहे हैं। वह बोला, आप उनके रिश्तेदार, आप नहीं जानते तो हम क्या जाने! उसने किवाड़ मूँद लिये।"

वालाकदर में पंडित का मकान खोजने में असुविधा न हुई। उषा, डैडी, मम्मी, बे पद्मा से गले लगकर मिली। सद्दू भी जीजी से लिपट गया। सभी की आँखों से उल्लास के आँसू । अमित घर पर न था।

"पप्पू, तुम्हारी मामा" पद्मा ने प्रताप को बताया। प्रताप नवागन्तुक युवती को आँखें फाड़े देख रहा था।

..पाठक का पंडित से पूर्व परिचय न था। उषा ने पूर्व परिचय दिया— रुद्रदत्त पाठक, कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के आर्गेनाइजर थे। हम दोनों के नाम वारंट थे। फरारी में बम्बई में रहे। साथ-साथ आये हैं।

पाठक फिर आने के लिये कहकर चला गया।

इतने समय बाद बेटे को पाकर उषा का मन उमड़ आया। चाहती थी, प्रताप को गोद में ले ले। उसे पौने तीन बर्स का छोड़ गयी थी, अब सवा छः बरस का शरीर तब से दूना, तदुरुस्त चुस्ता चेहरा-मोहरा शिशु का नहीं लड़के जैसा कमीज-नेकर पहने। उषा को बिलकुल पहचाना लग रहा था। उसे सीने से लगा लेने की हुड़क उपा उसे समीप खींचती, वह परे हट जाता।

प्रताप को मालूम था, उसकी मामा है। पद्मा बताती थी, तुम्हारी मामा पढ़ने के लिये विलायत गयी है। बहुत दिनों में आयेगी। मामा की कोई याद न थी, बस कल्पना-मामा अच्छी थी। वह मम्मी, बेबे को जानता था, खेल-कूद, लाड़-प्यार के लिये पद्मा आंटी | पद्मा प्रताप को बताती रहती- तुम्हारी मामा बहुत पढ़ी हुई।

"हमारी मिस टीचर से ज्यादा?" प्रताप शंका करता।

"हाँ बहुत ज्यादा।" पद्मा विश्वास दिलाती, "और बहुत बहादुर तुम्हारी मामा की

बहुत इज्जत तुम्हारी मामा तुम्हें बहुत प्यार करती है। विलायत से तुम्हारे लिये ये वो लावेगी ।"

डैडी मम्मी, पद्मा और उपा की बातें समाप्त न हो रही थीं। प्रताप को मां की गोद या बाँहों में जाने से तो झिझक, परन्तु नजर कौतूहल और उत्सुकता से उसी की ओर

उपा बेटे के लिये तीन बडिया खिलौना बम्बई से लायी थी। पप्पू ने खिलौने लेकर बैंक यू' कहा और डैडी की मेज पर सुरक्षित रख आया। चेहरे पर संतोष नहीं, कुछ और आशा- प्रतीक्षा पद्मा ने प्रताप के कान में मुंह लगाकर शंका का समाधान कर दिया। उषा को पप्पू की शिकायत बता दी. मामा विलायत से क्रिकेट का वैट और बॉल नहीं लायी ? लायी है, सामान अभी स्टेशन पर है।

उपा बेटे को अपने साथ सुलाना चाहती थी। प्रताप ने कंधे हिला दिये, "नो! आई एम नाट ए बेबी नाओ आई एम ए बिग बाय।" पद्मा ने प्रताप को छोटी खटोली के बजाय पलंग पर सुलाया। लड़के को नींद आ जाने पर उषा बेटे के समीप जा लेटी आहिस्ता- आहिस्ता उसकी पीठ, गर्दन टाँगें सहलाती रही।

सुबह प्रताप को जल्दी तैयार करना जरूरी होता। स्कूल बस साहे छः बजे आ जाती बी पद्मा मेडिकल कालेज के दूसरे वर्ष में थी। इतने दिनों बाद बहिन आयी थी। पद्मा कालेज न जा सकी।

उपा अपरिचित बन गये बेटे को रिझाने की चिन्ता में थी। नौ बजते ही दोनों बहनें पप्पू के लिये खेल का सामान खरीदने बाजार चली गयीं। युद्ध के कारण बाजारों में विलायती सामान दुर्लभ, कीमतें ढाई-तीन गुनी बहुत खोज में चीजें मिलीं। पप्पू ने बहुत ध्यान से मोटरें देखी। उसकी आँखों में संतोष की चमक देख उषा को संतोष

पाठक ने निगम की नयी जगह खोज ली थी। मौसी के यहाँ दुबारा जाने से पूर्व निगम से स्थिति जान लेना चाहता था। उषा के लौट आने का समाचार भी देना था। निगम और श्यामा दोनों के मन में उषा के साहस त्याग के लिये बहुत आदर स्नेह श्यामा समाचार पाते ही उषा से मिलने के लिये दौड़ी आयी।

श्यामा को देखकर उषा खिल गयी। गले लगकर मिली। उषा के मन में सरस्वती से मिलने, उसका समाचार जानने की तीव्र उत्सुकता श्यामा से शिकायत की, "कल साँझ पहले आप लोगों के यहाँ ही पता लेने गये। मकान कब बदला, क्यों? वहाँ क्या मामला?"

श्यामा नजर झुकाकर बोली, "दीदी, दो महीने हुए वहाँ से आये मकान बहुत परेशानी से बदलना पड़ा। आजकल नयी जगह मिलना बहुत कठिन। खैर, जगह मिल गयी, लेकिन पड़ोस अच्छा नहीं है। मज़बूरी ।"

“सित्तो के यहाँ क्या हुआ, बताती क्यों नहीं?"

श्यामा गर्दन झुकाये मौन। उषा के पुनः आग्रह पर गहरी साँस, "दीदी, वह लम्बी बात ।" श्यामा झिझकी, परन्तु उषा की व्याकुल उत्सुकता देखकर बताने लगी: ★ आप जानती हैं, सरस्वती कितनी चुलबुली, मदा हँसमुख हम दोनों बचपन की सहेलियाँ हमसे तीन बरस छोटी है पर आपस में कोई छिपाय नहीं। दिसम्बर में पाठक भाई बम्बई से आये थे, तब से ही कुछ चुप-चुप। उसकी चुप्पी चिन्ता बढ़ती गयी। हमारे

पास आकर चुप बैठ जाये कुछ कहना चाहती है पर हौसला नहीं हो रहा। पन्द्रह-बीस दिन यही हालत। एक दिन रो पड़ी। बोली, तुम साइंस पढ़ती हो, हमें ज़हर ला दो। हमारा माथा उनका बहुत पूछा तो रो-रोकर सब बता दिया।

दीदी, हमारे पाँव तले से धरती हिल गयी। हमें भैया पर सन्देह हुआ। क्रोध में सरस्वती से कहा, तुम लोगों की अक्ल कैसे मारी गयी! ऐसी बेवकूफी कर बैठे हो तो भैया को तुम्हें निवाहनी पड़ेगी। मालूम था, उसकी माँ महाकट्टर रूढ़िवादी प्राण रहते कायस्थ के लड़के से बेटी के व्याह की बात नहीं सोच सकती पर दूसरा रास्ता क्या था ! सित्तो से कहा, हमसे ज़हर माँगने आयी, भैया से क्यों नहीं कहा कि तुम्हें कोई दवा लाकर दें या तुम्हें लेकर कहीं निकल जायें। तुम्हारी जान ज़िन्दगी से मज़ाक कर रहे हैं। तुम्हें खुद कहना चाहिए। ऐसी बात हम कैसे कह सकती हैं। उन्होंने तुम्हारा हाथ पकड़ा है तो छोड़ कैसे सकते हैं।" उषा स्तब्ध मौन, ठोड़ी हाथ की मुट्ठी पर टिकाये सुन रही थी। आँखें फटी हुई, चेहरा फक सफेद

श्यामा ने बताया: सरस्वती का रो-रोकर बुरा हाल दीदी, हम पर तो जैसे बिजली गिरी। आपको भी विश्वास न होगा। उनके यहाँ त्रिवेदी जी ठहरते थे न, पार्लमेन्टरी सेक्रेटरी। सरस्वती के पिता के सबसे विश्वस्त मित्रा उनकी माँ को भी उन्हीं का विश्वास- भरोसा। सितम्बर में जेल से छूटकर आये तो सात-आठ दिन उनके यहाँ ठहरे। बाद में भी जिस तिस काम से आते रहे। आप जानती हैं, लखनऊ में इन्हीं के यहाँ टिकते थे। पान-पानी के लिये सित्तो को ही पुकारते याद होगा, सरस्वती त्रिवेदी जी के जब-तब दुलराते सहलाते रहने की आदत से बहुत चिड़ती थी। किसी समय लड़की पागलपन में बेखबर हो गयी। बेचारी का बेड़ा गर्क कर दिया।

दीदी, अब गुस्सा दिखाने, बुरा-भला कहने से क्या होता पर लड़की की ज़िन्दगी का सवाल, उसकी माँ की जिन्दगी का सवाला रात भर आँख न लगी जिया को सच बात बता दी अम्मा को बहुत गुस्सा बहुत गाली वाली दी। जानती हैं, सित्तो के पिता के हम लोगों पर बहुत एहसान हैं। हमारे पिता उनके मुंशी थे। वह मकान उन्हीं का दिया है। जिया से कहा, उसकी मदद आवश्यक। जिया हम पर बिगड़ी, तू हमें ऐसा पाप करने को कहती है। दीदी, हमने कहा पाप तो हो गया। लड़की की हत्या होगी। लड़की की ही नहीं, उसकी माँ की हत्या खानदान की भी हत्या। इतने भले मिश्रा जी की मृत्यु के बाद बदनामी। जिया ने कहा, हम लोगों की जान कलंक बचाना सौ तीर्थ व्रत से बड़ा पुण्य खैर जिया मान गयी और कोशिश भी की।

हमने भैया से भी कहा, सित्तो परेशानी में है। बड़े ने गरीब लड़की को तबाह कर दिया। उसकी जो मदद हो सके, करनी चाहिये। भैया के दिल को बहुत चोटा दो दिन गुम सुम

उलटी- उबकाई से माँ जी को लड़की पर सन्देह हो गया। माँ जी ने और कुछ न पूछा। अनुमान कर लिया, पाप पड़ोसी लड़के (निगम) का है। रात भर आँगन में चटाई पर तारों के नीचे बैठी रहीं। घर में चूल्हा न जला। अन्न जल कुछ नहीं। न लड़की को न सित्तो की बुआ को पूछा।

हमारे यहाँ आकर जिया को ललकारा, तेरे बेटे ने मेरी लड़की का धर्म नष्ट किया ! अब उस लड़की का क्या होगा? तेरे बेटे ने मेरा, मेरी बेटी, मेरे कुल-वंश का नाश किया; वैसे ही

तुम, तुम्हारा बेटा, तुम्हारा घर-बार जलकर सर्वनाश हो। तुम्हारे कुल का जड़-मूल न रहे। ब्राह्मणी हूँ। तुझे तेरे बेटे, तेरे कुल को सरापती हूँ।

जिया ब्राह्मणी के शाप से थर्रा गयी। चीख उठी, अपने घर बैठा-बैठाकर बुड़े साँड को चराती थी, उसने तुम्हारी बिटिया को नहीं छोड़ा। अपने करमों से डूबी, हमारे निर्दोख गाय से बेटे को क्यों सरापो

सित्तो की माँ लौट गयी। घर सबका अनशन साँझ हमारे यहाँ आकर हाथ जोड़ दिये, बेटी, हमने अनजाने में जो कहा छिमा करो। बनारस में अपने भाई का पता और त्रिवेदी जी का पता देकर कहा तार लिख दो कि तार पाते ही तुरन्त आयें।

सित्तो की बुआ सब समझ गयी। भौजी को समझाना चाहा, जो हो गया उसे ढँको, दुनिया भर में डिंडोरा मत पीटो।

मित्तो की माँ ने दोनों हाथों से कान मूँद लिये, पिछले जन्म के पापों का फल रँडापा भोग रही हैं और पाप नहीं करूँगी। जिसको पाप इसने समेटा वही भोगे।

सिमरन तार देने जा रहा था तो सित्तो का मौन टूटा। माँ के सामने हाथ जोड़े. गोमती

में कूद जाऊँगी। ऐसा व्याह मत करो।

माँ जी ने इनकार में गर्दन हिला दी, व्याह तो उसी से होगा। और पाप नहीं बटोरूँगी! सित्तो एक बार फिर गिडगिडाई, माँ जी, मुझे नहीं जीना व्याह मत करो।

माँ जी ने गर्दन झटक दी, कलमुँही, व्याह तो तू कर चुकी। अब उससे कहाँ भागेगी। यह सब कुछ तुझे और उसे ही सौंपना है।

सितो अपने कमरे में चली गयी। माँ जी बहुत सतर्क। लड़की को पल भर के लिये ओझल न होने दें। लड़की उनके सिर आत्महत्या का पाप न डाल जाये।

त्रिवेदी जी तार पाकर तीसरे दिन प्रातः पहुंचे। दो दिन पहले खबर आयी थी, असेम्बली के लिये चुनाव जीत गये थे। आँगन में कदम रखते ही सकते में। माँ जी तीन दिन से आँगन का फर्श बीचोंबीच गोबर से लिपवा कर चटाई डाले अनशन मे बैठी थीं। त्रिवेदी को सामने देखते ही बरस पड़ीं, तुमने मेरी बेटी को तबाह किया। अब समेटो उस पाप को। उससे फेरे किये बिना क्योड़ी नहीं लाँघने दूंगी।

त्रिवेदी की गर्दन झुक गयी। बदन हवा से हिलते केले के पत्ते की तरह।

दोपहर तक सितों के मामा आ गये। उन्होंने माँ जी को बहुत समझाया पर इनकार दीदी हमें लड़की पर खुद दया। जानते थे, उसे बड़े ने खराब किया। माँ जी से कहने की

हमें हिम्मत न हुई। जिया से कहा, माँ जी से भैया के लिये कह दें।

जिया ने क्रोध में फुंकारा, दूसरों का पाप हमारे सिर हम अपने वंश को दाग लगायें। ऐसी पापिन और हराम की औलाद हमारे निरा हमारे जीते जी ऐसा नहीं होगा।

भैया ने सुना कि माँ जी ने पुरोहित को बुलवाया है, साँझ फेरे कर देने के लिये। स्वयं उनके आँगन में जाकर माँ जी के पाँव पर हाथ रख दिया, माँ जी, हम उसे इज्जत से बहु बनाने के लिये तैयार हम उसे लेकर दूसरी जगह चले जायेंगे।

सित्तो की बुआ सुन रही थी। बोल पड़ी, भौजी, मान जा समझ ले, भगवान रच्छा कर रहे हैं।

माँ जी ने भैया के हाथ अपने पाँव पर से झटक दिये। ननद को भी फटकार दिया।

साथ के कमरे से सित्तो निकली। उसने भैया की बात सुन ली थी। आगे बड़कर त्रिवेदी के सामने हो गयी। चेहरा बिलकुल पीला सफेद मोम जैसा, आँखें लाल त्रिवेदी की ओर घूम गयी, आप नहीं जा सकते। अब धोखा देंगे तो मेरी हत्या करेंगे ।

एक पहर रात गये त्रिवेदी जी से सरस्वती के फेरे हो गये। माँ जी ने गुड़ का शरबत पीकर अनशन समाप्त किया। दूसरे दिन सुबह घर भर की चाबियाँ लड़की के सामने पटक काशीवास के लिये बनारस चली गयीं।

बात फैलते देर नहीं लगी। सुनते हैं, गुप्ता जी के दल ने आपत्ति उठायी-त्रिवेदी जी की चारित्रिक दुर्बलताओं की बहुत आलोचना हो रही है। ऐसे अपवादों का सार्वजनिक निरूपण किया जाना चाहिये। त्रिवेदी विधानसभा के लिये चुने जा चुके थे, परन्तु उनके लिये लोगों को मुँह दिखाना मुश्किल। इस बार आशा थी मंत्री लेकिन उन्होंने पार्लमेंटरी सेक्रेटरी बनना भी मंजूर न किया। उनके सार्वजनिक-राजनैतिक जीवन की हत्या हो गयी। “दीदी, भैया तो ऐसे चुप और उदास कि न बोलें न खायें। नयी जगह खोजने में दो सप्ताह लग गये। जगह क्या, आँगन खुला है कोठरियाँ भी बहुत लेकिन मकान कच्चा, खस्ताहाल लोना लगी दीवारें। तीन कोठरियों की मरम्मत करवा ली है। यहाँ से दो-ढाई सौ कदम पर ही है।

श्यामा ने दो-ढाई घंटे में पूरा प्रसंग बता दिया। उपा के मुँह से बोल फूटना कठिन । दीवार पर निरुद्देश्य टकटकी लगाये मौन मन में शूल बेचारी लड़की की जिंन्दगी बर्बाद हो गयी।

प्रताप अपना बैट बॉल लिये आ गया। चेहरा क्रोध से लाल, “मामा, बन्ने नहीं खेलने देता। डज नॉट बाउल प्रापरली। बॉल दूर फेंक देता है। उसके साथ नहीं खेलेंगे।" "हमारे पास बैठो।" उषा ने बेटे को बाँह में लेना चाहा। वह बिदक कर परे हट गया, "बॉल मम्मी को दे आयें।"

"लाओ हम रख लेंगे।"

"नहीं हम अपनी मम्मी को देंगे।" प्रताप नानी के पास दौड़ गया।

श्यामा ने बता दिया था, पाठक साढ़े छः तक आयेंगे। भाई की प्रतीक्षा में रुकी रही। वे लोग सात तक आये। उपा श्यामा के चेहरों से अनुमान, सित्तो का प्रसंग श्यामा ने बता दिया। निगम उपा के लौटने पर बहुत संतुष्ट प्रसन्नः

"कहाँ रहे दिन भर?" उपा ने पाठक से पूछा, "मिश्रा भवन गये थे?"

"हाँ, दोपहर में गया था। सिमरन ड्योढ़ी का दरवाज़ा खोलने में झिझका। हमने डॉट दिया, हमारा घर हमें रोकेगा कौन? त्रिवेदी जी असेम्बली गये थे।"

"सिलो से क्या बात हुई?"

"हमने पूछा, यह कैसे हो गया? उसने प्रसंग पर बात न करने के लिये नजर फेर ली। इधर-उधर का हाल पूछकर लौट आये।"

सरस्वती के प्रसंग से उषा अवसाद से जड़ हो गयी। एक ओर माया दूसरी ओर सित्तो । सोचा, आत्मपीड़न और गुलामी को धर्म मानकर उसके लिये गर्व करने वालों को कौन मुक्त कर सकता है?

उस संध्या उषा और डैडी में बातचीत का अवसर आया। संध्या अमित के कानपुर से लौटने की आशा थी। बात उसी के प्रसंग में आरम्भ हुई। डैडी को संतोष कि अमित ने फिजिक्स में एम एस सी फर्स्ट क्लास फर्स्ट किया था। फर्स्ट क्लास फर्स्ट आने के कारण शोध के लिये दो बरस की वृत्ति मिल गयी थी, लेकिन लड़के का बहुत समय पार्टी के झंझट में निकल जाता। पंडित लड़के के विचारों और प्रवृत्ति पर बंधन न लगाना चाहते थे। चिन्ता श्री. लगे हाथ पी-एच० डी० कर लेना अच्छा होता। वह एक उपलब्धि और जीवन के लिये बहुत बड़ा अवलम्बन सिलसिला टूट गया तो कठिन हो जायेगा।

'पद्मा बीच में बोल पड़ी, "जीजी, तुम फरार हो गयीं तो पुलिस ने डैडी को बहुत परेशान किया। प्रिंसिपल पर जोर डाला कि इन्हें कालेज से निकाल दें।"

"पो हम सबकी बुजुर्ग है।" ईडी ने हँसकर बेटी को चुप करा दिया, "इसे सबसे ज्यादा मालूम।" उषा के समाधान के लिये संक्षेप में बताया: डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने प्रिंसिपल से कहा था, आपके कालेज में राजद्रोही लोगों या उनके परिवार के लोगों को प्रश्रय नहीं मिलना चाहिये। वह ऐसा दब्बू नहीं फिर अमरीकन उसने हमने पूछा, सच-सच बताओ, राजनैतिक आन्दोलन से तुम्हारा सक्रिय सम्बन्ध है?

हमने कहा, सम्बन्ध न सक्रिय न निष्क्रिया मेरा बेटा कम्युनिस्ट, युद्ध को जनयुद्ध कहकर उसमें सहायता का समर्थक बेटी से इस सम्बन्ध में कभी चर्चा नहीं हुई। वह विवाहिता। वह युद्ध या ब्रिटिश विरोधी हो सकती है। लड़के-लड़की दोनो बालिग लड़की चार बरस से हमसे पृथक्। में उसके विचार व्यवहार के लिये कैसे उत्तरदायी?

प्रिंसिपल ने डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को लिख दिया- पंडित अठारह बरस से कालेज में हैं। उसकी रिपोर्ट विशिष्ट कार्य की रही है। राजनैतिक आन्दोलन के सम्पर्क से इनकार करता है। अपनी वयस्क और पृथक् रहने वाली सन्तान के लिये उसे उत्तरदायी नहीं माना जा सकता। सरकार उसे दोषी समझती है तो उस पर मुकदमा चला सकती है। उस पर अभियोग प्रमाणित हो जाने पर उसे कालेज की सेवा से तुरन्त मुक्त कर दिया जायेगा। डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट चुप हो गया।

साढ़े आठ की गाड़ी से अमित आ गया। सदानंद फारसी टीचर के मकान के सामने दरवाज़े पर लगी बत्ती के नीचे हमउम्र सुलेमान और रुकैया से साथ खेल रहा था। उसने भाई को बड़ी जीजी के आने की सूचना घर में कदम रखने से पहले दे दी। अमित दौड़ पड़ा। उषा आँगन में खाट पर लेटी थी। भाई की पुकार सुनकर खड़ी हो रही थी कि अमित ने उसे बाँहों में उठाकर दो चर दे दिये।

"ओ मीतू!" उपा भय से चीखी।

"ओ पागल !" माँ और बेबे ने एक साथ लड़के को डाँटा, “ऊँट हो गया, इसे कभी अकल नहीं आ सकती," लेकिन अमित को कुछ परवाह नहीं। बहिन के साथ खाट पर बैठकर बाँह उसके गले में डाले रहा। ईडी देख-देखकर खुशा

"तुम्हारे इंतज़ार में ही थे। चलो उठो, अब सब लोग खा लो।" मम्मी ने अमित को पुकारा, "बहिन से लाड़-प्यार फिर करते रहना।"

अमित से उपा को बहुत कुछ पूछना जानना था। खाने के बाद दोनों दूसरों की नींद में विघ्न न डालने के लिये सामने के आँगन में तकियेदार मोठों पर पास-पास बैठ गये।

"बहुत क्रिटिकल टाइम आ रहा है जीजी ।" अमित सहसा गम्भीर, "हम लोगों का पोलिटिकल रीडिंग करेक्ट था। एटली ने साफ कहा, इस देश के शासन से दस्तबरदार होते का उनका निश्चय पक्का | आज़ादी आ रही है, लेकिन ब्रिटिश टोरियों और कैपिटलिस्ट की कान्सपिरेसी है कि इस देश में शासन शक्ति उनके वर्ग के, उनके सहायकों के हाथ में सुरक्षित रहे। हमारा काम जनता के प्रगतिशील तत्त्वों को सचेत और संगठित करके पूँजीवादियों के इस अन्तर्राष्ट्रीय षड्यंत्र को असफल करना है। तुमने देखा, जर्मनी की पराजय होते ही ब्रिटेन अमरीका-फ्रांस ने सहसा कम्युनिज्म और सोवियत विरोध की नीति अपना ली।"

तू छोड़ यह झगडा" उपा ने टोका, "तुमने तो आते ही मुझे एजुकेट करना शुरू कर दिया। किसकी आज़ादी आ रही है, कौन है प्रगतिशील? प्रगतिशीलता का अर्थ केवल अंग्रेजों को हटाना। गले में स्वयं डाले फंदों से आज़ादी नहीं इस देश के लोग, खासकर औरतें वैयक्तिक स्वतंत्रता को पाप समझें, आत्महनन को धर्म-निष्ठा; उन्हें कौन स्वतंत्र कर सकेगा?" पूछ लिया, "और लोगों का हाल-चाल बताओ, कोहली का क्या हाल? डाक्टर रज़ा डिमॉब हो गया होगा?"

दूसरे दिन दोपहर बाद उपा से मिलने कोहली और रजा साथ-साथ आये। कोहली कुछ चुप-चुप, बातचीत संक्षिप्त । उपा कहकर सम्बोधन किया। रजा पूर्वापेक्षा सैनिक की तरह चुस्त बदन, सैनिक उब, परन्तु चेहरे पर कुछ परेशानी उदासी। तीनों की स्मृतियों में पुराने दिन जाग उठे। रजा ने उषा भाभी सम्बोधन कर पूछा, "अज्ञातवास के दिन कैसे काटे? बड़ी परेशानी रही होगी?"

उपा ने रजा को याद दिलाया, “आपकी पार्टी की समझ ठीक निकली। अंतत: नाज़ी फासिस्ट और जापान हार गये, परन्तु हम लोगों का छोटा-मोटा प्रयत्न भी सर्वथा बेकार नहीं गया। ब्रिटेन भारत को स्वशासन दे रहा है। *

रजा से पहले नरेन्द्र बोला, "आप लोगों का प्रयत्न! गांधी और कांग्रेस ने तो उस प्रयत्न के उत्तरदायित्व से पूर्णतः इनकार कर दिया था। देख लीजिये, उस आन्दोलन में जेल जाने वाले लौटकर सौ में साठ कम्युनिस्ट बन गये हैं।"

नरेन्द्र की बात से रज़ा को सन्तोष न हुआ, बोला, “राय ने तो 'क्विट इंडिया' आन्दोलन से पूर्व ही कह दिया था, इस युद्ध के परिणाम में ब्रिटेन जर्जर हो जायेगा। उसे भारत को स्वायत्त शासन देना ही पड़ेगा। ये एटली की बात से भी साफ हैं। "

"क्विट इंडिया की हुंकार गांधी और कांग्रेस जाने किस नशे में दे बैठे, फिर उससे मुकर भी गये।" नरेन्द्र ने कहा, "परन्तु सर्वसाधारण की विदेशी शासन से विरोध स्वाभाविक बात लोगों को गांधी और कांग्रेस पर न विश्वास था, न है।"

"लोगों को रायस्टों और कम्युनिस्टों पर विश्वास है?" उषा ने विद्रूप किया। "समझदार लोगों को होना चाहिये। राय की आठवें चमत्कार की बात सुनी होगी।" रजा ने उपा और कोहली की ओर देखा, "भारत में अदना से अदना सरकारी नौकर से लेकर ऊँचे से ऊँचे सरकारी अफसर तक सभी को विदेशी शासन से नफरत, सभी को आज़ादी की ख्वाहिश, लेकिन हर व्यक्ति ब्रिटिश सरकार की व्यवस्था में अपने विरोध को दबाकर अपना कर्तव्य निवाह रहा है। कारण, उन्हें कांग्रेस के हवाई गोलों पर भरोसा नहीं

और दूसरा कोई अल्टरनेटिव नहीं।"

"हमसे पूछ रहे हैं!” उषा ने प्रसंग बदल दिया, "खुद लड़ाई में, मोर्चे पर हो आये। वहाँ क्या पिकनिक पार्टी थी!"

"बरमा में मोलमीन तक गया था। वहाँ बम्बार्डमेंट में पिंडली में एक स्प्लिंटर घुस गया। महीना भर छुट्टी फिर बेस कैम्पा नवम्बर में डिमॉब होकर लौट आया था। फिर मेडिकल कालेज में।"

उपा ने भी संक्षेप में सब बता दिया। ख्याल आया, हमारे विवाह की बात सुनकर क्या सोचेंगे?

"गेती भाभी से मिलाने कब ले चलियेगा?"

"जब कहिये।" रजा ने नज़र बचाकर जवाब दिया।

"टाल क्यों रहे हैं। दावत नहीं मांग रहे, भाभी से मिलेंगे।" उषा ने उलाहना दिया, फुर्सत नहीं तो पता बता दीजिये। हम खुद पहुँच जायेंगे।"

"हम आकर ले जायें यह बेहतर।" रजा नजर बचाये रहा। उषा को विस्मय, नरेन्द्र भी उस प्रसंग को अनसुना कर रहा था। सन्देह कुछ बात है। प्रकृति विरोध से परस्पर सूट न करने की बात याद आ गयी। अपने आग्रह के लिये संकोच ।

"भारत छोड़ो आन्दोलन के समय यूनिवर्सिटी में उपा के भाषण, आजाद हिन्द रेडियो पर स्वतंत्रता संग्राम में सहयोग के लिये उसकी ललकारें, 'डू और डाई' की हुंकार, साडे तीन बरस ब्रिटिश शासन और पुलिस की आँखों में धूल झोंककर गिरफ्तारी से बचे रहना जनता को भूल न गया था। सर्वसाधारण के मन में उसके लिये बहुत आदर और सराहना । उसके आने की पूर्व सूचना होती तो उसके स्वागत के लिये हजारों लोग स्टेशन पर फूल- मालायें लेकर पहुँचते। उसका जुलूस निकाले बिना न मानते।

उपा और रुद्रदत्त पाठक चुपचाप साँझ के झुटपुटे में लखनऊ पहुँच गये थे। तीन दिन में उनके आने की सूचना नगर में फैल गयी। राजनीति से सम्पर्क रखने वाले युवक उनके प्रति आदर सराहना प्रकट करने के लिये उत्सुका अप्रैल में विद्यार्थियों पर परीक्षा का आतंक वह समय यूनिवर्सिटी के जन- जलसों का नहीं होता। परीक्षा के कारण क्लासें भी स्थगित। फिर भी उपा के सम्मान में एक सभा यूनियन हाल में की गयी। सभा में सभी दलों का सहयोग उपा के साहस बलिदान की सराहना, झाँसी की रानी, चाँद बीबी, जोन ऑफ आर्क से उसकी तुलना । उपा ने बहुत संकोच से जनता के आदर-स्नेह के लिये धन्यवाद देकर छुट्टी

पायी।

उषा और पाठक के सम्मान में दूसरी सभा का आयोजन कांग्रेस दफ्तर में कांग्रेस समाजवादी और उग्र कांग्रेसी जवानों ने किया। सार्वजनिक सभा नहीं, आपसी सहयोग से साठ-सत्तर निमंत्रितों की पार्टी। आचार्य नरेन्द्रदेव, गुप्ता जी और रफी साहब को भी निमंत्रण उषा के प्रति हरि भैया के स्नेह चिन्ता से बहुत लोग परिचिता उन्हें भी निमंत्रण। हरि भैया सभा के समय से आधे घंटे बाद तक भी न आये। लोग विस्मिता

रफी साहब ने सुझाया, "हरिकृष्ण भाई समय की पाबन्दी में गांधी जी के अनुयायी। खयाल है, आने का विचार नहीं। उनकी प्रतीक्षा फिजूला "

सिन्हा ने जैदी की ओर देखा, "उन्हें सूचना पहुँचा दी थी? न हो कोई जाकर बुला लाये। नीचे बीस कदम पर उनकी दुकान। "

जैदी के चेहरे पर नाराज़गी। उसने राम वर्मा की ओर संकेत कर दिया।

"हमने कल स्वयं उनकी दुकान पर जाकर सूचना दी।" वर्मा के स्वर में क्रोध, "पाँच मिनट पहले नीचे जाकर देख आये। दुकान पर नहीं हैं।"

सूचना पाकर भी हरि भैया के न आने के विचार से उषा को विस्मय और दुख वह श्यामी और निगम से तीन बार कह चुकी थी, हरि भैया के यहाँ ज़रूर जाना है।

चली जाना फुर्सत से, क्या जल्दी है—उन लोगों ने टाल दिया था। उषा को सन्देह, कोई बात है।

"कार्रवाई शुरू कीजिये।" रफी साहब ने बात समाप्त कर दी।

सिन्हा ने प्रस्ताव किया, “सौभाग्य से हमारे दोनों आदरणीय पथदर्शक आचार्य जी और रफी साहब स्नेहपूर्ण उदारता से उपस्थित हैं। आप लोगों को उषा और रुद्र की विरुदावली सुनाने की आवश्यकता नहीं है। अनुरोध है, इस समय आचार्य जी हम सबकी ओर से रुद्र और उषा के घर लौटने पर स्वागत - शुभकामना का आशीर्वाद दें और रफी साहब आशीर्वाद समारोह की अध्यक्षता की कृपा करें। "

आचार्य जी आठ-दस मिनट बोले, सदा की तरह भाषा और भाव दोनों प्रांजला मुख से शब्दों के फूल झड़े, कागज के नहीं, वास्तविक सुगन्धित फूल। अंतिम वाक्य रुद्र और उषा हमारे राजनैतिक परिवार के सबसे कर्मठ युवा साथियों में हैं। हमारे कार्य में उनका स्थान वही जो किसी बड़े जहाज के छिपे हुए इंजन रूम में इंजन को चालू रखने वाले मिस्त्री का होता है। वह कमान की भव्य पोशाक में नजर नहीं आता। उषा पर हमें अपने नगर, प्रदेश और देश की सुपुत्री होने का गर्व है।"

सिन्हा पाँच मिनट बोला। उसके बाद जैदी वह आवेश वश में न रख सका, "कुछ लोग कांग्रेस संगठन और आन्दोलन को अपनी नैतिकताओं का मदरसा बना देना चाहते हैं। उन्हें याद रखना चाहिये, कांग्रेस राजनैतिक मंच है। इसमें भाग लेने वालों की धर्म और आचार सम्बन्धी मान्यतायें अलग-अलग हो सकती हैं। हमारे सम्पर्को सम्बन्धों की बिना राजनैतिक है, धर्म और आचार सम्बन्धी नहीं। हम रफ़ी साहब और आचार्य जी को अपना बुजुर्ग रहबर मानते हैं। हमें उन पर भरोसा है इसलिये अपनी शिकायत और निराशा उनसे नहीं छिपायेंगे। सब जानते हैं, हम लोगों ने सूबा कांग्रेस पार्लमेंटरी बोर्ड में एक हजार एक दस्तखतों से दर्खास्त दी थी कि उपा जी को सूबे के जवानों की नुमाइन्दा के तौर पर असेम्बली की उम्मीदवारी का टिकट दिया जाये। बेमतलब हुज्जतें खड़ी करके हमारी दर्खास्त दबा दी गयी। हमने इस बेइन्साफी को बर्दाश्त कर लिया, लेकिन उपा जी और भाई रुद्र के लिये हमारे दिलों में जो इज्जत है वो खुद आचार्य जी के अलफाज से जाहिर है।"

जैदी के इशारों से उषा और परेशान।

रफ़ी साहब ने स्थिति सम्भाली, "हमारे दिल में उषा के लिये इज्ज़त और फख किसी जवान से कम नहीं है, लेकिन हर संगठन के कायदे-कानून होते हैं। ऐसे कायदे बाज वक्त किसी अच्छे काम में भी हायल हो सकते हैं, लेकिन उसूलन उनके मुताबिक चलना वाज़िब

होता है। उषा की हिम्मत और कुर्बानी की कीमत सिर्फ असेम्बली की सीट ही नहीं है। यह उषा के पहले कदम हैं। उसकी हिम्मत और कुर्बानी की रोशनी को दकियानूनियत छिपा नहीं सकेगी।"

जैदी कुछ अधिक उत्साह में आ गया, बोल पड़ा, "आप सबको सुनकर खुशी होगी, रुद्र और उपा सिर्फ राजनैतिक इन्कलाब की राह में आगे नहीं हैं। सामाजिक इन्कलाब की राह पर भी उनके कदम आगे हैं। रुद्र और उषा जल्दी ही क्रान्ति के आजीवन संघर्ष में पूरे सहयोग के लिये सिविल मैरेज़ कर रहे हैं। हमें पूरा यकीन है कि आप सबकी बेस्ट विशेज़ उनके साथ हैं। उस मुबारक मौके पर हम सब फिर मिलेंगे।"

"जरूर! जरूर! शेष लोगों के उल्लास के साथ आचार्य जी का स्पष्ट और रफी साहब का मध्यम स्वर सुनाई दिया।

उपा लाज से गड़ी जा रही थी क्या जरूरत थी यहाँ कहने की!

कांग्रेस समाजवादियों द्वारा आयोजित स्वागत में पाठक और उपा के साथ निगम और श्यामा भी गये थे। साथ-साथ लौट रहे थे। असंतोष या विरोध में हरि भैया के न आने और जैदी के संकेतों से उपा का मन बहुत खिन्न।

“आप लोगों ने चुनाव टिकट के सवाल पर क्या झगड़ा झंझट खड़ा कर लिया। हरि भैया किस बात से नाराज?" उषा ने पूछा।

स्वागत सभा सात बजे समाप्त हो गयी थी। निगम और श्यामा अपना मकान दिखा देने के लिये उपा को अपने यहाँ ले गये थे। निगम ने बताया, "दीदी, बात जैदी ने कह दी। पाठक भाई दिसम्बर में आये तो बात हुई थी कि आपको टिकट दिलाने की कोशिश की जाये। इलेक्शन उम्मीदवार की अनुपस्थिति में भी हो सकता है। जैदी को इसमें बहुत उत्साह हमें हरि भैया से सब सहायता की आशा थी। जो भी कारण हो, उन्होंने शंका की उम्मीदवार को स्वयं आवेदन देना चाहिये या उसके हस्ताक्षर जरूरी। जैदी भिन गया, आपको हम पर विश्वास नहीं? रुद्र हमसे स्वयं कह गये हैं। हम बम्बई जाकर उपा जी से मंजूरी के दस्तखत ले आयें? लेकिन पहले वायदा कीजिये उनके दस्तखत ला देंगे तो नगर कमेटी उनकी सिफारिश करेगी।" निगम ने कहा, "भट्टभड़िया तो है ही, जैसे अभी खुशखबरी देने की उतावली, वहाँ भी कह दिया-रुद्र और उषा मुस्लिम नामों से दम्पति की तरह रह रहे हैं। लौटकर सिविल मैरेज कर लेंगे। सुनकर हरि भैया सुन्न! जैदी की तरफ एकटक देखते रह गये।"

उस साँझ हरि भैया घर लौटे तो पत्नी और गौरी के सामने विस्मय प्रकट किया था, "कुछ लोग चाहते हैं उषा को असेम्बली का टिकट दिया जाये। कोई कह रहे हैं उपा बम्बई में रुद्र के साथ गृहस्थ में रह रही है।"

पत्री राजनीति को नहीं समझती थी। यह जानती थी असेम्बली का टिकट खास लोगों को मिलता है। भड़क उठी, "भली कही उसकी यो लोग रंडापा काट सकती हैं! यहाँ ही उसके क्या लच्छन थे। अमरू जेल में थे तो हरदम सैर-सपाटे। कभी इसके साथ सभी उसके।"

हरि भैया की पत्नी से अधिक नाराज गौरी क्रोध में अपनी समझ से बता दिया, "भाभी

क्या जानती हैं, देखते तो हम थे। अमरू भाई जेल में थे तो यहाँ छः मास जलसा मनाती रही। उनके लौटने पर उन्हें कुछ गिना नहीं। भैया बेचारे घर बैठे डाक्टरी करें, वो अपने मेलियों के साथ होटल सिनेमा जाये। भैया कुढ़ते थे पर बोलते नहीं थे, बल्कि वो जिद्द करे तो फटफटिया पर सिनेमा होटल पहुँचा दें। सोग का दिखावा नखरा तीन महीने भी नहीं चला वो क्रान्ति के लिये क्या भागी, रंडापा नहीं निवाह पा रही थी सो जाहिर हो गया। ऐसे लोग असेम्बली में जायेंगे ।"

जनवरी में प्रत्याशियों के अंतिम चुनाव के समय कांग्रेसी जवानों ने फिर उपा को टिकट दिये जाने के लिये आग्रह किया। हरि भैया नगर कांग्रेस के मंत्री उनका अनुमोदन आवश्यक । हरि भैया को संगठन के नियमों के उल्लंघन से बड़ी दूसरी आपत्ति। हरि भैया ने स्पष्ट कह दिया: कांग्रेस का आन्दोलन राजनैतिक है, परन्तु हमारी नीति और एकमात्र शक्ति गांधी जी द्वारा अनुमोदित सत्य, अहिंसा की नीति और आत्मिक बल आचार की निर्बलता, उच्खलता हमें खोखला कर देगी। हम ऐसे अनाचार से आँख नहीं मूँद सकते, उसका अनुमोदन कैसे कर सकते हैं?"

राम वर्मा ने चुनौती दी, “आप उन पर व्यर्थ तोहमत लगा रहे हैं। आप नहीं जानते उनकी यह मज़बूरी राजनैतिक कार्य के कारण?"

"हमें उससे आपत्ति नहीं।" हरि भैया ने स्वीकारा, "लेकिन विधिवत विवाह के बिना गृहस्थ बन जाना मजबूरी नहीं है।"

"मजबूरी है कैसे नहीं!" उदय की आँखें सुर्ख क्रोध में उसकी जबान अक्सर बेलगाम हो जाती, "आपके छः बच्चे किस मज़बूरी से?"

"चुप रहो!" राम ने जोर से डाँटा हरि भैया निर्विकार जैसे सुना नहीं।

"अपने साम्प्रदायिक विश्वास और आचार दूसरों पर लादने के हमें क्या हक!" राम ने बात सम्भाली, “वे लोग नास्तिक। वे आपकी परम्पराओं को ढोंग मानते हैं। उनके आचार और नैतिकता की अपनी मान्यतायें हैं। "

"हमें किसी की मान्यता की आलोचना से मतलब नहीं। " हरि भैया ने गर्दन हिलाई, "परन्तु समाज में व्यवस्था के लिये सामाजिक आचरण का संयम अनुशासन आवश्यक आपने कहा, लौटकर सिविल मैरेज करेंगे। इसका स्पष्ट अर्थ अपने वर्तमान सम्बन्ध को अनुचित मानना। आप हमें जो कहें, हम अपने विवेक के विरुद्ध उसका अनुमोदन नहीं कर

सकते।"

उग्र दल चुनाव के लिये उषा को कांग्रेस उम्मीदवार का टिकट न दिला सका।

उषा मन में पाठक पर नाराज इनसे कहा था, हमें नहीं जरूरत चुनाव टिकट की। टिकट के लिये कहकर खामुखा फजीहत करवायी। यह भी खयाल, बम्बई में दोनों अच्छे- भले थे। लखनऊ आकर झंझट में पड़ गये। पर वह सब था तो नकली, नकली कब तक निवाह सकते थे।

पाठक प्रात: आठ-नौ के बीच आकर उषा से बात कर जाता। सुबह न आ पाता तो संध्या सात के लगभग आता। इतने दिन बाद लखनऊ लौटे थे, भविष्य के प्रबन्ध की चिन्ता, दूसरे बीसियों काम स्वयं उपा को बहुत काम उत्तराधिकार के मुकदमे की स्थिति समझने

के लिये बाबू और वकील से मिलना। अदालत ने सम्पत्ति रिसीवर के नियंत्रण में देकर उपा और बेटे के लिये मासिक खर्च लगा दिया था। उसके फरार हो जाने पर रिसीवर यह रकम सरकारी खजाने में जमाकर रहा था। उसे प्राप्त करने के लिए कार्रवाई। रिसीवर से मिलकर अपनी सम्पत्ति के मकानों में से कोई मकान अपने निवास के लिये पा सकने का यह अपने निर्वाह के लिये जीविका की चिन्ता। पूरा दिन इन बातों में निकल जाता।

गत दोपहर माया का पत्र मिला था

अच्छी डार्लिंग, प्यार प्यार! प्यार!!! तुम पर बहुत क्रोध फिर भी लिख रही हूँ। तुम्हें लखनऊ पहुँचे इतने दिन हो गये और मुझे चार अक्षर ने लिख सकी। पट्टू ने न लिखा होता तो तुम्हारे लौट आने का समाचार भी न पाती! पट्टू दिसम्बर में ही कुछ मिनट मिलकर सब बता गया। पट्ट और तुम्हारे लिये भी और तुम्हारे मित्र रूप में इससे बड़े सौभाग्य की कल्पना नहीं कर सकती।

तुम्हें एक-दूसरे को जयमाला पहनाते देखने की मुझे कितनी उमंग। उस क्षण की प्रतीक्षा पर न्योछावर पट्ट ने बताया, तुमने उसे निर्मोही कहा।" उषा को बिजली सी काँध गयी, हाथ, वो बात भी बताये बिना न रह सके! अपना ऐसा रहस्य उद्या के जान लेने पर भी माया के नाराज न होने से उस पर और निहाल पर अच्छी, तुम भी कम निर्मोही नहीं कि आने की सूचना तक न दी। क्या करूँ? मुझे ऐसों से ही निवाहना। मेरी निर्मोही, मेहरबानी करके ठीक तारीख की सूचना कुछ दिन पहले देना। इस बार काफी नहीं। मुन्नी की तरफ से उसकी मौसी को प्यारा"

दूसरे दिन पाठक आया। माया के पत्र से उपा का मन उमगा हुआ। पाठक के साथ सामने आँगन में आ गयी। मान मुद्रा से शिकायत, बम्बई से चलते समय तो वायदा था. लखनऊ पहुँचकर दूसरे दिन पहला काम सिविल मैरेज के लिये आवेदन इतने दिन हो गये, ख्याल ही नहीं!"

"फार्म लाकर दे दिये तो कह दिया, "कल हो जायेगा और भूल गयीं।” पाठक मुस्कराया, "लड़ने को मन चाह रहा है?

"हम अभी दे देते हैं।" उपा की झुंझलाहट उत्तर गयी, "कोई मकान भी देखा? रिसीवर ने हमारे मकानों में से जगह दिला सकने का कोई आश्वासन नहीं दिया। कहता है रेन्ट कन्ट्रोल है! केस करके मकान खाली करवा सकने में बहुत टाइम लग जायेगा।

"एप्लीकेशन दे दें। मैरेज की डेट अलग मकान मिले जाने पर लेंगे। मैरेज के लिये यहाँ से जाना अच्छा नहीं लगेगा फायदा भी क्या।" उपा ने कुछ रुककर कहा, "अब डैडी मम्मी को भी बता देना ठीक होगा। शहर में तो तुम्हारे दोस्तों ने डिंडोरा पीट दिया। जिन लोगों को वास्ता, उन्हें कुछ मालूम ही नहीं। हम खुद नहीं कह सकते। तुम्हें कहना होगा।" "हम कह लेंगे। मकान के लिये कई लोगों से कहा पर कोई आशा नहीं जगह भी सुविधा प्राइवेसी की चाहिये। निगम के यहाँ ढेरों जगह है। खुद कह रहा है, हमें तीन कोठरी, रसोई वगैरह के लिये जगह दे सकता है। उनसे जगह बेटा लें। मरम्मत करवाने में मदद देगा। उन पर किराये का बोझ भी हलका हो जायेगा। हमें भी सस्ता और पड़ोस अच्छा। मकान कच्चा है, कोई बात नही, गरमी में कम तपेगा। बरसात आने तक और जगह देखने का अवसर

उषा को लखनऊ आये दो सप्ताह हो गये थे। सिविल मैरेज के लिये आवेदन दे दिया था। उसकी अनुपस्थिति में सरकारी खजाने में जमा करा दिया रुपया निकलवाना ही कठिन हो रहा था। रिसीवर के आश्वासन देने पर भी बिना रिश्वत कागज आगे वह न पाते। रिश्वत देने में उपा को संकोच वह बहुत खीझ गयी थी।

साँझ सात बजे आंगन में खाट पर लेटी तो कल्पना में कई बातें आ-जा रही थीं। सित्तो का प्रसंग मस्तिष्क को छोड़ता न था। नखास में खाला के यहाँ जाने का विचार कई बार आया, जा न सकी।

सिविल मैरेज की एप्लीकेशन दिये दस दिन हो गये थे। निगम ने कोठरियों की मरम्मत का काम अभी तक शुरू न कराया था। जाने उसमें कितना समय लग जाये। पाठक सप्ताह भर के लिये गया था। अब लिख दिया, दो-तीन दिन अधिक लग जायेंगे। उन्हें सद्द्दीन से बात करने के लिये बम्बई भी जाना है। कब तक यह झगड़े निबटेंगे! लौटे तो डैडी, मम्मी से बात कर लेनी चाहिये। उन्हें सूचना आवश्यक। यूँ तो हम जो चाहें करें पर बता कर करना उचित ।

कोने में एक तरफ प्रताप, सद्दू और रुकैया कैरम खेलते झगड़ रहे थे। रुकैया ने पद्मा से शिकायत की, "आंटी आंटी, पप्पु हमें खेलने नहीं देता।"

पद्मा किसी काम में व्यस्त थी। उसने बाहर आकर पप्पू को पुचकारा उषा की ओर देख बोली, "जीजी, तुम बहुत अच्छा खेलती थी। आओ न देखे, खेल सकती हो या भूल गयी?" उपा चुप, जैसे सुना नहीं।

वेबे समीप पीढ़ी पर बैठी तरकारी काट रही थी। उषा को टोका, "अच्छी, क्या गुम सुम पट्टी है। बच्चे बुला रहे हैं। जरा हँसा खेला कर। " बेबे को उपा तीन- न-चार दिन से खोई-खोई, चुप-चुप लग रही थी।

कुछ

“अब क्या हँसू-खेलूं बेबे! बुडी हो गयी गयी।" उषा ने अंगड़ाई ले ली। उषा बेबे से चहल के लिये सदा उत्सुक ।

"सुनो तो इस लड़की की बातें!" वेवे ने डाँटा, “तू बूढ़ी हो गयी! आजकल तो लड़कियों के व्याह तेरी उम्र में होते हैं।"

"मेरा भी करा दे।" उद्या कह बैठी।

बेबे स्तब्ध मुंह खुला रह गया। दो पल सोचकर बोली, "क्यों नहीं, अभी तेरी उम्र क्या ।" बेबे ने तुरन्त अंजली बाँधकर आसमानी बाप से दुआ माँग ली।

बात उषा के मुँह से निकल गयी थी। शायद अवचेतन में प्रयोजन था माता-पिता को सुचना दे देने की इच्छा ख्याल आया, पाठक के लौटने पर मालूम होगा तो डैडी, मम्मी, बेबे क्या सोचेंगे।

दूसरे दिन धूप ढल जाने पर पाँच बजे के लगभग नखास गयी। रतनी उषा भाभी को पहचान, हुलस से लिपट कर आँसू बहाने लगी। खाला अब बहुत कमजोर, खड़े होना कठिन, लेकिन किमास-खस की खुशबू बरकरार खाला और रतनी अमर को याद कर आँसू बहाने लगीं।

"खालाजान जो हो गया उसे याद कर रोने से क्या फायदा।" उपा ने ही तसल्ली दी। रतनी नजदीक आ बैठी, “भाभी, हमने तो सुना पुलिस आपकी तलाश में थी । हुना के

अब्बा कहते थे, अखबारों में आपका बहुत जिक्र था।" खाला दुआ पड़कर उषा के सिर और गालों पर प्यार किये जा रही थी।

उपा ने बहुत संक्षेप में सब बता दिया। वह एक-एक का नाम ले-लेकर सबका हाल पूछ रही थी। बड़े लड़के खालिद के बोर में भी पूछा। रतनी को बहुत भला लग रहा था— भाभी को एक-एक का नाम बाद है।

क्या बतायें भाभी, खालिद मियों का इम्तहान है तेरहवें दर्जे का उनके अब्बा बहुत परेशान। इन्हें पड़ने-बढ़ने की तरफ कुछ सवाल नहीं, खुराफात में रहते हैं। क्या कहते हैं उन्हें अल्लाह का करम।"

"खाकसार" हा ने याद दिलाया।

यहाँ खाकसार साँझ सबेरे जब देखो खाकी वर्दी पहने, कंधे पर बेलचा बस कवायद का खेल हो रहा है। इनके अब्बा कहते हैं, पहले इम्तहान दे लो, कौम की खिदमत के लिये बहुत वक्त है पर कौन सुनता है। अब तक अल्लाह के फजल से हर साल पास होते रहे। इस साल देखिये क्या गुल खिलाते हैं।"

सूर्यास्त हो रहा था, "खालाजान अब इजाजत दीजिये। हम फिर हाजिर होंगे। " उपा उठना चाहती थी।

"वाह भाभी, मुद्दतों बाद तुम्हारे मुदारक बदम आये। मुँह भी जुड़ा न करेंगी। "छोटे लड़के कैंसर को भेजकर नजदीक से कवाब और वर्मा मंगवा लिये थे। उषा की पसंद बाद थी। मिठाई, कबाब सामने रख दिये, "हम शर्बत ला रहे हैं।"

न आपा, शर्वत नहीं, पिलाना ही है तो एक प्याली चाय ले सकते हैं।" उपा को डाक्टर रजा की नसीहत याद थी— मुसलमान के घर अगर पीने की मज़बूरी हो जाये तो पानी कभी न पियें। उनके यहाँ एक ही गिलास से सबका पीते जाना आम बात और अपनापन

चाय बनते-बनते खालिद आ गया। खाकसारों की वर्दी में चुस्त लग रहा था। उपा ने पाँच साल पहले देखा था, तब मसें न भीगी थीं। अब ओठों और ठुड्डी पर काफी रोयें। शेव नहीं, कायदे से कतरे तराशे

खालिद को पहचानने में कुछ अड़चन हुई। मां ने बताया, "पहचानते नहीं डाक्टरनी भाभी, जिनके वहाँ गोलागंज बाली सड़क पर जाते थे।"

उषा ने चाय पीते-पीते खालिद से बात की, "खाकसारों का कसरत करना, डिसिप्लिन सीखना सब बहुत मुनासिब, लेकिन मुस्लिम अवाम और दूसरे अवाम की जिन्दगी के सवाल- तकलीफे एक जैसी तालीम और रोजी की कमी आर्थिक शोषण की चक्की में मुसलमान हिन्दू दोनों पिस रहे ।"

खालिद भड़क उठा, “यह कांग्रेसियों की चालें हैं। मुस्लिम अवाम को रोज़ी-रोटी के सवाल से भटका उन्हें अपने असली मकसद पाकिस्तान से गुमराह करने के लिये। इसका जवाब हमारे लीडर खलीकुज्जम साहब दे चुके खलीक साहब खुद पहले कांग्रेसी थे। कांग्रेस की असलियत पहचान कर कांग्रेस को खैरवाद कहा और लीग में शामिल हुए।

हिन्दू अव्वल सवाल उसके एतकाद, दीन और कॉमी-मज़हबी फराइज़ का है। हम रसूल के मुजाहिद हैं जो जिहाद में तीन-तीन दिन बिना दाना-पानी, पेट पर पत्थर बाँधे लड़ते रहे.

हाथ से तलवार नहीं रखी। हमारे लिये अव्वल सवाल रोटी-रोज़ी नहीं, फर्जेदीन, हुकूमते इलाही पाकिस्तान कायम करना है। हमारे सब मसायल का हल पाकिस्तान ।""

"कैसे बोल रहे हो!" रतनी ने बेटे को सावधान किया, "अदब से बात करो, तुम्हारी मामीजान हैं।"

गयी।

"हम मामीजान का अदब करते हैं, लेकिन बात सही कहेंगे।" खालिद की गर्दन तन

उपा नखखास से लौट रही थी तो मन उदास हिन्दू-मुस्लिम यूनिटी के झूठे सपने! इलेक्शन से जाहिर हो गया मुसलमानों के प्रतिनिधि यूनिटी चाहने वाले आजाद, रफी साहब, सदुद्दीन, अशरफ, रजा, जैदी नहीं, अलहदगी और बँटवारा चाहने वाले जिन्ना, लियाकत अली और खलीकुज्ज़मीं हैं। जब बच्चे के दिल में साम्प्रदायिक घृणा द्वेष, यह लोग एक कौम कैसे बन सकेंगे। हिन्दू तो सैकड़ों साल से मुसलमान से मार खाकर उसका गुलाम बनकर भी उससे घृणा से नाक सिकोड़ कर उसे धिक्कारता रहा। अब हिन्दू का तकाजा - हिन्दुस्तान का एक राष्ट्र हिन्दू राष्ट्र ! हिदुस्तान के करोड़ों मुसलमानों को कत्ल कर दो। हालांकि खुद इनकी व्यवस्था ऐसी कि स्वयं हर रोज इनकी संख्या कम हो जायें खत्म झगड़ा मिटे |

तीसरे दिन सुबह पाठक लौट आया। उपा बात करने के लिये सामने वाले आँगन में चली गयी। "डैडी से आज बात कर लूँ? उन्हें फुर्सत होगी?" पाठक ने पूछा। उपा ने अनुमति दे दी।

"मिस्टर पाठक, फुर्सत हो तो हम लोगों के साथ एक प्याला चाय लीजिये। " पंडित ने निमंत्रण दिया।

पाठक ने उत्साह से स्वीकारा। नाश्ते से उठा तो पंडित के समीप चला गया, "आपको समय दीजिये।"

असुविधा न हो तो मुझे प्रस्तुत, परन्तु उन्हें नौ बजे संडे स्कूल के लिये चर्च जाना था।

पंडित बात करने के

“आपके साथ बात करता चला चलूँगा।" पाठक ने कहा।

उपा को लाज-संकोच की सिहरन तो अब क्या होती, परन्तु डैडी को समाचार मिलने और उनकी प्रतिक्रिया की धुकधुक जरूर

बेबे से चहल और पाठक डैडी में बातचीत का प्रभाव उपा ने दूसरे दिन साँझ तक अनुभव कर लिया। पप्पू किसी बात के लिये मम्मी की बगल घुसा जा रहा था। मम्मी ने दुलार से डाँटा, “देखो बेईमान को! चार दिन में माँ के साथ भाग जायेगा तो नानी को पहचानेगा भी नहीं।"

उषा ने सुना। मन-मन मुस्करायी, सब जान गये और मंजूर उषा गहरी और सूक्ष्मदर्शी थी, परन्तु लोगों की समझ और दूरदर्शिता अक्सर अपने बारे में काम नहीं करती। उषा अठारह दिन से घर में थी। पाठक से व्यवहार में और उससे आंतरिकता भॉप सकने का कोई कारण या संकेत न था, परन्तु डैडी, मम्मी, बेबे, पद्मा आँखों पर पट्टी नहीं बाँधे थे। स्त्रियाँ तो बात वैसे ही सूंघती हैं जैसे कुत्ता बिल्ली छिपाया हुआ दूध-दहीं।

उषा से फरारी के समय बम्बई में निर्वाह के बारे में मम्मी पूछ चुकी थी। मम्मी को उस प्रसंग से फिर कौतूहल, पाठक वहाँ क्या करता था? उसकी कैसी नौकरी थी, कितनी

तनख्वाह, क्या योग्यता- शिक्षा? घर बार कहाँ?

उपा जानती थी, पहली बार स्थिति दूसरी थी। उस समय डैडी मम्मी को बेटी के विधर्मी से विवाह पर आपत्ति, बिरादरी की आलोचना का आतंक इस स्थिति में वे बातें या चिन्ता न थी। अब माँ-बाप की केवल एक इच्छा, बेटी संतुष्ट सुखी रहे।

उपा माता-पिता के साथ चौबीस दिन रहकर निगम से बंटाये मकान के आधे भाग में चली गयी। पप्पू को खूब रिझा लिया था। इसके लिये उसे चाकलेट, आइसक्रीम से लेकर रविवार सुबह चिड़ियाघर की सैर, मिकी माउस की फिल्म, क्या-क्या रिश्वत न देनी पड़ी। नयी जगह घर जमाने में भी बेवे की सहायता जरूरी, इसलिये वेवे भी साथ गयी।

चार दिन में उस हाते के बच्चे पप्पू के हमजोली बन गये। पप्पू उनके साथ ही खेलता रहता। अलबत्ता उषा खुद न चाहती थी लड़का आवारा-गलीज बच्चों के साथ खेलकर गालियाँ बकना और खराब आदतें सीखे हाते में पाँच-सात बरस के लड़के भी प्रौढ़ों के स्तर की गालियाँ बकते। डैडी वाले हाते में फारसी टीचर और आर्यसमाजी पोस्टमास्टर के बच्चे की संगति इससे बेहतर थी।

उपा नयी जगह ठेले से सामान उतरवा रही थी। एक जवान औरत हाथ जोड़ गिड़गिड़ाई, "हुजूर आपके यहाँ झाड़ू-बुहारी, बर्तन मांडे का काम हम करेंगे। आप बताती जाइये, हम सामान लगाती जायें।" जवान औरत की उम्र तीस के आस-पास धोती कई जगह से फटी-गुथी, बेनाप का ढीला सलूका दुबली पर चुस्त

और बिना कहे ही छोटा-मोटा सामान ठेले से उठाकर भीतर रखने लगी। धूप तेज हो गयी थी। उषा ने रखी की सहायता स्वीकार कर ली। उषा को औरत की विनय अच्छी लगी। उपा सामान ही कितना लायी थी। पन्द्रह-बीस मिनट में रखा गया। औरत ने जाने से पहले कोठरियों में झाड़ू लगा दिया। चलते-चलते बोली, "हमारी कुलिया आपके दरवाज़े के सामने चौका बर्तन के लिये साँझ जब पुकारोगी आ जायेंगी। हमारा नाम मन्त्री।"

औरत के जाने पर बेबे ने आपत्ति की, "कुड़िये, मैं तू दो आदमी नौकरानी की जरूरत? मुझे क्या अंडों पर बैठना है ।" तब तक शम्मो जिया आ गयीं, "बिटिया, कैसे आयी थी वो लुगाई?"

उषा के बताने पर जिवा बोली, "हमारे यहाँ मेहरी आती है, वही तुम्हारा काम भी निबटा देगी। ये लुगाई ठीक नहीं।"

स्कूलों में मई से अवकाश, श्यामा भी घर पर सामान लगाने में उषा की मदद के लिये आ गयी थी। जिया ने उसे टोका, "तुमने क्यों नहीं बताया इन्हें कि उस औरत को मुँह लगाना ठीक नहीं।'

"जिया, लोग बहुत कुछ कहते हैं। हमें तुम्हें क्या मालूम!" श्यामा ने माँ को उत्तर दिया, "पड़ोसी यों ही उसके पीछे पड़े हैं। बकझक कर उसका काम छुड़ा देते हैं। एक लड़का है उसका आखिर कैसे पेट पालेगी? दीदी कोई ऐव देखेंगी, छुड़ा देंगी।"

मन्त्री काम समझ और यत्र से करती। मालकिन को संतुष्ट प्रसन्न रखने की चिन्ता से देखती, उपा या बेबे कैसे क्या करती हैं। वैसे ही करने का यन्त्र। बहुत कुछ बिना कहे भी कर देती। उषा संतुष्ट।

उपा ने सप्ताह भर में मन्त्री की बाबत बहुत कुछ सुन लिया: दस ग्यारह बरस पहले

विधवा हो गयी थी। दूसरे मर्द के साथ रहने लगी। वह इसके बेटे को मारता पीटता । मन्त्री ने उसे छोड़ दिया। तब से लोगों के चौका वर्तन, मेहनत-मजूरी से पेट पालती है, लेकिन बदनामी थी। कोई कहती, फलाना फलाना इसके यहाँ आता है। कोई कहती, फलाने- फलाने के यहाँ जाती है। लोग निन्दा सुनकर काम छुड़ा देते। कभी बाहर सड़क पर मूँगफली या दूसरा चबेना लगा लेती है। तब भी अपवाद, जाने क्या बेचती है?

पाठक अपने व्यवसाय के लिये सूचना और सम्पर्कों के प्रयोजन से इधर-उधर आता- जाता रहता। दिल्ली से लौटा तो दो दिन उपा के यहाँ ठहरा। वह सावधानी एक और यातना । परिचित उसके शीघ्र विवाह का निश्चय जान गये थे, परन्तु विवाह की रीति अभी सम्पन्न न हो पायी थी। लोकशील और औचित्य की दृष्टि से उनका अधिक एकान्त अनुचित अन्य लोगों की संगति में बातचीत या एक साथ घूम आने का ही अवसर दोनों को बहुत खलता परन्तु बेवस विवाह के लिये नोटिस की अवधि पूरी होने में अभी नौ दिन शेष ।

बम्बई में उषा को साढ़े तीन बरस काफी श्रम करना पड़ा था। सार्थक श्रम का संतोष भी पाती थी। लखनऊ लौटकर निष्क्रिय रहना भी खलता। उन दिनों लखनऊ में स्त्रियों के लिये जीविका थी तो केवल अध्यापिका की तीस बरस पहले यू० पी० में सरकारी और कारोबारी दफ्तरों में पुरुषों के साथ स्त्रियाँ भी काम करती न दिखायी देती थीं।

उपा की जीविकार्थ कुछ करने की इच्छा के लिये पाठक का सुझाव था पी-एच० डी० करना चाहो तो बेहतर! उसके लिये उत्साह नहीं तो दूसरा रास्ता। टीचरी में तुम्हें क्या मिलेगा, सत्तर नहीं पचहत्तर दिन भर की बोरियत । श्यामा कैमिस्ट्री में एम० एस-सी० करके जुबली से केवल पचहत्तर मासिक पा रही थी। आई० सी० ओ० सी० के आफिस का काम निवाह सकती थी, मिनोई पाठक मशीन मार्ट का दफ्तर क्यों नहीं सम्भल सकोगी? उस काम के योग्य आदमी डेढ़-दो सौ से कम में नहीं मिलेगा। आफिस तुम्हें वेतन देगा, शुरू में सौ ही सही। तुम आफिस सम्भालो, हम फील्ड वर्क करें। ठाली बैठने की बोरियत से बचोगी, सहज काम और स्वतंत्र उपा को बात जंच गयी थी।

जून में दिन में कच्चा आँगन खूब तप जाता। संध्या मन्त्री पूरे आँगन में निगम के भाग तक खूब गहरा छिड़काव कर देती। रात गहरा कर हवा ठंडा जाती तब भी धरती से सुहावनी महक खूब अच्छी नींद आती।

"हैं 5 क्या हो गया?" वेवे उठकर खाट पर बैठ गयी। उसकी नींद जितनी गहरी हो, जरा से खटके से टूट जाती ।

"लोग चिल्ला रहे हैं "चोर" आँगन के दूसरे भाग से जिया लेटे-लेटे बोली। उसकी नींद भी वैसी है। चीख पुकार स्पष्ट सुनाई देने लगी औरतों की चीखें मर्दों की आवाजें । "क्या है वेवे?" उषा की नींद उचट गयी।

"क्या है जिया?" श्यामा की पुकार

"क्या बावेला है?" निगम भी उठ बैठा। वह खाट के नीचे से टार्च लेकर बाहर जाकर देखने के लिये आँगन के किवाड़ों की सॉकल खोल रहा था।

"तुम क्या करोगे वहाँ जाकर! आवाज देकर पूछ लो ।" जिया ने टोका। निगम रुका नहीं, टॉर्च की रोशनी डालता आगे बढ़ गया। वेवे, जिया, उषा, श्वामा जिज्ञासा से दरवाजे

में आ गयीं।

"सिर फूट गया!" खूनो खून!"

"हाय कैसा जमाना!"

"पुलिस बुलाओ।"

दो मकानों के सामने बिजली जल गयी थी। हाते के दूसरे घरों के दरवाजों से भी कौतूहल से व्याकुल स्त्रियों झाँक रही थीं। निगम को टार्च और दूसरी टार्च के प्रकाश में दिखाई दे रहा था मनी की कोठरी के दरवाजे के सामने लोग जमा थे। उषा, श्यामा, जिया, वेवे अपने आँगन के दरवाजे के भीतर बड़ी इतनी दूर से कुछ समझ न पा रही थीं। निगम लौटा तो सबकी उत्सुक आँखें उसकी ओर।

"चेतू ने माँ को मार डाला। " गला दुख से भर्राया हुआ। 'हैं SS!" जिया का मुख विस्मय, अविश्वास से खुला रहा।

चेतू दूसरे शो के बाद सदारी पर पहुंचा कर लौटा था। उसके पड़ोसी मंगरू ने लड़के को टोककर गाली से लानत दी, "अबे मर्द की औलाद है कि हिजड़े की तेरी माँ इतनी बेहया कि यारों को घर बुलाकर छिनारा करे तू मर्द होकर चुप भू ऽ तेरे नाम पर साले मुहल्ले का मुँह काला करवा रहा है। देख जाकर भीतर तेरा बाप बैठा। तेरी जगह कोई मर्द की औलाद होता दोनों का सिर काट लेता चाहे फॉसी चढ़ जाता।" मंगरू और पड़ोसिन लक्खी लड़के को इससे पहले भी गाली उलाहने देते रहते थे।

तू ने अपनी कोठरी के विवाह पर जोर की दस्तक दी।

"बोलते हैं।" भीतर से मन्नी ने पुकारा। तब तक और जोर की दस्तका किवाड़ कुछ झिझक से खुले ।

कोठरी के सामने चूल्हे रसोई के लिये तंग अंगनिया । आँगन में चटाई पर सिगरेट की डिविया देखकर चेतू ने घूमकर देखा। आँगन के दरवाज़े की बगल दीवार के साथ चिपका एक मर्द चेतू चूल्हे के पास पट्टी मिल के लिये लपका। उधर मर्द छलांग से बाहर भाग गया। चेतू ने हाथों में उठायी सिल माँ के सिर पर मार दी। मन्त्री चीखी। उसके मुँह से पूरी आवाज भी न निकल पायी। धरती पर गिर पड़ी।

मँगरू देख रहा था। उसने चीख से पुकारा, "मार डाला! लड़के ने मार डाला!”

पड़ोसी दीले आये। मत्री का चेहरा- कपड़े खून से लथपथ किसी ने नाक के सामने हाथ रखकर सॉस देखी किसी ने नब्ज ! पड़ोसिन पर्वतिया ने सीने पर हाथ रखकर धड़कन टोह सीमा

उपा का कलेजा धक-धका घुटने कॉप गये। खाट पर बैठ गयी। वही हाल श्यामा का। जिया ने भगवान को याद किया, हरे राम हरे राम! वेबे ने दोनों हाथों की अंजली से दुआ माँगी, ए रब्ब सब दे गुनाह बख्श ।

उपा का कलेजा मुँह को आ रहा था। निगम की ओर देखा, "कोई डाक्टर बुलाने या हस्पताल से जाने की कोशिश नहीं करेंगे "

दीदी, वो बिलकुल खत्म। हमने खुद नब्ज देखी कासिम ने नाक के आगे हाथ रखकर देखा खत्म हो चुकी। मालूम होता है, चोट से भेजा फट गया, इन्सटेन्टेनियस है। औरत तो खत्म, लड़के का क्या होगा? आवेश में पागल हो गया। सुन्न बैठा है।"

"उसका क्या होगा?" उपा कातर स्वर में बोली।

"क्या होगा! पुलिस गिरफ्तार करेगी। कहाँ तक भागेगा? भाग जाने पर पकड़ा गया तो केस और खराब न पकड़ा गया तो उम्र भर के लिये क्रिमिनल "

"हमने पहले भी कहा था. लड़के की जान सॉसत में है।" निगम परेशानी में बोलता गया, "बेटे के लिये माँ की ऐसी बदनामी बुरी, लज्जा या डूब मरने की दूसरी क्या बात? मुहल्ले पड़ोस के मर्द औरत ताने उलाहने देते रहते— डूब मर! थू पड़ोसी कह रहे हैं. एक- दो बार माँ से लड़ा भी।

"माँ ने उसे उलटे उपटा, कौन आता है, किसने देखा? माँ ने पड़ोसियों को गाली दी, हरामी हैं साले! खुद की बुरी नजरें ।

"आखिर लड़का कहीं तक सहता! क्रोध में वेबस हो गया। आदमी उत्तेजना में आत्महत्या कर सकता है तो दूसरे की हत्या भी कर सकता है। इतना तो सात-आठ बरस के बच्चे भी सुनकर जान जाते हैं कि दूसरे को मार डालने से फांसी होती है।"

दो बज रहे थे। हाते में बच्चों के अतिरिक्त सब की नींद उचट गयी। म्युनिसिपैलिटी के प्लम्बर कासिम के मकान के सामने कई लोग घटना के सम्बन्ध में चर्चा कर रहे थे। कुछ प्रौढ़ायें कौतूहल से मन्त्री की पड़ोसिन पर्वतिया के दरवाजे के सामने जमा।

कासिम के परामर्श से एक पड़ोसी सड़क तक गया कि गेंद के सिपाहियों को हाते में कत्ल हो जाने की खबर दे दे रौंद के सिपाहियों ने जवाब दिया, "हमें क्या मतलब। कोतवाली में इत्तिला करो!"

कोतवाली कौन जाये? लोगों को भय, पुलिस इत्तिला देने वाले को ही न बैठा ले। हाते में निगम के मकान से दस कदम पर भदई की कोठरी भदई, उसकी दो छोटी बिटियाँ और उसकी माँ भीतर अंगनिया में सोते। उसका बूढा बाप बादल और दस बरस का लड़का कोठरी के सामने मचिया डाल लेते। बादल की उम्र पैंसठ से ऊपर जवानी में बहुत बार अदालत भुगती थी। सुनने वाला हो तो पुरानी चर्चा छेड़ देता। कानूनी राय भी देता

हाते मैं स्तब्धता छा गयी तो बादल की आवाज नागरी अवधी मिली बोली में सुनायी देने लगी, "हम कहते हैं भाग जाने वाला मर्द कत्ल कर गया। बस मामले में सक! सक का फायदा मुजरिम को । लम्बर दोम, अगर फल्ल हुआ इस्ताल की बौखलाहट माँ और लरिका नाबालिग, फॉसी कइसे हो सकत? हम कहें इ सजा न होनी चाहिये, हो जाये तो दो-चार बरस कत्ल हुआ, इस्ताल की बौखलाहट माँ वकील जोरदार चाहिये।"

बादल की आवाज क्रोध में ऊँची हो गयी, "बहनचोद कत्ल की सजा होना चाहिये उन मादरचोदों को 'उसने पड़ोसियों के नाम लिये बिना कई वजनी गालियाँ दीं, "जिन लोगों ने नासमझ लरिका को गाली दे दे, कोंच कोंचकर कत्ल करवाया। लड़के की जिन्दगी हराम किये थे। कत्ल से बड़ा जुर्म कत्ल करने के लिये उकसाना। हम गवाह, सबके नाम गिना देंगे कोट में असल मुजरिम कत्ल करवाने वाले।"

हत्या के आतंक से स्तब्ध वातावरण में बादल की आवाज और ऊंची, "हमें मालूम कौन-कौन गरीब मेहरिया के पीछे पड़े थे। माँ के खम्म खुद एक रात मेहरिया के बिना न रहें, दूसरों को जोग-बैराग सिखायें! वह बेचारी उठती जवानी में एक बच्चा जन के रोड। वो लावारिस गरीब तो उसे आँख दिखाने को सब शेर ।"

रात के सन्नाटे में बादल की आवाज सब सुन रहे थे। वह किसी एक को नहीं, सबको कह रहा था, इसलिये किसका हाथ अपनी दाढ़ी पर जाता।

उषा भी सुन रही थी। उसका मन-मस्तिष्क घटना से बहुत व्याकुल। बूता क्रोध में बक रहा था, परन्तु बात झूठ-गलत नहीं। प्रन, चेतू का क्या होगा?

उषा को नींद न आ सकी। म्यूनिसिपलिटी की घड़ी से चार की टंकार सुन चुकी थी। मुर्गे बॉर्ग देने लगे। बेवे उठकर अंगीठी मुलगाने लगी! उषा को अनुमान, घटना के बाद बेबे की भी आँख नहीं लगी। वेवे ने चाय बनायी तो उपा भी समीप आ गयी। चाय की गर्मी से कुछ स्वस्थ अनुभव कर आपकी आ गयी।

उपा की आँख खुली तो सूर्योदय से पूर्व का उजाला पप्पू नींद में बेखबरः मई आरम्भ से ही स्कूल में छुट्टी थी। लड़के को स्कूल के लिये तैयार न करना था। उपा नहाने धोने में लग गयी। खपरेलों पर सूर्य की किरणें आ गयीं तो बेटे को उठाया और नहला-धुलाकर कपड़े पहना दिया। बेबे ने नाश्ता बना दिया था। पप्पू नाश्ता देकर उषा ने कहा, "बेटे, हम मम्मी के यहाँ जा रहे हैं. चलोगे? वहाँ रुकैया और देव के साथ खेलना।"

उपा बेटे को हाते से सड़क की ओर ले जा रही थी। नजर कनखी से मन्नी के दरवाजे की ओर चली गयी। चार-पाँच लड़के-लड़कियों कौतूहल में मंत्री के खुले दरवाजे के सामने खड़े थे। उपा बेटे को उधर से आड किये ले जा रही थी, उसकी नजर उधर न जाये, भयंकर घृणित स्थिति न देखे, वैसी बातें न सुने। मम्मी को संक्षेप में स्थिति बताकर पप्पू को माँझ तक रोक लेने का अनुरोध किया। स्वयं न ठहरी। चिन्ता थी, मन्त्री के शरीर का, उसके लड़के का क्या होगा?

मंत्री की दारुण मृत्यु के लिये उषा को बहुत दु: ख, परन्तु वह खत्म हो गयी थी। अब उत्कट चिन्ता और व्याकुलता चेतू के लिये चौदह-पन्द्रह बरस का लड़का अपनी माँ के लिये वैसा सुनकर उसके मन पर कितनी चोट लगी होगी! बौखला गया। जोन उत्तेजना में बेबसी के लिये फांसी फाँसी नहीं तो जेल की सजा

लगभग ग्यारह बजे पड़ोस के बच्चे दौड़ आये, पुलिस सबको पकड़ ले जा रही है। जिया, वेबे, उपा, श्यामा ने भी उनके किवाड़ों की आज से देखा- कड़ी धूप में ठेले पर सूखे खून से सना, झटकों से हिलता मन्त्री का निर्जीव शरीर शरीर के ऊपर ढेरों मक्खियों इतनी मस्त्रियों मानो शरीर को धूप से बचाने के लिये छाँव कर रही हो। ठेले के साथ दोनों हाथ और कमर में रस्सी से बँधा, गर्दन लटकाये चेतू। पुलिस के सिपाही मंगरू, मनहर, भोजू लक्खी, पर्वतिया को भी कोतवाली लिये जा रहे थे।

चुभती धूप में ठेले पर हिलती माँ की लाश के साथ तेरह चौदह बरस का लड़का सिर शुकाये ऐसे चला जा रहा था, जैसे रस्सी से बँधा निस्सहाय पशु वधस्थल की ओर जा रहा हो। जिया, बेबे, श्यामा, उषा का कलेजा मुंह को आ गया, आँखें डबडबा आयीं।

जिया को दरवाजे में देख बादल समाचार देने के लिये उधर ही आ गया। दीवार की छाया में खड़ा होकर बोला, पुलिस को गाली दी. पड़ोसियों को फालतू में पकड़ ले गये। लोगों ने बेली-रूपया सलामी लेकर साँझ तक छोड़ेंगे। किसी के दरवाजे मौत-मुसीबत आये, इनके लिये अच्छा दिन पर हमने गवाही ऐसी लिखवा दी कि लौंडा साफ छूट जाये। पड़ोसियों की भी गवाही कि लौंडा लौटा तो गैर मर्द मौजूद था। हजूर, ये और अच्छा, मर्द

औसान खोकर अपना जूता छोड़ भागा। जूता सबसे बड़ी गवाही - लौंडा इस्ताल में बौरा गया ।"

निगम ने कानून और अदालती कार्रवाई के जानकार अनुभवी लोगों से राय लेकर उषा को बताया: चेतू की उम्र के विचार से फाँसी या लम्बी कैद की सजा नहीं हो सकती। मुकदमा उस पर होगा। लावारिस है। ऐसी हालत में सरकार उसकी सफाई के लिये वकील भी देगी। इस मामले में चुप रहना बेहतर।

उषा को चिन्ता, हो सके तो लड़के को जमानत पर छुड़ाने और सजा से बचा लेने का यत्र किया जाय। निगम ने कहा: हवालात और जेल में रहने का प्रभाव लड़के के मन- मस्तिष्क पर बुरा पड़ेगा। लड़के की उम्र कची। दरअसल वह अपराधी नहीं। उसने भड़कावे में पत्थर दे मारा, कल हो गया। गुस्से और लड़ाई-झगड़े में बच्चों का पत्थर मार देना मामूली बात। उपा लड़के का भावी जीवन बर्बादी से बचाने की चिन्ता में उसे जमानत पर छुड़ा सकने और उसकी उचित सफाई के लिये खर्च करने को तैयार

निगम ने सोचा, दीदी भावुकता में परेशान है। सरकारी खजाने में जमा तीन हजार मिल गया है। दोनों बम्बई से सौंझे में डेढ़ हज़ार बचा लाये हैं। वह सब न्योछावर कर देने के लिये व्याकुल । दीदी की सहृदयता के लिये आदर सराहना, परन्तु उषा को गलती से बचाने के लिये समझायाः बात खर्च की नहीं। सवाल लड़के को जमानत पर छुड़ाकर कहाँ रखेंगी? उसे किस-किस की नज़र से छिपायेंगी! अभी तो लड़का सुन्न हो गया है। सप्ताह-दस दिन में लोगों के ताने सुनकर भाग जाये तो आप उसे कहाँ ढूँढेंगी! निगम की व्यावहारिक दृष्टि से कही बातें उपा मान गयी।

फूहड़ भाषा में बादल की बात ठीक थी। पूरे हाते मुहल्ले ने कच्ची उम्र के लड़के को कोंच- कोंचकर कत्ल के लिये मज़बूर कर दिया। उषा के मन में रह-रहकर मन्नी, चेतू की बात टीस जाती। उसके साथ सित्तों का आत्महनन बेबस औरत

पाँचवें दिन पाठक के पत्र से उपा को दूसरी चिन्तायें। बम्बई में सब ठीक चल रहा था। पाठक को वहाँ सप्ताह भर और काम सिविल मैरेज़ के लिये नोटिस की अवधि तीन दिन पूर्व समाप्त हो चुकी थी। पत्र में अनुरोध, वकील पांडे से कहकर सिविल मैरेज के रजिस्ट्रार से पचीस-छब्बीस जून की तारीख ले ली जाये। उसी संध्या छोटी सी पार्टी की योजना । ताकीद बहुत पसारा नहीं। शादी की तारीख की सूचना तार से माँगी थी।

शादी की तारीख की सूचना माया को भी तार से देनी थी। माया, घोष और दोनों बच्चों के साथ आना चाहती थी। तीन-चार दिन लखनऊ में ठहराने के लिये उचित प्रबन्ध की चिन्ता।

उषा पत्र पाकर उसी संध्या निगम के साथ पांडे के यहाँ तारीख लेने गयी। दूसरे दिन पांडे ने सूचना दी, शादी की तिथि छब्बीस जून शनिवार स्वीकार कर ली गयी है। उषा ने तुरन्त बम्बई- इलाहाबाद तार दे दिये।

विवाह के लिये समारोह, आडम्बर या दहेज की तैयारी का सवाल न था, परन्तु अपना घर सुरुचि से सुविधाजनक बना सकने की इच्छा जरूर डैडी मम्मी बेबे पहले विवाह के समय कुछ न कर सके थे। विवाह में उनकी सहमति थी। मम्मी, डंडी, पद्मा को उपहार देने

का भी अरमान। वही बेबे के मन में।

व्यक्तियों की सराहना, आलोचना उनके परिचय के क्षेत्र और प्रसिद्धि के अनुपात में होती है। अब उषा का नाम नगर में जाना-माना। उसके सम्मान में यूनिवर्सिटी और कांग्रेस दफ्तर में आयोजित सभाओं के समाचार भी अखबारों में छपे थे। नगर में उसकी चर्चा फिर ताजी। पांडे नगर-नारदा जैदी, वर्मा, उदय को रुद्र-उपा के प्रति आदर। उनके विचार में रुद्र उषा का विवाह प्रगतिशील कदमा

बतसिया ने हमें गाली दी है।" पप्पू के मुँह से बोल फूटा, "हम उसे मारेंगे।"

"नहीं बेटे, मारते नहीं किसी को।" उषा ने समझाया, "कह देना तुम गन्दी बात करती हो। तुमसे नहीं बोलेंगे।"

ताडी मम्मी आंटी, सद्द को गुडनाइट कहकर मामा के साथ लौट गया।

रात उषा ने आँगन में अपनी बाट पप्पू की छोटी खाट से सटाकर लगायी थी। लड़का गहरी नींद में बेसुध उपा बेटे की और करवट लेकर कभी हाथ से उसके सिर के केश सहलाती, कभी पीठ पर गरमी से आयी अंधौरियाँ सहलाती मस्तिष्क में विचारों के इन्द्र का बवंडर पूरी रात पलकों पर बीत गयी।

बेबे ने अभ्यास अनुसार सुबह पाँच के लगभग उठकर अंगीठी में आग दे दी। अंगीठी सुलग जाने पर चाय बनाकर ले रही थी कि उषा उठ गयी, "बेवे मुझे भी देना।” उपा को सुबह उठते ही चाय की तलब न होती थी। वेवे ने पूछ लिया, “मुत्री, तेरी तबीयत तो ठीक है?"

-बिलकुल ठीक हूँ बेबे नींद जल्दी खुल गयी।"

सदानन्द आउ से पहले आया, "जीजी मम्मी और पद्मा जीजी ने कहा है साडे आठ तक बाज़ार जाने के लिये तैयार हो जाइयेगा।"

बाज़ार नहीं जाना। पद्मा से कहना, आकर बात कर जाये।" उषा ने भाई से कहा। पद्मा नौ से कुछ पूर्व आयी। उपा बहिन को उत्तर देने को थी। श्यामा भी आ गयी। इ हुए पाँच निमन्त्रण-पत्र उषा की ओर बढ़ा दिये, "जिन्हें आप स्वयं देना चाहें दे दें। "भैया से कहना, कार्ड न वॉट।"

पद्मा और श्यामा की आँखें फैल गयीं।

क्या बात है दीदी?” श्यामा ने पूछा। उन्हें आ जाने दो। शायद स्थगित करना पड़े।" उपा नज़र बचाये बोली।

उपा लेट न होने की चिन्ता में कुछ मिनट पहले प्लेटफार्म पर पहुँच गयी थी। मेल में काफी भीड़। उपा की अपलक नज़र सामने से फिसलते डिब्बों की खिड़कियों से झाँकते चेहरों की ओर। पाठक दिखायी दिया। वह उषा को दूर से देखकर डिब्बे के दरवाज़े में आ गया था। चेहरे में मुस्कान, उल्लास से बाँह उठाये। उषा के सामने से कुछ आगे बढ़कर गाड़ी रुकी। उपा उस ओर बढ़ गयी।

पाठक गाड़ी थमते ही कूद आया। उपा को आलिंगन में ले लेने के लिये व्याकुल, बाँह उषा की पीठ से सटा दी। उषा पाठक के कन्धे से लग गयी। नज़रों में गुड आलिंगन

पाठक बहुत-सा सामान लाया था, दो कुलियों के उठाने लायका प्लेटफार्म से गेट की ओर बढ़ते पाठक ने पूछ लिया, "बहुत सुस्त लग रही हो ! तबीयत ठीक रही? घर में सब

ठीक है?

"सब ठीक है।"

ताँगा स्टेशन से चला तो पाठक ने फिर चिन्ता प्रकट की, “अच्छी, बहुत थकी लग रही हो, बहुत चुप क्या बात?"

उषा का गला भर आया। गहरे श्वास से बोली, "मेरी किस्मत!"

"किस्मत! भाग्यवादी कब से हो गयी?"

उषा ने आँखों की तरावट छिपाने के लिये गर्दन झुका ली।

पाठक ने बात बदलने के प्रयत्न में बताया: सद्र ने उसके लिये फिलिप्स का खूब बड़ा रेडियो उपहार भेजा है। खालिदा ने ज़री की साड़ी पप्पू के लिये कुछ खिलौने और कपड़े

भी हैं।

उषा ने भी बात बदली, "बालों और कपड़ों पर कितनी धूल-धूआँ लेकर आये हो। चलकर पहले नहा लो।"

उषा और पाठक ने आँगन में कदम रखा। बेबे पप्पू को खाना खिला रही थी। उषा ने बेटे को पुकारा, "पप्पू, अंकल आ गये।"

"गुडमार्निंग अंकल, हाओ डू यू हू?" पप्पू ने पाठक का स्वागत किया।

"थैंक्यू बेटे।" पाठक ने समीप आकर पप्पू को पुचकारा।

निगम पाठक का सामान तोंगे से उतरवाने के लिये आ गया। "चाय पियेंगे या बोतल वाला शरबत।" बेबे ने पूछा।

"शरबता" उपा पाठक की ओर से बोली, "तुरन्त नहायेंगे।"

पाठक ने सबसे पहले बक्स खोलकर पप्पू के खिलीने निकाले। नल के समीप रखी पानी भरी नाँद में स्टीम बोट की बत्ती जलाकर चलायी। पप्पू इस चमत्कार में तन्मय। उषा ने गुसलखाने में साबुन-तौलिया रख दिये। बक्स से बदलने के लिये कपड़े निकालने लगी।

"नहाने की इतनी जल्दी क्या? पहले बात समझ लें।" उषा के समीप आकर पाठक धीमे से बोला।

"नहा लो सब कुछ रख दिया है।"

पाठक को नहाकर कपड़े बदलने में दस मिनट लगे। उपा आँगन में धरती पर पाँव रखे खाट पर बैठी आने वाले क्षणों के लिये तैयार हो रही थी।

पाठक बरामदे से एक कुर्सी लेकर खाट के समीप बैठ गया।

"भीतर चलिये।" उषा उठ गयी।

• उषा ने कमरे में रोशनी कर टेबल फैन चालू कर दिया। दो मोड़े मौजूद थे। पाठक ने

मोठे समीप कर लिये। उषा की गर्दन झुक गयी। दोनों हाथों की उँगलियों को गूँथकर बोली, "डियर, क्षमा कर दोगे न!"

"किस बात के लिये क्षमा?" पाठक के स्वर में विस्मय।

"याद है, उस चाल की खोली में पहली रात मैंने कहा था, ऐसा कोई काम नहीं करना चाहती जो मेरे और बेटे के बीच आइ बन जाये?"

"कैसी आई ""?".

उपा ने गत साँझ की घटना बता दी। पप्पू से किया वायदा भी बता दिया।

"अच्छी, कैसी बातें करने लगी तुम!" पाठक उसकी ओर झुक गया, "हमें समाज को निरर्थक मान्यताओं और संस्कारों से मुक्त करना है या निरर्थक मान्यताओं के आगे सिर झुकाकर उनका समर्थन

उपा की गर्दन उठ गयी, “निरर्थक मान्यताओं और संस्कारों को स्वीकार नहीं कर रही हैं परन्तु समाज को एक झटके से नहीं बदल दे सकती। भूल गये, पाली हिल रोड पर माया के प्रसंग में खुद कहा था क्रान्ति लोगों को तोड़ना नहीं मोड़ना है। जैसे माया के लिये सोचा था, पप्पू के लिये नहीं सोचोगे?" उषा ने सीधे पाठक की आँखों में देखना चाहा। पाठक की गर्दन झुक गयी थी।

"डियर मुझे क्षमा कर दो, सब तरह तुम्हारी हूँ और रहूँगी, परन्तु बेटे के मन से कुंठा के संस्कार मिटाये बिना तुम्हारी पत्नी होने का संतोष और गर्दन पा सकूंगी। मुझे उसके लिये जितना सहना पड़े, जितना समय लग जाये। स्वार्थ में बेटे को हीनता अनुभव करने देना मुझे असा " आँखों से आँसुओं के झरने वह गये।

पाठक ने सिसकती उषा को अपनी गोद में खींच लिया, “इतनी अधीर क्यों डियर! मेरे लिये सबसे पहले तुम्हारा संतोष, पप्पू का हित ।"

काफी देर प्रतीक्षा के बाद भी उषा- पाठक कमरे से खाने के लिये न आये तो बेबे ने पुकारा, "अच्छी आ जाओ, अब खाकर बातें करना।"

कमरे के भीतर से पंखे की फर्राहट और कुछ बातचीत की आहट आ रही थी। बेबे ने कई मिनट प्रतीक्षा की। ध्यान पीठ पीछे कमरे की ओर उसे लगा जैसे सिसकियों या रोने की आवाज़ हो, परन्तु भावी दामाद और बेटी के एकान्त में कैसे झाँकती बोलती! कुछ क्षण में लड़की की हिचकियों का स्वर और स्पष्ट।

उपा के सिसकने की आवाज़ सुन देवे ने खिड़की से झांका। उपा पाठक की गोद में मुँह दबाये फफक रही थी। एक हाथ उसके सिर पर रखे दूसरे हाथ से पीठ सहला कर धैर्य धा रहा था।

बेवे संकोच से पीछे हट गयी। तारों भरे आकाश की ओर दुआ में हाथ उठा दिये, मेरे रब्ब मेरे यीशु बच्चों का भला कर सबका भला क

अच्छी मेरी तरफ देखो। मुझे सब स्वीकार।"

उपा ने भीगी आंखें उठाकर पाठक की ओर कातर दृष्टि से देखा, "मैं बेटे की भावना को अपने सन्तोष के लिये बलि न होने दूंगी। बलि होगी तो मेरी!"

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रचनाएँ
मेरी,तेरी, उसकी बातें
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गद्रष्टा, क्रांतिकारी और सक्रिय सामाजिक चेतना से संपन्न कथाकार यशपाल की कृतियाँ राजनितिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य में आज भी प्रासंगिक हैं | स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान और स्वातंत्रयोत्तर भारत की दशा-दिशा पर उन्होंने अपनी कथा-रचनाओं में जो लिखा, उसकी महत्ता दस्तावेज के रूप में भी है और मार्गदर्शक वैचारिक के रूप में भी | 'मेरी तेरी उसकी बात' की पृष्ठभूमि में 1942 का भारत छोडो आन्दोलन है, लेकिन सिर्फ घटनाओं का वर्णन नहीं | एक दृष्टिसंपन्न रचनाकार की हैसियत से यशपाल ने उसमे खासतौर पर यह रेखांकित किया है कि क्रांति का अभिप्राय सिर्फ शासकों का बदल जाना नहीं, समाज और उसके दृष्टिकोण का आमूल परिवर्तन है | स्त्री के प्रति प्रगतिशील और आधुनिक नजरिया उनके अन्य उपन्यासों की तरह इस उपन्यास के भी प्रमुख स्वरों में एक है |
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भाग 1 : मेरी तेरी उसकी बात

1 सितम्बर 2023
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बात पिछली पीढ़ी की है। डाक्टर अमरनाथ सेठ की फाइनल परीक्षा थी। रतनलाल सेठ को पुत्र के परामर्श और सहायता की जरूरत पड़ गयी। पिता ने झिझकते सकुचाते अनुरोध किया, "बेटे, जानते हैं, तुम्हारा इम्तहान है। पर ज

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भाग 2 : मेरी तेरी उसकी बातें

5 सितम्बर 2023
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गंगा बुआ को मास्टर जी की नोक-झोक से चिह्न उस पर लांछन कि उसे बच्चे के लिये उचित भोजन की समझ नहीं। गंगा मास्टर मास्टरनी से उलझ पड़ी, नयी-नयी बातें हमारे यहाँ बड़े-बड़ों के जमाने से ऐसा ही होता आया है।

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भाग 3: मेरी तेरी उसकी बातें

6 सितम्बर 2023
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छोटे मालिक का हुक्म पाकर गुन्ने ने घुँघरू अमचूर के घोल में डाल दिये। सुबह इक्के को धोया पहियों, राम साज पर तेल-पानी का हाथ लगाकर चमकाया। गद्दी तकिये के गिलाफ बदल दिये। अमर संध्या पाँच के लगभग पहुँचा।

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भाग 4 : मेरी तेरी उसकी बातें

6 सितम्बर 2023
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 सन् १९३८ अप्रैल का पहला सप्ताह धूप में तेजी आ गयी थी। कंधारी बाग गली में दोपहर में सन्नाटा हो जाता। रेलवे वर्कशाप और कारखानों में काम करने वाले तथा अध्यापक सुबह छः- साने छः बजे निकल जाते। बाबू सा

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भाग 5: मेरी तेरी उसकी बातें

7 सितम्बर 2023
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रजा की भौवें उठ गयीं, "जब देखो कंधारीबाग गली! मिस पंडित से लग गयी?" "जब देखो तब क्या मौका होने पर सिर्फ इतवार शाम जाता हूँ। उसकी समझ-बूझ अच्छी हैं। समाजवाद में बहुत इंटरेस्ट ले रही है। शी कैन बी ग्रेट

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भाग 6: मेरी तेरी उसकी बातें

7 सितम्बर 2023
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पिता ने उपा को चेतावनी दी थी: तुम घृणा और तिरस्कार की खाई में कूदकर आत्महनन कर रही हो। डाक्टर सेठ कितना ही ईमानदार, उदार हो परन्तु हिन्दू हिन्दू सम्प्रदाय का मूल ही शेष सब समाजों सम्प्रदायों से घृणा औ

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भाग 8: मेरी तेरी उसकी बातें

8 सितम्बर 2023
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बार रूम के बरामदे में वकील कोहली कुर्सी पर बैठे समीप खड़े महेन्द्र को मुकदमे के बारे में समझा रहे थे। बजरी पर कार के पहियों की सरसराहट से नजर उठी। कचहरी में नरेन्द्र का आना अप्रत्याशित! बेटे का चेहरा

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भाग 7: मेरी तेरी उसकी बातें

8 सितम्बर 2023
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 गांधी जी और नेताओं की गिरफ्तारियों के विरोध में जनता का आक्रोश और क्षोभ काली आँधी की तरह उठा। सरकारी सत्ता के पूर्ण ध्वंस का प्रयत्न उसके बाद सरकार की ओर से प्रतिहिंसा में निरंकुश दमन के दावानल क

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