जल्दी चलो माँ,जल्दी चलो बावा,
देर होती हैं,चलो ना,बुआ-चाचा,
बन ठनकर हंसते-मुस्कराते जाते,
परीक्षा फल सुनने को अकुलाते,
मैदान में परिजन संग बच्चों का तांता कतार बद्ध थे,
विराजमान शिक्षकों के माथे पर बल पड़े हुए थे,
पत्रकफल पा,हंसते-रोते ,मात-पिता पास दौड़ लगते,
भीड़ छट गई,शिक्षकों के सर से बोझ उतर गये,
तभी,तीन बच्चों के साथ महिला इधर आती दिखती,
हाथ जोडकर,दीनभाव से,फेल होने की मजबूरी जताती,
दुखड़ा सुनाती जाती,आंसू बहते जाते,
मजदूरी करके ,पेट काटकर पढाते,
इतना सुन,मेडम गुस्से भरे लहजे मे कहती-
पढने पर ध्यान नही,पीछे बैठ गप लडाती,
कबूल कर,याचना से झोली फैलाती,
पास हो जाती????,खोटी तकदीर बन जाती,
माथा पकड़,कोसती नसीब को,
नही तो,मेरी तरह 'झाडू=पोछा करूंगी ,
दिलासा देकर समझाया-
सब काम धाम छोड़,थोड़ा ध्यान दो....
मिन्नत करने, गिडगिडानेलगी-
बड़ी मेहरवानी होगी,थोड़ी मेहरबानी आप ही कर दो....
ठीक हैं...ठीक हैं...,कहकर पिंड छुडाती.........
हाथ जोडकर,आशाभरी नजरों से वो,चलती बनी......
तभी,शर्मा मेडम बोल पड़ी,समझाने किसे लगी थी....
अपना माथा पच्ची कर,सिरदर्द बढ़ा रही थी.......
अगर,यही पढ़-लिखकर ,अफसर बन जायेंगे,
तो,हम सब के घर, 'वाईयों के तोते'पद जायेगे,
तर्क सम्मत बात सुन, समर्थन में 'हां में हां'मिलाने लगी,
सोलह आने ये सच हैं-----सोझ आने ये सच हैं.....
सब देख सुन,मैं अवाक से मुंह ताकने लगी सबका,
भावी भविष्य जनक की सोच सुन,माथा ठनक गया......
यही कारण हैं,सामाजिक उद्धार सम्भव ही नही,नामुमकिन हैं,
तभी तो,हालत दशकों पूर्व थे,वो आज भी बने हैं.