जिन्दगी में हर पल एक नई चुनौतियों को लेकर आता हैं,जो असमान संघर्षो से भरा होता हैं.इस पल को सामने पाकर कोई सोचना लगता हैं कि शायद मेरे जीवन में नया चमत्कार होने वाला हैं.अर्थात् सभी के मन में चमत्कार की आशा पैदा होने लगती हैं.चुनौतियां जो इंसानी जीवन का अंग है,जो इन चुनौतियों का सामना दृढता के साथ करता हुआ आगे बढ जाता हैं वो औरों से अधिक शक्तिशाली बन जाता हैं.चुनौतियों से संघर्ष करने के लिये हमें पीछें नहीं हटना चाहिये बल्कि समस्या का निवारण विवेकजन्य इस्तेमाल करके तर्कसम्मत ढंग से ढूंढना चाहिये.कर्म ही भाग्य निर्माता स्वयं होते हैं.इसलिये ईश्वर भाग्य विधाता पर पूरा जीवन अकर्मण्य होकर हाथ रखकर बैठना चाहिये.जब हम संघर्ष करते हॆ तो दूसरों के लिये उदाहरण या प्रेरणाप्रद व्यक्ति न बन सकते हैं.जीवन में सुख-दुख,धूप-छांव की तरह होते हैं,लेकिन यह भी सत्य हैं कि कठिनाईयों को हासिल करने पर ही खुशी का हमारे जीवन में पर्दापरण होता हैं और उनका महत्व दुखों के दिनों में पता चलता हैं.जब किसी कठिन काम को करके सफलता प्राप्त हो जाती हैं तो उसकी खुशी का स्वाद अद्भुत,अनोखा,अविस्मरणीय होता हैं.जब लोंगो की नजर में,उस काम को करना टेढी खीर लगता हैं तब हमें वीर योद्धा की तरह उस कठिन काम को करके,उसमें सफल होकर पूर्वाग्रही सोच वाले व्यक्तियों के मुंह पर ताला लगा देना चाहिये और हमें भी ऐसे कठिन कार्यों को करने में जीवन की सबसे बङी खुशी प्राप्त होती हैं.
हमारा जीवन ईश्वर का दिया तोहफा हैं.इससे बङा और कुछ नहीं हैं,जो स्वयं लक्ष्य हैं.इसमें ही परमात्मा की पूर्णता हैं.जीवन का कोई साध्य या साधन नहीं होता जिसके लिए जीवन साधन हो सके वो या वो साध्य हो सके.तेज रफ्तार से दौड़ना,फिर रुक जाना जीवन नहीं बल्कि बिना रूके धीरे-धीरे चलकर जिंदगी की दौड़ में शामिल होना जिंदगी हैं.लगातार मेहनत करने से सपने पूरे होते हैं.सच्ची खुशी का आसरा आजादी हैं.आजादी हमें अपनी शर्तों पर ही मिल सकती हैं,न कि दूसरों कि शर्तों पर.बहादुरी पर हमारी अपनी स्वतन्त्रता निर्भर होती हैं.
इंसान को सुख-सुविधा पूर्ण जीवन जीना चाहिए लेकिन भोगी नहीं बनना चाहिए.विलासिता इंसान में घुन लगा देती हैं और धीरे-धीरे उसके व्यक्तित्व को नष्ट करती हैं क्योकि भोग कभी खत्म नहीं होता बल्कि इंसान ही खत्म हो जाता हैं.
हम चाहते हैं कि हमारी आने वाली पीढ़ी सतमार्ग पर चले तो इसके लिए आपको उस पर चलकर दिखाना होगा.साक्षात प्रमाण देना होगा ,न कि उपदेश.अगर इंसान ने बिना संघर्ष किए जीवन का युद्ध जीत लिया तो जीत बेईमानी होती हैं.सममानहीन जिंदगी होती हैं,जिस जीवन मे संघर्ष नहीं हैं,कठिनाईयां नहीं हैं,उस जीवन का क्या मोल?क्योकि स्वाभिमान जीवन का आभूषण होता हैं,जिसे सिर माथे पहनकर एक ऐसे एहसास कि अनुभूति होती हैं जो दिमाग को तरोताकजा रख प्रेरित करती रहती हैं.
माना जीवन कठिनाईयों का नाम हैं लेकिन हमें उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए क्योकि आशा लगाने से ही सफलता कि राह मिलती हैं,शक्ति मिलती हैं,कुछ करने की उम्मीद कभी नहीं छोड़ना चाहिए,वो बिखरे हुये जीवन में समाहित होकर जादू-सा बिखेर देता हैं.वो एक सूरज की तरह होता हैं जो अपनी प्रदीप्ति से निराशा रूपी परछाईयों को परे धकेल कर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता हैं.
हमारे जीवन में खुशियाँ समंदर की तरह होती हैं.जब हम खुशियों के पीछे बेपरवाह भागते रहते हैं तो वो हताशा के मरूस्थल में बदल जाती हैं.इमानुयल कैंट का कथन हैं कि, ‘आपके पास जो हैं उससे आप अमीर नहीं होते,बल्कि जो नहीं हैं उसके बिना काम चलाकर आप सही मायने में आप अमीर बन जाते हैं.’
हमारा इंसानी दिमाग जीवनभर के तुजुर्वों से एक ऐसा ढ़ाचा तैयार करता हैं जब दिशाविहीन होकर खोखले मूल्यविहीन जीवन का बोझ धो रहे होते हैं,तब अनुभवों कि पूंजी,जो आगे चलकर धरोहर बन जाते हैं,से जीवन का भटकाव मिटा देते हैं,क्योकि प्रभावमय एकांकी जीवन शैली पल्लवित होने लगती हैं और एक एस अनुभवहीन बौद्धिक धरातल जड़े जमाने लगता हैं जिससे व्यक्ति उसी सिमटते वातावरण में अपने चिंतन के अनुरूप जीवन स्वरूप मनमर्जी होने लगता हैं जिससे मानव का सार्वजनिक व सार्वभौमिक स्वरूप विलुप्त होता जा रहा हैं.ऐसे में हमें जीवन पर्यंत माँ-गुरु द्वारा दी गई सीख बेहतर जीने का मूलमंत्र सिद्ध होता हैं.