छोटा-सा,साधारण-सा,प्यारा मध्यमवर्गीय हमारा परिवार,
अपने पन की मिठास घोलता,खुशहाल परिवार का आधार,
परिवार के वो दो,मजबूत स्तम्भ बावा-दादी,
आदर्श गृहणी माँ,पिता कुशल व्यवसायी,
बुआ-चाचा साथ रहते,एक अनमोल रिश्ते में बंधते,
बुजुर्गों की नसीहत से,समझदार और परिपक्व बनते,
चांदनी जैसी शीतलता माँ में,पिता तपते सूरज से,
खौफ इतना,आभास जरा सा,सब नौ-दौ ग्यारह हो जाते,
मुखिया,बावा की मर्जी बगैर ,घर का पत्ता तक न हिलता,
छांव तले अनुशासन से ,सौहाद्र की भावना का बीज पड़ता,
बावा,दादी को 'चिंटू की अयैया',दादी 'चिंटू' कह बावा को बुलाती,
सप्तक दशक पार 'माडर्न दादी',बातों में सबके छक्के छुड़ाती,
लड़ते भाई-बहिन का शोर सुन,बावा-दादी बीच-बचाव करने आते,
ये क्या?/झगड़ा सुलटाते-सुलटाते,खुद आपस में भीड़ जाते,
माहौल गरम भांप,खसक वहां से,बिस्तर में गुल जाते,
डांट खाने की चिंता ,डर में,सुबह जल्दी उठ जाते,
सर्दी हो या गर्मी ,तडके पांच बजे भोर हो जाती,
दादी सबको पड़ने को जगा,गाय-भैंस में लग जाती,
समय के पावंद ,भ्रमण लौट बावा,नहा-धौ,चाय-नाश्ता करते,
लाठी अपनी उठा,मन्दिर से दोस्त-यारो से मिलने निकल पड़ते,
याद उन दिनों की आती,जब मेला लगता ,रामलीला होती या सर्कस जाते,
भैय्या बावा के कंधे पर बैठ,हम सब दादी ऊँगली थाम पीछे हो लेते,
इधर-उधर भागते,सोफ्टी खाते,मूंगफली चबाते,झूले झूलते चाट-पकोड़ी चाटते,
जब बात नही मनती हमारी,तो,भैय्या को उकसा कर अपनी लाग लगाते,
मौज-मस्ती कर,थकहार कर,पर,प्रसन्न मन घर लौटते,
रात बिस्तर में दादी से किस्से- कहानी सुन सो जाते,
बात जब होती दोस्तों में,घूमने-फिरने ,मौज-मस्ती या बावा-दादी की,
सुनने वाले थक जाते इतना सब सुन,दोस्तों में अपनी धाक जम जाती,
बात छिड़ती जब,बचपन के बीते बावा-दादी संग दिनों की ,
मन पंख लगा पहुँच जाता,गलियारों,मेलों में,बीते दिनों की,
आज अहसास होता हैं,परिवार के महत्वता की,
एकजुटता ही बुनियाद हैं,जीवन के आधार की,
जमाना बदला ,सोच बदली, 'छोटा परिवार,सुखी परिवार' सूचक बन गये,
पर,सत्य यही हैं, 'दुआएं लुटाते बावा-दादी' ही,खुशहाल परिवार की नींव होते.