वरखा बहार आई. .................. घुमड़-घुमड़ बदरा छाये, चम-चम चमकी बिजुरियां,छाई घनघोर काली घटाएं, घरड-घरड मेघा बरसे, लगी सावन की झड़ी,करती स्वागत सरसराती हवाएं........ लो,सुनो भई,बरखा बहार आई...... तपती धरती हुई लबालव, माटी की सौंधी खुश्बू,प्रफुल्लित बसुन्धरा से संदेश कहती, संगीत छेड़ती बूंदों की टप-टप , लहराते तरू,चहचहाते विहग,कोयल मधुर गान छेड़ती....... लो सुनो भई,वरखा बहार आई....... छटा बिखर गई,मयूर थिरक उठा-सा, सुनने मिली झींगरों की झुनझुनी,पपीहे की प्यास बुझाती, कजरी,तीज,राखी का मेला त्यौहारों -सा , मोती-सी वर्षा की बूंदों का सरगम,पिया का संदेश सुनाती....... लो,सुनो भई,वरखा बहार आई........ धवल हो गई दीवालें-छतें,घर-आंगन बुहारती, नदी-नाले उफन पड़े,रंग-बिरंगी छातों संग टोली में निकल पड़ते, मन बच्चा बन जाता,देखके उनकी मटरगश्ती, सडकों पर छप-छप बच्चे करते,कागज की नाव तैरा मस्ती करते, लो,सुनो भई,बरखा बहार आई.... अद्भुत झड़ियाँ बारिश की,पत्ते-पत्ते छटा छाई, चम्पा-चमेली महकी,टिमटिमाते तारे,मंद चांदनी मुस्काती ,रिमझिम फुहारें, मन को आनन्दित कर लुभाई, जीवन में,स्नेह वर्षा से नफरत बहती,रिश्तों में मधुरता घुलती..... लो, सुनो भई,वरखा बहार आई....