वो भी क्या दिन थे ....
बचपन के वो दिनअसल जिंदगी जिया करते थे
कल की चिंता छोड़ आज में जिया करते थे
ईर्ष्या,द्वेष से परे,पाक दिल तितली की मानिंद उड़ते
ना हाथ खर्च की चिंता,ना भविष्य के सपने बुनते
हंसी ख़ुशी में गुजरे दिन ,धरती पर पैर ना टिकते
छोटे छोटे गम थे,छोटी छोटी खुशियों में खुश होते
ममेरे फूफेरे चचेरे बच्चो के संग दोस्तों का जमघट लगता
कबड्डी,कैरम,खो-खो ,अंताक्षरी ,ताश की चलती बाजी
मटन का आम पापड़,पोले का पान चबाते,प्रिंस का गोला चूसते
चुपके से अटारी पर चढ़ी दोपहरी तलत पतंगबाजी में पेच लड़ातेढली शाम घूमने निकलते,कुल्फी चाट के चटकारे लेते
कभी सैर सपाटे करते कभी फिल्मों का आनंद उठाते
चाय टोस्ट के साथ गपियाते गपियाते रात गुजारते
मौज मस्ती की अल्पाब्धि ,समय पंख लगा, गई उड़
फिर आने का वायदा कर लौट गए अपने अपने घर
तब समय समय ही था, अब पड़ गए लाले समय के
नियत बदली,नजरे बदली,रह गया सब स्मृति बन के
वो भी क्या दिन थे .......
सर्दियों की छुट्टियों के दिन
जब बच्चों के संग बुआ मामी भी आ जाती
दांत किटकिटाती सर्द में करते मटरगस्ती
रात अलगाव जलाकर आपस में बतियाते
छिड़ जाते कहानी किस्से बड़े बुजुर्गो के
बीच बीच में बच्चे भी अपना राग अलापते
चढ़ी कड़ाही में मगौंडे पकोड़े छनकते
चलता दौर चाय कॉफी का मधुर रिश्ते गर्माते
आस-पड़ोस आ बैठते गप्पो का दौर चल पड़ता
गजक रेवड़ी तिलपट्टी संग मूँगफली चवाई जाती
मटर छीलती,बूट निकोरती ,स्वेटर बुनती दादी चाची
सब के रस में रंगकर मजा बहसों का उठाती जाती
भुने आलू,शकरकंद की महक मुंह में पानी भर देते
आपस में गुठियाते सुख-दुःख रिश्तों के तानेबाने बुनते
हम बच्चे कल की नई योजना बना ,लिहाफों में घुस जाते
वो भी क्या दिन थे .........
बचपन की दहलीज पार करते ही
जिंदगी जीने के मायने बदले
कुछ रिश्ते जुदा हुए,कुछ नए बने
मंजिलों को ढूढ़ते हुए जाने कहाँ खो गए
गलतफहमी थी बचपन की
बड़ो को देखकर लगता था
जिंदगी बड़ी मजेदार होगी
ना डांट डपट ,ना होमवर्क की चिंता
पर अफ़सोस...काश
,फिर से बचपन लौट आये
इन सब जंजालों से भाग
एक पल के लिए
खोया बचपन जी लू
क्या थे वो दिन ......