shabd-logo

वो भी क्या दिन थे.......

23 सितम्बर 2018

153 बार देखा गया 153




वो भी क्या दिन थे ....


बचपन के वो दिनअसल जिंदगी जिया करते थे


कल की चिंता छोड़ आज में जिया करते थे


ईर्ष्या,द्वेष से परे,पाक दिल तितली की मानिंद उड़ते


ना हाथ खर्च की चिंता,ना भविष्य के सपने बुनते


हंसी ख़ुशी में गुजरे दिन ,धरती पर पैर ना टिकते


छोटे छोटे गम थे,छोटी छोटी खुशियों में खुश होते


ममेरे फूफेरे चचेरे बच्चो के संग दोस्तों का जमघट लगता


कबड्डी,कैरम,खो-खो ,अंताक्षरी ,ताश की चलती बाजी

मटन का आम पापड़,पोले का पान चबाते,प्रिंस का गोला चूसते

चुपके से अटारी पर चढ़ी दोपहरी तलत पतंगबाजी में पेच लड़ाते

ढली शाम घूमने निकलते,कुल्फी चाट के चटकारे लेते


कभी सैर सपाटे करते कभी फिल्मों का आनंद उठाते


चाय टोस्ट के साथ गपियाते गपियाते रात गुजारते


मौज मस्ती की अल्पाब्धि ,समय पंख लगा, गई उड़


फिर आने का वायदा कर लौट गए अपने अपने घर


तब समय समय ही था, अब पड़ गए लाले समय के


नियत बदली,नजरे बदली,रह गया सब स्मृति बन के


वो भी क्या दिन थे .......


सर्दियों की छुट्टियों के दिन


जब बच्चों के संग बुआ मामी भी आ जाती


दांत किटकिटाती सर्द में करते मटरगस्ती


रात अलगाव जलाकर आपस में बतियाते


छिड़ जाते कहानी किस्से बड़े बुजुर्गो के


बीच बीच में बच्चे भी अपना राग अलापते


चढ़ी कड़ाही में मगौंडे पकोड़े छनकते


चलता दौर चाय कॉफी का मधुर रिश्ते गर्माते


आस-पड़ोस आ बैठते गप्पो का दौर चल पड़ता


गजक रेवड़ी तिलपट्टी संग मूँगफली चवाई जाती


मटर छीलती,बूट निकोरती ,स्वेटर बुनती दादी चाची


सब के रस में रंगकर मजा बहसों का उठाती जाती


भुने आलू,शकरकंद की महक मुंह में पानी भर देते


आपस में गुठियाते सुख-दुःख रिश्तों के तानेबाने बुनते


हम बच्चे कल की नई योजना बना ,लिहाफों में घुस जाते


वो भी क्या दिन थे .........


बचपन की दहलीज पार करते ही


जिंदगी जीने के मायने बदले


कुछ रिश्ते जुदा हुए,कुछ नए बने


मंजिलों को ढूढ़ते हुए जाने कहाँ खो गए


गलतफहमी थी बचपन की


बड़ो को देखकर लगता था


जिंदगी बड़ी मजेदार होगी


ना डांट डपट ,ना होमवर्क की चिंता


पर अफ़सोस...काश


,फिर से बचपन लौट आये


इन सब जंजालों से भाग


एक पल के लिए


खोया बचपन जी लू


क्या थे वो दिन ......

गौरीगन गुप्ता की अन्य किताबें

1

अपनी ही दुनियां

17 अप्रैल 2018
0
1
0

शान्त चेहरे की अपनी होती एक कहानी पर दिलके अंदरहोते जज्बातों के तूफान,अंदर ही अंदर बंबद किताब के पन्ने पनीलीऑंखों से अनगिनत सपने झाकते , जीवनका हर लम्हा तितर बितर,जीवन का अर्थ समझ नही आता, भावहीन सी सोचती,खुद को साबित करने को

2

हमारा परिवार

15 मई 2018
0
0
2

छोटा-सा ,साधारण -सा मध्यमवर्गीय हमारा परिवार,अपनेपन की मिठास घोलता,खुशहाल परिवार का आधार,परिवार के वो दो मजबूत स्तम्भ थे बावा -दादी,आदर्श गृहणी थी माँ,पिता कुशल व्यवसायी,बुआ,चाचा साथ रहते,एक अनमोल रिश्ते में बंधते,बुजुर्गो की नसीहत से समझदार और परिपक्व बनते,मुखिया बावा

3

जिन्दगी क्या?????एक हलवाई की दूकान...

21 मई 2018
0
1
0

इस मायावी दुनिया में भाँती -भांति के लोग,सबकी अपनी जिन्दगी,कोई अदरक तो कोई सोंठ,किसी की जगह आलू जैसी,तो कोई थाली का बैगन,अहमियत होती सबकी अपनी,जैसे व्यंजनों में नोन,रसगुल्ले का रस-सा घोलती माँ की प्यारी लोरियां,पेड़े पर छपी चन्द्र कलाएं जैसी बच्चों की ह्ठ्खेलियाँ,गुझियाँ -सा बंधा परिवार में बड़ों का अ

4

हमारा परिवार

23 मई 2018
0
0
0

छोटा-सा,साधारण-सा,प्यारा मध्यमवर्गीय हमारा परिवार,अपने पन की मिठास घोलता,खुशहाल परिवार का आधार,परिवार के वो दो,मजबूत स्तम्भ बावा-दादी,आदर्श गृहणी माँ,पिता कुशल व्यवसायी,बुआ-चाचा साथ रहते,एक अनमोल रिश्ते में बंधते,बुजुर्गों की नसीहत से,समझदार और परिपक्व बनते,चांदनी जैसी शीतलता माँ में,पिता तपते सूरज

5

मूक बनी हाड़ मॉस की कठपुतली नही......

25 मई 2018
0
0
0
6

मैं कहाँ खो गया?????

25 मई 2018
0
2
0

कच्ची उम्र हैं,कच्चा हैं रास्ता,पर, पक्की हैं दोस्ती,पक्के हैं हम,उम्मीदों,सपनों का कारवां लेकर चलते,खुद पर भरोसा कर,कदम आगे बढाते,चुनौतियाँ बहुत हैं,ख्वाब हैं लम्बे,पर, जन्मभूमी ही हमारी पाठशाला होती,धरती की नींव में अपनी रूढ़ जमाए,दिन-रत समय की चक्की में पिसते,सुकोमल-सा पुष्पों जैसा मेरा जीवन......

7

एक डगर जीवन की......

27 मई 2018
0
0
0

टेड़ी मेड़ी मतवाली सी लहर बन अपना मार्ग प्रशस्त करती, पर आज, नीरव निस्तब्धता इसकी खतरे काआगाज़ करती, सरिता नीर से धरती संचित करते करते तटों पर सिमटती सी, जीवन दायिनी की जीवान्तता शनैः शनैः खत्म होती सी, भंवर में फंसी नाव कई-कई उतार चढ़ाव सहती, फ़िसल गया चप्पू, छोड़ गया खिवैया, अनाथ हो गईं नाव, पर, स

8

क्यों अनजान रखा उन काले अक्षरों से???????

27 मई 2018
0
0
0
9

उम्मीद नही सहयोग की ......

28 मई 2018
0
0
0
10

बस....,अब,और नही.......

2 जून 2018
0
1
0

Deleteबस ,अब और नही......आज तो हद ही हो गई........लता दोपहर में पडोस की महिलाओं के साथ किसी के घर बुलाने में गई थी,लौटेते-लौटते रात के सात बज गये.घंटी बजाते हुए उसके हाथ काँप रहे थे.मन आशंकाओं से भरा हुआ था.काफी देर बाद जब गेट का ताला खोला गया,तो पति के गुस्से भरे चेहरे

11

मैं,सोचती हूँ... मैं कौन हूं.....

3 जून 2018
0
0
0
12

भविष्य के जनक....

6 जून 2018
0
2
0

जल्दी चलो माँ,जल्दी चलो बावा,देर होती हैं,चलो ना,बुआ-चाचा,बन ठनकर हंसते-मुस्कराते जाते,परीक्षा फल सुनने को अकुलाते,मैदान में परिजन संग बच्चों का तांता कतार बद्ध थे,विराजमान शिक्षकों के माथे पर बल पड़े हुए थे,पत्रकफल पा,हंसते-रोते ,मात-पिता पास दौड़ लगते, भीड़ छट गई,शिक्षकों के सर से बोझ उतर गये,तभी,ती

13

उड़ान......

8 जून 2018
0
0
0
14

पिता हमारे वट वृक्ष समान........

17 जून 2018
0
2
1

“पिता हमारे वट वृक्ष समान” किसी ने सही ही कहा हैं कि ‘पिता न तो वह लंगर होता हैं जो तट पर बांधे रखे, न तो लहर जो दूर तक ले जाएँ. पिता तो प्यार भरी रौशनी होते हैं,जो जहाँ तक जाना चाहों,वहां तक राह दिखाते हैं.’ऐसे ही मेरे पिता हैं,जो चट्टान की तरह दिखने वाले पर एहसास माँ की तरह.घर-परिवार का बोझ

15

असमंजस में हूं ......

18 जून 2018
0
2
1

आधुनिकता की दौड़ में डगमगाती.... संक्रमण के दौर से गुजरती... मंझधार में फंसी. ... निस्सार जीवन में जर्जर पीत पर्ण सा बिखरा उजडा मन एकाकी राही पथिक की धुंधले सपने जेहन में समाए आशा- निराशा के भंवर में मन में टीस दिल में आस कुछ कर गुजरने की चाह असमंजस मन के किसी कोने में बदलते परिवेश में क्या सही, क्

16

बारिश का मौसम

20 जून 2018
0
0
0

बारिश का मौसम हल्की भीगी सी धरा , अनन्त नभ से बरसता अथाह नीर, उठती गिरती लहरें झील में, आनंद उठाते नैसर्गिक सौंदर्य का, सरसराती हवाओं के तेज झोके, सूखी नदी लवालव हो गई, सिन्चित हुए तरू, छा गई हरियाली, बातें करती तरंगिणी बहती जाती, प्यास बुझाती, जीवो को तृप्त करती, घनी हरियाली से झांकते, आच

17

योग ही सशक्त मार्ग हैं स्वस्थ जीवन का ......

21 जून 2018
0
1
0

व्यस्त जीवन शैली में योग को अंग बनाईये,स्पर्धा भरे माहौल में चरम संतोष पाईये,निराशा ढकेल,सकारात्मक सोच का संचार कराता,उत्साह का सम्बर्धन कर व्यक्तित्व व सेहत बनाता,स्नान आदि से निवृत हो, ढीले वस्त्र धारण कर कीजिए योगासन,वर्ज आसन को छोड़ ,खाली पेट कीजिए सब आसन,मन्त्र योग,हठ योग,ली योग,राज योग इसके हैं

18

मन का भंवर

23 जून 2018
0
1
0

अकस्मात मीनू के जीवन में कैसी दुविधा आन पड़ी????जीवन में अजीव सा सन्नाटा छा गया.मीनू ने जेठ-जिठानी के कहने पर ही उनकी झोली में खुशिया डालने के लिए कदम उठाया था.लेकिन .....पहले से इस तरह का अंदेशा भी होता तो शायद .......चंद दिनों पूर्व जिन खावों में डूबी हुई थी,वो आज दिवास्वप्न सा लग रहा था.....

19

प्रेम क्या है ?????

26 जून 2018
0
0
0

प्रेम क्या है????? ईश्वर का दिया वरदान मूर्त अमूर्त में होता विद्यमान कोमल, निर्मल, लचीला भाव लिपिबद्ध नहीं शब्दों से जिसमें अनन्त गहराई समायी। प्रेम सनातन है बडा नाजुक शब्द है शाश्वत, निस्वार्थ, निरन्तरता का नाम है सरल, सहज भरा मार्ग मायावी दुनियां से लेना देना नहीं अहंकार, कपट से वास्ता नहीं क्यो

20

वरखा बहार आई . ...........

29 जून 2018
0
0
0

वरखा बहार आई. .................. घुमड़-घुमड़ बदरा छाये, चम-चम चमकी बिजुरियां,छाई घनघोर काली घटाएं, घरड-घरड मेघा बरसे, लगी सावन की झड़ी,करती स्वागत सरसराती हवाएं........ लो,सुनो भई,बरखा बहार आई...... तपती धरती हुई लबालव, माटी की सौंधी खुश्बू,प्रफुल्लित बसुन्धरा से संदेश कहती, संगीत छे

21

रिश्तों के समीकरण

30 जून 2018
0
1
0

बदलते समीकरण - रिश्तों के...आज ख़ुशी का दिन था,नाश्ते में ममता ने अपने बेटे दीपक के मनपसन्द आलू बड़े वाउल में से निकालकर दीपक की प्लेट में डालने को हुई तो बीच में ही रोककर दीपक कहने लगा-माँ,आज इच्छा नही हैं ये खाने की.और अपनी पत्नी के लाये सेंडविच प्लेट में रख खाने लगा. इस तरह मना करना ममता के मन को

22

सडक और हम

1 जुलाई 2018
0
0
0

सुरक्षा नियमों का करना हैं सम्मान.धुँआ छोडती कोलाहल करती,एक-दो,तीन,चारपहिया दौड़ती, लाल सिंग्नल देख यातायात थमता, जन उत्सुकतावश शीशे से झांकता. +++++बीच सडक चौतरफा रास्ता,तपती दुपहरी में छाता तानता,जल्दी निकलने को हॉर्न बजाता,वाहनों के बीच फोन पर बतियाता.

23

क्षण क्या है ??????

4 जुलाई 2018
0
0
0

एक बार पलक झपकने भर का समय ..... , पल - प्रति पल घटते क्षण मे, क्षणिक पल अद्वितीय अद्भुत बेशुमार होते, स्मृति बन जेहन मे उभर आआए वो बीते पल, बचपन का गलियारा, बेसिर पैर भागते जाते थे, ऐसा लगता था , जैसे समय हमारा गुलाम हो, उधेड़बुन की दु

24

हास्य.......

5 जुलाई 2018
0
0
0

हास्य , जीवन की एक पूंजी......, कुदरत की सबसे बडी नेमत हैं हंसी... , ईश्वरीय प्रदत वरदान है हंसी ..., मानव मे समभाव रखती हैं हंसी..., जिन्दगी को पूरा स्वाद देती हैं हंसी......, बिना माल के मालामाल करने वाली पूूंजीहै हंसी...., मायूसी छायी जीवन मे जादू सा काम करती

25

जीना इसी का नाम है......

6 जुलाई 2018
0
0
0

व्यक्ति क्या चाहता है, सिर्फ दो पल की खुशी और दफन होने के लिए दो गज जमीन, बस... इसी के सहारे सारी जिन्दगी कट जाती है। तमन्नाएं तो बहुत होती है, पर इंसान को जीने के लिए कुछ चन्द शुभ चिन्तक की, उनकी दुआओं की जरूरत होती है।आज सभी के पास सब कुछ है मग

26

टेसू की टीस या पलाश की पीर। .....

7 जुलाई 2018
0
0
0

सुर्ख अंगारे से चटक सिंदूरी रंग का होते हुए भी मेरे मन में एक टीस हैं.पर्ण विहीन ढूढ़ वृक्षों पर मखमली फूल खिले स्वर्णिम आभा से, मैं इठलाया,पर न मुझ पर भौरे मंडराये और न तितली.आकर्षक होने पर भी न गुलाब से खिलकर उपवन को शोभायमान किया.मुझे न तो गुलदस्ते में सजाया गया और न ही माला में गूँथकर द

27

भ्रमजाल

9 जुलाई 2018
0
0
0

कैसे- कैसे भ्रम पाल रखे हैं. .... सोते से जाग उठी ख्याली पुलाव पकाती उलझनों में घिरी मृतप्राय जिन्दगी में दुख का कुहासा छटेगा जीने की राह मिलेगी बोझ की गठरी हल्की होगी जीवन का अल्पविराम मिटेगा हस्तरेखा की दरारें भरेगी विधि का विधान बदलेगा उम्मीद के सहारे नैय्या पार लग जायेगी बचनों मे विवशता का पुल

28

सदा,बिखरी रहे हँसी। ....

10 जुलाई 2018
0
0
0

हँसमुखी चेहरे पर ये कोलगेट की मुस्कान,बिखरी रहे ये हँसी,दमकता रहे हमेशा चेहरा,दामन तेरा खुशियों से भरा रहे,सपनों की दुनियां आबाद बनी रहे,हँसती हुई आँखें कभी नम न पड़े,कालजयी जमाना कभी आँख मिचौली न खेले,छलाबी दुनियां से ठग मत जाना,खुशियों की यादों के सहारे,दुखों को पार लगा लेना,कभी ऐसा भी पल आये जीवन

29

अनावरण या आवरण लघु कथा]

11 जुलाई 2018
0
1
0

तड़के सुबह से ही रिश्तेदारों का आगमन हो रहा था.आज निशा की माँ कमला की पुण्यतिथि थी. फैक्ट्री के मुख्यद्वार से लेकर अंदर तक सजावट की गई थी.कुछ समय पश्चात मूर्ति का कमला के पति,महेश के हाथो अनावरण किया गया.कमला की मूर्ति को सोने के जेवरों से सजाया गया था.एकत्र हुए रिश्तेदार समाज के लोग मूर्ति देख विस्म

30

टेलीफोन हितेषी या जंजाल

12 जुलाई 2018
0
0
0

मुंह अँधेरे ही भजन की जगह,फोन की घंटी घनघना उठी,घंटी सुन फुर्ती आ गई,नही तो,उठाने वाले की शामत आ गई,ड्राईंग रूम की शोभा बढाने वाला,कचड़े का सामान बन गया,जरूरत अगर हैं इसकी,तो बदले में कार्डलेस रख गया,उठते ही चार्जिंग पर लगाते,तत्पश्चात मात-पिता को पानी पिलाते,दैनान्दनी से निवृत हो,पहले मैसेज पढ़ते,बा

31

मृगतृष्णा का जाल बनता गया.........

14 जुलाई 2018
0
0
0

भावनाओं का चक्रव्यूह तोड़ स्मृतियों के मकड़जाल से निकल कच्ची छोड़,पक्की डगर पकड़ लालसाओं के खुवाओं से घिराभ्रमित मन का रचित संसार लिए.....रेगिस्तान में कड़ी धूप की जलधारा की भांति सपनें पूरे करने......चल पड़ा एक ऐसी डगर.......अनजानी राहें,नए- लोग चकाचौंध की मायावी दुनियां ऊँची-ऊँची इमारतों जैसे ख्वाब हकीक

32

जल सम , जीवन का आधार

15 जुलाई 2018
0
0
0

जीवन पानी का बुलबुला, पानी के मोल मत समझो, जीवन का हैं दूसरा नाम , प्रकृति का अमूल्य उपहार, जीवनदायिनी तरल, पानी की तरह मत बहाओ, पूज्यनीय हमारे हुए अनुभवी, घाट- घाट का पानी पीकर, जिन्हें हम, पिन्डा पानी देते, तलवे धो- धोकर हम पीते, ×---×----×-----×---×--× सामाजिक प्राणी है, जल में रहकर, मगर

33

मैं और मेरा शहर

16 जुलाई 2018
0
2
0

मैं और मेरा शहर सौन्दर्यीकरण का अद्भुत नमूना शोरगुल भरें, चकाचौंध करते जातपात, धर्म वाद से परे पर अर्थ वाद की व्यापकता बचपन की यादों से जुडा मेरी पहचान का वो हिस्सा जानकर भी अनजान बने रहते आमने सामने पड जाते तो कलेजा उडेल देते प्रदूषण, शोर, भीड़ भरा शहर ना पक्षियों की चहचहाहट भोर होने का एहसास करात

34

यातना

17 जुलाई 2018
0
0
0

समय समय की बात यातना का जरिया बदला आमने सामने से ना लेते देते अब व्हाटसअप, फेसबुक से मिलती। जमाना वो था असफल होने पर बेटे ने बाप की लताड से सीख अव्वल आकर बाप का फक्र से सीना चौडा करता, पर अब तो, लाश का बोझ कंधे पर डाल दुनियां से ही अलविदा हो चला। सासूमां का बहू को सताना सुधार का सबक होता था नखरे

35

वो क्यों नहीं आई !

23 जुलाई 2018
0
0
0

लाठी की टेक लिए चश्मा चढाये,सिर ऊँचा कर मां की तस्वीर पर,एकटक टकटकी लगाए,पश्चाताप के ऑंसू भरे,लरजती जुवान कह रही हो कि,तुम लौट कर क्यों नहीं आई,शायद खफा मुझसे,बस, इतनी सी हुई,हीरे को कांच समझता रहा,समर्पण भाव को मजबूरी का नाम देता,हठधर्मिता करता रहा,जानकर भी, नकारता र

36

गोपालदास नीरज जी - श्रद्धांजलि

24 जुलाई 2018
0
2
1

काव्य मंचों के अपरिहार्य ,नैसर्गिक प्रतिभा के धनी,प्रख्यात गीतकार ,पद्मभूषण से सम्मानित,जीवन दर्शन के रचनाकार,साहित्य की लम्बी यात्रा के पथिक रहे,नीरज जी का जन्म उत्तर प्रदेश के जिला इटावा के पुरावली गांव में श्री ब्रज किशोर सक्सेना जी के घर ४ जनवरी,१९२५ को हुआ था.गरीब परिवार में जन्मे नीरज जी की ज

37

मैं और मेरे गुरु

27 जुलाई 2018
0
0
0

38

एक जिद्द कविता]

1 अगस्त 2018
0
0
0

बहुत देख ली आडंबरी दुनिया के झरोखों से बहुत उकेर लिए मुझे कहानी क़िस्सागोई में लद गए वो दिन, कैद थी परम्पराओं के पिंजरे में भटकती थी अपने आपको तलाशने में उलझती थी, अपने सवालों के जबाव ढूँढने में तमन्ना थी बंद मुट्ठी के सपनों को पूरा करने की उतावली,आतुर हकीकत की दुनिया जीने की दासता की जंजीरों को तो

39

गुरु महिमा

2 अगस्त 2018
0
0
0

क्षण-प्रतिक्षण,जिंदगी सीखने का नाम सबक जरूरी नहीं,गुरु ही सिखाएजिससे शिक्षा मिले वही गुरु कहलाये जीवंत पर्यन्त गुरुओं से रहता सरोकार हमेशा करना चाहिए जिनका आदर-सत्कार प्रथम पाठशाला की गुरु माँ बनी दूजी शाला के शिक्षक गुरु बने सामाजिकता का पाठ माँ ने सिखाया शैक्षणिक स्तर शिक्षक ने उच्च बनाया नैतिक श

40

उम्मीदों की मशाल

4 अगस्त 2018
0
0
0

रामू की माँ तो अपने पति के शव पर पछाड़ खाकर गिरी जा रही थी.रामू कभी अपने छोटे भाई बहिन को संभाल रहा था ,तो कभी अपनी माँ को.अचानक पिता के चले जाने से उसके कंधों पर जिम्मेदारियों का बोझ आ पड़ा था.पढ़ाई छोड़,घर में चूल्हा जलाने के वास्ते रामू काम की तलाश में सड़को की छान मारता।अंततःउसने घर-घर जाकर रद्दी बेच

41

राष्ट्र कवि गुप्तजी = दो शब्द

5 अगस्त 2018
0
2
0

राषटर् कविमानस भवन में आरय़जनजिसकी उतारे आरती।भगवान भारतव्रष मेंगूंजें हमारी भारती।। हिंदी साहित्य के राष्ट्र कवि पद्मभूषण से सम्मानित श्री मैथलीशरणगुप्त जी का जन्म ३ अगस्त,१८८५में उत्तर प्रदेश के जिला झाँसी के चिरगांव में हुआ था.हम सब प्रतिवर्ष जयंती कोकवि दिवस के रूप में मनाते हैं.अपनी पहली काव्य

42

बूंदें

6 अगस्त 2018
0
2
0

आसमां से धरती तक पदयात्रा करती हरित पर्ण पर मोती सी चमकती बूंद बूंद घट भरे बहती बूंदे सरिता बने काली ने संहार कर एक एक रक्त बूंद चूसा बापू ने रक्त बूंद बहाये बिना नयी क्रांति का आह्वान किया बरसती अमृत बूंदें टेसू पूनम की रोगी काया को निरोगी करे मन को लुभाती ओस की बूंदें क्षणभंगुर सम अस्तित्व का ज

43

तलाश

20 अगस्त 2018
0
0
0

कतरन बनी जिन्दगी में भीड में अजनबियों के बीच अपने आप को खोजती टूटे सपनों को लडी को बिखरे रिश्तों को जोडने की जद्दोजहद आदर्शों, आस्थाओं को स्थापित करने का रास्ता खोजते मंजिलों पाने को घिसी पिटी, ढर्रे की रोजमर्रा की जिंदगी में विसंगतियों को संवेदनहीनता को उजागर कर एक नए उजाले को मिलना महज संयोग नहीं

44

दोस्ती

28 अगस्त 2018
0
0
0

दोस्ती बचपन की यादों का अटूट बंधन बिना लेनदेन के चलने वाला खूबसूरत रिश्तों का अद्वितीय बंधन एक ढर्रे पर चलने वाली जिंदगी में नई नई सोच से रूबरू करवाया अर्थ हीन जीवन को अर्थपूर्ण बनाया जीने का एक अलग अंदाज सिखाया निराशा में राहत, कठिनाई में पथप्रदर्शक बन सफलता का सच्चा रास्ता दिखाया ऐसे थे और हैं मे

45

वो भी क्या दिन थे.......

23 सितम्बर 2018
0
1
0

वो भी क्या दिन थे ....बचपन के वो दिनअसल जिंदगी जिया करते थे कल की चिंता छोड़ आज में जिया करते थे ईर्ष्या,द्वेष से परे,पाक दिल तितली की मानिंद उड़ते ना हाथ खर्च की चिंता,ना भविष्य के सपने बुनते हंसी ख़ुशी में गुजरे दिन ,धरती पर पैर ना टिकते छोटे छोटे गम थे,छोटी छोटी

46

वो लडकी

25 सितम्बर 2018
0
0
0

क्या दोष था मेरा बस मैं एक लडकी थी अपना बोझ हल्का करने का जिसे बालविवाह की बलि चढा दिया मैं लिख पढकर समाज का दस्तूर मिटा एक नई राह बनाना चाहती थी मजबूर, बेवश,मंडप की वेदी पर बिठा दिया दुगुनी उम्र के वर से सात फेरे पडवा दिए वक्त की मार बिन बुलाए चली आई छीट की चुनरिया के सब रंग धुल गए कल की शुभ लक्ष

47

वो लौट के नहीं आआई

25 सितम्बर 2018
0
0
0

लाठी की टेक लिए चश्मा चढाये , सिर ऊँचा कर मां की तस्वीर पर एकटक टकटकी लगाए पश्चाताप के ऑंसू भरे लरजती जुवान कह रही हो कि तुम लौट कर क्यों नहीं आई शायद खफा मुझसे बस, इतनी सी हुई हीरे को कांच समझता रहा समर्पण भाव को मजबूरी का नाम देता हठधर्मिता करता रहा जानकर भी, नकारता रहा फिर, पता नहीं कौन सी बात

48

जन्मसिद्धता

8 अक्टूबर 2018
0
0
0

जन्मसिद्धता तू ही नहीं, सभी खुश थे मेरे दुनियां में आने की खबर सुन लेकिन जब किलकारी गूंजी तेरे घर आंगन में मायूस भरे उदास चेहरे हुए कारण समझ ना पाई पर तू जग की रीति निर्वाह अनबूझ रही मुझसे क्या मैं चिराग नहीं दहेज ढोने वाली ठुमके ठुमक करते पग फूटी आँख किसी को ना सुहाते स्वतंत्रता पर प्रश्न चिन्ह लगा

49

नारी तू नारी हैं

27 जनवरी 2019
0
0
0

नव रसो की खान,आशा है, अभिलाषा है त्यागमयी ममतामयी जीवन की परिभाषा है श्रद्धासमर्पण दृश्यविहीन सी माया की परछाई ईश्वर की भरपाई करने तू जगत में आई बहुतेरे रूप तेरे बहुकार्यो में पारंगत तू शाश्वत अनुराग से भरी दुआये लुटाती तू बिना जताएअंतर्मन को पढ, चिन्ता भय मुक्त करती सौभाग्यवती भव मे हाथ उठे, सदैव आ

50

मन का भंवर

31 जनवरी 2019
0
1
0

मन का भंवर अकस्मात मीनू के जीवन में कैसी दुविधा आन पड़ी????जीवन में अजीव सा सन्नाटा छा गया.मीनू ने जेठ-जिठानी के कहने पर ही उनकी झोली में खुशिया डालने के लिए कदम उठाया था.लेकिन .....पहले से इस तरह का अंदेशा भी होता तो शायद .......चंद दिनों पूर्व जिन खावों में डूबी हुई थी,वो आज दिवास्वप्न सा ल

51

प्यार का दंश या फर्ज

3 मार्च 2019
0
0
0

प्यार का दंश या फर्ज तुलसीताई के स्वर्गवासी होने की खबर लगते ही,अड़ोसी-पड़ोसी,नाते-रिश्तेदारों का जमघट लग गया,सभी के शोकसंतप्त चेहरे म्रत्युशैय्या पर सोलह श्रंगार किए लाल साड़ी मे लिपटी,चेहरे ढका हुआ था,पास जाकर अंतिम विदाई दे रहे थे.तभी अर्थी को कंधा देने तुलसीताई के पति,गोपीचन्दसेठ का बढ़ा हाथ,उनके बे

52

जीवन के अध्याय

17 जून 2019
1
1
2

जिन्दगी में हर पल एक नई चुनौतियों को लेकर आता हैं,जो असमान संघर्षो से भरा होता हैं.इस पल को सामने पाकर कोई सोचना लगता हैं कि शायद मेरे जीवन में नया चमत्कार होने वाला हैं.अर्थात् सभी के मन में चमत्कार की आशा पैदा होने लगती हैं.चुनौतियां जो इंसानी जीवन का अंग है,जो इन चुनौतियों का सामना दृढता के साथ क

53

जीवन के अध्याय पढ़कर देखें अच्छा लगेगा

5 जुलाई 2019
0
1
1

जीवन के अध्याय जिन्दगी में हर पल एक नई चुनौतियों को लेकर आता हैं,जो असमान संघर्षो से भरा होता हैं.इस पल को सामने पाकर कोई सोचने लगता हैं कि शायद मेरे जीवन में नया चमत्कार होने वाला हैं.अर्थात् सभी के मन में चमत्कार की आशा पैदा होने लगती हैं.चुनौतियां जो इंसानी जीवन क

54

गांधीजी का शिक्षा दर्शन

2 अक्टूबर 2019
0
0
0

शिक्षा ........जन-जन के प्रेरणा स्त्रोत गांधीजी की सूक्तियों,चिंतनशील विचारों में समाहित अनगिनत शिक्षाओं को आत्मसात करने से,जीवन में तम की जगह उजास और प्रेरणा

55

होली

11 मार्च 2020
0
1
0

56

11 मार्च 2020
0
0
0

57

बचपन का सरगम

20 जुलाई 2020
0
0
0

बचपन का सरगमघुमड़-घुमड़ घनघोर करियारेनीर भरे मेघा बरसेसंगीत छेड़ती मोती-सीबूंदों का सरगमलगी फुहारों की झड़ी सजते सुरताल जलतरंग करती झमाझमबूंदों की झंकार लहर-लहर स्वागत करतीउल्लासित ठंडी हवाएं नदियां,नाले,सड़के सब लबालव होतेभूला-बिसरा बचपनऑखों में तैर गयाभीगते-भागते सबकागज की नाव तैरातेरूठा-मनाई छोड़आ

58

आजादी

16 अगस्त 2020
0
0
0

आजादी दशक पर दशक बीत गये विकसित कितना हो पाये? लोकतंत्रीय गणराज्य में गण कितना स्वाधीन हो पाये? कागजों में अंकित वृद्धोत्तरी कितनी आह्लाद या खुशी देती? फन फैलाये बैठी सत्ता लोलुपता क्षुद्र स्वार्थों में वशीभूत हो अखंड देश को खंडित करने गौण मानसिकता उत्तरदायी नहीं? प्रतिवर्ष राष्ट्र पर्व पर परंपराग

59

आधी आबादी का सच

8 मार्च 2021
0
0
0

आधी आबादी का सच : बदलाव की दरकार शेष हैं.... विश्व की अन्य महिलाओं की तरह भारत की महिलाओं को आजादी से जीने,अधिकारों का उपयोग कर अपना सर्वागीण विकास करने और अपने मताधिकार के लिए संघर्ष नही करना पड़ा। अपने संघर्ष, मेहनत,जुनून ,जज्बे से हर सीमाओं को लांघकर पुरूषों से क

60

आ से आजादी....आधी आबादी की जंग जारी हैं...

15 अगस्त 2021
2
0
0

आ से आजादी....आधी आबादी की जंग जारी हैं....आजादी की पिचहत्तर वीं सालगिरह बना रहा देश...इस आजादी के संघर्ष में समाज के विकास और तरक्की में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन निर्वहन कर रही आधी आबादी की पूरक महिलाएं...घूंघट से निकलकर स्वतंत्रता आन्दोलनों में अभूतपूर्व योगदान दिया।महात्मा गांधी जी ने आंदोलनो

61

सा विद्या विमुक्ते

2 सितम्बर 2021
2
6
1

<p>‘सा विद्या<br> विमुक्ते’</p> <p>समाज की प्रगति के लिए<br> उसकी बुनियादी रचना करनी होगी।समाज में म

62

मातृभाषा हिन्दी दिवस

14 सितम्बर 2021
3
8
1

<p>व्यक्ति के सर्वागीण विकास का जरिया : मातृभाषा<br> बहुभाषिक वाले इंद्रधनुषी भारत में अपनी मिट्टी क

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए