टेड़ी मेड़ी मतवाली सी लहर बन अपना मार्ग प्रशस्त करती,
पर आज, नीरव निस्तब्धता इसकी खतरे काआगाज़ करती,
सरिता नीर से धरती संचित करते करते तटों पर सिमटती सी,
जीवन दायिनी की जीवान्तता शनैः शनैः खत्म होती सी,
भंवर में फंसी नाव कई-कई उतार चढ़ाव सहती,
फ़िसल गया चप्पू, छोड़ गया खिवैया, अनाथ हो गईं नाव,
पर, सोचती, जीवन की नैया पार लगाने आएगा कभी तो कोई खिवैया,
फिर मैंअविरल, अनवरत बहकर, वो मुझे मेरी मंजिल पहुंचाएगा