रक्तरंजित साँझ के
आकाश का आधार लेकर
एक पत्रविहीन तरु
कंकाल-सा आगे खड़ा है.
टुनगुनी पर नीड़ शायद चील का,
खासा बड़ा है.
एक मोटी डाल पर है
एक भारी चील बैठी
एक छोटी चिड़ी पंजों से दबाए
जो कि रह-रह पंख
घबराहट भरी असमर्थता से
फड़फड़ाती,
छुट न पाती,
चील कटिया सी नुकीली चोंच से
है बार-बार प्रहार करती,
नोचकर पर डाल से नीचे गिराती,
माँस खाती,
मोड़ गर्दन
इस तरफ़ को उस तरफ़ को
देख लेती;
चार कायर काग चारों ओर
मंडलाते हुए हैं शोर करते.
दूर पर कुछ मैं खड़ा हूँ.
किंतु लगता डाल पर मैं ही पड़ा हूँ;
एक भीषण गरुड़ पक्षी
मांस मेरे वक्ष का चुन-चुन
निगलता जा रहा है;
और कोई कुछ नहीं कर पा रहा है.
अर्थ इसका,मर्म इसका
जब न कुछ भी समझ पड़ता
बुद्ध को ला खड़ा करता--
दृश्य ऐसा देखते होते अगर वे
सोचते क्या,
कल्पना करते ? न करते ?
चील-चिडियाँ के लिए,
मेरे लिए भी किस तरह के
भाव उनके हिये उठते ?
शुद्ध,
सुस्थिरप्रग्य,बुद्ध प्रबुद्ध ने
दिन-भर विभुक्षित चील को
सम्वेदना दी,
तृप्ति पर संतोष,
उनके नेत्र से झलका,
उसी के साथ
चिड़िया के लिए संवेदना के
अश्रु ढलके,
आ खड़े मेरे बगल में हुए चल के,
प्राण-तन-मन हुए हल्के,
हाथ कंधे पे धरा,
ले गए तरु के तले,
जैसे बे चले ही पाँव मेरे चले ?
नीचे तर्जनी की,
बहुत से छोटे-बड़े,रंगीन,
कोमल-करूण-बिखरे-से
परों से,
धरनि की धड़कन रुकी-सी ह्रत्पटी पर,
प्रकृति की अनपढ़ी लिपि में,
एक कविता सी लिखी थी !
हरिवंश राय बच्चन की अन्य किताबें
हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर 1907 को इलाहाबाद के पास प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे से गाँव पट्टी में हुआ था। हरिवंश राय ने 1938 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अँग्रेज़ी साहित्य में एम. ए किया व 1952 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवक्ता रहे। उनके साहित्य में मानव के प्रति प्रेम भावना अभिव्यक्त हुई है। उन्होंने निरंतर स्वार्थी मनुष्यों पर कटु व्यंग किए हैं। रहस्यवादी भावना : बच्चन जी के हालावाद में रहस्यवादी भावना का अनूठा संगम है। उन्होंने जीवन को एक प्रकार का मधुकलश और दुनिया को मधुशाला, कल्पना को साकी तथा कविता को एक प्याला माना है। हिंदी भाषा के एक कवि और लेखक थे। वे हिन्दी कविता के उत्तर छायावाद काल के प्रमुख कवियों में से एक हैं। हरिवंश राय बच्चन 20 वी सदी के नयी कविताओ के एक विख्यात भारतीय कवि और हिंदी के लेखक थे। इनकी कविताओं के द्वारा ही भारतीय साहित्य में परिवर्तन आया था और इनके द्वारा लिखी गयी कविताएं जिस शैली में लिखी गयी थी वह पूर्व कवियों की शैलियों से अलग थी, यही कारण है कि इन्हें नयी सदी का रचियता भी कहा जाता है। इनकी रचनाओं ने भारत के काव्य में नयी धारा का संचार किया। हांलाकि हरिवंशराय बच्चन अब हमारे बीच मौजूद नहीं हैं लेकिन उनकी कविताओं के द्वारा आज भी उनके जीवित होने का एहसास होता है। उनकी कविताएं वास्तविकता का दर्पण हैं जिनमे जीवन की सच्चाई का अनूठा विवरण देखने को मिलता है। 1926 में, 19 साल की आयु में, बच्चन ने उनकी पहली शादी की, उनकी पत्नी का नाम श्यामा था, जो केवल 14 साल की ही थी। और 24 साल की छोटी सी उम्र में ही टी.बी होने के बाद 1936 में उसकी मौत हो गयी। बच्चन ने तेजी बच्चन के साथ 1941 में दूसरी शादी की। और उनको दो बेटे भी हुए, अमिताभ और अजिताभ। हरिवंशराय बच्चन का निधन 18 जनवरी 2003 में 95 वर्ष की आयु में मुंबई में हुआ और उनकी पत्नी तेजी बच्चन उनके जाने के तक़रीबन 5 साल बाद दिसम्बर 2007 में 93 साल की आयु में भगवान को प्यारी हुई। हरिवंश राय बच्चन की एक बहु-प्रचलित कविता निश्चित ही आपको एक नयी उर्जा प्रदान करेंगी और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेंगी– “कोशिश करने वालों की…” हरिवंश राय बच्चन की “अग्निपथ” वृक्ष हों भले खड़े, हों घने हों बड़े, एक पत्र छाँह भी, माँग मत, माँग मत, माँग मत, अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ। एक प्रसिद्ध कविता। हरिवंश राय बच्चन का कविता संग्रह हरिवंश राय बच्चन का कविता संग्रह इस प्रकार है: तेरा हार, मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, आकुल अंतर, सतरंगिनी, हलाहल, बंगाल का अकाल, खादी के फूल, सूत की माला, मिलन यामिनी, प्रणय पत्रिका, धार के इधर उधर, आरती और अंगारे, बुद्ध और नाचघर, त्रिभंगिमा, चार खेमे चौंसठ खूंटे दो चट्टानें बहुत दिन बीते, कटती प्रतिमाओं की आवाज, उभरते प्रतिमानों के रूप, जाल समेटा हैं | हरिवंशराय बच्चन जी द्वारा पाठकों और श्रोताओं को अपनी कृतियों के रूप में जो तोहफा दिया है उसको पूरा देश हमेशा याद रखेगा और उनके इस कार्य की सराहना हमेशा की जाएगी। अपनी कृतियों के जरिये वे आज भी जीवित हैं और हमेशा याद किये जाएंगे।D