कहते हैं कि किताब के कवर को देखकर उसके भीतर के कंटेंट का अंदाजा हमेशा नहीं लगता है. कमोबेश यही हालत उत्तर प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ रही है. यूं तो उनकी काबिलियत पर किसी को कोई संदेह नहीं रहा है, लेकिन देश की सर्वाधिक आबादी वाले इस जटिल प्रदेश के राजनीतिक हालातों को लेकर उन पर मौके-बेमौके कटाक्ष किये ही जाते रहे हैं. हालाँकि, कदम दर कदम अखिलेश यादव ने उन सभी आशंकाओं को गलत ही साबित किया है, बल्कि यह कहना ज्यादा ठीक रहेगा कि तमाम झंझावातों के बावजूद राजनैतिक संतुलन बनाना और प्रदेश को विकास के पथ पर अग्रसर रखना जैसे गुण दूसरों को उनसे जरूर सीखना चाहिए. देश में जब केंद्र सरकार ने बुलेट परियोजना के शुरुआत की बातें कहीं थीं तो इसकी कई जगह पर आलोचना हुई, लेकिन उत्तर प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री की दूरदर्शिता देखिये कि उन्होंने भविष्य की जरूरतों को राजनीति से परे रखकर देखा और जब 2016 - 17 के लिए उन्होंने अपना बजट प्रस्तुत किया तो यह तक कह डाला कि अगर उत्तर प्रदेश से कोई बुलेट-ट्रेन परियोजना गुजरती है तो यूपी सरकार मुफ्त ज़मीन प्रदान करेगी! इस बात में राजनीति ढूंढने वाले तो राजनीति ढूंढेंगे ही, किन्तु आप आने वाले 20 सालों पर दृष्टि दौड़ाएं तो समझ जायेंगे कि हाई-स्पीड ट्रेनों के वगैर आवागमन लगभग असंभव ही हो जायेगा, क्योंकि एक ओर जहाँ आबादी बढ़ेगी वहीं दूसरी ओर समय की किल्लत भी बढ़ती ही जाएगी! न केवल बुलेट-ट्रेन परियोजना को लेकर, बल्कि प्रदेश की अन्य कई जरूरतों पर अपने बजट में यूपी सरकार ने बारीकी से ध्यान दिया है, जिसके लिए अखिलेश यादव को साधुवाद दिया ही जाना चाहिए. हालाँकि, कई आलोचक कह सकते हैं कि चुनावी साल की वजह से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भारी-भरकम बजट और सौगातों की बरसात की है, किन्तु ऐसा कहने वाले भूल जाते हैं कि उत्तर प्रदेश के पिछले कई बजट विकासोन्मुखी ही रहे हैं. आंकड़ों के लिहाज से देखा जाए तो वित्त वर्ष 2016-17 के लिए तीन करोड़ 46 लाख 935 करोड़ रुपये का बजट प्रस्तुत किया गया है, जो पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले तकरीबन 14.6 प्रतिशत अधिक है. अखिलेश सरकार के इस पांचवें बजट में 13 हजार 842 करोड़ रुपये की नई योजनाएं सम्मिलित की गयी हैं और जरूरत के लिहाज से कृषि, शिक्षा तथा सामाजिक सुरक्षा पर खास जोर दिया गया है.
विधानसभा उस वक्त तालियों से गूँज उठा जब अखिलेश यादव ने बजट भाषण शुरू करने से पहले कहा कि "जब से पतवारों ने मेरी नाव को धोखा दिया, मैं भंवर में तैरने का हौसला रखने लगा." इस क्रम में वित्त वर्ष 2016-17 को ‘किसान एवं युवा वर्ष’ घोषित करने का निर्णय उत्तर प्रदेश सरकार ने लेकर यह सिद्ध किया कि आधुनिक समय में भी उसके लिए सामाजिक सुरक्षा ख़ास महत्त्व रखती है. इस बजट में जहाँ किसानों को बकाया गन्ना मूल्य भुगतान के लिये 1,336 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गयी तो प्रस्तावित ‘समाजवादी किसान एवं सर्वहित बीमा योजना’ के लिये 897 करोड़ रुपये भी आवंटित किये गए हैं, जिससे खेतिहरों को एक बड़ी राहत मिल सकने की उम्मेदद जगी है. इसके अलावा सूखाग्रस्त 50 जिलों में फसलों को हुई क्षति से निपटने के लिये 2,057 करोड़ रुपये की कार्ययोजना तैयार करने की बात कही गयी है, तो सूखाग्रस्त जिलों में अतिरिक्त चारा दाना विकास कार्यक्रम भी प्रस्तावित हुआ है. इसी क्रम में एक और बड़े फैसले में किसानों को 3 प्रतिशत ब्याज दर पर अल्पकालिक फसली ऋण देने के लिये 200 करोड़ रुपये की व्यवस्था यूपी गवर्नमेंट ने करने की घोषणा की है. अधिक उत्पादन के प्रोत्साहन के लिए पुरस्कार राशि बढ़ाने की घोषणा एक महत्वपूर्ण कदम है, तो राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में 787 करोड़ रुपये की व्यवस्था हमारी कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के लिए एक मजबूत सम्बल है. इसके साथ बहराइच में किसान बाजार, भूमि सेना योजना के लिये 83 करोड़ रुपये की व्यवस्था, युवाओं को कृषि से जोड़ने के लिये "प्रशिक्षित कृषि उद्यमी स्वावलम्बी योजना" के तहत एक हजार एग्री जंक्शन बनाने का प्रस्ताव रखा गया है. इस क्रम में, मुख्यमंत्री ने बजट में सिंचाई की नयी योजनाओं के लिये 1,574 करोड़ रुपये की व्यवस्था भी की है, जिससे किसानों की सिंचाई समस्या को सुलझाने में राहत की बड़ी गुंजाइश दिखती है. इस बजट में 362 लाख टन दुग्ध उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है तो 300 कामधेनु, 1,500 मिनी कामधेनु और 2,500 माइक्रो कामधेनु इकाइयों की स्थापना का प्रस्ताव दुग्ध उत्पादन की दिशा में प्रदेश सरकार का एक अनमोल प्रयास साबित हो सकता है. हालाँकि, इसके कार्यान्वयन के लिए जरूरी संशाधनों और निगरानी प्रक्रिया पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को ठोस व्यवस्था करनी होगी, अन्यथा असल लाभार्थियों को लाभ मिलने में संशय बरकरार रहेगा. सपा सरकार की लोकप्रिय ‘समाजवादी पेंशन योजना’ के तहत वर्ष 2016-17 में 55 लाख लाभार्थियों को शामिल करने का लक्ष्य तय करते हुए बजट में अलग से 3,327 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गयी है. इसी कड़ी में, वृद्धावस्था एवं किसान पेंशन योजना के लिये 1,550 करोड़, राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना के लिये 500 करोड़ रुपये, नि:शुल्क मोटर एवं बैटरी चालित ई-रिक्शा योजना के लिये 100 करोड़ रुपये तथा सबके लिये आवास (शहरी मिशन) योजना के लिये 277 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है. जाहिर तौर पर इस बार सरकार ने सभी क्षेत्रों को संतुलित करने का भरपूर प्रयास किया है तो अखिलेश यादव ने बजट के प्रत्येक पहलु पर गहराई से कार्य भी किया है. सरकार ने ग्रामीण सम्पर्क मार्गों और लघु सेतु-निर्माण के लिये 630 करोड़ रुपये की व्यवस्था की है, साथ ही साथ कृषि विपणन सुविधाओं के लिये सम्पर्क मार्ग के निर्माण के अन्य कार्यो के वास्ते 1,413 करोड़ रुपये की भी व्यवस्था की गयी है. इसके अलावा ग्रामीण पेयजल कार्यक्रमों के लिये 23 अरब रुपये का भारी भरकम प्रावधान किया गया है, जो आने वाले समय में पेयजल की समस्याओं को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर सकता है. इस क्रम में, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के लिये 2,031 करोड़ रुपये, ‘आई स्पर्श’ योजना के तहत गांवों को स्मार्ट विलेज बनाने की योजना के लिये 300 करोड़ रुपये, लोहिया ग्रामीण आवास योजना के लिये 17 अरब 79 करोड़ रुपये तथा इंदिरा आवास योजना के लिये 31 अरब 62 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गयी है. राजधानी में जयप्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय केन्द्र की स्थापना के लिये 300 करोड़ रुपये तथा राजधानी में ही ‘शान-ए-अवध’ संकुल के निर्माण के लिये 100 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गयी है, जो प्रदेश की छवि निर्माण के प्रयासों को बल प्रदान करेगा. दूरदर्शी सीएम अखिलेश ने लखनउ मेट्रो रेल परियोजना के लिए 814 करोड रुपये, तथा कानपुर एवं वाराणसी मेट्रो के लिये 50-50 करोड़ रुपये की व्यवस्था करके, अपने इन प्रयासों से उन राजनीतिक आलोचकों को कड़ा जवाब देने का प्रयास किया है जो प्रदेश सरकार की मंशा पर सैफई और दुसरे क्षेत्रों को लेकर भेदभाव का आरोप चस्पा करने में देर नहीं करते हैं. उन तमाम राजनीतिक पंडितों को वाराणसी में मेट्रो परिचालन के फैसले से करारा झटका अवश्य ही लगा होगा. हालाँकि, कानपुर और वाराणसी में इस मद में बजट थोड़ा और बढ़ाया जाता तो निश्चित रूप से यह कार्य तेज गति से आगे बढ़ता. बजट में अगर आगे हम गौर करते हैं तो प्रदेश के चयनित मॉडल शहरों के विकास के लिये 50 करोड़ तथा लखनउ-आगरा एक्सप्रेस वे के लिए 4,003 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गयी है.
इसकी अगली कड़ी में अगर हम दृष्टिपात करते हैं तो ऊर्जा संकट को लेकर प्रदेश सरकार की आलोचना कोई नयी बात नहीं है और इसी को ध्यान में रखते हुए, मुख्यमंत्री ने वर्ष 2016 तक प्रदेश में मौजूदा बिजली उपलब्धता को 11,000 मेगावाट से बढाकर 21,000 मेगावाट (लगभग दोगुना) तक पहुंचाने का लक्ष्य घोषित करते हुए कहा कि इस साल अक्तूबर से ग्रामीण क्षेत्रों में कम से कम 16 घंटे और शहरी क्षेत्रों को 22 से 24 घंटे बिजली आपूर्ति का लक्ष्य प्राप्त करने तथा वर्ष 2019-20 से पूरे प्रदेश में चौबीसों घंटे बिजली उपलब्ध कराने की कार्ययोजना तैयार कर ली गयी है. हालाँकि, इसके सटीक कार्यान्वयन के लिए न केवल मुख्यमंत्री को बल्कि पूरे प्रशासनिक अमले को जी जान से जुटना होगा. तभी तय समय में इस सर्वाधिक आबादी वाले प्रदेश में ऊर्जा संकट को काबू किया जा सकता है. वैसे, अखिलेश ने बजट में ग्रामीण विद्युतीकरण योजना में एक लाख 73 हजार गांवों तथा शहरों में विद्युतीकरण के लिये लगभग 11 हजार 900 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है. बिजली आपूर्ति के लिये राज्य फीडर विभक्तीकरण योजना के लिये सात हजार करोड़ रुपये की अलग से व्यवस्था भी की गयी है. वर्ष 2016 - 17 के इस बजट में बिजली वितरण कंपनियों के लिये वित्तीय पुनर्गठन की योजना ‘उदय’ पर अमल का निर्णय लिया गया है और उसके लिये बिजली वितरण कंपनियों को 39 हजार 909 करोड़ रुपये की मदद दिये जाने का प्रावधान भी किया गया है. हालाँकि, बेहतर यह होता अगर मुख्यमंत्री बिजली चोरी को लेकर ठोस उपायों की भी घोषणा करते, क्योंकि यह एक बड़ा कारक है जिससे प्रदेश की बिजली व्यवस्था चरमरा जाती है. आगे देखने पर हमें प्रतीत होता है कि पूरे देश में विद्यार्थियों को लैपटॉप बांटकर एक अलग पहचान बना चुके अखिलेश यादव ने इस बजट में सर्वशिक्षा अभियान के लिये 15 हजार 397 करोड़ रुपये, माध्यमिक शिक्षा की विभिन्न योजनाओं के लिये 9,168 करोड़ रुपये तथा उच्च शिक्षा की योजनाओं के लिये 2,622 करोड़ रुपये का प्रावधान किया जाना निश्चित रूप से शिक्षा विकास को लेकर एक सकारात्मक सन्देश देने में सफल रहा है. सरकार की प्रमुख योजनाओं में शामिल रही कन्या विद्याधन योजना की संशोधित योजना के तहत प्रति छात्रा 30 हजार रुपये की दर से प्रोत्साहन धनराशि प्रदान करने के लिये 300 करोड़ रुपये तथा 10वीं एवं 12वीं कक्षा उत्तीर्ण करने वाले मेधावी विद्यार्थियों को मुफ्त लैपटाप वितरण के लिये 100 करोड़ रुपये की व्यवस्था इस बार भी बजट में की गयी है. प्रदेश को शिक्षोन्मुखी बनाने की दिशा में खास ध्यान देते हुए बजट में 12 पालीटेक्निक बनाने, बस्ती एवं गोंडा में एक-एक इंजीनियरिंग कालेज की स्थापना करने का निर्णय लेने के साथ-साथ मिर्जापुर में एक इंजीरियरिंग कालेज की स्थापना के लिये 25 करोड़ रूपये की व्यवस्था एक बेहतरीन प्रयास दिखता है. इसी क्रम में, प्रदेश के राजकीय मेडिकल कालेजों तथा उनसे सम्बद्ध चिकित्सालयों एवं चिकित्सा संस्थानों के लिये 4,572 करोड़ रुपये, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के लिये 4,576 करोड़ रुपये तथा लखनऊ कैंसर संस्थान के लिये 310 करोड़ रुपये का प्रावधान भी किया गया है. सरकार ने मान्यता प्राप्त मदरसों में आधुनिक शिक्षा देने के लिये 394 करोड़ रुपये का प्रावधान भी किया है, जिससे आधुनिक विज्ञान और शिक्षा सर्वसुलभ किया जा सके. देखा जाए तो प्रदेश की अखिलेश सरकार ने इस पूरे बजट को लेकर 'गागर में सागर' भरने की रणनीति अपनाई है. बजट के किसी एंगल को लेकर किन्तु-परन्तु नहीं किया जा सकता है और अगर पूरा प्रशासनिक अमला इसे लागू करने में जी-जान से जुट जाए तो प्रदेश सरकार द्वारा दिया गया नारा 'उत्तर प्रदेश से उत्तम प्रदेश' बहुत दूर नहीं है.
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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