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बुन्देली कहावतें

1 मार्च 2022

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                      बुन्देली कहावतें


१. अबे मुड़ कटो हो रऔ, धरम राज कबे आंहे।
अर्थ– जरूरत के वक्त किसी काम का न होना।
२. लुगाओं के मों में मूत नैं खटाउत।
अर्थ– महिलाओं का किसी बात का गुप्त न रख पाना।
३. पांवनो से सांप पकराऔत।
अर्थ– अनभिज्ञ से काम करवाना।
४. घूरे के दिना सोई फिरत हैं।
अर्थ– सब समय एक सा नहीं होता।
५. मरे पे पत्त दऔ।
अर्थ– वक्त पर काम न आना।
६. ठेला बड़ो के उठेला।
अर्थ– किसी बात को जबरन मनवाना।
७. फिरी को चंदन, घिस मोरे नंदन।
अर्थ– मुफ्त की वस्तु का भरपूर इस्तेमाल।
८. घर घूरो हो गऔ।
अर्थ– सब कुछ नष्ट हो जाना।
९. जनाउरों खों नोन देत।
अर्थ– मूर्ख को ज्ञान देना।
१०. नई पिसनारी, भोतई बारीक छन्ना।
अर्थ– नवसीखा से काम करवाना।

ममता

ममता

इन लोकोक्तियों का हिंदी अनुवाद भी दिया करिए क्योंकि सभी नही समझ पाते होंगे। एक अच्छी शुरुआत।

1 मार्च 2022

महेंद्र "अटकलपच्चू"

महेंद्र "अटकलपच्चू"

2 मार्च 2022

अवश्य ।

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रचनाएँ
बुन्देली कहावतें
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छत्रसाल के समय से बुन्देलखण्ड को "इत जमुना उत नर्मदा, इत चम्बल उत टोंस" से जाना जाता है। साथ ही बुन्देलखण्ड की बुंदेली भाषा का भी अपना अलग ही महत्त्व है। बुंदेली भाषा भारत के एक विशेष क्षेत्र बुन्देलखण्ड में बोली जाती है। यह कहना बहुत कठिन है कि बुंदेली कितनी पुरानी बोली हैं लेकिन ठेठ बुंदेली के शब्द अनूठे हैं जो सदियों से आज तक प्रयोग में आ रहे हैं। जिस प्रकार से अलंकार काव्य के सौन्दर्य को बढ़ा देता है उसी प्रकार कहावतों का प्रयोग भाषा के सौन्दर्य को बढ़ा देता है। बोलचाल की भाषा में कहावतों के प्रयोग से वक्ता के कथन के प्रभाव में वृद्धि होती है और साहित्यिक भाषा में कहावतों के प्रयोग से साहित्य की श्रीवृद्धि होती है। आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है ये संकलन भी बुंदेली बोलने वालों के लिए सहायक सिद्ध होगा। सेवा में, संकलानकर्ता

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