विषय _ कविता चौसर का दांव """""""""""""""""" मोहब्बत थी या यूं ही एक पल का झुकाव था ! कुछ उम्र ही ऐसी थी कुछ उस वक्त का ताव था !! दरिया तो पार करने की तमन्ना थी बहुत _ हम क्या करे जब न कोई पतवार न नाव था ! उधेड़बुन में जिंदगी कुछ यूं गुजर रही थी! एक तरफ छांव और एक तरफ अलाव था ! हमसे बिछड़कर भी कह रहे थे वो_! वहीं रहते हो ना जहां मेरी सहेली का गांव था!! अजीब सी दुनिया के हजारों किस्से है ! मैने जब भी सर उठाया मेरी मां का पांव था !! जिंदगी की जद्दोजहद में कुछ यूं फंस गए! जहां भी गए वहां चौसर का एक दांव था !! कोई भरी बारात से आ भूखे पेट आ गया ! और किसी की थाली में दस लोगों का पुलाव था!!