माँ शारदे की क्रपा नहीं चाहिये भाई ,
हमें हुनर आता चापलूसी का जो हरजगह रहे हैं अजमाई ।
कवि सम्मेलन खुब मिल रहे हैं जहां लिफाफे की हैं मिठाई।
कविता अपनी नहीं चुटकुले और लफ्ज़ी से शोहरत कमाई ।
भला हो ऐसे कवियों का जिन्होंने साहित्य की नईया दी डुबाई ।
वतन शहज़ादा